लिटरेचर लव

फोन पर फ्लर्ट (कहानी)

दयानंद पांडेय//

वह फोन पर ऐसे बतिया रही थी गोया वह उसे अच्छी तरह जानती है। रेशा-रेशा विस्तार और अर्थ देती हुई। रह-रह वह भावुक हो जाती और अपनी व्यक्तिगत समस्याओं के जाल में उलझी छोटे-छोटे सपने बुनने लग जाती। सपने भी उस के बड़े शाश्वत, सुनहरे और उम्मीद भरे थे। पीयूष उस की उम्मीदों को तोड़ना नहीं चाहता था न ही उस के सपनों को बिखरने देना चाहता था। लेकिन अपरिचित, नितांत अपरिचित होने के बावजूद वह कब फ्लर्ट पर उतर आया उसे पता भी नहीं चला। हालां कि यह फ्लर्ट भी उस की बातों में लिपट कर ही उस ने शुरू किया। पर बीच बात चीत में वह अपराध बोध में फंसने लगा और पीयूष का मन हुआ कि उस अपरिचिता को साफ-साफ बता दे कि जिस से वह बात कर रही है वह वहनहीं है जिसे वह समझ रही है। पर वह ऐसा कुछ कहने का मौका भी नहीं देती और बिलकुल किसी नई बात पर आ जाती। फिर पीयूष को लगा कि वह उसे नहीं बल्कि वही उसे फ्लर्ट कर रही है। अनजाने ही में सही।


पीयूष उस रोज दफ्तर में मीटिंग के बाद फोन मिला रहा था। तीन चार फोन उसे मिलाने थे पर सभी इंगेज मिल रहे थे। वह लगातार ट्राई कर रहा था। कुछ नंबरों को वह रीडायल भी करता जा रहा था तभी कोई नंबर मिल गया। कौन सा नंबर मिल गया उसे समझ नहीं आया। जब तक वह सोचता-सोचता हलोकहते ही उधर से एक औरत ने बोलना शुरू कर दिया। बेधड़क। वह कहने लगी, ‘क्या बताएं बिजली चली गई है। गरमी मारे दे रही है। हाथ से पंखा झल रही हूं। जाने कब बिजली आएगी।बोलते-बोलते वह पूछने लगी, ‘आप क्या कर रहे हैं ?’
फिलहाल तो आप से बात कर रहा हूं।पीयूष भी उसी बेलागी से बोला।
अच्छा-अच्छा।वह बोली, ‘बड़े लाइट मूड में हैं आज !वह रुकी फिर बोली, ‘नहीं कल तो आप बहुत परेशान थे। हां, क्या हुआ गाड़ी आप की ठीक हो गई ?’ वह चिंतित होती हुई बोली।
ठीक हो जाएगी। हुई समझिए।पीयूष टालता हुआ लापरवाही से बोला।
पर कल तो आप बहुत परेशान थे। और हां, क्या हुआ आप का वह आदमी आया क्या ?’
अरे छोड़िए भी। आदमियों का क्या है ? सब साले बदमाश हैं ! आते-जाते रहते हैं !पीयूष किसी तरह इस प्रसंग को भी टालते हुए बोला।
आप कौन बोल रहे हैं ?’ वह बातचीत में तालमेल न पा कर सशंकित होती हुई बोली।
एक नागरिक हूं इस देश का।पीयूष मजा लेता हुआ बोला।
नागरिक ?’ वह अटकती हुई पूछने लगी, ‘तो आप ही बोल रहे हैं!
कहिए तो न बोलूं ?’ पीयूष फिर उसी अंदाज में बोला।
नहीं-नहीं बोलिए।वह अचकचाती हुई बोली, ‘क्या करें गरमी बहुत है। आज बहुत दिनों बाद कपड़े सिलने बैठी थी पर बिजली चली गई क्या करें। सब छोड़-छाड़ कर बैठी हूं।
लेकिन सिल क्या रही थीं ?’ पीयूष मजे लेते हुए बोला।
अरे, ढेर सारे पुराने कपड़ों की मरम्मत करनी थी।वह थोड़ा बहकी और इठलाती हुई बोली, ‘अभी भी ब्लाउज रफू कर रही हूं।उस के इठलाने का ग्राफ थोड़ा और बढ़ा, ‘वही ब्लाउज जो कल आपने फाड़ दिया था !उस की आवाज में मादकता तिरने लगी, ‘समझे ! कि नहीं !
पर मैं ने कल ब्लाउज तो नहीं फाड़ा था।पीयूष सफाई पर उतर आया।
असल में मैं सेप्टीपिन लगाती हूं ना तो खींचाखांची में फट गई होगी ब्लाउज।वह किंचित सकुचाती हुई बोली।
पर मैं ने तो खींचाखांची भी नहीं की थी।
आप को याद भी है कुछ ?’ वह ऐंठती हुई बोली, ‘हड़बड़ी में आपने मेरे कंधे पर से ब्लाउज नोचा नहीं था ? ब्रा की तो हुक भी टूट गई थी।फिर वह संजीदा हो गई। कहने लगी, ‘कल आप परेशान भी थे और हड़बड़ाए हुए भी।
क्या मतलब ?’
मतलब क्या ! हड़बड़ी में तो आप हरदम ही रहते हो !वह जैसे लजाती हुई बोली।
और आप ख़ुद ?’ पीयूष बहकता हुआ बोला।
मैं क्यों हड़बड़ी में रहूंगी ? वह प्रति प्रश्न पर उतरती हुई खुद ही जवाब पर आ गई, ‘मैं कभी हड़बड़ी में नहीं रहती।
ख़ैर, अब की मिलिए तो आप की हड़बड़ी से भी आप को मिलाऊंगा।पीयूष बोला।
तो आज रात को आऊं ?’ वह अकुलाती हुई बोली।
बिलकुल आइए!
