मुंबई में फिर से थिरक पाएंगी बार बालाएं?

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महाराष्टÑ सरकार मुंबई में डांस बार को फिर शुरू करने के मूड में कतई नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपने फैसले में बंबई हाई कोर्ट के इस निर्णय को सही ठहराया था कि मुंबई में डांस बार पर प्रतिबंध उचित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद उन बार बालाओं के चेहरों पर मुस्कान दौड़ने लगी थी, जो लंबे समय से अपने रोजगार के हक को लेकर जूझ रही थी। जिस तरह से महाराष्टÑ सरकार डांस बार को लेकर सख्त हैं, उससे देखते हुए कहा जा सकता है कि अभी बार बालाओं से उनकी मंजिल काफी दूर है। महाराष्टÑ के गृहमंत्री आरआर पाटिल ने विधानसभा में स्पष्टतौर पर कहा कि डांस बार पर प्रतिबंध जारी रहना चाहिए और इस संबंध में कानूनविदों से राय लेने के बाद जल्द ही निर्णय कर लिया जाएगा। इसके लिए एक विशेष समिति भी बनाई गई है।
अय्याशी का अड्डा
इसमें कोई दो राय नहीं है कि मुंबई में डांस बार के नाम पर वेश्यावृति का धंधा जोरों से चल रहा था। शाम ढलते ही शराब और शबाब इन डांस बार क्लबों में छलकने लगते थे। साथ में नोटों की भी खूब बारिश होती थी। लोग दूर-दूर से अय्याशी करने के लिए मुंबई में आते थे। इससे न सिर्फ मुंबई की बदनामी हो रही थी बल्कि वहां का सांस्कृतिक माहौल भी बुरी तरह से बिगड़ गया था। जगह-जगह डांस बार खुल जाने की वजह से आम लोगों को भी भारी परेशानी हो रही थी। ये डांस बार पुलिसवालों की लिए भी अवैध कमाई का एक मजबूत जरिया बना हुआ था। मुंबई की युवा पीढ़ी बुरी तरह से इसकी गिरफ्त में आ रही थी। इन डांस बार्स की लोग लगातार शिकायत कर रहे थे। महाराष्टÑ सरकार भी इस बात को महसूस कर रही थी कि डांस बार वेश्यावृति के अड्डे के रूप में तब्दील हो गये हैं। हालांकि डांस बार में काम करने वाली बार बालाओं का यही कहना था कि यह उनकी रोजी-रोटी का एक महत्वपूर्ण साधन है  और देश का कोई भी कानून उन्हें अपने हुनर का इस्तेमाल करके कमाने से नहीं रोक सकता है। बार बालाओं की इस दलील को खारिज करते हुये वर्ष 2005 में महाराष्टÑ सरकार ने मुंबई में डांस बार पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था।
सड़कों पर फैली गंदगी
डांस बार पर रातों-रात प्रतिबंध लग जाने की वजह से बहुत बड़ी संख्या में बार बालाएं बेरोजगार हो गईं। संपन्न और रसूख वाली बार बालाओं ने दुबई की ओर रुख कर लिया, जबकि साधारण बार बालाएं सड़कों पर उतर कर पूरी तरह से वेश्यावृति मेंं लिप्त हो गईं। रात होते ही मुंबई वेश्याओं की नगरी में तब्दील हो जाती थी। इससे निचले स्तर के पुलिसकर्मियों की कमाई बढ़ गई। डांस बार से पैसा सीधे बड़े अधिकारियों की जेब में जाता था। जब ये बार बालाएं सड़कों पर धंधा करने लगीं तो उन्हें अपनी कमाई का एक हिस्सा उन पुलिसकर्मियों को देना पड़ता था, जिनकी नियुक्ति सड़कों पर होती थी। महाराष्टÑ सरकार ने डांस बार पर तो प्रतिबंध लगा दिया लेकिन इन डांस बार में थिरकने वाली लड़कियों के लिए वैकल्पिक रोजगार मुहैया कराने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं कर पाई, जिसकी वजह से डांस बार्स तक सिमटी गंदगी मुंबई की सड़कों पर दिखाई देने लगी। जरूरत थी बार बालाओं के लिए कल्याणकारी योजना चलाने की, उन्हें रोजगारपरक प्रशिक्षण मुहैया कराने की। ऐसा न करके महाराष्टÑ सरकार ने उन्हें पूरी तरह से भगवान के भरोसे छोड़ दिया।
पुश्तैनी धंधे पर चोट
