क्या ‘रांची एक्सप्रेस’ मुंबई तक पहुंचेगी भी ?
मनीष शर्मा, नई दिल्ली
‘हमारी फील्डिंग पूरे टूर्नामेंट में कमोबेश ऐसी ही रहेगी और मैं नहीं सोचता कि इसमें तेजी से सुधार होने जा रहा है.’..ये टीम इंडिया की फील्डिंग को लेकर एक तीखे सवाल का जवाब है उस कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का, जो उन्होंने मंगलवार को फिरोजशाह कोटला मैदान पर हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिया..उस धोनी का, जिससे करोड़ों भारतीय क्रिकेटप्रेमी ये आस लगाए हैं कि उनके नेतृत्व में भारतीय टीम 83 की उपलब्धि फिर से दोहराएगी, लेकिन ये.क्या कह दिया धोनी ने..आखिरकार एक जिम्मेदार कप्तान ऐसा बयान कैसे दे सकता है ? क्रिकेट में स्टेट ऑफ माइंड (मनोदशा) के बहुत और बहुत ही ज्यादा मायने होते हैं..और धोनी का ये बयान बहुत कुछ बयां कर देता है..सवाल ये है कि फील्डिंग में सुधार क्यों नहीं हो सकता ? बांग्लादेश मुकाबले के बाद 8 दिन का गैप, इंग्लैंड मुकाबले के बाद 6 दिन का अंतराल..इस दौरान खिलाड़ी ट्रेनिंग के दौरान फुटबॉल, वॉलीबॉल खेल सकते हैं, रेस्ट कर सकते हैं..लेकिन फील्डिंग ड्रिल क्यों नहीं कर सकते ? क्यों खिलाड़ी जमकर हाई कैचिंग, थ्रोइंग की ड्रिल नहीं कर सकते ? गुरु गैरी फील्डिंग सेशन की क्लास क्यों नहीं ले सकते ? क्रिकेट में ये फील्डिंग ही होती है, जो किसी टीम के जज्बे और भूख को बयां करती है..बल्लेबाजी और गेंदबाजी नहीं…अगर कोई क्लब स्तरीय खिलाड़ी भी मात्र पांच दिन दो सत्रों में तीन-तीन घंटे भी फील्डिंग का अभ्यास करे, तो सुधार जरूर दिखाई पड़ेगा…एक समय करियर की ढलान पर खड़े और पूरे करियर में औसतन फील्डर रहे नवजोत सिद्धू को ‘जोंटी सिंह’ पुकारा जाने लगा था..और जब सिद्धू जैसा औसतन फील्डर मीडिया से ‘जोंटी सिंह’ का तमगा पा सकता है, तो कोई भी खिलाड़ी फील्डिंग में सुधार कर सकता है..सारा मसला नीयत, इच्छाशक्ति और भूख का है..बेशक एक बार को धोनी के धुरंधरों की नीयत पर शक नहीं किया जा सकता..लेकिन विश्व कप के प्रति भूख और इच्छाशक्ति जरूर शक के घेरे में है…और सवाल यहीं खत्म नहीं हो जाते..सवाल धोनी के पियूष चावला प्रेम पर भी है..सवाल कि चावला से इतना प्रेम आखिर क्यों ? वर्तमान में देश के सर्वश्रेष्ठ स्पिनर आर अश्विन की अनदेखी कब तक ? कहीं ऐसा तो नहीं कि अगर आर अश्विन ने एक बार परफॉर्म कर दिया, तो धोनी के पास अपने चहेते और बिजनेस पार्टनर हरभजन को बाहर बैठाने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा ? और कौन जानता है कि ऐसे में भज्जी के वनडे करियर पर पर्दा ही गिर जाए..विश्व कप में चार मैच हो चुके हैं..टीम इंडिया ने तीन जीत भी लिए, लेकिन लक्षण अच्छे नहीं दिखाई पड़ रहे, क्योंकि कप्तान धोनी 1992 विश्व कप विजेता पाकिस्तान टीम के कप्तान रहे इमरान खान की तरह भूखे दिखाई नहीं पड़ रहा..धोनी ऐसे कप्तान दिख रहे हैं, जिसके बयानों में तर्क कम, कुतर्क ज्यादा हैं..ऐसा कप्तान जो गलत ढंग से खिलाड़ियों का बचाव कर रहा है, जिसके पास अंतिम एकादश चयन में कोई रणनीति दिखाई नहीं पड़ती, जो बुद्धिमान बहुत ही कम, जिद्धी बहुत ज्यादा दिखाई पड़ रहा है..ऐसा कप्तान मानो जो एकदम कन्फ्यूज है..और ये लक्षण अच्छे नहीं हैं…डर लग रहा है..और दिल से एक ही आवाज आ रही है…आवाज कि क्या 19 फरवरी से मीरपुर से शुरू हुई धोनी रूपी रांची एक्सप्रेस मुंबई तक पहुंच भी पाएगी….वास्तव में लक्षण अच्छे नहीं हैं….।
Kuchh to khamiyan hai but mumbai to jarur pahunchegi
Dear Manish, Stop critising Dhoni like other media person. Dhoni is a simple person he will do his best. No body like defeat. Treat cricket as a sports and enjoy game. Dhoni never told media to make cricket a religion.