भारतीय रेल चलाएगी “मदर एक्सप्रेस”

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तेवरआनलाईन, हाजीपुर

मदर टेरेसा के जन्म वार्षिकी पर उन्हें श्रद्धांजली अर्पित करने के लिए भारतीय रेल द्वारा ‘मदर एक्सप्रेस‘ नामक प्रदर्शनी गाड़ी चलाने का फैसला किया गया है । रेलमंत्री  ममता बनर्जी 26 अगस्त को सियालदह स्टेशन पर हरी झंडी दिखाकर इस विषेष ट्रेन को रवाना करेंगी। इस गाड़ी में शांति के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाली मदर टेरेसा के जीवन और उनके कार्यों को चित्रों और पेंटिग्स के माध्यम से प्रदर्षित किया गया है। पूरी तरह से वातानुकूलित इस प्रदर्शनी गाड़ी में कुल छह कोच होंगे जिसमें तीन कोचों में मदर टेरेसा से संबंधित प्रदर्शनी होंगी । रेल हैरिटेज मैनेजर, पूर्व रेलवे की देखरेख में इस प्रदर्शनी गाड़ी को लिलुआ के कोचिंग वर्कशाप में बनाया गया है । इसका मूल रंग उजला और नीला है। विदित हो कि मिशनरीज आफ चैरिटी की संस्थापिका मदर टेरेसा नीली बार्डर वाली श्वेत साड़ी पहना करती थी।

सियालदह स्टेशन से खुलने के बाद यह गाड़ी बरूईपुर, कृष्णानगर, कोलकाता, बंडेल, हावड़ा, आसनसोल, दुर्गापुर, बोलपुर और मालदा टाउन स्टेशनों पर रूकेगी । पश्चिम बंगाल के 10 स्टेशनों पर रूकने के बाद अगले छह महीनों तक यह गाड़ी देश के विभिन्न दूसरे शहरों में जायेगी । प्रदर्शनी गाड़ी को देखने के लिए आने वाले लोगों की सुविधा के लिए इस विशेष गाड़ी की प्रत्येक कोच में रेलकर्मचारियों तथा स्काउट एवं गाईड के स्वयंसेवकों को लगाया जायेगा ।

गरीबों एवं बीमारों की सेवा करके प्रसिद्धि हासिल करने वाली मदर टेरेसा का व्यक्तित्व नई पीढ़ी को प्रेरित करने वाला है। भारतीय रेल की प्रदर्शनी गाड़ी के माध्यम से उनके विचार नई पीढ़ी को संप्रेसित होंगे। मदर टेरेसा का जन्म वर्तमान मेसिडोनिया रिपब्लिक के स्कोपजे शहर में 26 अगस्त, 1910 को हुआ था। इसीलिए मदर एक्सप्रेस की  शुरूआत 26 अगस्त, 2010 को की जा रही है ।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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