समय है आप के पास ?’
आप के लिए समय ही समय है।
अच्छा !वह फुदकती हुई बोली, ‘तो फिर आप मेरा हाथ क्यों नहीं थाम लेते? खुल्लमखुल्ला !
क्यों ऐसे क्या दिक्कत है ?’
क्या बताएं ?’ वह उदास होती हुई बोली, ‘समाज की, घर की बड़ी-बड़ी दीवारें हैं। तोड़ नहीं पाती।
लेकिन मैं तो हमेशा आप के साथ हूं।
चलिए माना !
क्यों यकीन नहीं हो रहा है ?’
नहीं यह बात नहीं। यकीन तो है !
तो फिर ?’
नहीं मैं सोच रही थी कि घर में आप के कहीं बवाल न हो जाए ?’
घर में पता चलेगा तब न ?’
तो आज रात भर मेरे साथ रह जाएंगे ?’ वह विकल हो गई।
चलिए आज घर नहीं जाएंगे। आप की ही सेवा में रहेंगे।
तो मैं रात को आऊं ?’
आप की मर्जी।पीयूष बेफिक्र हो कर बोला।
तो मैं रात को आऊंगी।वह फुसफुसाती हुई बोली, ‘तभी बातें करेंगे। अभी फोन रखती हूं।
क्यों अभी बात करने में क्या दिक्कत है ?’ पीयूष जरा नरमी से बोला।
नहीं दिक्कत की बात नहीं।वह फुसफुसाई, ‘लगता है बाहर कोई आया है।
तो क्या हुआ?’ पीयूष बोला, ‘आप देखिए मैं होल्ड करता हूं।
आप तो कुछ समझते ही नहीं।वह खीझती हुई बोली, ‘आप फोन रखिए। अभी मैं मिला लूंगी।
मिला लूंगी क्या मतलब ?’ पीयूष भड़कता हुआ बोला, ‘मै होल्ड कर रहा हूं।
आप ड्रिंक-विंक तो नहीं किए हुए हैं ?’
क्या मतलब है आप का ?’ पीयूष बोला, ‘आप को मैं ड्रिंक किए हुए लग रहा हूं ?’
नहीं-नहीं मैं ने कब यह कहा ?’
तो फिर क्या कहा ?’
कहा नहीं। मैं तो सिर्फ पूछ रही थी।
पीयूष बोला, ‘अच्छा चलिए थोड़ी पी भी लिया तो क्या हर्ज हो गया ?’
हर्ज तो हो ही गया।वह इसरार के साथ बोली, ‘पीना ठीक नहीं।
क्यों ?’
वो गाना नहीं सुना है कि गम की दवा तो प्यार है, शराब नहीं।
सुना भी है और देखा भी है।
तो ?’ वह झूम कर बोली।
अरे वही गाना न जो प्रेमा नारायण ने परदे पर गाया है उत्तम कुमार के लिए। अमानुष फिल्म में।पीयूष ब्यौरा देते हुए बोला।
हां-हां वही गाना। आप को तो सब याद है।वह खिलखिलाती हुई बोली।
उस फिल्म में एक और गाना है, दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा, बरबादी की तरफ ऐसा मोड़ा, एक भले मानुष को अमानुष बना के छोड़ा।पीयूष ने गाते हुए उसी से पूछा कि, ‘यह गाना याद है आप को ?’
हां-हां याद है।वह बोली, ‘पर आप का दिल तो मैं नहीं तोड़ रही। फिर काहें ऐसी बात कर रहे हैं ?’
नहीं भई, दिल तोड़ने की बात भला कहां से आ गई ?’ पीयूष बोला, ‘मैं तो सिर्फ गाने की याद दिला रहा था।
अच्छा तो ये बात है!वह जरा गुरूर से बोली।
बिलकुल!
मतलब आप आल राउंडर हो !
आल राउंडर मतलब ?’
यही कि और चीजों के अलावा फिल्में और गाने भी जानते हैं आप !
जानना पड़ता है भई।पीयूष बोला, ‘अरे आप से मिला तो आप को जान लिया। फिल्में देखीं तो फिल्में भी जान लीं। गाने सुने तो गाने भी जान लिए। इस में आल राउंडर की क्या बात है ?’
बात तो है !वह इतराई।
अच्छा और क्या-क्या जानती हैं आप ?’
यही कि सफल बिजनेसमैन हो आप ! आदमी भी अच्छे हो और….!कहते- कहते वह रुक सी गई।
और ! और क्या?’
अब जाने दीजिए !
क्यों जाने दूं ?’ पीयूष बोला, ‘बताइए न कि और क्या ?’
क्या करेंगे जान कर ?’ वह बड़ी मायूसी से बोली।
अरे, अपने बारे में जान लेने में हर्ज क्या है ?’
यह मैं नहीं कह रही। आप के आस-पास के लोग कहते हैं कि आप बहुत बड़े बदमाश हो, गुंडा हो !वह बोली, ‘लोग बहुत डरते हैं आप से।
अच्छा !
नहीं यह मैं नहीं कर रही। मुझ को तो आप ऐसे नहीं लगते !वह बोली।
फिर कैसा लगता हूं ?’
मुझ को तो आप अच्छे लगते हो।उस ने जोड़ा, ‘लोगों का क्या है ! किसी को कुछ भी कह दें !
