दरिंदा दाऊद का घिनौना खेल

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यदि दाऊद इब्राहिम अमेरिका का मुजरिम होता, 1993 में मुंबई बम ब्लास्ट जैसी घटना को उसने अमेरिका में अंजाम दिया होता तो क्या दुनिया के किसी भी कोने में महफूज होता? क्या पाकिस्तान की इतनी जुर्रत होती कि वह दाऊद को अपने यहां शरण देता? कतई नहीं। अमेरिका के हाथ दाऊद के गिरेबान पर होता और पाकिस्तान की बोलती बंद होती। अमेरिका अपने दुश्मनों को बख्शता नहीं है। सद्दाम हुसैन और ओसामा बिन लादेन इसके उदाहरण हैं। दोनों बिल में घुस गये थे, फिर भी अमेरिका ने डंके की चोट पर उन्हें हलाक कर दिया। सवाल यह उठता है कि भारत अपनी सरजमीं को कत्लगाह में तब्दील कर देने वाले दाऊद इब्राहिम जैसे कुख्यात दरिंदे के खिलाफ ऐसा कदम क्यों नहीं उठाता है? आखिर क्या वजह है कि दाऊद पाकिस्तान में बैठकर भारतीय मशीनरी से खिलौनों की मानिंद खेलता है और यहां का पूरा सिस्टम रिरियाता रहता है? पाकिस्तान के अधिकारी बड़ी बेशर्मी से पाकिस्तान में दाऊद की मौजूदगी पर परस्पर विरोधाभासी बयान देते रहते हैं और भारत के नीति निर्धारक कुछ नहीं कर पाते?
करप्ट मशीनरी की उपज दाऊद
भारत में अपराध को संगठित रूप देने में दाऊद की अहम भूमिका रही है। अपराध का साम्राज्य उसने रातों-रात नहीं कायम किया है। दाऊद को ताकतवर बनाने में अपने मुल्क की करप्ट मशीनरी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। मुंबई के अपराध जगत में दाऊद के आगमन और उत्थान में उन भ्रष्ट अधिकारियों का भी हाथ है, जो उसके नाजायज कामों की तरफ से आंख मूंदे हुये थे और इसके एवज में उन्हें दाऊद की तरफ से नजराना मिल रहा था। 1993 में मुंबई में श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों के पहले मुंबई के पुलिस महकमे में दाऊद के कई लोग उसके टुकड़ों पर पल रहे थे। दाऊद इब्राहिम कासकर से अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम बनने की प्रक्रिया में अपनी पूरी कूव्वत के साथ इन भ्रष्ट अधिकारियों ने उसका सहयोग किया था। भले ही उन्हें उस वक्त इस बात का अहसास नहीं था कि महज चंद रुपयों के लिए वे जिसे पाल रहे हैं, एक दिन वही शख्स दानवी रूप अख्तियार कर लेगा। आज दाऊद इब्राहिम के गिरोह को विधिवत ‘डी कंपनी’ के रूप में जाना जाता है और आज भी मुल्क में बड़ी संख्या में ‘डी कंपनी’ के लोग सक्रिय हैं और उसके एक इशारे पर कुछ भी करने के लिए तैयार बैठे हैं। इतना ही नहीं, ‘डी कंपनी’ में नये लोगों की भर्ती भी जारी है। दाऊद इब्राहिम आज भी भारत की सरजमीं से दूर बैठकर यहां के अंडरवर्ल्ड पर हुकूमत कर रहा है। भारत में सक्रिय तमाम आतंकी संगठनों के कनेक्शन दाऊद से हैं। इसके अलावा मैच फिक्सिंग और हवाला का उसका पुराना धंधा भी बदस्तूत जारी है। इस दानव के सामने मुल्क की मशीनरी बौनी साबित हो रही है।
अलकायदा से संबंध
