लिटरेचर लव

बाइट, प्लीज (उपन्यास, भाग-1)

(जस्टिस काटजू को समर्पित, जो पत्रकारिता में व्याप्त अव्यवस्था पर लगातार चीख रहे हैं….)

1

दहकता हुआ सूरज आसमान पर चढ़ चुका था, उसकी तपिश से बचने की कोशिश करते हुये नीलेश सड़क के किनारे की मकानों में बनी दुकानों की छज्जों का सहारा लेते हुये आगे बढ़ रहा था।  उसकी उजली कमीज पसीने से तर- बतर थी और वह जूते के अंदर अपने पांव में भी चिपचिपाहट महसूस कर रहा था। उसके एक हाथ में डायरी थी, जिससे वह अपने चेहरे को धूप से बचाने के लिए अपने सिर के ऊपर रखे हुये था। कड़ी धूप से बचते हुये जब वह एक दुकान के छज्जे के नीचे आया तो अपनी डायरी को खोलकर उसमें लिखे हुये  एड्रेस को पढ़ते हुये एक उम्रदराज दुकानदार से पूछा-

“भाई खबर न्यूज चैनल का दफ्तर किधर है? ”

“खबर न्यूज चैनल!  यह क्या है? ”, दुकानदार ने सवाल किया।

“ न्यूज चैनल है, अभी-अभी खुला है। पता है बांसघाट वाला रोड, जुजरा के पास, मकान नंबर 28.”

“हमको नहीं मालूम, आगे जाकर पूछो…वैसे बांसघाट रोड यही है। वो देखो सामने मुर्दों का घाट है। लोगों की लाशें यहीं पर जलती है। आप सही रोड में है, दस बारह मकान आगे जाकर पूछिये.” इतना कह कर दुकानदार काउंटर पर रखा हुआ एक हिन्दी अखबार उठा कर उसमें छपी खबरों पर नजर दौड़ाने लगा। इधर- उधर देखते हुये नीलेश आगे बढ़ चला।

गर्मी के मारे उसका बुरा हाल हो रहा था। मुर्दाघाट के बाहर दो जीप खड़ी थी, जिन पर दो लाशें थी। कुछ लोग अपने सिर पर गमझा रखे हुये उन लाशों के पास खड़े होकर आपस में बातें रहे थे। उनके पास से गुजरने के दौरान नीलेश की कानों से उनकी आवाजें टकराई.

“जान हहूं गंगा जी के पनिया केतना दूर भाग गेलई हे….इ बुढ़ऊ के ले जाइत-जाइत त हमनिये मू जायब….”

“त का इनका इहईं जला देब स? हिन्दू के कुछ विधि-विधान होव हई, गंगा जी के पानी त चाही न।”

“चुपचाप मशिनवा में डाल द…एके बार में भभक के जल जथुन…लकड़ी के पइसो बच जतव ओकरे से जिलेबी- पूड़ी कर दिह.”

“तोहनी सब चुप न रहब, ओतना दूर से इनका टांग के लइली हे यही ला कि मशिनवा में झोंक दी. तनी सा के चलते इनकर परलोक बिगाड़ दी.”

“कइसन चमरघाम कइले हे, जे करेला हव जल्दी कर…अइसे घाम में खड़ा रहब त बनास फट जायत.”

उनकी बाते नीलेश को आधी समझ में आई और आधी नहीं। माथे से अपना पसीना पोछते हुये कड़ी धूप से बचने की कोशिश में उसने डायरी को एक बार फिर अपने सिर के ऊपर रख लिया। वहां की हवायें मुर्दों के जलने की दुर्गन्ध से भरी हुई थी। उस दुर्गन्ध से नीलेश को मितली आ रही थी। वह जल्द से जल्द उस स्थान से दूर चला जाना चाहता था। वह तेज चाल से आगे बढ़ने लगा।

