नये भू-माफियों के उदय में गुंडों और बिहार पुलिस की दमदार भूमिका

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इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि नीतीश सरकार में आम अपराधियों का मनोबल गिरा है और सामाजिक नजरिये से अपराध को एक बेहतर पेशा नहीं माना जा रहा है, जबकि लालू शासन के समय रंगदार होना एक रूतबे की बात थी। अपराधियों द्वारा की जाने वाली हत्या, अपहरण और वसुली की घटनाओं में कमी आई है, लेकिन पुलिस द्वारा वसुली बदस्तूर जारी है। हम नहीं सुधरेंगे की तर्ज पर पुलिस अपना जेब गर्म करने से बाज नहीं आ रही है। पुलिस द्वारा वसुली का यह नजारा आम चौक-चौराहों व मंडियों में आसानी देखा जा सकता है। सूबे में अपराध को लेकर आम जनता राहत महसूस कर रही है, इसमें कोई संदेह नहीं है। लेकिन इसके साथ ही पिछले कुछेक वर्षों में संगठित अपराधियों के एक नये वर्ग का भी तेजी उदय हुआ है, जिनकी नजर सिर्फ और सिर्फ भूमि पर है। सूबे में नव धनाठ्य बिल्डरों की एक अच्छी खासी फौज खड़ी हो गई है जो कीमती लेकिन विवादित जमीन हासिल करने के लिए संगठित तरीके से अपराध कर रहे हैं।

जमीन के इस कारोबार में गुंडों के साथ-साथ पुलिस की भी भरपूर मदद ली जा रही है। यहां तक कि पुलिस के बड़े अधिकारियों तक के पास अपनी आंख बंद रखने के लिए मोटी-मोटी रकमे पहुंचाई जा रही है। कभी-कभी तो पुलिस अधिकारी इन भू–माफियाओं के पक्ष में पूरी पुलिस फौज को भी खड़ा करने से नहीं हिचक रहे हैं। संकेत साफ है कि भू-माफियाओं का पैसा पुलिस के साथ-साथ नेताओं की जेबों में भी जा रहा है। हाल ही में सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिंह के बोरिंड रोड स्थित बंगले के बगल में एक विवादित प्लाट को भू-माफियाओं ने जिस नाटकीय अंदाज में पुलिस की मदद से कब्जा किया वह इनके बढ़ते मनोबल को ही दर्शाता है।

अधिक से अधिक जमीन हासिल करने की भू-माफियाओं की भूख दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है। अब इन लोगों ने गंगा के तट को भी निगलना शुरु कर दिया है। गंगा पटना से कोसो दूर चली गई है, और जो जमीन अपने पीछे छोड़ गई है वह भू-माफियाओं को ललचा रहा है। सारे नियमों कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुये इस जमीन पर बड़े पैमाने पर अपार्टमेंट्स बनाये जा रहे हैं। भू-माफियाओं ने पटना नगर निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों को भी अपने साथ कर रखा है, इसलिए सारा काम खामोशी से हो रहा है। यहां तक कि इन फ्लैटों की एडवांस में बुकिंग भी होने लगी है।

पटना शहर के बीचो बीच स्थित विवादस्पद जमीन पर तो हाथ डालने के लिए ये हमेशा तत्पर रहते हैं। डाक बंगला और फ्रेजर रोड में भी कुछ प्लाट हैं जिनको लेकर भू–माफियाओं द्वारा इन मालिकों को धमकाये जाने की बात सामने आ रही है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि इन भू माफियों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एक करीब नेता भी शामिल है, जिसने फाकाकसी के दिनों में नीतीश कुमार की हर तरह से मदद की थी।

पटना के छोटे-छोटे मुहल्लों में तो नव धनाठ्य भू-माफियों की सक्रियता और भी बढ़ गई है। पुनाईचक,राजा बजार, राजीव नगर कालनी, सगुना मोड आदि इलाका में तो इनकी सक्रियता खासतौर पर बढ़ी हुई है। यहां तक की स्थानीय पुलिस भी इनसे मिली हुई है। इधर-उधर से छोटी-मोटी कमाई करने वाले पुलिसकर्मियों विवादास्पद जमीन की एक डिलींग में ही अच्छी खासी रकम हासिल हो जाती है। इनका काम बस इतना होता है कि जमीन पर कब्जा के वक्त वे वहां उपस्थित न रहे और बाद में थाने में मामला आने पर रिपोर्ट दर्ज न करें।

कुछ महीना पहले जगदेव पथ के पास महादलितों की एक बस्ती पर भू-माफियाओं को कब्जा दिलाने के लिए वहां की स्थानीय पुलिस भी पहुंची हुई थी। अपनी जमीन न छोड़ने की जिद पर अड़े महादलितों को हटाने के लिए जब भू-माफियाओं ने उन पर गोलियां चला दी तो पुलिस वाले सहम कर पीछे हट गये। भू-माफियों की गोलियों के जवाब में महादलित के लोग भी उत्तेजित हो गये और जिनके हाथ में जो लगा उसी को लेकर भू-माफियाओं पर पील पड़ गये। एक भू-माफिया की तो बांस और बल्लों से जबरदस्त पीटाई भी हुई। उसे बचाने के लिए बाद में पुलिस को बीच में आना पड़ा, तब जाकर उसकी जान बची।

अब सवाल उठता है कि एक ओर तो नीतीश सरकार अपराध पर लगाम लगाने का दम भर रही है, तो दूसरी ओर इन नव धनाठ्य भू-माफियाओं को बेलगाम क्यों छोड़ा जा रहा है ? सामाजिक नजरिये से इसकी मीमांसा करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि सूबे में अपराध और अपराधियों का रुपांतरण हो रहा है। एक तरह से यहां के अपराधी मुंबई जैसे महानगरों के अपराधियों की शैली को अपनाते जा रहे हैं। जमीन के धंधे में इन्हें पैसा ही पैसा नजर आ रहा है और रिस्क भी कम है। इनकी पूरी कोशिश जमीन पर कब्जा करने की होती है, और जमीन पर कब्जा करने के दौरान इस बात का पूरा ख्याल रखते हैं कि किसी भी कीमत पर हत्या न हो। इस तरह के मामलों में पुलिस वालों को भी अच्छी खासी रकम मिल जाती है इसलिये वे भी इन रुपांतरित अपराधियों के पोषण में लगे रहते हैं। सगुना मोड़ के पास तो कई इलाके ऐसे हैं जहां जमीन के मालिक को अपने खुद का मकान बनाने के लिए इन रुपांतरित अपराधियों के गिरोहों को अच्छी खासी कीमत देनी पड़ती है। यह कहने की जरूरत नहीं है कि इसका एक हिस्सा पुलिसवालों की जेब में भी जाता है। यदि जमीन का कोई मालिक इन रुपांतरित अपराधियों के खिलाफ शिकायत लेकर थाने में जाता है तो उसे यही समझाया जाता है कि बे-वजह पंगा क्यों ले रहे हैं। इन अपराधियों को कुछ पैसे देकर चुपचाप अपना मकान बना लीजिये। आपको रहना तो यहीं है। यदि पैसे नहीं देंगे तो भविष्य में आपको परेशानी होगी, और आपकी हिफाजत करने के लिए पुलिस कहां-कहां मौजूद रहेगी। बहरहाल सूबे में अपराध की शैली में आये इस परिवर्तन के बावजूद सुशासन का नारा बुलंद है क्योंकि सड़कों पर घटने वाली आपराधिक वारदतों में कमी आई है, कम से कम पुलिस के फाइल तो यही बयां हैं।

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