पर मैं ने तो कभी किसी के साथ गुंडई नहीं की।
मैं ने कब कहा कि आप ने गुंडई की !वह फिर खीझी।
अच्छा और क्या-क्या जानती हैं मेरे बारे में आप ?’
कुछ नहीं जी। मैं तो बस यही जानती हूं कि आप मेरे लिए बहुत अच्छे हो!
किस मामले में ?’
हर मामले में !वह रुकी और बोली, ‘एक मिनट जरा रुकिए। पड़ोस का एक लड़का आया है !
ठीक है।पीयूष बोला, ‘निपटिए पहले उस लड़के से ही !
बस एक मिनट !कह कर वह उस लड़के से कहने लगी, ‘तुम्हारी मम्मी यहां नहीं है बेटा ! वह तो देर हुए गईं !वह बोल रही थी कि वह लड़का अच्छा आंटी!कहता हुआ शायद चला गया फिर वह बोली, ‘हां, अब बताइए।
था कौन ?’
पड़ोस का एक लड़का। मेरे बेटे के साथ खेलता है !वह बोली।
आप का बेटा कहां है ?’ पीयूष ने पूछा।
स्कूल गया है।
अच्छा-अच्छा।
बस एक ही तो बेटा है। सोचती हूं किसी तरह पढ़ लिख जाए बस।वह उदास हो कर बोली।
क्यों स्कूल तो जा ही रहा है न ?’
हां, जा तो रहा है। पर आगे भी इस की पढ़ाई का इंतजाम अच्छा हो जाए। किसी अच्छे स्कूल में पढ़ाने की हैसियत हो जाए। किसी लायक बन जाए बस !
भगवान चाहेंगे तो बिलकुल हो जाएगा !
हो तो तब जाएगा जब मेरा कुछ हो जाए !
क्या मतलब ?’
नर्सिंसग की ट्रेनिंग ली है। अप्लाई कर रखा है। अब सर्विस लग जाए तो बेटे को ठीक से पढ़ाऊं।
नर्सिंग सुन कर पीयूष थोड़ा बिदक कर बोला, ‘अप्लाई किया है तो हो ही जाएगा।
हो जाए तब न ?’ वह चिंतित होती हुई बोली, ‘पर अब आप से दूर हो जाऊंगी।
क्यों ?’
फार्म हम ने उत्तरांचल के लिए भर दिया है। तो दूर कहीं पहाड़ पर जाना पडे़गा।
पहाड़ की जिंदगी तो बड़ी कठिन होती है।
यही तो !
तो इस में चिंता की क्या बात है ?’ पीयूष बोला, ‘आप कहीं नीचे की पोस्टिंग ले लीजिएगा।
नीचे का मतलब ?’ वह उत्सुक होती हुई बोली।
हल्द्वानी वगैरह कहीं।
हां। यह तो है।वह बोली, ‘देहरादून भी तो हो सकता है।
हां, देहरादून भी हो सकता है।
अब हो जाए तब न ?’ वह बोली, ‘पता है जब स्वास्थ्य भवन जाती हूं तब जब कोई कहता है पिक्चर चलोगी ? घूमने चलोगी ? तो कितना ख़राब लगता है कि क्या बताऊं ?’
मैं समझ सकता हूं।बात की तल्ख़ी को टालता हुआ वह बोला, ‘चलिए यह काम मैं करवा दूंगा।
सच !वह मारे ख़ुशी के फुदक पड़ी। बोली, ‘यह हो जाता तो बहुत अच्छा था।
कहा न कि हो जाएगा।पीयूष बोला, ‘अरे हां, क्या हुआ ब्लाऊज रफू हो गया?’
पहले फाड़ते हैं और फिर पूछते हैं कि रफू हो गया ?’ वह इठलाती हुई बोली।
ब्लाउज ही तो फटा है कुछ और तो नहीं ?’ पीयूष बोला, ‘यहां ओजोन की परत फटी जा रही है और किसी को चिंता ही नहीं और आप हैं कि तभी से एक ब्लाऊज का फटा लिए बैठी हैं। अरे, कुछ और बात कीजिए। छोड़िए भी ब्लाऊज और उस की रफूगरी।
मैं रफू बहुत अच्छा करती हूं।वह सांस छोड़ती हुई बोली, ‘लीजिए रफू भी हो गया ब्लाऊज। हो तो कब का गया होता पर इस मुई बिजली ने मार रखा है।वह रुकी और फिर खुसफसुसाई, ‘तो रात को आऊं ?’
कहा न आप की मर्जी !पीयूष भीतर से सकपकाता हुआ बोला।
देखिए आप खुद नहीं बुलाएंगे तो नहीं आऊंगी।वह बोली, ‘फिर घर में आप को दिक्कत तो नहीं होगी ?’
बिलकुल नहीं होगी। आप रात आइए। पर यहां नहीं, कहीं और !पीयूष टालता हुआ बोला।
तो फिर और कहां ?’ वह सकुचाती हुई फुसफुसाई।
कहीं भी।पीयूष बहकता हुआ बोला।
कहीं भी क्या मतलब ?’ वह सशंकित हो कर बोली।
किसी गेस्ट हाउस या रेस्ट हाउस में ?’
लेकिन कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं होगी ?’
कुछ गड़बड़ नहीं होगा।पीयूष बोला, ‘और जो इतना ही डर है तो कहीं बाहर चले चलते हैं ?’
कहां ?’
नैनीताल या मसूरी। कहीं भी।
नैनीताल, मसूरी तो जब मैं वहां रहूंगी तब आप आइएगा मेरे मेहमान बन कर !
तो यहीं कहीं आस-पास चले चलते हैं !
