आल इज वेल के खेल में नीतीश कुमार अव्वल
बिहार को 2015 तक एक विकसित राज्य के रूप में खड़ा करने का दावा किया जा रहा है। हाल ही में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपना सलाना विकास रिपोर्ट भी जारी किया जिसमें अब तक राज्य सरकार द्वारा किये गये कार्यों का लेखा-जोखा था। प्रत्येक विभाग के आंकड़ें अपनी जगह पर दुरुस्त थे और विकास की कहानी को नया ही आयाम देते हुये प्रतीत हो रहे थे। राज्य द्वारा प्रायोजित इस कार्यक्रम में मंत्रियों और अधिकारियों की भी अच्छी खासी भीड़ थी, सभी के चेहरे विकास की आभा से चमक रहे थे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद ही परीक्षार्थी और खुद ही शिक्षक की भूमिका में नजर आ रहे थे। प्रश्न भी उनका, कापी भी उनकी और नंबर देने की स्वतंत्रता भी उनकी। ऐसे में सबकुछ आल इज वेल तो दिखना ही था।
आपके मुंह से विकास के खिलाफ शब्द निकले नहीं कि लोग आप पर झपट पड़ते। एक पत्रकार बंधु ने इस स्थिति को कुछ इस अंदाज में व्यक्त किया, “सरकारी तंत्र लोगों के मनोविज्ञान के साथ अपने तरीके से खेलता है। लालू के समय में यदि उनके खिलाफ आप कुछ भी बोलते थे , लोग सीधे आपसे आपकी जात पूछकर यह कहते हुये दरकिनार कर देते थे कि आप आरक्षण विरोधी है , सामाजिक न्याय के खिलाफ हैं। वर्तमान में यदि आप नीतीश कुमार के खिलाफ कुछ बोलते हैं तो आपको विकास विरोधी ठहरा दिया जाता है। यहां तक कहा जाता है आप बिहार के हितों के खिलाफ हैं। नीतीश कुमार को बिहार में विकास पुरुष के रूप में स्थापित किया जा चुका है और सरकारी तंत्र की यह सबसे बड़ी जीत है। विकास हो या न हो, विकास पुरुष की छवि में निरंतर चमक आती रहनी चाहिये।”
आंकड़ों के सहारे विकास को समझने और समझाने की प्रक्रिया थोड़ी जटिल है। इसके लिए कई छोटे-बड़े टर्म की समझ होनी चाहिये और साथ में आंकड़ों को प्रस्तुत करने के मैकेनिज्म की भी जानकारी होनी चाहिये। ऐसा न होने की स्थिति में आपकी जुबान पर सहज तरीके से वही भाषा चढ़ जाएगी जो दिन प्रतिदिन के जीवन में चारो ओर से आपके सामने रखी जा रही है। बिहार में विकास के मामले में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। यहां के लोग तो पूरी तरह से हिप्नोटिज्म की स्थिति में है। इसके इतर न तो कुछ देखने के लिए तैयार हैं और न ही सुनने के लिए।
राष्ट्रीय जनता दल और लोकतांत्रिक जनशक्ति पार्टी ने जब विकास रिपोर्ट को झूठ का पूलिंदा बताया तो उन्हें गंभीरता से नहीं लिया गया। राजद और लोजपा की पहचान तो लालू पार्टी और रामविलास पार्टी के रूप में ही सिमटी हुई है। लालू प्रसाद का ट्रैक रिकार्ड तो खुद ही झूठ के पुलिंदों से भरा हुआ है और रामविलास पासवान लालू के साथ गलबहियां करके आत्मघाती कदम पहले ही उठा चुके हैं। पार्टी के रूप में राजद और लोजपा को यहां के लोगों ने नकार दिया है और सत्ता की लंबी राजनीति करने के बाद लालू और रामविलास की विपक्ष की राजनीति करने की क्षमता का भी पूरी तरह से ह्रास हो चुका है। ऐसे में नीतीश कुमार के विकास के खिलाफ इनके कहे गये शब्दों का कोई खास असर नहीं पड़ता है। खुद इनके दल के जो बचे खुचे नेता हैं वो भी अंदरखाते जदयू में जाने की जुगत लगा रहे हैं। ऐसे में नीतीश कुमार के खिलाफ खुलकर सामने आने से ये लोग कतरा रहे हैं। ये लोग तो विकासोन्मुखी होने के लिए कतार में लगे हुये हैं, बिहार में जिंदगी से जूझते हुये आम लोग इन्हें भला क्यों दिखाई देंगे ? इनकी नजर तो डेमोक्रेटिक पोलिटिकल सिस्टम में अपने लिए एक मुक्कमल स्थान पाने पर टिकी हुई है और फिलहाल यह स्थान उन्हें नीतीश कुमार की कृपा से ही हासिल हो सकती है, ऐसा इनका मानना है।
केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के समय साइनिंग इंडिया का नारा खूब उछला था, जिसमें लोगों को फील गुड का अहसास कराया जा रहा था, इसी तरह चंद्रबाबू नायडू के समय आन्ध्र प्रदेश में तकनीकी क्रांति की हवा उड़ाई गई थी, हैदराबाद को टेक्नो हब बनाया जा रहा था। इन दोनों को सत्ता से बेदखल करके इतिहास ने दिखा दिया कि हवाई नारों की जमीन टिकाऊ नहीं होती है। कहीं नीतीश कुमार के विकास के दावे भी उनके लिए यही स्थिति न पैदा कर दे, वैसे फिलहाल अभी वे अपने आप को महफूज और शक्तिशाली समझने का भ्रम जरूर पाले हुये हैं, जबकि हकीकत में एक हद तक उनकी गर्दन पर भाजपा की पकड़ मजबूत है। जिस तरह से विधायकों के फंड को मुख्यमंत्री योजना के नाम पर हस्तगत किया गया है उससे तमाम विधायकों सहित जदयू के विधायकों में भी रोष तो है ही, भले ही यह सतह पर नहीं दिखाई दे रहा है। ऐसे में सलाना रिपोर्ट कार्ड जारी करके नीतीश कुमार खुद का मनबहलाव तो कर ही ले रहे हैं, लोगों को भी विकास की लकड़ी पकड़ाते रहे हैं। कोई इनसे पूछे कि सरकारी रकम फूंक कर सलाना परीक्षा देने की जरूरत क्या है, जबकि सभी को पता है कि बंपर नंबर लेने से आप बाज नहीं आएंगे?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद ही परीक्षार्थी और खुद ही शिक्षक की भूमिका में नजर थे। प्रश्न भी उनका, कापी भी उनकी और नंबर देने की स्वतंत्रता भी उनकी।
इतना काफी है…सच के लिए। अच्छा लगा।
good article but sorry to say without perception