मुंबई में बार बालाओं के सामाजिक और आर्थिक जीवन पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि अमूमन मुंबई में दो तरह की बार बालाएं हैं। कुछ बार बालाएं पुश्त दर पुश्त इस पेशे को अपनाती आ रही हैं। ये पूरी तरह से मातृ सत्तात्मक परिवार से ताल्लुक रखती हैं। मां ही परिवार की मुखिया होती हैं। ऐसे परिवार में कमाई करने की जिम्मेदारी महिलाओं की होती है, जबकि पुरुष घरेलू काम संभालते हैं। इनके यहां लड़की पैदा होेने पर जमकर खुशियां मनाई जाती हैं और उस लड़की को नाच-गाने का प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि आगे चल कर वे परिवार की एक कमाऊ पुत्री बन सकें। कुछ लड़कियां गरीबी की वजह से इस पेशे में कदम रखती रही हैं। डांस बार पर प्रतिबंध का सबसे बुरा असर मातृ सत्तात्मक पविार वाली बार बालाओं पर पड़ा है। उनका पुश्तैनी धंधा पूरी तरह से छिन गया। घर के खर्चों को मेंटेन करने के लिए उन्हें विधिवत वेश्यावृति को अपनाना पड़ा। गरीबी की वजह से इस पेशे में कदम रखने वाली लड़कियों के पास भी जिस्मफरोशी के अलावा अपनी आजीविका के लिए अन्य कोई मजबूत आधार नहीं है। इन दोनों तबकों से ताल्लुक रखने वाली अधिकांश लड़कियां पूरी तरह से अशिक्षित हैं। ऐसे में इन्हें आजीविका के लिए राह दिखाना निस्संदेह सरकार की जिम्मेदारी बनती है।
कमाई के जरिये को लेकर जिरह
2006 में बंबई हाई कोर्ट में बार बालाओं की ओर से यह तर्क दिया गया था कि उनके पास कमाई का कोई जरिया नहीं है। बार बालाओं के तर्क से मुतमइन होते हुए बंबई हाई कोर्ट ने डांस बार पर लगी रोक हटा दी थी। इसके खिलाफ महाराष्टÑ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटाखटाया था। सुप्रीम कोर्ट में भी बार बालाओं की ओर से यही तर्क दिया गया था कि उनके पास कमाई का कोई साधन नहीं है। डांस बार के बंद होने से वे और उनका पूरा परिवार भुखमरी के कगार पर पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी उनके हक में फैसला दिया है। मानव मनोविज्ञान की गहरी समझ रखने वाले चाणक्य ने भी अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘अर्थशास्त्र’ में नर्तकियों को संगठित और निर्देशित करने की ताकीद की है। चाणक्य का कहना है कि ऐसा करके राजा न सिर्फ राजकीय आय में वृद्धि कर सकता है बल्कि मनोरंजन के इस साधन को भी व्यवस्थित कर सकता है। वैसे भी आम तौर पर लोग इस तरह के मनोरंजन के प्रति सहजता से आकर्षित होते हैं।  ऐसे में कहा जा सकता है कि यदि मुंबई में डांस बार्स को व्यवस्थित कर दिया जाये और इसमें कार्यरत बार बालाओं को विधिवत मान्यता प्रदान की जाये तो न सिर्फ उन्हें सम्मान के साथ रोजी-रोटी कमाने का अवसर प्राप्त होगा, बल्कि इन डांस बार क्लबों में अपने खिलाफ होने वाली ज्यादतियों के खिलाफ भी वे संगठित होकर पुरजोर आवाज उठा सकेंगी। एक अनुमान के मुताबिक महाराष्ट्र में करीब 14 सौ डांस बार्स में करीब एक लाख बार बालाएं काम करती थीं।
लौटेगी मुंबई की रौनक?
मुंबई अपनी ‘नाइट लाइफ’ के लिए मशहूर है। मुंबई का एक तबका इस बात को स्वीकार करता है कि जब से मुंबई में डांस बार पर रोक लगी है, यहां का ‘नाइट लाइफ’ फीका हो गया है। डांस बार की वजह से मुंबई में रात भर रौनक रहती थी। डांस बार में बार बालाओं के संग झूमने-नाचने के बाद उनकी दिन भर की थकान दूर जाती थी। ये लोग बेसब्री से फिर से डांस बार के खुलने का इंतजार कर रहे हैं। अब यह देखना रोचक होगा कि महाराष्टÑ सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले का क्या काट लाती है और फिर मुंबई की बार बालाएं इसे लेकर क्या रुख अपनाती हैं। वैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बार बालाओं के हौसले बुलंद हैं और उन्हें यकीन हैं कि एक बार फिर उन्हें थिरकते हुये अपनी रोजी-रोटी कमाने का मौका जरूर मिलेगा।

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