कहां ?’
नवाबगंज या कानपुर !पीयूष बेफिक्री से बोला।
बड़ा मुश्किल है। तीन घंटा जाओ, तीन घंटे आओ। सारा समय आने-जाने में ही बीत जाएगा।
दो-तीन दिन का प्रोग्राम बनाते हैं।
इतना समय है आप के पास ?’ वह खुश होती हुई बोली।
मैं तो निकाल लूंगा। आप अपनी बताइए। और फिर आप के लिए तो मेरे पास समय ही समय है।
ठीक है बाहर की बात बाद में देखी जाएगी। आज मैं यहीं आऊंगी !
नहीं भई, कहा न कि आज यहां नहीं। आइए आज पर कहीं और।पीयूष बोला, ‘बल्कि मैं तो कह रहा हूं कि आप अभी आइए।
अभी समय है आप के पास ?’
बिलकुल है तभी तो कह रहा हूं।
लेकिन हम को तो भूख लगी है। अभी खाना भी नहीं खाया है !
यह तो और अच्छी बात है !
क्या मतलब !
मतलब यह कि भूख मुझे भी लगी है। आइए और किसी अच्छे होटल में बढ़िया खाना खाते हैं।पीयूष बोला।
क्या खिलाएंगे ?’
‘‘
यही चिली-विली। या जो आप खाना चाहें।
पर मैं तो प्योर वेजेटेरियन हूं।
तो क्या हुआ ? पनीर चिली और वेज चाओमिन खिलाएंगे।पीयूष ने कहा।
पर मुझे चाओमिन अच्छी नहीं लगती।
तो डोसा खाएंगे। या कुछ और जो आप को पसंद हो।
डोसा ही खाएंगे। और हां, कुकरैल भी चलेंगे। ले चलेंगे ?
बिलकुल ले चलेंगे।
इतना समय है आप के पास ?’
हां, भाई।वह बोला, ‘यह बताइए कि डोसा कहां खाएंगी ?’
आप बताइए !वह ठुनक कर बोली।
गांधी आश्रम के पीछे। मद्रासी वाली दुकान पर !
नहीं, वहां नहीं।
तो ?’
ऐसी जगह जहां इत्मीनान से बैठ सकें।वह बोली, ‘हम को मोती महल वगैरह भी पसंद नहीं।
तो क्वालिटी में बैठें ?’
यह क्वालिटी कहां है ?’ उस ने पूछा।
मेफेयर सिनेमा के कैंपस में। अच्छा रेस्टोरेंट है।
सिनेमा भी देखें ?’
मेफेयर तो बंद है। पर ठीक है डोसा खा कर कुकरैल। कुकरैल में क्लिंटन वालाओरलकरिएगा। और फिर इवनिंग शो सिनेमा कहीं देखेंगे। फिर रात आप की पहलू में ! ठीक ?’
बड़े रोमैंटिक हो रहे हैं।वह बोली, ‘लेकिन यह बताइए कि क्लिंटन वाला ओरल क्या है ? मैं समझी नहीं।
अरे भई अख़बार नहीं पढ़तीं आप ? मोनिका लेविंस्की के साथ क्लिंटन का कहना है कि ओरल ही किया था !
धत् !वह बोली, ‘तो रात ही का रखिए। अभी दिन का प्रोग्राम कैंसिल करिए !
क्यों ?’
दोनों नहीं हो पाएगा !
तो चलिए अभी रात का रात में देखेंगे। पर होगा ओरल भी !
चलिए ठीक है। कुकरैल में ओरलहोगा। पर मैं रात में ही आना चाहती हूं।
लेकिन मेरा अभी मन है !
अच्छा एक मिनट रुकिए !
क्यों क्या हुआ ?’
डाकिया आया है मेरी रजिस्ट्री ले कर बाहर से आवाज दे रहा है !वह बोली, ‘आप एक मिनट रुकिए, मैं दस मिनट में आई !
हद है !
क्या ?’
आप कह रही है कि एक मिनट रुकिए दस मिनट में आई ! इस का क्या मतलब है ?’
अच्छा अभी फोन रखिए ! मैं मिलाती हूं !
कुछ नहीं, फोन नहीं रखना। होल्ड कर रहा हूं आप जल्दी आइए !
क्यों ? क्या फोन का बिल नहीं पड़ता क्या ?’ वह बोली, ‘अच्छा पांच मिनट में मैं मिलाती हूं!
ठीक है जल्दी आइए !कह कर पीयूष ने फोन रख तो दिया पर दो ही मिनट में फिर से रीडायल कर दिया ! क्योंकि वास्तविक नंबर फोन का क्या था उसे मालूम तो था नहीं ! और दफ्तर में दो तीन टेलीफोन लटक आस-पास मंडरा रहे थे। फोन करने के लिए।
हां, आप माने नहीं !वह हांफती हुई बोली, ‘मैं ने कहा था कि मैं मिलाऊंगी!
मैं ने ही मिला लिया तो क्या हुआ ?’ पीयूष बोला, ‘ख़ैर, कैसी रजिस्ट्री थी?’
मेरी है ! हैदराबाद से आई है !वह हांफती हुई बोली, ‘मैं ने हैदराबाद भी अप्लाई किया था !
तो अब आप हैदराबाद जाएंगी ?’
देखते हैं !
कुछ नहीं’, पीयूष बोला, ‘हैदराबाद के झंझट में मत पड़िएगा ! वहां फ्राड ज्यादा होता है ! इस से बेहतर है देहरादून या नैनीताल-हल्द्वानी ! समझीं कि नहीं!
ये तो है !
