मुनाफे में रोड़ा डालती नेट न्यूट्रैलिटी
सुनील रावत.
भारत में नेट न्यूट्रैलिटी को लेकर क्यों छिड़ी है बहस
भारत में इंटरनेट निरपेक्षता या नेट न्यूटैलिटी को लेकर बहस उस वक्त शुरू हुई जब भारत की सबसे बड़ी टेलिकॉम कंपनी भारती एयरटेल ने अपना एक इंटरनेट प्लान एयरटेल जीरो शुरू किया। इस प्लान में एयरटेल ने अपने ग्राहकों को कुछ चुनिदा इन्टरनेट डेटा (एप्लिकेशन) के इस्तेमाल पर डेटा चार्ज मुफ्त कर दिया इस मुफ्त डेटा चार्ज का पैसा एयरटेल को एप्लिकेशन प्रदाता कंपनियां दे रही थी। इस प्लान के तहत ग्राहकों को केवल उसी एप्लीकेशंस या वेबसाईट ब्राउज करने की अनुमति थी जो एप्लीकेशंस प्रदाता कंपनियां एयरटेल के साथ जुड़ी थी। जिसका इंटरनेट जानकारों और उपभोक्ताओ ने यह कहकर जोरदार विरोध यह कहकर किया कि यह नेट न्यूटैलिटी के उस सिद्धान्त के खिलाफ है जिसके अनुसार आईएसपी यानी इंटरनेट सर्विस प्रोवाईडर द्वारा उपभोक्ता को सभी इंटरनेट कंटेट बिना किसी भेदभाव के समान रूप से इस्तेमाल करने की इजाजत होनी चाहिए। विरोध को देखते हुए इस प्लान में सबसे पहले जुडी एक बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी फिल्पकार्ट को ग्राहकों को बड़ी संख्या में नेट न्यूटैलिटी के पक्ष में खडा देखकर एयरटेल के इस प्लान से हटने का फैसला करना पड़ा। इसके बाद भारत में सोशल मीडि़या से लेकर टेलीविजन की बहसों तक नेट न्यूट्रैलिटी पर कानून बनने तक की बात होने लगी। अब नेट न्यूट्रेलिटी को लेकर सभी इंटरनेट उपभोक्ताओं ने एकजुट होते हुए ट्राई को घेर लिया अब ट्राई ने एक पत्र जारी कर उपभोक्ताओं से 20 सवाल पूछे हैं और यह जानने की कोशिश की है कि भारत में नेट न्यूट्रैलिटी को किस तरह लागू किया जाये और साथ ही टेलिकॉम कंपनियों को ऑटीटी कम्पनियों के कारोबार से हो रहे मुनाफे से बचाया जाये।
क्या चाहती हैं टेलिकॉम(आईएसपी) कंपनियां ?
टेलीकॉम कंपनियों (आईएसपी) की सबसे बड़ी समस्या व्हाट्सऐप, लाईन वाईबर, स्काईप, फेसबुक मैसेंजर जैसी ओटीटी(ओवर द टॉप) कम्युनिकेशन कम्पनियों से है। जो एप्लिकेशन के जरिये करने वाली कंपनियां हैं जो उनके खडे़ किये गए इंफ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल करके लोगों तक फ्री में मैसेजिंग, फ्री-वोइस कॉल जैसी सुविधाएं पंहुचाकर टेलिकॉम कंपनियों के रेवेन्यू मुनाफे में नुकसान पंहुचा रही हैं। टेलिकॉम कंपनियों का दावा है कि लोगों ने इन ऑटीटी के जरिये होने वाली फ्री मेसेजिंग और वॉइस कॉल को अपना लिया है जिससे उनकी फोन -कॉल और मैसेजिंग से होने वाली कमाई चैपट हो चली है इससे टेलीकॉम कंपनियों को सालाना 5 हजार करोड़ का नुकसान हो रहा है साथ ही उनका कहना है कि अगर यह जारी रहा तो टेलिकॉम कंपनियों का नुकसान अगले तीन साल में पांच गुना बढ़कर 24,000 करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है। इससे खफा टेलिकॉम कंपनियां साल 2014 से ही ट्राई पर दबाव बना रही थी कि इन ओटीटी पर नियंत्रण किया जाये।
