“कोरोना को हराना है”

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“कोरोना पर जानीमानी पत्रकार एवं लेखिका दोयल बोस  की कविता

कोरोना से युद्ध है यह निःशब्द लड़ाई का,

एक अदृश्य दुश्मन से मानव की एकजुटता का,

स्वयं की खातिर स्वयं से स्वयं का,

समय है यह स्वयं को बंधनों में बांधने का,

मन की चंचलता पर लगाम लगाने का,

दौड़ते हुए कदमों को थामने का,

अपने अस्तित्व को पहचानने का।

यह स्वयं को निहारने की है बेला,

अपनी रचनात्मकता को निखारने का है दौर,

थम गया है बाहर का शोर,

है चहुँ ओर शांति की नीरव भोर।

चिड़ियों की चहचहाहट जो खो गई थी कभी,

सुनाई पड़ती है अब दोपहर व शाम में भी सुरीली सी।

प्रातःकाल के शांतिपूर्ण आलम में

जब पड़ती है कानों में मीठी सी चहचहाहटों की गुनगुनाहट

तब खुलती है नींद चिड़ियों की सुरीली सी तान के साथ।

मानव मन की आतुरता इन बंदिशों में बंधकर

छटपटाते हुए बाहर आने को है आतुर।

खुली सड़कों पर विचरने को है व्याकुल।

लेकिन यही वो समय है

स्वयं से स्वयं की पहचान का,

अपने अंदर के बुद्ध को पहचानने का।

प्रकृति की खूबसूरती को देखो…

बंदिशों में बंधे मनुष्य को देख उसका सौंदर्य निखर उठा है,

आसमान का नीलापन खुली धूप में चमक रहा है,

सितारों की चमक से रात जगमगा उठी है,

भोर सुरीली और गुंजायमान हो उठी है,

कारण सिर्फ इतना है कि प्रकृति को अभी मनुष्य से डर नहीं,

उसे अभी नष्ट होने का कोई भय नहीं

क्योंकि मनुष्य खुद डर रहा है अभी हरेक से।

प्रकृति है आनंदित, पशु हैं बेखौफ़,

पर ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति मनुष्य परेशान हैं।

बच्चों के दौड़भाग अब घर के दायरे में ही रह गए हैं सिमटकर,

उनकी बेचैनियों में भी एक सार्थक रंग भरना है,

उनकी मासूमियत को घर की बालकनी से ही प्रकृति से रूबरू करवाना है।

समय के अभाव में हम समय का रोना रोते हैं,

अब जब समय ही समय है तो स्वयं की चाहतों से ही परेशां हैं।

कहीं आ-जा नहीं सकते, दोस्तों से मिल नहीं सकते

फिर भी इस दौर में वीडियो कॉलिंगजिन्दाबाद है।

इन विषम परिस्थितियों में सवाल ही सवाल है,

देश लगातार जूझ रहा कोरोना से ये भी एक मिसाल है।

समय कठिन ही सही, पर इसको जीतने का हौसला बरकरार है,

मन में है एक ही संकल्प कि कोरोना को हराना है

सामाजिकता से दूर रहकर अपनी मानवता को बचाये रखना है।

कोरोना से जंग में खुद को सुरक्षित रखते हुए,

दूसरों का भी रखना है ख़याल,

वक्त की आपाधापी में भूल चुके थे हम जिन्हें

उनसे जुड़ने का, उनकी खोजखबर लेने का, उनको माफ करने का है यह साल।

समय है विषम सही, पर इसको पार पाना है

एकजुटता के हौसले से इस स्थिति से भी उबर जाना है।

साल का आगाज़ दुष्कर ही सही, पर एक नई सुबह की

रूपहली किरण का इन्तज़ार है।

बस एकजुट हो अन्तर्मन से अब हमने यही ठाना है…

घर के अंदर ही रहकर सबको

कोरोना को हराना है, कोरोना को हराना है।