बल्कि आप अभी कह रही थीं कि सिलाई वगैरह में आप की दिलचस्पी है तो बेहतर है कि आप एक बुटिक खोल लीजिए ! नर्सिंग वगैरह से तो ठीक ही है!
बुटिक खोलने के लिए पूंजी चाहिए ! कहां है मेरे पास ?’
पूंजी?’ पीयूष बोला, ‘अरे ये बैंक किस लिए हैं ? फाइनेंस करवा देंगे !
सच ?’
तो और क्या ?’ पीयूष बोला, ‘फाइनेंस कराइए और कारोबार शुरू! फिर काम ख़ुद मत करिए ! कारीगर रखिए और खुद सुपरवाइज करिए !
फिर दुकान भी खोलनी पड़ेगी ?’
ना।पीयूष बोला, ‘दुकान खोलने के चक्कर में पड़िएगा नहीं ! नहीं दुकान और वर्कशाप दोनों नहीं चल पाएगी। सिर्फ वर्कशाप ! और दुकानों को सप्लाई करिए! दस नहीं बीस ! बीस नहीं, दो सौ दुकानों को ! फिर शहर के बाहर भी !
यही ठीक रहेगा !वह चहकी, ‘मैं चिकेन का भी काम जानती हूं !
तो फिर फाइनेंस की बात करूं ?’
अभी नहीं !
क्यों ?’
जरा अक्टूबर तक देख लें !वह बोली, ‘क्या पता नौकरी का कुछ बन जाए!
कहा न कि नौकरी को मारिए गोली ! और बन जाइए बुटिक क्वीन !
ठीक है। लेकिन थोड़ा सोच लूं।
अरे मैं हूं न सोचने के लिए !वह बोला, ‘और क्या चिंता है आप की ?’
यही कि बेटा पढ़ लिख जाए !
और ?’
यह कि एक कमरे का ही सही, एक अपना मकान हो जाए !
कहां पर ?’
गोमती नगर में हो जाए तो अच्छा है ?’
रजिस्ट्रेशन करवाया है ?’
करवाया तो नहीं पर हमारी जान-पहचान की एक आंटी हैं मिसेज चौधरी, एल॰ डी॰ ए॰ में ! उन्हों ने कहा है कि दिलवा देंगे !
तो फिर ?’
एक बार हसबैंड को भेजा था। फिर वह दुबारा नहीं गए। हम से भी बोले कि तुम भी मत जाना। वह बहुत बदनाम औरत है। मैं जानती हूं कि वह अच्छी है ! पर कुछ बात ऐसी हुई होगी कि इन की नजरों में वह गिर गई।कह कर वह उदास हो गई !
बदनामी-नेकनामी से क्या लेना ? आप को तो मकान चाहिए। ले लीजिए! कौन कहीं उन के पड़ोस में रहना है!
यही तो !वह बोली, ‘दरअसल आंटी तो ठीक हैं! अंकल ही गड़बड़ निकले! आंटी बताती हैं कि स्मैक पीते थे।वह बोली, ‘आंटी ने उन से लव मैरिज की थी। भाग कर। तब वह ऐसे नहीं थे। फिर बंबई चले गए और वहीं स्मैकची बन गए! जब कभी आते तो जेब में पुड़िया रहती। बच्चे पूछते कि पापा यह क्या है ? तो वह कहते माता का परसाद है। एक बार बेटियों को भी दे दिया। बेटियों ने जीभ पर रखते ही उल्टी कर दी।वह बोलती जा रही थी, ‘वह तो आंटी बाद में अंकल से इतना परेशान हो गईं कि बाराबंकी में स्मैक में ही फंसा कर उन्हें जेल करवा दिया।’ ‘यह तो गलत किया।पीयूष बोला, ‘ऐसे ही था तो वह उन्हें अस्पताल में भरती करा देतीं। इलाज हो जाता।
अस्पताल वगैरह सब कर के वह हार गई थीं। तब यह किया।वह बोली सब किस्मत-किस्मत का फेर है !
यह तो है !पीयूष बोला, ‘ख़ैर चलिए मकान का भी देखते हैं पर यह बताइए कि गोमती नगर के अलावा कहीं और नहीं चलेगा ?’
सपना तो गोमती नगर का ही देखा है।वह भावुक होती हुई बोली, ‘बचपन मेरा वहीं बीता है इस लिए भी !
चलिए गोमती नगर का ही देखते हैं।वह बोला, ‘पर वहां तो रीसेल वाला मकान ही मिल पाएगा। चलिए फिर भी देखते हैं।वह बोला, ‘पर यह बताइए अभी डोसा के लिए कहां मिलें ?’
आप जहां कहें ?’
हम तो कह रहे हैं कि आज ही नैनीताल चलें ? चल पाएंगी ?’
जहां कहें वहां चलूंगी। पर आज ही कैसे ?’
तो कब ?’
कानपुर में हमारी एक बहन रहती है, एक शाहजहांपुर में और एक राजस्थान में। इन्हीं के यहां चलने का बहाना बनाऊंगी !
तो फिर राजस्थान ही चलते हैं !
हां, राजस्थान है भी अच्छी जगह।वह चहक कर बोली, ‘वहां एक से एक जगहें हैं जहां चले जाओ तो कोई किसी को मिलता ही नहीं। पूछता ही नहीं।उस ने किसी एक जगह का नाम भी लिया और बोली, ‘बहुत अच्छी जगह है। आप के साथ और मजा आएगा !फिर वह परेशान हो गई। बोली, ‘लेकिन पहले जरा नौकरी का कुछ हो जाए !’
