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संस्कृति संज्ञान ने दिल्ली-एनसीआर के पत्रकारों के साथ संविधान के अनछुए पहलुओं पर की चर्चा

  • संविधान में निहित 22 चित्रों के महत्व से देशवासियों को अवगत करायेगा

नई दिल्ली । संविधान के अनजाने पहलुओं को देश के सामने उजागर करने की मुहिम में जुटी सामाजिक संस्था ‘संस्कृति संज्ञान’ ने दिल्ली-एनसीआर के पत्रकारों के साथ ‘भारतीय संविधान सनातन संस्कृति का प्रतिबिंब है’ विषय पर चर्चा के लिए एक बैठक का आयोजन किया। बैठक की अध्यक्षता संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. प्रदीप कुमार सिंघल ने की। विशिष्ट अतिथि श्याम सुंदर पाठक, असिस्टेंट कमिश्नर, जीएसटी विभाग, गौतम बुद्ध नगर थे।

संस्कृति संज्ञान संस्था ने भारतीय संविधान पर गहन शोध के पश्चात ऐसे तथ्य उजागर किए हैं, जिनके बारे में देश के अधिकतर लोगों को अभी तक कोई जानकारी ही नहीं है। संविधान में नंदलाल बोस के भारतीय संस्कृति और धर्म को दर्शाते हुए 22 चित्र हर अध्याय पर मौन संदेश देते हैं। संस्था इसी विषय पर 24 वीडियो की एक सीरीज निकाल रही है। इस सीरीज के पार्ट-1 एवं पार्ट-2 संस्कृति संज्ञान संस्था के यूट्यूब चैनल, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर उपलब्ध हैं।

सोशल मीडिया पर पोस्ट की जा रही इन चित्रों की व्याख्या के साथ-साथ संस्था एक सर्वेक्षण भी कर रही है, जिससे कि यह पता लगाया जा सके कि कितने लोगों को संविधान के चित्रों और इनके महत्व के बारे में पता है। संस्था जल्द ही गृह मंत्री अमित शाह और शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को एक ज्ञापन देकर यह मांग करेगी कि संविधान की रिप्लिका की एक कॉपी भारतवर्ष के हर परिवार को उपलब्ध कराई जाए। इसके अलावा स्कूलों में कक्षा 5 से लेकर कक्षा 12 तक संविधान के बारे में विद्यार्थियों को पढ़ाना अनिवार्य किया जाये।

संस्था का मानना है कि ऐसा करने से भारतवर्ष में योग्य, आदर्श, संस्कारी और देशभक्त नागरिकों का सृजन होगा। इससे भारतवर्ष में सनातन संस्कृति के शाश्वत सार्वभौमिक उद्घोष ‘वसुधैव कुटुंबकम’ को स्थापित किया जा सकेगा।

समाप्त……..।

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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