टेलिकॉम कंपनियों (आईएसपी) की दलील है कि उन्होंने अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को बनाने के लिए बड़ी मात्रा में धन स्पेक्ट्रम खरीदने में लगाया है तथा सरकार को टैक्स भी देते हैं जबकि ऑटीटी कंपनियां मोबाइल ऐप के जरिये फ्री में करोडों कमा रही है। इसलिए टेलिकॉम कंपनियां चाहती हैं कि ऑटीटी जो रेवेन्यू अपने ग्राहकों से कमाती है उसका कुछ हिस्सा वह टेलिकॉम कंपनियां को भी दें। या इन कंपनियों को किसी तरह रेगुलेट किया जाये। टेलिकॉम कम्पनियां भी इन ओटीटी से पैसे वसूलना चाहती हैं
क्या कमाई का जरिया ढूंड रही है टेलिकॉम कंपनियां
भारत में ई-कॉमर्स यानी आनलाईन शोपिंग का चलन पिछले कुछ सालों में कई गुना बढा है और कहा जा रहा है कि 2020 तक भारत में ई-कॉमर्स का बाजार 50 अरब डॉलर्स तक पहुंच जायेगा। इसका प्रमुख कारण है भारत में इंटरनेट यूजर्स की लगातार बढती संख्या जो 30 करोड़ के पार पहुँच चुकी है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारत में बडी ई-कामर्स कंपनी फ्लिप्कार्ट की कमाई 4 अरब डॉलर्स स्नैपडील की 3 अरब डॉलर्स और अमेजोन की 1 अरब डॅालर पहुंची है। फिलपकार्ट ने इस साल के अंत तक 8 अरब डॉलर्स यानी 50,000 हजार करोड़ की कमाई का लक्ष्य रखा है। अब इंटरनेट सर्विस प्रोवाईडर टेलिकॉम कंपनियों को लग रहा है कि हमारे खडे़ किये गये ढांचे पर ई-कामर्स कंपनियां करोडों का कारोबार कर रही हैं इसलिए यह कंपनियां किसी तरह हमारी भी कमाई का जरिया बनें। चूंकि ई -कॉमर्स कंपनियों का भी कारोबार इंटरनेट के जरिये ही चलता है इसलिए वह भी इंटरनेट सर्विस प्रोवाईडर के साथ किसी तरह गठजोड़ रखना चाहती है। एयरटेल के जीरो प्लान को उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है। अब टेलिकॉम कंपनियां नेट न्यूटैलिटी की अवधारणा के विपरीत ओटीटी एप्लीकेशंस पर नियंत्रण कर इनसे कमाई करना चाहती हैं इसलिए वह उन्ही ओटीटी कंपनियों के कंटेट को सही तरीके से अपने इंटरनेट ग्राहकों तक पहुंचायेगा जो उनको रेवेन्यू देगा। टेलिकॉम कंपनियां इस बढते हुए क्षेत्र में अपनी कमाई का जरिया ढूंढ रही हैं।
क्या है सरकार नेट न्यूट्रैलिटी की चाबी टेलिकॉम कंपनियों के हाथ में देगी
सरकार और ट्राई टेलीकॉम कम्पनियो के दबाव में किस तरह झुकी हुई इसका संकेत ट्राई द्वारा जारी किया गया वह कंसल्टिंग पेपर भी है जिसमे इंटरनेट उपभोक्ताओं को यह सारी मजबूरियां गिनाई गई है जिसमे ज्यादातर इस बात की और ध्यान देने को कहा गया है कि टेलिकॉम कंपनियां के नुक्सान को बचाने के लिए ऑटीटी पर नियंत्रण और टेलीकॉम कंपनियों के पक्ष में कोई कानून बनाया जाये। क्योंकि टेलिकॉम कम्पनियां समय -समय पर ट्राई से ओ. टी.टी पर नियंत्रण करने को लेकर आवाज उठा चुकी है और ट्राई ने टेलिकॉम कम्पनियों के दबाव में अब अपने कंसल्टिंग पेपर में टेलिकॉम कम्पनियों की मजबूरी को गिनाया है। दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने एक कमिटी का गठन किया है जो इस पर फैसला करेगी। हालाँकि जिस तरह मोदी सरकार कॉर्पोरेट को महत्व देती आई है उसको देखते हुए यह कम ही लगता है कि टेलिकॉम कंपनियों की मांग को पूरी तरह नजर अंदाज़ किया जायेगा।
क्या है नेट न्यूट्रैलिटी ?