अच्छा चलिए अपने डिटेल्स दीजिए !
किस बात का ?’
नौकरी के लिए !
अच्छा-अच्छा !वह बोली, ‘प्रार्थना त्रिवेदी वाइफ आफ आनंद त्रिवेदी।
डेट आफ बर्थ ?’ पीयूष जैसे सब कुछ जान लेना चाहता था !
डेट आफ बर्थ में ही तो गड़बड़ हो गई !वह बिलबिलाती हुई बोली, ‘है तो मेरी डेट आफ बर्थ 29 अक्टूबर, 1964 की पर लिख गई 1961 की। यहां भी गड़बड़ हो गई।
ओह !पीयूष ने जोड़-जाड़ कर कहा, ‘फिर तो आप 34 के बजाय 37 की हो गईं।
हां यह भी एक गड़बड़ है।वह बोली, ‘पापा कहते हैं कि क्या पता था कि तेरी ऐसी शादी हो जाएगी और तुझे नर्सिंग करनी पड़ेगी !वह बोली, ‘पापा भी पछताते हैं!
इस में पछताने की क्या बात है ?’ वह बोला, ‘अभी भी कुछ नहीं बीता। जिंदगी की शुरुआत अब से ही सही फिर से शुरू की जा सकती है !
कैसे ?’
बुटिक खोल कर !
हां, यह तो है !वह बोली तो पर बुझी-बुझी। फिर कहने लगी, ‘अभी तो भूख लगी है।सांस छोड़ती हुई वह बोली, ‘बड़े जोंरों की।
तो आइए मुझे खा लीजिए !
आप को भी खाऊंगी ! पर रात को।वह शरारती ढंग से खिलखिला कर बोली।
ख़ैर, रात को हमें खाइएगा ! अभी तो डोसा खाने आइए।
कहां खिलाइएगा ?’
जहां आप कहिए !
कोई ऐसी जगह जहां इत्मीनान से बैठ सकें। ज्यादा भीड़भाड़ न हो !
तुलसी चलें ?’
हां, तुलसी भी ठीक है ! पर….।
पर क्या ?’
डोसा, अच्छा डोसा तो निशातगंज में एक जगह है वहां मिलता है।
कहां ?’
वृंदावन में !
यह कहां है ?’
आई॰ टी॰ वाला ओवरब्रिज खत्म होता है न तो बाएं हाथ एक बेकरी है। बेकरी से जरा आगे चलिए तो वृंदावन है !
मैं समझा नहीं।
आप ने वृंदावन नहीं देखा ?’
देखा तो है पर मथुरा वाला ! निशातगंज वाला नहीं !
यहां भूख लगी है और आप को मजाक की पड़ी है।वह बोली, ‘निशातगंज रेल क्रासिंग से फातिमा अस्पताल की ओर रास्ता जाता है ?’
हां, जाता है !
तो उस पर जाने की बजाय इधर बाएं हाथ वाली पटरी पर आइए तो एक बेकरी है। बेकरी के आगे वृंदावन !
मैं नहीं ढूंढ़ पाऊंगा। आइए आप के साथ ही चलूंगा।उस ने पूछा, ‘बोलिए कहां मिल रही हैं ?’
निशातगंज मंदिर पर !
मंदिर के किस तरफ ?’
मंदिर पर ही !
ठीक है सवा एक बज रहे हैं आप कब तक मिलेंगी ?’
दो सवा दो बजे तक !वह बोली, ‘अब फोन रखिए और उठिए !
हां, यह बताइए कि किस रंग का कपड़ा पहन रही हैं ?’ पीयूष घबराया हुआ बोला !
क्या मतलब ?’
अरे यही कि भीड़ में आप को ढूंढ़ने में दिक्कत न हो !
अच्छा फोन रखिए और उठिए !
कपड़े का रंग तो बता दीजिए ?’
काही रंग की साड़ी पहन रही हूं !वह हड़बड़ाई हुई बोली, ‘ठीक है?’
हां, ठीक है !
अच्छा क्या रिट्ज में बैठें ?’
आप जहां चाहें ! पीयूष बोला, ‘पर यह बताइए कि सप्रू मार्ग वाले रिट्ज कि महानगर वाले रिट्ज में ?’
महानगर वाले में।वह बोली, ‘पर ऐसा तो नहीं कि उधर आप का बेटा कहीं मिल जाए ! और गड़बड़ हो जाए !
बेटे वेटे की चिंता आप छोड़िए। आप बस आ जाइए !
अच्छा तो ठीक है थाने के सामने जहां ओवरब्रिज ख़त्म होता है, निशातगंज में जहां टैंपो रुकते हैं उस के सामने शिव भंडार में मिलते हैं।
शिव भंडार ? मैं ने नहीं देखा !
अरे, वह जो अलबेला चाट हाऊस है न?’
हां !