दिल्ली से पटना के लिए संपूर्ण क्रांति पकड़ने के पहले रोहित के कहे हुये शब्द उसे याद आ रहे थे। रोहित ने उसे समझाते हुये कहा था,

“ बिहार में जाकर मीडिया के क्षेत्र में काम करने का कोई तुक नहीं है। मीडिया में कुछ करने के लिए दिल्ली बेस्ट है। मीडिया में काम करने वाले दूर-दराज के इलाके के लोग भाग-भागकर दिल्ली आ रहे हैं,और जो नहीं आ रहे हैं उनका यही सपना है कि वे दिल्ली में आकर काम करें, यहां आपरच्यूनिटी है,इलेक्ट्रानिक से लेकर प्रिंट मीडिया के बड़े-बड़े दफ्तर हैं। मान, सम्मान और पैसा- क्या नहीं है यहां। जितना वक्त तुम बिहार में दोगे, उससे कम वक्त में तुम दिल्ली में अपने लिए एक नई मुकाम हासिल कर लोगे।”

इसके जवाब में उसने रोहित से सिर्फ इतना ही कहा था,-

“यार दिल्ली में रहकर मैंने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली, एमए किया, मास कम्युनिकेशन किया, कई अखबारों और टीवी चैनलों में नौकरी भी कर ली। अब तो बिहार में परिवर्तन की हवा भी बह रही है। ऐसे में यदि मैं वहां लौटकर अपने लोगों के बीच कुछ करना चाहता हूं तो इसमें बुरा क्या है?”

रोहित ने कहा था, “ साले तू आदर्शवादी बन रहा है। वहां जा फिर तुझे पता चलेगा। 15 साल पहले जब तू दिल्ली आया था ना तब तेरे पास सिर छुपाने के लिए छत तक नहीं थी। मैंने देखा है कैसे ट्यूशन पढ़ा-पढ़ा कर तुमने अपनी पढ़ाई पूरी की है। अब जब सफलता तुम्हारे सामने खड़ी है, तू इसे ठुकरा कर वापस बिहार जा रहा है। यहां रह, पत्रकारिता कर, दबा के दारू-साढू पी, लौंडिया घुमा और ऐश कर। मेरी बात नहीं मानेगा तो साले तू पछताएगा, कहीं का नहीं रहेगा, याद रखना। ये तेरा बिहार बदलने वाला नहीं है, मुझे पता है। सब साले चोरकट है वहां पर। और वहां पर ही क्यों, पूरी दुनिया चोरकटों से भरी पड़ी है। ये जो तु अरिवर्तन-परिवर्तन की बात करता है ना, ये कोरे शब्द हैं। यहां हर आदमी अपने फायदे के लिए दूसरे का गला काटने के लिए खड़ा है।”

नीलेश ने मुस्करा कर सिर्फ इतना कहा था, “तू अपनी थीसीस अपने पास रख, मुझे पता है मुझे क्या करना है।”

उसी वक्त ट्रेन खुल चुकी थी। उससे हाथ मिलाने के बाद रोहित ने चिल्लाकर कहा था, “चंद्रशेखर भी बिहार को सुधारने गया था, उसका क्या हर्ष हुआ मत भूलना। …साले जिंदा वापास आना, नहीं तो तेरी बैंड बजा दूंगा।”

2.

कड़ी धूप में सड़क के किनारे एक व्यक्ति को औंधा लेटा देखकर नीलेश थोड़ी देर के लिए ठहर गया। कुछ लोग उसे घेरे हुये थे। उनमें कुछ बच्चे भी थे। अधपक्के बालों वाला व्यक्ति जमीन पर अपना हाथ रगड़ते हुये कुछ बुदबुदा रहा था और बच्चे उसे कौतुहल से देख रहे थे और फब्तियां कस रहे थे।

एक व्यक्ति थोड़ा चिल्लाकर बोला, “ इ आज दिने में जमके चढ़ा लिये हैं। उठा के इनको ओने छाया में डाल दो, नहीं तो इनका राम नाम सत्य हो जाएगा।”

