तेज के प्रकोप से बैकफुट पर तेजस्वी, कोप भवन में जगदा बाबू

तेज प्रताप के आक्रमण से नाराज होकर आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह कोप भवन में चले गए हैं। दिल्ली से वापस आने के बाद पार्टी कार्यालय में प्रेस वार्ता के दौरान जब पत्रकारों ने इस बाबत तेजस्वी यादव से सवाल पूछने की कोशिश की तो उन्होंने मैदान छोड़ने में ही अपनी भलाई समझी। मतलब साफ है कि जगदानंद सिंह का बचाव करने या फिर तेज प्रताप के मामले में बोलने का साहस वह भी नहीं जुटा पा रहे हैं। अब तक आरजेडी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को एक खास रणनीति के तहत यही समझाने की कोशिश की जा रही थी कि लालू प्रसाद के बाद राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी की कमान कभी भी तेजस्वी संभाल सकते हैं। पार्टी अध्यक्ष के तौर पर उनके नाम की घोषणा महज समय की बात है। लेकिन युवा राजद के सम्मेलन में बेबाकी के साथ तेजप्रताप के आक्रमक रवैये के बाद से राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में तेजस्वी के नाम पर हो रही चर्चा पर न सिर्फ अचानक से विराम लग गया है बल्कि पार्टी के अंदर राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर तेज प्रताप की दावेदारी भी शिद्दत से महसूस की जा रही है। हालांकि राजद के तमाम बड़े नेताओं ने इस पर लबकशी कर रखी है।

 

पार्टी किसी की बपौती नहीं के मायने

पार्टी दफ्तर में युवा राजद के कार्यकर्ताओं से खिताब करते हुए तेजप्रताप यादव ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह पर आक्रमण करते पहले तो उन पर हिटलर की तरह तानाशाही करने का आरोप लगाया और फिर यह चुनौती दे डाली की पार्टी किसी की बपौती नहीं है, और कोई भी व्यक्ति एक पोस्ट पर चिपके हुए नहीं रह सकता है। यह हमला सीधे जगदानंद सिंह को प्रदेश अध्यक्ष के पद से विदाई कराने को लेकर है। और जिस तरह से जगदा बाबू इस हमले के बाद से कोप भवन में चले गए हैं उससे साफ पता चलता है कि उन्होंने भी इस संदेश को समझने में कोई गलती नहीं की है।

जातीय जनगणना को लेकर जिस तरह से जिस तरह से बिहार में तमाम मंडलवादी पार्टियां एक प्लेटफॉर्म पर आ रही है उसे देखते हुए भी आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष पद पर एक अगड़ी जाति के नेता का बैठे रहना पार्टी के एक धड़े को खल रहा है। तेज प्रताप यादव इस धड़े को साधते हुए अंदर खाते सूबे में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष को हटाने की मुहिम को हवा दे रहे हैं और पार्टी पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं। उनकी नजर राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर टिकी हुई है। पहले भी वह कई बार साफ तौर पर कह चुके हैं कि तेजस्वी सरकार चलाएंगे और वह संगठन। यदि जगदानंद सिंह का सियासी शिकार करने में वह कामयाब हो जाते हैं तो अपनी महत्वकांक्षा के साथ वह व्यवहारिक रूपसे एक कदम और आगे बढ़ जाएंगे। उनकी पूरी कोशिश होगी कि बिहार में पिछड़ा, अति पिछड़ा या फिर दलित तबका के किसी व्यक्ति को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बिठाया जाये, जो उनके गुड बुक में हो।

परवान नहीं चढ़ा ए टू जेड का फलसफा

राजद के रजत जयंती कार्यक्रम में तेजस्वी यादव ने आरेजेडी के पुरान आजमाये हुए माय (मुस्लिम और यादव) समीकरण को आउट डेटेड बताते हुए पार्टी के लिए ए टू जेड का फलसफा दिया था, जो आरजेडी परंपरावादी नेताओं को भा नहीं रहा है। जैसे जैसे जातीय जनगणना का नारा परवान चढ़ रहा है वैसे वैसे इस धड़े को लग रहा है कि इस राह पर चल कर उनके पुराने दिन वापस आ सकते हैं। ए टू जेड के फलसफे को जमीनदोज करने के लिए यह जरूरी है कि प्रदेश अध्यक्ष के पद से जगदानंद सिंह की विदाई की जाये। जगदानंद सिंह के खिलाफ मोर्चा करके तेज प्रताप ने पार्टी में सक्रिए हार्ड कोर मंडलवादी नेताओं की महत्वकांक्षाओं को भी हवा दी है। ये लोग भी तेज प्रताप के जरिये जगदानंद सिंह को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने की मुहिम को मुकाम तक पहुंचाना चाह रहे हैं।

 

बैकफुट पर तेजस्वी

तेज प्रताप की आक्रमकता को देखते हुए तेजस्वी यादव पूरी तरह से बैकफुट दिख रहे हैं। इस संबंध में कुछ बोलने से भी वह कतरा रहे हैं। अब तक वह यह मानकर चल रहे थे कि नेता प्रतिपक्ष के पद पर आसीन होने के बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद सहजता से उन्हें हासिल हो जाएगा। पार्टी में सक्रिय एक खास गुट लगातार यह प्रचार करने में लगा हुआ था कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर बहुत जल्द ही तेजस्वी यादव के नाम की घोषणा हो जाएगी। लेकिन तेज प्रताप ने बड़ी सफाई से उनके पैरों के नीचे बिछने वाली कालीन को खिंच दिया है। तेजस्वी यादव को लेकर उनकी स्थिति इस वक्त सांप और छछुंदर वाली है। न निगलते बन रहा है और न ही उगलते बन रहा है। इसलिए वह चुप रहने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं। जिस तरह से इस मामले को लेकर उन्होंने चुपी साधी है उससे इतना तो साफ हो गया है कि अभी पार्टी में सुपर बॉस का दर्जा हासिल नहीं हुआ है। तेज प्रताप के बवाल के बाद से एक बात और स्पष्ट हो गया है कि भविष्य में आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को लेकर कोई भी फैसला अब एक तरफा नहीं होगा। आरजेडी में सक्रिय निरंकुश और और तिकड़मी शक्तियों के लिए तेज प्रताप निश्चितरूप से अंकुश का काम करने की हैसियत में तो आ ही चुके हैं। इस बात का अहसास अब तेजस्वी यादव को अच्छी तरह से हो चुका है।

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