उसी के नीचे शिव भंडार है।
अच्छा-अच्छा ! पर वह तो थाने के सामने नहीं निशातगंज पुलिस चौकी के सामने है।
थाना हो या चौकी बस उस के सामने शिव भंडार में मिलिए।वह खुसफुसाई, ‘अम्मा जी दाल चावल खाने को कह रही हैं पर मैं स्वास्थ्य भवन जाने का बहाना कर के निकल रही हूं।फिर बोली, ‘अब फोन मत करिएगा। हसबैंड आने वाले हैं। उन को पता चल गया तो मुसीबत हो जाएगी।कह कर उस ने फोन रख दिया।

पीयूष का मन हुआ कि अब फ्लर्ट बहुत हो चुका है दुबारा फोन कर के अब वह प्रार्थना त्रिवेदी को बता दे कि वह वहनहीं है जिसे वह समझ रही हैं। और यह कि वह पीयूष है। फिर भी अगर वह मिलना चाहती हैं तो आएं, उन का स्वागत है ! और उस ने जल्दी से फोन रीडायल कर दिया ! फोन उस ने ही उठाया। पर पीयूष ने सोची हुई बात नहीं कही। यह सोच कर कि कहीं प्रार्थना का आना रद्द न हो जाए। वह भावुक हो कर कहने लगा, ‘देखिए आप से आज बात कर के बड़ा आत्मिक सुख मुझे मिला है। और एक बात कि आज आप को बदले रूप में मैं मिलूंगा। लेकिन आप नाराज बिलकुल मत होइएगा।उस ने फिर से एक बार दरियाफ्त किया, ‘आप नाराज तो नहीं होंगी ?’

नहीं !वह भी भावुक हो गई और खुसफुसाई कि, ‘मैं निकल रही हूं। आप भी अब उठिए !कह कर उस ने फोन रख दिया। पीयूष को लगा कि यह तो गलत हो गया। वहां जा कर कुछ अप्रिय घट गया तो ? उस ने सोचा कि वह फिर से फोन मिला कर प्रार्थना को अपने बारे में साफ-साफ बता दे। उस ने फोन फिर रीडायल किया। पर अब की फोन प्रार्थना ने नहीं शायद उस की सास ने उठाया। पीयूष ने फोन काट कर फिर रीडायल किया कि कम से कम इस फोन का नंबर ही जान ले! फोन फिर प्रार्थना की सास ने उठाया। पीयूष ने बताया कि वह टेलीफोन एक्सचेंज से बोल रहा है और पूछा कि, ‘आप का टेलीफोन नंबर क्या है ?’ प्रार्थना त्रिवेदी की सास ने फोन नंबर हिंदी में सौ-सौ कर के बता दिया। पीयूष ने घड़ी देखी। पौने दो बज गए थे। वह ज्यों चला उसे लैट्रिन महसूस होने लगी। वह भाग कर ट्वायलेट गया। जल्दी-जल्दी निपट कर निशातगंज पुलिस चौकी के सामने शिव भंडार पहुंचा। दिक्कत यह थी कि पीयूष को काही रंग कैसा होता है यह भी नहीं पता था, न ही प्रार्थना की डीलडौल या शकल-सूरत। पर शिव भंडार बहुत छोटी जगह थी। वहां प्रतीक्षारत कोई औरत उसे नहीं दिखी। उस ने आस-पास नजर दौड़ाई। कहीं कोई औरतप्रतीक्षामें नहीं थी।

थोड़ी देर बाद एक दुबली-पतली औरत कांख में एक बैग दबाए उस पटरी से इस पटरी भागती हुई आई और शिव भंडार की कुल्फी वाली दुकान पर खड़ी हो गई। खड़ी हो कर इधर-उधर अकुलाई नजरों से देखने लगी। दो मिनट तक पीयूष उसे देखता रहा। सोचा कि उस से जा कर पूछे कि क्या आप ने काही रंग की साड़ी पहन रखी है ? पर जब वह स्कूटर लिए उस के पास पहुंचा तो साड़ी का रंग पूछने के बजाय उस से कहने लगा, ‘जरा एक मिनट सुनिए !कह कर वह स्कूटर पर ही बैठा रहा। पर उस ने सुना नहीं कि शायद सुन कर अनसुना कर दिया तो पीयूष ने एक बार फिर उस से कहा कि, ‘जरा एक मिनट सुनिए !अब की उस ने न सिर्फ सुन लिया बल्कि पीयूष को घुड़का, ‘क्या बात है ? चलो यहां से !पीयूष दुम दबा कर भागा कि कहीं कुछ अप्रिय न घट जाए ! पर वह ओवर ब्रिज से होता हुआ फिर वापस आया। स्कूटर थोड़ी दूर खड़ी की। और सोचा कि जा कर प्रार्थना से माफी मांग ले कि, ‘गलती हो गई !’ फिर उस ने सोचा कि एक परची लिख कर दे दे कि, ‘क्षमा कीजिए। गलती हुई और कि आप यहां किसी का इंतजार करने के बजाय जाइए। या फिर उस अपने परिचितको ही फोन कर के बुला लीजिए। या फिर चलिए मेरे ही साथ वृंदावन में डोसा खाइए।वह यह सब सोच ही रहा था कि उस ने देखा कि वहां से कूड़ा उठाने वाला जमादार उसे घूर रहा है। पीयूष को लगा कि मामला गड़बड़ हो गया है। उस ने स्कूटर स्टार्ट की और वहां से चला गया। देखा कि प्रार्थना फिर भी प्रतीक्षारत खड़ी थी। वह दुबारा लौट कर आया तो देखा कि एक सिपाही शिव भंडार के भीतर-बाहर हो रहा है। पीयूष ने वहां से खिसक लेने में ही भलाई समझी।