मुंबई में 1993 बम विस्फोट की घटना के बाद से जब दाऊद को मुल्क का मोस्ट वांटेड आतंकी घोषित किया गया तो पुलिस महकमे में डी कंपनी के लिए सक्रिय लोगों ने उससे दूरियां बनानी शुरू कर दी थी। उसी समय से अमेरिका भी दाऊद इब्राहिम पर नजर रखने लगा। अमेरिकी अधिकारियों को इस बात की भनक थी कि दाऊद के संबंध अल कायदा के कुख्यात आतंकी ओसामा बिन लादेन से थे। वह लादेन से मिलने अफगानिस्तान भी गया था। दाऊद इब्राहिम पर लगातार नजर रखने के बाद आखिरकार अमेरिका ने भी उसे 2003 में वैश्विक आतंकियों की सूची में शामिल कर लिया। उसके नेटवर्क को ध्वस्त करने की अमेरिका ने पूरी कोशिश की। रूस की खुफिया एजेंसी ने भी दाऊद पर कड़ी नजर रखनी शुरू कर दी। बाद में रूस की खुफिया एजेंसी ने ही इस बात का खुलासा किया था कि नवंबर 2008 में मुंबई हमले में भी दाऊद का हाथ था। 2008 में फोर्ब्स ने दाऊद को दुनिया को दुनिया के दस सबसे खतरनाक आतंकियों की सूची में शामिल किया था। इस सब के बावजूद पिछले कुछ अरसे से लगातार यह खबर आ रही है कि दाऊद इब्राहिम पाकिस्तान में रह रहा है और वहां की हुकूमत उसे हर तरह से सुरक्षा प्रदान कर रही है।
पाक प्रशासन पर जबरदस्त पकड़
कहा जा रहा है कि पाकिस्तान में प्रशासनिक हलकों में दाऊद इब्राहिम की जबरदस्त पकड़ है। यही वजह है कि पाकिस्तान सरकार दाऊद इब्राहिम के मसले पर भारत सरकार के तमाम आग्रहों को न सिर्फ ठुकराती आ रही है बल्कि इस बात से भी साफ तौर पर मुकर रही है कि दाऊद पाकिस्तान में है। पाकिस्तान में दाऊद की पकड़ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब कभी उसे लेकर दोनों देशों के कूटनीतिक हलकों में किसी किस्म की चर्चा होती है तो पाकिस्तान के कूटनीतिज्ञ उन लोगों की सूची भारत के कूटनीतिज्ञों को थमाने लगते हैं, जिन्हें पाकिस्तान ने भगोड़ा घोषित कर रखा है। दाऊद के मसले को लेकर पाकिस्तानी अधिकारियों का दिमाग पूरी तरह से साफ है। वे किसी भी कीमत पर दाऊद को भारत के हवाले करने के मूड में नहीं है। भारत की तर्ज पर ही दाऊद ने पाकिस्तान के अधिकारियों को पैसे खाने का चस्का लगा रखा है। दाऊद को पाकिस्तान से बाहर धकेल कर नियमित रूप से मिलने वाली इस बड़ी रकम से महरूम होना नहीं चाहते हैं। इसके अलावा पाकिस्तान में कट्टरपंथियों का एक मजबूत तबका भी पूरी तरह से दाऊद के पक्ष में खड़ा है। पाकिस्तान के कट्टरपंथी ताकतोंं को भी भारत के खिलाफ जेहाद चलाते रहने के लिए अकूत धन की जरूरत होती है और इस जरूरत की पूर्ति दाऊद दुनियाभर में फैले हुये अपने काले कारोबार से करता है।
दूर तक फैला काला कारोबार
अमेरिका की ट्रेजरी विभाग ने दाऊद के काला कारोबार के संबंध में एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की थी ताकि उसकी संपंतियों को जब्त करके उसकी ताकत को कम किया जा सके। इस रिपोर्ट में साफतौर पर कहा गया था कि दाऊद इब्राहिम दक्षिण एशिया, मध्यपूर्व और दक्षिण अफ्रीका के मार्गों का इस्तेमाल अलकायदा जैसे आतंकी संगठनों को कॉन्फिडेंस में लेकर मादक पदार्थों की तस्करी के अपने धंधे को बढ़ाने के लिए कर रहा है। यूरोप में व्यापक पैमाने पर मादक पदार्थों की सप्लाई ‘डी कंपनी’ द्वारा ही की जा रही है। दाऊद की ताकत उसका काला धंधा है। अलकायदा आज भी दाऊद के धंधों को पूरी तरह से प्रोटेक्ट कर रहा है और बदले में दाऊद से मोटी रकम वसूल रहा है। अलकायदा से सीधा संबंध होने की वजह से दाऊद कोपाकिस्तान में काफी सहूलियतें हासिल हो रही