भारत में नेट न्यूट्रैलिटी (इन्टरनेट निरपेक्षता)शब्द भले ही लोगों के लिए नया हो लेकिन यूरोपीय देशों में यह शब्द एक दशक पहले ही काफी चर्चित रह चुका है। इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले कोलंबिया विश्वविद्यालय के मीडिया विधि के प्राध्यापक टिम वू द्वारा 2003 में किया गया था। इन्टरनेट निरपेक्षता का सिद्धांत है कि जब कोई भी इन्टरनेट ग्राहक किसी इन्टरनेट सर्विस प्रोवाइडर (आईएसपी) से डाटा पैक लेता हैं तो उसका अधिकार होता है कि वो नेट सर्फ करे या फिर व्हाट्सएप, स्काइप, वाइबर पर वॉयस या वीडियो कॉल करे, जिस पर एक ही दर से शुल्क लगना चाहिए। ये शुल्क इस बात पर निर्भर करता है कि उस व्यक्ति ने इस दौरान कितना डाटा इस्तेमाल किया है। उदाहरण से समझें तो आप बिजली का बिल देते हैं और बिजली इस्तेमाल करते हैं। ये बिजली आप कंप्यूटर चलाने में खर्च कर रहे हैं, फ्रिज चलाने में या टीवी चलाने में इससे बिजली कंपनी का कोई लेना-देना नहीं होता। कंपनी ये नहीं कह सकती कि अगर आप टीवी चलाएंगे तो बिजली के रेट अलग होंगे और फ्रिज चलाएंगे तो अलग। लेकिन अगर नेट न्यूट्रलिटी खत्म हुई तो इंटरनेट डेटा के मामले में ऐसा हो सकता है। और पैसा चुकाने के बाद भी खास एप्लीकेशन का ज्यादा इस्तेमाल करने पर बाध्य होंगे। मतलब 100 एमबी का डाटा आपने सर्फिंग में इस्तेमाल किया तो उसके अलग चार्ज होंगे लेकिन इतना ही डाटा आपने वॉयस या वीडियो कॉल में खर्च किया तो उसका अलग चार्ज हो सकता है। नेट निरपेक्षता का सिद्धांत कहता है आईएसपी को ग्राहकों के लिए इन्टरनेट पर उपलब्ध कंटेंट बिना किसी भेदभाव के समानता के साथ इस्तेमाल करने की अनुमति होनी चाहिए।
अन्य देशों में क्या है प्रावधान ?
दुसरे देशों में नेट की निरपेक्षता की बात करें तो अमेरिका में राष्ट्रपति बराक ओबामा के दखल के बाद फेडरल कम्युनिकेशंस कमीशन ने नेट न्यूट्रलिटी के पक्ष में नीतियां बनाईं। यानी अमेरिका में कंपनियां इंटरनेट पर चुनिंदा कंपनियों को तेज सेवा नहीं दे सकती हैं। चिली दुनिया का पहला देश है जिसने 2010 में नेट न्यूट्रेलिटी को लेकर कानून बनाया। चिली ने अपने इस टेलीकम्युनिकेशन कानून में कहा कि इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर मनमाने ढंग से किसी इंटरनेट कंटेंट, एप्लीकेशन या लीगल सर्विस को उपभोक्ता तक पहुचने में बाधित या भेदभाव पूर्ण रवैया न अपनाये। यह कानून ऑपरेटर को विशिष्ट सामग्री मनमाने ढंग से बाधित करने के लिए भी रोकता है। चिली जैसे उभरते बाजार में विकिपीडिया, ट्विटर, फेसबुक, ने मोबाइल ऑपरेटर को ग्राहकों तक इस तरह की सेवाएं अनिवार्य रूप से पहुचने की बात कही। क्योंकि वाह इसे व्यक्ति का मूलभूत आधार मानते हैं।
नीदरलैंड्स दुनिया का दूसरा और यूरोप का पहला देश है जिसने 2011 में नेट न्यूट्रेलिटी को लेकर कोई प्रावधान बनाया जब मोबाइल ऑपरेटर चाहते थे कि इंटरनेट संचार को लेकर वो अपने ग्राहकों से एक्स्ट्रा चार्ज ले। लेकिन उनके इस मांग पर रोक लगा दी गई। नतीजतन नीदरलैंड के मोबाइल ऑपरेटर्स ने अपनी डेटा चार्ज की कीमतें बढ़ा दी।
साऊथ कोरिया में 2012 में कानून बना जिसमे कहा गया की कोई भी आईएसपी अर्थात इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर बिना किसी न्यायोचित आधार के इन्टरनेट न्यूट्रेलिटी में बाधा न डाले।
नेट न्यूट्रैलिटी क्यों है जरूरी ?
टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (ट्राई) के चैयरमेन राहुल खुल्लर कहा था कि अभी भारत में नेट न्यूट्रैलिटी को लेकर कोई कानून या नियम नही है। इसलिए हम भारत में न्यूट्रैलिटी को लेकर एक फ्रेमवर्क चाहते हैं। उन्होंने माना था कि एयरटेल अपने नेट पैक में बदलाव कर गलत कर रहा है लेकिन हम इसे गैरकानूनी भी नहीं मान सकते है। क्योंकि भारत में नेट न्यूट्रेलिटी के लिए कोई नियम नहीं है, और इसी का लाभ उठाकर टेलिकॉम कम्पनियां नेट की निरपेक्षता का उल्लंघन करने में हिचकती नही हैं। अब भारतीय ग्राहक इसी नियम के लिए लड़ रहे हैं। आम जनता के बीच मीडिया में इसकी खबरें चलने के बाद इंटरनेट उपभोक्ता नेट न्यूट्रेलिटी यानी इंटरनेट तटस्थता के पक्ष में हैं। ओडिशा से बीजू जनता दल के सांसद तथागत सत्पथी ने ट्राई को एक खुला पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने नेट न्यूट्रेलिटी के महत्व और भारत में इसकी जरूरत पर विस्तार से प्रकाश डाला है। सत्पथी कहते हैं, श्जब दूसरे विकसित देश इंटरनेट की सुलभता को मूलभूत मानवीय अधिकार के रूप में देख रहे हैं, तब हम भारत के लोगों से इस सुविधा को छीनने की तैयारी कर रहे हैं। शहरों और महानगरों को छोडि़ए, गांव-देहात में भी स्मार्ट फोन का बोलबाला है तब इंटरनेट पर अलग ढंग का पहरा लगाने की कोशिश हो रही है। अब सरकार क्या करेगी देखना होगा, वह कानून बनाकर या ऑटीटी को रेगुलेट करके टेलीकॉम कंपनियों के मुनाफे की चिंता करेगी या न्यूट्रैलिटी के पक्ष में खड़ी होकर उपभोक्ताओं की स्वतंत्रता को बरकरार रखेगी। भले ही टेलिकॉम कम्पनियां व्हाट्सएप,वाईबर, के फ्री कालिंग और मेसेजिंग फीचर से अपने रेवेन्यु का नुकसान बता रही हैं लेकिन इनकार इससे भी नही किया जा सकता कि भारत में अधिकतर लोगों ने इन्ही ओ.टी.टी एप्लीकेशंस के कारण इन्टरनेट का इस्तेमाल करना शुइरू किया और आज भी टेलिकॉम कम्पनियों के रेवेन्यु का एक बड़ा हिस्सा इन्ही ओ.टी.टी. के इस्तेमाल से आता है। ऑटीटी एप्लीकेशन का कहना है कि यदि टेलिकॉम कंपनियां उनसे रेवेन्यू लेती है तो इसका खामियाजा उपभोक्ताओं की स्वतंत्रता छीनने के रूप में उठाना पड़ेगा। क्योंकि वह जिस एसएमएस या वौइस् काल को फ्री में करते हैं वह उसका लाभ नही था पाएंगे।
मार्क जुकर बर्ग ने भारत में नेट न्युट्रेलिटी को लेकर क्या कहा ?
फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग ने कहा कि वह नेट न्युट्रेलिटी के पक्ष में हैं उन्होंने कहा इंटरनेट आर्थिक और सामाजिक प्रगति का सबसे ताकतवर औजार है। यह लोगों के लिए नौकरियों, ज्ञान और अवसरों के दरवाजे खोलता है। यह समाज के उन तबकों को आवाज देता है, जिनकी आवाज दबी रह जाती है, यह लोगों को स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण संसाधनों से जोड़ता है। मैं मानता हूं कि दुनिया में हर किसी को इन अवसरों को हासिल करने का अधिकार मिलना चाहिए। लेकिन दुनिया के बहुत से देशों में ऐसी सामाजिक और आर्थिक बाधाएं हैं,और अगर लोगों से उनकी ये स्वतंत्रता बरक़रार रखनी चाहिए। इंटरनेट से जुड़ने की लोगों के पास की आर्थिक हैसियत नहीं है, और कई जगहों पर इसके महत्व को लेकर जागरूकता भी काफी कम है। इस जुड़ाव के न होने की वजह से खासकर महिलाओं और गरीबों का सशक्तीकरण नहीं हो पा रहा है।