दूसरे दिन उस ने वही फोन नंबर मिलाया। फोन प्रार्थना ने ही उठाया। पीयूष की आवाज उस ने पहचान ली। बोली, ‘तुम हो कौन ?’ वह जैसे अपना सारा गुस्सा उतार लेना चाहती थी। बोली, ‘बहुत जूते पड़ेंगे !पीयूष ने फोन रख दिया। फिर तीसरे दिन फोन मिलाया। उठाया किसी औरत ने ही। पीयूष ने प्रार्थना को ही समझा। बोला, ‘उस दिन की अशोभनीय घटना के लिए शर्मिंदा हूं।वह औरत थोड़ी तहजीब से बोली, ‘आप हैं कौन ? अपना परिचय दीजिए ! और किस बात के लिए क्षमा चाहते हैं ?’ पीयूष ने बताया कि, ‘परसों के फोन के लिए !वह बोली, ‘हां, सुना कि परसों बहुत फोन आए। आप ही ने किया था ? आप अपना परिचय बताइए !पीयूष ने कहा कि, ‘क्या करेंगी मेरा परिचय जान कर आप फिर नाराज हो जाएंगी !’ वह बोला, ‘सच यह है कि हमें रांग नंबर मिल गया था। और मैं तो आप को तभी बता देना चाहता था पर आप हर बार निकल रही हूं, निकल रही हूं, कह कर फोन रख देती थी।
आप की असल में मुझ से नहीं किसी और से बात हुई थी।वह औरत जिज्ञासा में भर कर बोली, ‘पर आप क्या कहना चाहते थे ?’ पीयूष ने कहा, ‘जाने दीजिए। अब तो गलती हो गई !कह कर फोन रख दिया। पर फिर से फोन मिलाया तो फिर वही औरत थी। पीयूष बोला, ‘दुबारा फोन इस लिए किया कि जिन से परसों बात हुई थी उन से कहिएगा जरूर कि मैं ने क्षमा मांगी है।
ठीक है कह दूंगी।पर पीयूष का मन नहीं माना दो दिन बाद उस ने फिर उसी समय फोन किया जिस समय पहले दिन किया था। प्रार्थना ने ही फोन उठाया। फोन उठाते ही वह बरसने लगी, ‘तुम हो कौन ?’ पीयूष का मन हुआ कि कह दे कि वहीनागरिकहूं जिस के साथ उस दिन आप राजस्थान तक जाने को तैयार थीं और नैनीताल, देहरादून में मेहमान बनाने को तैयार थीं। कुकरैल जा कर ओरलको तैयार थीं और वृंदावन में डोसा खा-खिला रही थीं, वगैरह-वगैरह ! पर पीयूष ने यह सब कहने के बजाय सिर्फ इतना सा कहा कि, ‘हद है आप तमीज से बात भी नहीं कर सकतीं ?’ और फोन रख दिया।

वह समझ गया था कि फोन पर फ्लर्ट को अब प्रार्थना त्रिवेदी तैयार नहीं हैं!


दयानंद पांडेय

अपनी कहानियों और उपन्यासों के मार्फ़त लगातार चर्चा में रहने वाले दयानंद पांडेय का जन्म 30 जनवरी, 1958 को गोरखपुर ज़िले के एक गांव बैदौली में हुआ। हिंदी में एम.ए. करने के पहले ही से वह पत्रकारिता में आ गए। वर्ष 1978 से पत्रकारिता। उन के उपन्यास और कहानियों आदि की कोई 26 पुस्तकें प्रकाशित हैं। लोक कवि अब गाते नहीं पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का प्रेमचंद सम्मान, कहानी संग्रह ‘एक जीनियस की विवादास्पद मौत’ पर यशपाल सम्मान तथा फ़ेसबुक में फंसे चेहरे पर सर्जना सम्मान। लोक कवि अब गाते नहीं का भोजपुरी अनुवाद डा. ओम प्रकाश सिंह द्वारा अंजोरिया पर प्रकाशित। बड़की दी का यक्ष प्रश्न का अंगरेजी में, बर्फ़ में फंसी मछली का पंजाबी में और मन्ना जल्दी आना का उर्दू में अनुवाद प्रकाशित। बांसगांव की मुनमुन, वे जो हारे हुए, हारमोनियम के हज़ार टुकड़े, लोक कवि अब गाते नहीं, अपने-अपने युद्ध, दरकते दरवाज़े, जाने-अनजाने पुल (उपन्यास),सात प्रेम कहानियां, ग्यारह पारिवारिक कहानियां, ग्यारह प्रतिनिधि कहानियां, बर्फ़ में फंसी मछली, सुमि का स्पेस, एक जीनियस की विवादास्पद मौत, सुंदर लड़कियों वाला शहर, बड़की दी का यक्ष प्रश्न, संवाद (कहानी संग्रह), कुछ मुलाकातें, कुछ बातें [सिनेमा, साहित्य, संगीत और कला क्षेत्र के लोगों के इंटरव्यू] यादों का मधुबन (संस्मरण), मीडिया तो अब काले धन की गोद में [लेखों का संग्रह], एक जनांदोलन के गर्भपात की त्रासदी [ राजनीतिक लेखों का संग्रह], सिनेमा-सिनेमा [फ़िल्मी लेख और इंटरव्यू], सूरज का शिकारी (बच्चों की कहानियां), प्रेमचंद व्यक्तित्व और रचना दृष्टि (संपादित) तथा सुनील गावस्कर की प्रसिद्ध किताब ‘माई आइडल्स’ का हिंदी अनुवाद ‘मेरे प्रिय खिलाड़ी’ नाम से तथा पॉलिन कोलर की 'आई वाज़ हिटलर्स मेड' के हिंदी अनुवाद 'मैं हिटलर की दासी थी' का संपादन प्रकाशित। सरोकारनामा ब्लाग sarokarnama.blogspot.in वेबसाइट: sarokarnama.com संपर्क : 5/7, डालीबाग आफ़िसर्स कालोनी, लखनऊ- 226001 0522-2207728 09335233424 09415130127 dayanand.pandey@yahoo.com dayanand.pandey.novelist@gmail.com Email ThisBlogThis!Share to TwitterShare to FacebookShare to Pinterest

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