मीडिया में दलित और मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व नगण्य है: इर्शादुल हक
दलित और शोषित समाज मौजूदा मीडिया का हिस्सा नहीं हैं। मीडिया को इनकी जरूरत नहीं। मीडिया बाजार के हिसाब से अपना रुख तय करता है। लेकिन यह बहुत ज्यादा नहीं चलने वाला। क्योंकि अब वह समय आने वाला है जब यही शोषित समाज मीडिया की दिशा तय करेगा।
नॅशनल कन्फेडरेशन ऑफ दलित आर्गनाईजेशंस (नैक्डोर) नें ‘मीडिया में दलितों की आवाज़’, और निजी क्षेत्र में दलितों की भागीदारी’ विषय पर एक सम्मलेन का आयोजन फिक्की ऑडिटोरियम में किया गया।
इस सम्मलेन में नेशनल दुनिया के प्रबंध संपादक विनोद अग्निहोत्रि, नौकरशाही डॉट इन के संपादक इर्शादुल हक और वरिष्ठ पत्रकार हिंडोल सेनगुप्ता ने अपने विचार रखे।
विनोद अग्निहोत्रि ने स्वीकार किया कि दलितों और अल्पसंख्यकों की आवाज को मौजूदा मीडिया में समुचित कवरेज नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि मीडिया को इस बारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत है कि हाशिए के लोगों की आवाज़ को उचित तरीके से कैसे कवर किया जाए।
विनोद ने कहा कि जिस समुदाय को हजारों वर्ष तक दबा कर रखा गया उसे आगे लाने की ज़रूरत है। लेकिन मीडिया दलितों और अल्पसंख्यकों से जुडी खबरें तब पेश करते हैं जब वह किसी हिंसा के शिकार होते हैं। ऐसे में दुनिया इन समाजों के विकास और उनके बड़े कामों को नहीं जान पाती।
ऐसे में अब मीडिया को अपने चरित्र को बदलने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यह ज़िम्मेदारी सब की है।
इर्शादुल हक नें कहा कि जब तक मीडिया में वंचित तबकों की नुमाईन्दगी नहीं होगी तब तक उनकी आवाज़ का प्रतिनिधित्व मीडिया में नहीं हो सकेगा। उन्होंने इस बात पर अफ़सोस जताया कि आज मीडिया में दलित और मुस्लिम समुदाय के लोगों का प्रतिनिधित्व नगण्य है।
इस अवसर पर हिंडोल ने कहा कि दलित समाज को खुद ही आगे आने की जरूरत है। उन्हें मीडिया को मजबूर करना होगा कि मीडिया उन्हें किसी भी हाल में दरकिनार करने का सहस न कर सके।
इस सम्मलेन का संचालन नैक्डोर के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक भारती ने किया। उन्होंने सवाल खड़ा करते हुए कहा कि आज का मीडिया आखिर दलितों से चाहता क्या है ? क्या दलित समाज और उनके काम काज मीडिया को अच्छे नहीं लगते ? उन्होंने इस बात पर अफ़सोस जताया कि आज का मीडिया दलितों की आवाज़ को दबा देता है।
इस प्रसंग में तमाम विद्वतजनों से मेरा अनुरोध है कि मीडिया को मीडिया ही बने रहने दें. इसमें आरक्षण के रास्ते इसे बिहार पुलिस बनाने की कोशिश न करें तो बेहतर…!
मीडिया पूरी तरह से मीडिया है..आजतक देखने को नहीं मिला कि किसी को धर्म विशेष या जाति के कारण रोका गया है.मैं इस बात से पूरी तरह से इतफाक नहीं रखता। इस तरह की सोच पूरी तरह से कुंद दिमाग की उपज है। मीडिया में सही और गलत के बीच जंग वैसे ही है जैसेअन्य क्षेत्रों में। लोगो के दिमाग में इस तरह के विचार इसलिए होते हैं कि वो खुद इस तरह की सोच में खुद को ढाल कर ही पत्रकारिकता के क्षेत्र में आते हैं ।
mediya hi kyu any chetr me kon sa aage h.ye dosh to sirf or sirf islamik soch ka h
islamik soch se mera matlab yadi course ke bajaye madarsa course padai jaye to muslim bachhe any bachho ki tulna me kaise aage rahege ?