कुछ लोग उसे उठाने की कोशिश करने लगे तो वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा, “खबरदार जो किसी ने मुझे हाथ लगाया, पता नहीं है कि बिहार में सुशासन आ गया है। दारू पीना अब गुनाह नहीं है। पाकेट में पैसा हो तो छक के पीओ, कोई पुलिस और कोई मिलिट्री नहीं रोक सकता है। सुसासन जिंदाबाद,सुसासन जिंदाबाद। ”

भीड़ में खड़े एक व्यक्ति से नीलेश ने पूछा, “ भाई साहब खबर न्यूज चैनल का दफ्तर किधऱ है?” उस व्यक्ति ने नीलेश को घूर कर देखा और पूछा, “तुम क्या मीडिया से हो?”

“हां”

“लो भाई, काका के उत्पात को कवर करने के लिए यहां मीडिया भी पहुंच गई,” वहां मौजूद अन्य लोगों की तरफ मुखातिब होते हुये उसने थोड़ी ऊंची आवाज में कहा तो सभी लोग नीलेश की तरफ देखने लगे।

“लेकिन तुम्हारा तामझाम कहां है?”, भीड़ में से एक व्यक्ति ने पूछा।

“तामझाम!” मीडिया के नाम पर उस व्यक्ति के अप्रत्याशित रियेक्शन से नीलेश थोड़ा अचंभित था।

“अरे मेरा मतबल है तुम्हारा कैमरा और माइक कहां हैं, जिससे फोटो उतारते हो। चाचा को इस इलाके में कौन नहीं जानता है। दारू चढ़ा लेवे के बाद तो इ शेर बन जाते हैं, और सुशासन का माला जपने लगते हैं। जब से गली-गली में दारू की दुकानें खुली हैं, चाचा की चलती बढ़ गई है”,

“मैं खबर लाइव का दफ्तर तलाश रहा हूं, न कि मैं यहां रिपोर्टिंग करने आया हूं। क्या आप बता सकते हैं कि खबर लाइव चैनल का दफ्तर किधर है?”, नीलेश ने झुंझलाते हुये पूछा।

“एक न्यूज चैनल का दफ्तर आगे खुला है, वर्मा जी के मकान में। वर्मा जी का मकान आगे है। पेट्रोल पंप के ठीक पहले, पहलवान घाट के सामने ”, उस व्यक्ति ने एक ओर इशारा करते हुए नीलेश से कहा। नीलेश ने उसकी ओर देखते हुये थैंक्स कहा और उस ओर बढ़ गया। पीछे से शराब के नशे में धुत काका की आवाजें उसकी कानों से टकरा रही थीं, “ चोरों का मुंह काला है,

सुसासन का बोलबाला है…

सुसासन जिंदाबाद, जिंदाबाद। ”

3.

नीलेश एक बड़े से दो मंजिली इमारत के सामने खडा था, जिसमें प्रवेश करने के लिए दो बड़े-बड़े गेट थे। एक गेट अंदर से बंद था, जबकि दूसरा पूरी तरह से खुला हुआ था। दोनों गेट के अंदर पक्की इंटों के रास्तें बने हुये थे, दोनों रास्तें इमारत के दो भागों से जुड़े हुये थे। दोनों रास्तों के बीच में एक बड़ा सा गार्डेन था, जिसके किनारों पर तरह-तरह के कैक्टस से भरे हुए करीब दो दर्जन से अधिक गमलें रखे हुये थे। गार्डेन के बीच के भाग में जंगली घासें उगी हुई थी। जंगली घासों ने गमलों के इर्द-गिर्द भी अपना घेरा बना लिया था। कुछ गमलों में लगे कैक्टस के पौधे इन घासों के बीच ढक से गये थे, जबकि कुछ के कद इन घासों को भी मात दे रहे थे। लंबे समय से हवा, धूप और बारिश झेलते रहने की वहज से से दो मंजिला इमारत कुछ बदरंग सी हो गई थी, लेकिन इसकी कद काठी को देखकर सहजता से इस बात का अहसास होता था कि कभी इस इलाके में यह इमारत अपनी खूबसूरती को लेकर जरूर इठलाती होगी या फिर जिसने भी इसे बनवाया होगा अपने समय के सारे आधुनिकतम तकनिक का इस्तेमाल इसके निर्माण में किया होगा। इमारत के बायीं तरफ एक बड़ी से बिल्डिंग का ढांचा खड़ा था जो पटना में रियल स्टेट के धंधे में आ रहे चमक को प्रदर्शित करता था। पटना के छोटे-बड़े कस्बों में अपार्टमेंट संस्कृति अपना पैर पसार रही थी।

