संजय उपाध्याय के नेतृत्व में पटना में “रंग जलसा 2010”
निर्माण कला मंच अपना 22 वां स्थापना वर्ष मना रहा है, और इस उपलक्ष्य में पटना के कालीदास रंगालय में चार दिवसीय “रंग जलसा 2010” का आयोजन किया जा रहा है। निसंदेह निर्माण कला मंच ने नाट्य कला के क्षेत्र में अच्छी खासी दूरी तय कर ली है, और इसका श्रेय बहुत हद तक संजय उपाध्याय को जाता है, जो आज भी सीखने-सीखाने और कुछ कर गुजरने की उर्जा से लबरेज हैं।
18 अगस्त से 21 अगस्त तक चलने वाले इस रंग जलसा में मैकबेथ, हरसिंगार, गवाह, और बड़ा नटकिया कौन जैसे नाटकों और जनता पागल हो गई, बकरी, राजा का बाजा, जिन्दाबाद-मुर्दाबाद, मशीन, इसका जिम्मेवार कौन, अंधो का हाथी, मिस्टर बुलडोजर, मैं बिहार हूं, सपनो का कैदी जैसे नुक्कड़ नाटकों का मंचन किया जा रहा है। संजय उपाध्याय बिहार में पूरी ईमानदारी से नाट्य कला के विकास और प्रसार में लगे हुये हैं, इस बात का आभास कालीदास रंगालय में कदम रखते ही असीम उर्जा से भरी हुई विभिन्न टीमों के सदस्यों की प्रस्तुतियों को देखकर होता है और इन्हें एक साथ एक जगह पर एकत्र करने में संजय उपाध्याय भी अपनी पूरी उर्जा झोंके हुये हैं, और लगातार प्रत्येक प्रस्तुति को और उम्दा बनाने के लिए विभिन्न स्तर पर काम कर रहे हैं।
18 अगस्त को बेगूसराय की आहुति नाट्य अकादमी की ओर से विलियम शेक्सपीयर लिखित नाटक मैकबेथ का मंचन किया गया, जिसे हिन्दी में रुपांतरित करने का काम रघुवीर सहाय ने किया था और निर्देशन प्रवीण कुमार गुंजन का था। दर्शकों ने इसे काफी सराहा। मैकबेथ की भूमिका पंकज गौतम ने और लेडी मैकबेथ की भूमिका अंकिता कुमारी ने निभाई थी, और दोनों की कैमेस्ट्री काफी प्रभावी रही। ब्रोशर में इस नाटक के बारे में अंग्रेजी में जानकारी दी गई थी, जबकि इसका मंचन हिन्दी में हुआ। बेशक अंग्रेजी एक यूनिवर्सल लैंग्वेज है, लेकिन जब एक अंग्रेजी नाटक को हिन्दी में प्रस्तुत करने के लिए पूरी टीम एड़ी चोटी की जोर लगा रही है, तो उस नाटक की जानकारी ब्रोशर में अंग्रेजी में देने का कोई तूक समझ में नहीं आता है, हालांकि इससे नाटक के मंचन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। शेक्सपीय के एक चर्चित नाटक को हिन्दी में देखने-सुनने का अवसर उनके लिए अहम था। इसी दिन दिशानी कला मंच, पटना द्वारा कृष्ण किंचित के निर्देशन में जनता पागल हो गई और सफरमैना पटना, द्वारा बकरी का मंचन किया गया।
रंग जलसा 2010 के ब्रोशर में निर्माण कला मंच के अध्यक्ष के तौर सफरमैना पर रोशनी डालते हुये डाक्टर उषाकिरण खान लिखती हैं, “ बाल रंगमंच को बढ़ावा देने हेतु निर्माण कला मंच ने सन 1990 में सफरमैना से एक बाल नाट्य मंडली को स्थापित किया, जिसने सतत कार्यरत रहते हुये अब तक अंधेर नगरी, चमत्कारी जूता, बकरी, घेरा, रावण, चार किस्से चौपाल के, चरणदास चोर, बजे ढिंढोरा, बेटी बेचवा, गांधी चौक, ये बच्चा किसका बच्चा है आदि सफल नाट्य प्रस्तुतियों के माध्यम से रंगमंच को समृद्धि प्रदान करने का प्रयास किया है।”
19 अगस्त को श्रीकांत किशोर लिखित नाटक हरसिंगार का मंचन संजय उपाध्याय के निर्देशन में किया गया। पारंपरिक परिवेश को अपने में समेटे यह नाटक एक स्त्री के अस्तित्व को टटोलने का एक आधुनिक प्रयास था, जिसमें बच्चे पर एक स्त्री के नैर्सगिक अधिकार की वकालत की गई थी, और साथ ही स्त्री की बेवफाई को भी पूरी मजबूती से स्थापित किया गया था। सूत्रधार नट और नटी रूप में क्रमश: शुभ्रो भट्टाचार्य और शारदा सिंह की जोड़ी स्त्री और पुरुष के आपसी संबंधों को गहराई से पड़ताल करते हुये नजर आ रहे थे। वाचिक स्तर पर दोनों की केमेस्ट्री भी खूब फब रही थी। वहीं राजा की भूमिका में सुमन कुमार का अभिनय देखते ही बन रहा था। वह आत्मविश्वास से भरे हुये थे, और एक बार मंच पर आने के बाद दर्शकों की नजरें उन्हीं पर टिकी रहती थी। एक बेहतरीन अभिनेता के तौर पर असीमित उछाल मारने की पूरी संभावना दिख रही थी सुमन कुमार के अभिनय में। बेवफा पत्नी हरबिसनी की भूमिका में अर्चना सोनी के अभिनय में भी एक अनूठा धमक था। यह नाटक एक साथ कई अनसुलझे हुये सवाल छोड़ जाता है, खासकर एक स्त्री के गर्भ में पलने वाले बच्चे के संबंध में। अक्षरा आर्ट्स की प्रस्तुति राजा का बाजा का मंचन चमत्कृत करने वाला था।
