सजा नहीं रोटी से मिलेगा इंसाफ

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सुनील रावत.

इसे अब न्याय प्रणाली का दोष कहिये या भारत में सुपरस्टार होने का फायदा सलमान खान को हिट एंड रन केस में दोषी करार देने में अदालत ने तेरह बरस लगा  दिए  और तेरह बरस बाद सजा सुनाई भी गई तो जमानत मिलने में घंटा भर लगा, लेकिन  इन 13  बरस में इस हादसे के पीड़ितों ने अपना सब कुछ गँवा दिया किसी ने हाथ, पांव तो किसी ने ज़िन्दगी ही गँवा दी। कोई अपनी बहन की शादी नहीं करवा पाया तो किसी के लिए दो जून की रोटी मुश्किल हो गई, लेकिन इन सबके इतर सलमान खान ने इन 13 सालों में आसमान की बुलंदी छू ली और अब 13  बरस बाद निचली अदालत ने सजा सुना भी दी तो पीड़ितों को न्याय मिलेगा कैसे ?  और कब तक मिलेगा क्योंकि 13 साल निचली अदालत में ही लग गए तो अभी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट बाकी है।  बड़ा सवाल यह भी है कि पीड़ितों को इंसाफ सलमान को जेल जाने से मिल जायेगा  क्या, क्योंकि निचली अदालत में भी अभी तक इनके जीवन के गुज़र बसर की बहस तो  हुई ही नहीं यानि इनकी मुवावजे की बात तो हुई ही नहीं।  इन 13  बरस में हादसे के पीड़ितों के हाल तो यह हो चुके हैं कि उनको सलमान की सजा में कोई दिलचस्पी रही ही नहीं उनके सामने तो दो जून की रोटी का सवाल आज भी मौजूद है और वो बार-बार यह कह भी रहे हैं कि उन्हें बस मुवावजा दिया जाये. इस दुर्घटना में  अब्दुल्ला रऊफ शेख जिसे अपनी टांग खोनी पड़ी थी,

कहता है  ‘पिछले 13 साल में कोई भी व्यक्ति मुझसे मिलने नहीं आया। मैं छोटे-मोटे काम करके अपने परिवार को पालता था। मुझे अपनी जिंदगी के इस दौर में काफी परेशानी झेलनी पड़ी। हालांकि, मेरे मन में सलमान के प्रति किसी तरह की नफरत की भावना नहीं है। मैं अब भी उनकी फिल्में देखता हूं। ऐसा बोलने के लिए मुझपर किसी ने दबाव  नहीं डाला। मेरे लिए मुआवजा दोषी को सजा दिलाने से ज्यादा अहमियत रखता है। बीमारी के कारण मैं काम नहीं कर पाता। ‘अगर सलमान को जेल भेज भी दिया जाता है तो मुझे कोई फायदा नहीं होगा। इससे न तो मेरी टांग मुझे वापस मिलेगी और न ही मेरी परेशानियों में किसी तरह की कमी आएगी। इसकी जगह अगर वह मुझे मुआवजा देंगे तो मुझे कोई समस्या नहीं होगी।’ शेख ने कहा कि जब उन्होंने  दुर्घटना में अपनी टांग गंवाई थी, तब वह 22 साल के थे।
इस हादसे में  नूरउल्लाह महबूब शरीफ की मौत हुई थी। उनकी पत्नी ने कहा, ‘हमें कहा गया था कि हमें 10 लाख का मुआवजा मिलेगा। अब जब महंगाई इतनी तेज रफ्तार से बढ़ रही है तो इतने थोड़े से मुआवजे के पैसे का हम क्या करेंगे? अगर इसकी जगह उनके  बेटे को नौकरी दे दी जाती तो उन्हें काफी लाभ होता।’
मुवावजा देने के लिए तो सलमान हरहाल में तैयार भी होंगे लेकिन एक और सवाल यह भी है कि अगर सलमान खान को ऊपरी अदालत अब इस दलील पर कि वह मनचाहा मुवावजा पीड़ितों  को देने को तैयार है इसलिए उनकी सजा माफ़ या कम की जाये तो न्याय पालिका पर  भी सवाल उठेंगे ही कि यहाँ तो न्याय खरीद लिया जाता है. हो जो भी लेकिन  सलमान खान को सजा कम से कम ऐसी तो मिलनी ही चाहिए जिससे ये सन्देश जाये कि  कानून सबके लिए सामान है और पीड़ितों को ऐसा न्याय इस रूप में मिले की वह अपनी बाकी की ज़िन्दगी अच्छे से गुज़र बसर कर सकें। जिस देश के संविधान में न्याय प्रथम अधिकार के रूप में शामिल किया गया है वहां हज़ारों ऐसे लोग है जो न्याय के लिए अदालत का दरवाजा तक नहीं खटखटा सकते वकील को देने के लिए पैसे नहीं हैं।  वहीँ सलमान को सजा सुनाने  में तेरह साल लग गए  और बेल मिलने में घंटा भर। इसने एक बात तो साबित कर ही दी कि भारतीय लोकतंत्र में न्याय गरीबी और  अमीरी को पहचानता है।

अपराधियों को सजा और न्याय तो दूर की बात है भारतीय संसद और न्यायपालिका अभी इसी बहस में उलझी हुई है कि जजों को चुना कैसे जाये  कोलेजियम से या एनजेएसी  से।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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