इधर-उधर देखते हुये नीलेश गेट के अंदर दाखिल हुआ। यह रास्ता इमारत के दूसरे हिस्से में जाता था। करीब पंद्रह कदम की दूरी तय करने के बाद वह इमारत के दूसरे हिस्से में बने बरामदे में पहुंचा। टाइट जींस और टी शर्ट पहने हुये एक पतला दुबला काले रंग का आदमी बाहर निकलता हुआ दिखाई दिया। उसका जीन्स उसके पेट को बुरी तरह से कसा हुये थे, उसके सूखे हुये चेहरे को देखकर ऐसा लगता था कि कसे हुये जीन्स की वजह से अभी-अभी उसका दम निकल जायेगा।

“आपको किनसे मिलना है ? ”, नीलेश की तरफ देखते हुये उनसे पूछा।

“नरेंद्र श्रीवास्तव से, मेरा नाम नीलेश है। दिल्ली से आया हूं। मेरी उनसे बात हो चुकी है, उन्होंने मुझे बुलाया था”, अपने आप को सहज करने की कोशिश करते हुये नीलेश ने कहा। लंबे समय तक धूप में चलते रहने की वजह से उसका गोरा चेहरा खून की तरह लाल हो गया था।

“आप बैठ जाइये, मैं उन्हें बता देता हूं ”, बरामदे से सटे एक छोटे सी जगह में लगी हुई एक खाली कुर्सी की तरफ इशारा करते हुये उसने कहा और सामने के दरवाजे में दाखिल हो गया। नीलेश कुर्सी पर बैठ गया और अपनी आंखे बंद कर ली। उसकी आंखों के सामने खबर न्यूज चैनल के सबंध में अट्टहास फोर मीडिया डाट काम पर छपी खबर घूमने लगी जिसे पढ़कर वह काफी प्रभावित हुया था। उस खबर में नरेंद्र श्रीवास्तव ने जेपी मूवमेंट की काफी तारीफ करते हुये खबर न्यूज चैनल के उद्देश्यों को स्पष्ट किया था। जेपी के संपूर्ण क्रांति के सपनों को लेकर उन्होंने लोगों के बीच में जाने की बात कही थी। अट्टहास फोर मीडिया की उस खबर में नरेंद्र श्रीवास्तव के व्यक्तित्व का काफी ऊंचा मूल्यांकन किया गया था। उत्तर बिहार से निकलने वाले एक राष्ट्रीय अखबार के स्थानीय संस्करण में जिसका दफ्तर मुज्जफरपुर में था वह रेजिडेंशियल एडिटर के पद से इस्तीफा देकर खबर न्यूज चैनल लेकर आ रहे थे। लोहिया और जेपी के आदर्शों में उनकी अपार निष्ठा थी। अट्टाहास फोर मीडिया की उसी खबर से प्रभावित होकर नीलेश ने नरेंद्र श्रीवास्तव से संपर्क किया था और फिर उन्होंने फोन पर एक-दो बार बात करने के बाद उसे पटना में आकर मिलने को कहा था। बिहार में काम करने का इच्छुक नीलेश को लगा था कि एक स्पष्ट सोच रखने वाले व्यक्ति के साथ जुड़ कर बिहार में बेहतर काम किया जा सकता है।