हैं, क्योंकि अलकायदा के लोग पाकिस्तान की सेना में भी बैठे हुये हैं। मादक पदार्थों की तस्करी से मिलने वाली रकम का एक मोटा हिस्सा पाकिस्तान के फौजी अधिकारियों के खाते में भी जा रहा है। कहा जा सकता है कि दाऊद इब्राहिम न सिर्फ आतंकी संगठनों के लिए बल्कि पाकिस्तान के फौजी अधिकारियों के लिए एक दुधारू गाय साबित हो रहा है। ऐसे में इस दुधारू गाय की सुरक्षा के लिए वे अपनी ओर से पूरी तरह से मुस्तैदी बरत रहे हैं। भारत द्वारा दाऊद को हासिल करने के तमाम प्रयासों को वे सहजता से पलीता लगा रहे हैं।
सरकार और विपक्ष का ढुलमुल रवैया
अपने मुल्क की कांग्रेस सरकार भी दाऊद को लेकर महज खानापूर्ति करने में ही यकीन करती है। दाऊद के खिलाफ की जा रही है सारी कार्रवाई महज कागजों में सिमटी हुई है। विपक्षी पार्टियां भी दाऊद का इस्तेमाल महज अपनी राजनीति को ही चमकाने के लिए करती हैं। दाऊद के प्रति विपक्ष की मानसिकता को भाजपा सदर राजनाथ सिंह द्वारा उसे किये गये सम्मानजनक संबोधन से समझा जा सकता है। एक खबरिया चैनल पर साक्षात्कार के दौरान दाऊद को लेकर पूरी तरह सम्मानजनक मुद्रा अख्तियार करते हुये उनका यह कहना कि ‘दाउद पाकिस्तान में रह रहे हैं’ यही दर्शाता है कि उनकी नजर में दाऊद एक महान हस्ती है। पाकिस्तान के दूत शहरयार खान द्वारा दाऊद को लेकर किये गये सम्मानजनक संबोधन को तो समझा जा सकता है, लेकिन ऐसा करते हुये राजनाथ सिंह कहीं भी जस्टिफाई नहीं करते हैं। वैसे दाऊद की मजबूत हैसियत का अंदाजा शहरयार खान की पलट बयानबाजी से भी लगाया जा सकता है। पहले वह इस बात की तस्दीक करते हैं कि दाऊद पाकिस्तान में है और फिर रातों-रात अपने बयान से मुकर जाते हैं।
फिल्मों और मीडिया में दाऊद की चमक
दाऊद को एक जादुई व्यक्तित्व के रूप में पेश करने में फिल्मों और मीडिया की भी अहम भूमिका रही है। दाऊद का वर्चस्व मुंबई फिल्म इंडस्ट्री पर भी रहा है। यही वजह है कि दाऊद के चरित्र और लाइफ स्टाईल को लेकर मुंबई में बहुत सारी फिल्में बनी हैं, जिनमें दाऊद के साम्राज्य को पूरी तरह से ग्लैमराइज करके पेश किया गया है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी दाऊद को लंबे समय से किसी हीरो की तरह पेश किया जा रहा है, जो दूर बैठकर यहां की मशीनरी को अपने इशारों पर नचा रहा है। उससे संबंधित छोटी-छोटी खबरों को भी करीने से सजा कर पेश किया जाता है। ‘ट्विन टावर विस्फोट’ के बाद अमेरिकी मीडिया में ओसामा बिन लादेन पर खबरें चलती थीं, लेकिन लादेन को इस तरीके से पेश किया जाता था कि उसके खिलाफ लोगों में नफरत और भड़के और लोग आतंकवाद के खिलाफ कमर कस लें। अपने मुल्क के खबरिया चैनल खबरें तो चलाते हैं लेकिन उसके पीछे के मनोविज्ञान को नहीं समझते हैं। दाऊद को लेकर उनमें खबरें चलाने की होड़ सी लग जाती है और अनजाने में उसे महानायक की तरह पेश करने लगते हैं। मीडिया की यह अदा दाऊद या उस जैसे लोगों के खिलाफ लोगों में पनप रहे गुस्से को दूसरी दिशा में धकेल देती है। सरकार तो पहले से ही सबकुछ भुलाने के लिए बैठी है। जरूरत है दाऊद की दरिंदगी को पूरी निर्ममता से पेश करने की।

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