सफदर हाशमी लिखित इस नुक्कड़ नाटक को अजीत कुमार के निर्देशन में पूरे जोशो खरोशो के साथ कालीदास के ओपेन थियेटर में मंचित किया गया। इस ओपेन थियेटर में बैठना कई मायने में सुखकर था। इसकी शुरुआत जोगिरा से हुई और इस संबंध में प्रकाश डालते हुये अनिश अंकुश ने कहा कि सफदर हाशमी के सभी नुक्कड़ नाटकों की शुरुआत करने की परंपरा जोगिरा से ही होती है। 1 जनवरी को सफदर हाशमी हल्ला बोल नामक एक नाटक कर रहे थे, मजदूरों की बस्ती में। कांग्रेसी गुंडों ने वहीं पर उनकी हत्या कर दी थी। नुक्कड़ नाटकों की शुरुआत 1975 के बाद हुई है। अन्य राज्यों में इसका एनजीओकरण हो चुका है। इसके माध्यम से पोलियो, एड्स और बैंक में खाते खोलने जैसे संदेश दिये जा रहे हैं, जबकि असल में यह प्रतिरोध का नाटक है। प्रतिरोध के नाटक को प्रचार के माध्यम के रूप में तब्दील कर दिया गया है। हमें इस बात पर गर्व है कि आज भी बिहार में नुक्कड़ नाटक प्रतिरोध के रूप में ही स्थापित है, और इसी लहजे में अपना काम कर रहा है। राजा का बाजा एक बेरोजगार युवक की दास्तान थी, जो शिक्षा के विभिन्न स्तरों से होकर गुजरता है और नौकरी पाने की कोशिश करता है, लेकिन हर जगह पर उसे निराश ही हाथ लगती है। करीब 20 साल पहले लिखे गये इस नाटक की प्रासांगिकता आज भी बरकरार है। अक्षरा आर्ट्स थियेटर ने समय के साथ इसमें बेहतर मोड्यूलेशन भी कर रखा है। 20 अगस्त को अगाथा किर्स्टी की कहानी पर आधारित नाटक गवाह देखने को मिलेगा। इसका मंचन रेनांसा, गया की टीम द्वारा किया जाएगा। इसके निर्देशक हैं संजय सहाय। इसी दिन अभियान, पटना द्वारा मशीन, तारेगना जागृति कला मंच, मसौढ़ी द्वारा इसका जिम्मेदार कौन? और निर्माण कला मंच, पटना द्वारा अंधो का हाथी का मंचन किया जाएगा। 21 अगस्त को अविनाश चंद्र मिश्र द्वारा लिखित नाटक बड़ा नटकिया कौन का मंचन संजय उपाध्याय के निदेशन में किया जाएगा।
इसके अलावा प्रेरणा, पटना, द्वारा हसन इमान के निर्देशन में मिस्टर बुलडोजर, इप्टा, पटना द्वारा तनवीर अख्तर के निर्देशन में मैं बिहार हूं, प्रवीण, पटना द्वारा अविजित चक्रवती के निर्देशन में सपनो का कैदी का मंचन कालीदास के ओपन थियेटर में किया किया जाएगा। रंग-संगीत के लिए विशेष रुप से विख्यात संजय उपाध्याय भानु भारती, राबिन दास, बंशी कौल, बीएम शाह, रामगोपाल बजाज, सत्यदेव दुबे, बैरी जान, देवेंद्र अंकुर, आलोक चटर्जी, अवतार सिंह, त्रिपुरारी शर्मा, अजय मलकानी आदि निर्देशकों की प्रस्तुतियों में संगीत रचना कर चुके हैं। इनके द्वारा मुंबई के पृथ्वी फेस्टिवल में कुल छह नाटकों की 12 प्रस्तुतियां महत्वपूर्ण उपलब्धि है। भिखारी ठाकुर कृत बिदेसिया का देश भर में 500 से अधिक बार मंचन करने का श्रेय इन्हीं को जाता है।
पटना विश्वविद्याल से स्नातकोत्तर और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से निर्देशन में स्नातक संजय उपाध्याय निर्माण कला मंच और सफर मैना के निर्देशक हैं। रंग जलसा 2010 पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये उन्होंने कहा, “पिछले 22 साल से हम लगातार इस तरह के आयोजन करते आ रहे हैं। चूंकि हम लोग रंगमंच से जुड़े रहे हैं, इसलिये अब यही कर सकते हैं। इस तरह के आयोजन में लोगों को एक दूसरे के करीब आने का अवसर मिलता है। और सबसे बड़ी बात है कि इससे निरंतरता बनी रहती है। अन्य राज्यों में हमारे नाटक काफी सफल रहे हैं। निर्माण कला मंच एक डग और आगे चलते हुये अपना वेबसाइट भी लांच कर रहा है।
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