“सर आपको अंदर बुला रहे हैं”, उस काले व्यक्ति की आवाज सुनकर नीलेश ने अपनी आंखे खोल दी। वह तुरंत उठ कर खड़ा हो गया और सामने के दरवाजे में दाखिल हो गया। यह एक बड़ा सा हाल था,जिसमें कई लोग एक लंबे कद के आदमी के इर्द-गिर्द बैठे हुये थे, जिसके चौकोर चेहरे पर स्थिरता दिखाई देती थी। कद के हिसाब से उसके शरीर का आकार भी काफी बुलंद था। उसकी आंखें बच्चों की तरह थी, जिसकी वजह से उसके कद और शरीर प्रभाव कम हो जाता था। कोने में एक छोटे से टेबल पर कंप्यूटर लगा हुआ था जिस पर एक चमकते चेहरे वाला दढ़ियल नौजवान काम कर रहा था।

कमरे में दाखिल होते ही सबकी नजर नीलेश की तरफ उठी। लंबे कद और हेवी डीलडौल वाले व्यक्ति ने उसकी तरफ मुखातिब होते हुये कहा, “नीलेश जी आपका स्वागत है, मेरा नाम नरेंद्र श्रीवास्तव है। बताइये मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं। पहले आप बैठ जाइये।”

“सर आपके और आपके आने वाले चैनल के बारे में अट्टाहस फोर मीडिया पर बहुत कुछ पढ़ने को मिला। मैं वाकई में आपसे बहुत इंप्रेस हूं। आपके साथ काम करने की इच्छा है। यदि यह मौका मुझे मिलता है तो मैं अपने आप को भाग्यशाली समझूंगा,” सामने पड़ी हुई एक खाली कुर्सी पर बैठते हुये नीलेश ने कहा। बाहर बरामदे में कुछ देर तक आंखें बंद करके बैठने के कारण वह अपने आप को तरोताज महसूस कर रहा था और जिस तरह से नरेंद्र श्रीवास्त ने उसका स्वागत किया था उससे वह थोड़ा सहज भी हो गया था।

“अट्टहास फोर मीडिया  काफी लोकप्रिय है। इसे लोग पढ़ते हैं। इसे पढ़ने के बाद ही कई लोगों ने मुझसे संपर्क किया है। खैर अभी तो यहां वक्त लगेगा, काम धाम लगा हुआ है। आप अपना एक रिज्यूम दे दिजीये। जब नियुक्ति शुरु होगी तो आपको बुला लिया जाएगा”, यह कहते हुये नरेंद्र की नजर बगल की कुर्सी पर ऊंघ रहे एक व्यक्ति की तरफ गई। “इन्हें देखिये अभी चैनल शुरु भी नहीं हुआ है और यह सो रहे है। आज फोन लगाने की बात हुई थी, उसका क्या हुआ? ”

“अब उसने बोला तो था सर आज आने को, लेकिन अभी तक नहीं आया है,” अपनी आंखों को खोलते हुये उस व्यक्ति ने जवाब दिया। “मैं टेंशन बिल्कुल नहीं लेता हूं सर, जो होना होगा वही होगा।”

“ये तो बहुत बुरी बात है….टेंशन तो लेना होगा”, नरेंद्र श्रीवास्तव का गाल किसी गब्दू बच्चे की तरह फूला हुआ था, बोलने के दौरान उनका गाल कुछ और फूल जाता था।

“नहीं सर, मैं टेशन बिल्कुल नहीं लेता हूं। टेंशन का मतलब है समय से पहले दस ठो बीमारी। ”

“बकबास बंद करो और जाके पता लगाओ कि फोन कब तक लगेगा,” उस व्यक्ति को डपटने के बाद नरेंद्र श्रीवास्तव ने थोड़ा जोर से कहा, “गेसू, एक राउंड सब को चाय पिलाओ।  आज स्टूडियो का नाप-जोख भी होना है। मैंने एक आदमी को बुलाया है, वह भी आता ही होगा। यहां तो सारा काम ठेकेदारी पर होता है। एक आदमी ठेका लेगा फिर दूसरे आदमी को देगा और वह फिर अपने हिसाब से काम करेगा। जल्दी-जल्दी सबकुछ हो जाये इसके लिए चौकन्ना रहने की जरूरत है।”

अपनी ओर से कुछ कहने के बजाय नीलेश उनकी बातों को सुनने में ज्यादा रूचि ले रहा था और साथ ही इस बात का भी अनुमान लगाने की कोशिश कर रहा था कि एक इलेक्ट्रानिक मीडिया का पूरा सेटअप बैठाने के लिए क्या यह जगह पर्याप्त है। दिल्ली में एक बड़े नेशनल चैनल के लांचिग टीम में वह काम कर चुका था। एमसीआर, पीसीआर, लाइब्रेरी, स्टूडियो, स्टोर आदि की बारिकियों से वह परिचित था। उसकी इच्छा हो रही थी कि उठकर वह पूरे आफिस का मुआयना करे और फिर तमाम जरूरी इक्विपमेंट को ध्यान में रखकर प्रोपर तरीके से डायग्राम बनाने के काम में जुट जाये। लेकिन यह सोच कर कहीं नरेंद्र श्रीवास्तव पर इसका नकारात्मक प्रभाव न पड़ जाये वह चुप रहा। इसके अलावा अभी तक विधिवत उसे इस टीम का हिस्सा भी नहीं बनाया गया था। ऐसी स्थिति में उसकी तरफ से किसी भी तरह की इनिशिएटिव लेना किसी भी मायने में उचित नहीं होता। नरेंद्र श्रीवास्तव ने भी साफ कर दिया था कि जब उसकी जरूरत होगी तब उसे बुला लिया जाएगा।

तभी वह काला व्यक्ति चाय की एक केतली और प्लास्टिक के छोटे-छोटे ग्लास लेकर हौल में दाखिल हुआ।

“ क्यों मेशू ,कभी अपनी मर्जी से भी तो चाय पीला दिया करो, हमेशा कहना पड़ता है,” उस काले आदम की देखकर मुस्कराते हुये नरेंद्र श्रीवास्तव ने चुटकी ली।

बारी-बारी से सब लोगों को चाय दी गई। नीलेश भी चाय की चुस्की लेने लगा।

बाहर कड़ी धूप की वजह से नीलेश की इच्छा वहां कुछ देर और बैठने की थी, लेकिन नरेंद्र श्रीवास्तव ने कंप्यूटर पर काम कर रहे व्यक्ति को नीलेश को चलता करने के लिए इशारा किया।

उसने नीलेश से कहा, “आप अपना बायोडाटा छोड़ जाइये, हम आपके बुला लेंगे।”

“आपका क्या नाम हुआ,” नीलेश ने पूछा

“सुयश मिश्रा”, दढ़ियल ने कहा।

नीलेश को यह समझते देर नहीं लगी कि उसका यहां ज्यादा देर तक बैठना संभव नहीं है। उस सुयश मिश्रा को अपना बायोडाटा पकड़ाने के बाद उसने वहां से निकलना ही बेहतर समझा। सूरज की प्रखर किरणें पूरी निर्दयता के साथ बाहर उसका इंतजार कर रही थीं।
जारी……

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One Comment

  1. अट्टहास फोर मीडिया! … … अंदाजा है हमें
    और ये लिखने के वक्त तो ई काटजू गायब थे फिर इनको समर्पित किसलिए ?
    बाकी पढ के बताते हैं जल्द ही।

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