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साहित्यिक कृतियों पर सफल धारावाहिक बनाना आसान काम नहीं होता-सुशीला भाटिया

(राजू बोहरा/नई दिल्ली)

इन दिनों दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल डीडी नेशनल पर मिड प्राइम टाइम दोपहर में कई लोकप्रिय डेली शो चल रहे है जिनमे से एक है साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत चर्चित उपन्यास पर आधारित लोकप्रिय दैनिक धारावाहिक “उम्मीद नई सुबह की“ जिसका प्रसारण सोमवार से शुक्रवार तक दोपहर 1.30 बजे हो रहा है जो दूरदर्शन के दर्शको में खासा पॉपुलर भी है। यू तो इस शो से फिल्म और टेलीविजय के अनेक जानेमाने चेहरे जुड़े है जिनमे सबसे महत्वपूर्ण नाम है जानीमानी निर्मात्री व निर्देशिक सुशीला भाटिया का। सुशीला भाटिया का नाम छोटे-पर्दे के दर्शकें के लिए किसी खास परिचय का मोहताज नहीं है। वह पिछले 30 वर्षों से छोटे पर्दे से जुड़ी हैं और दूरदर्शन के नेशनल चैनल्स से लेकर रीजनल चैनल्स तक से अलग-अलग रूप में जुड़ी रही हैं। कहीं बतौर एंकर जुड़ी रही तो कहीं बतौर निर्मात्री-निर्देशिका के तौर पर कई धारावाहिको व कार्यक्रम बनाये हैं। उनका दूरदर्शन नेशनल पर प्राइम टाइम में पिछला डेली शो “इम्तिहान“ काफी लोकप्रिय रहा है। आजकल वह अपने नये धारावाहिक “उम्मीद नई सुबह की“ को लेकर चर्चा में हैं जिसका सफल प्रसारण इन दिनों दूरदर्शन के राष्ट्रीय पर चल रहा है। इस धारावाहिक से वह बतौर क्रिएटीव डायरेक्टर के रूप में जुडी है। साहित्यिक कृति पर बन रहे इस लोकप्रिय धारावाहिक को लेकर छोटे पर्दे की इस चर्चित निर्मात्री और निर्देशिका से एक खास बातचीत की प्रस्तुत है उसके प्रमुख अंश-

आपके नये धारावाहिक “उम्मीद नई सुबह की“ इन दिनों काफी चर्चा हो रही है, यह किस तरह का शो है और इसकी यूएसपी क्या है?

हमारा यह शो एक महिला प्रधान सोशल व सामाजिक धारावाहिक है जो साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत चर्चित उपन्यास “दीवारो के पार आकाश“ पर आधारित है। इसकी यूएसपी यही है की यह एक साहित्यिक कृति पर बन रहा है। इस चर्चित व प्रतिष्ठित उपन्यास की लेखिका कुंदनिका कपाडि़या है जिसका हिन्दी अनुवाद नन्दिनी मेहता ने किया है जबकि इसकी धारावाहिक के लिए पटकथा व संवाद जानेमाने लेखक धारावाहिक पारस जायसवाल लिखे है जो दूरदर्शन के लिए अनेक लोकप्रिय डेली शो लिख चुके है।

इस धारावाहिक की कहानी किस है किस तरह की है और दर्शको को किस तरह का मैसेज प्रदान करती है ?

दूरदर्शन के लिए इस दिलचस्प डेली शो का निर्माण “क्रिएशन्स“ के बैनर तले किया जा रहा है। धारावाहिक की कहानी वसुधा नामक आज के दौर की एक ऐसी शिक्षित लड़की के इर्द-गिर्द घूमती है जो ना सिर्फ महिला अधिकारों लिए लड़ती है बल्कि समाज में स्त्री की आवाज को भी बुलंद करती है। महिला सशक्तिकरण पर केंद्रित हमारा यह शो दर्शको को एक नहीं कई सोशल मैसेज देता है।

आपका यह शो एक बड़े उपन्यास पर आधारित है साहित्यिक कृतियों पर धारावाहिक बनाना कितना चुनौतिपूर्ण कार्य होता है ?

हमारा यह डेली धारावाहिक “उम्मीद नई सुबह की“ साहित्य अकादमी पर आधारित अवॉर्ड विनिंग आधारित है। गुजरती मूल के इस उपन्यास की सबसे बड़ी विशेषता यह है की ये उपन्यास एक दो नहीं बल्कि 7-8 अलग-अलग भाषाओ में अनुवादित हुआ और सभी भाषाओ में इसे साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है। इसी से इस उपन्यास की लोकप्रियता का अंदाजा आप लगा सकते है। जहा तक साहित्यिक कृतियों पर धारावाहिक बनाने की बात है तो ये बिलकुल सच है की किसी भी साहित्यिक कृति पर कमर्शियल सीरियल बनाना आसान काम नहीं होता बल्कि एक चुनौतिपूर्ण काम होता है क्योकि आपको उपन्यास की मूल कहानी और उसके किरदारों के साथ न्याय करना होता है जबकि काल्पनिक कहानी में आपके पास कहानी एवम उसके किरदारों को अपने हिसाब से आगे बढ़ाने की छूट होती है। इसी लिए उपन्यास पर शो बनाना मुशिकल काम है।

पिछले धारावाहिक “इम्तिहान“ की तरह आपके इस शो में भी काफी बड़े बड़े आर्टिस्ट जैसे कलाकार काम कर रहे हैं उनके साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा है?

काफी अच्छा अनुभव हो रहा है। लगभग सभी कलाकारों के साथ मैं पहले भी काम कर चुकी हूँ। सभी कलाकारों की काफी अहम भूमिका है। हमारे इस शो में अहम भूमिकाओं को निभाने वालो में मानस शाह, अपरा मेहता, शक्ति सिंह, उर्वशी उपाध्याय,सन्नी पंचोली, स्वीटी सिन्हा, खुशी मुखर्जी, राहुल पटेल, कश्यप पाठक जैसे चर्चित कलाकार मुख्य रूप से शामिल है। खास बात यह की हमारे इस शो ने हाल में ना सिर्फ 130 कडि़यों का शानदार प्रसारण पूरा कर लिया है बल्कि दूरदर्शन ने इसे और आगे की एक सौ तीस कडि़यों का एक्सटेशन भी दे दिया है।

आज के कम्पीटीशन के इस दौर में दर्शकों की कसौटी पर हमेशा खरा उतरना कितना मुश्किल होता है?

अच्छा काम करने में दिक्कत तो आती है पर आत्म-संतुष्टि भी मिलती है। मैं हमेशा क्वांटिटी से ज्यादा क्वालिटी वर्क करने में विश्वास रखती हूँ। यह बात सबको हमारे धारावाहिक “उम्मीद नई सुबह की“ से भी बखूबी पता चल होगा है। मुझे इस बात की खुशी है की हमारा यह शो भी मेरे पिछले दूसरे शो की तरह दर्शको को पसंद आ रहा है।
आपने अब तक ज्यादातर धारावाहिकों का निर्माण व निर्देशन दूरदर्शन के लिये ही किया है इसकी कोई खास वजह?

शुरू से लेकर आज के इस आधुनिक दौर तक दूरदर्शन ही हमारा एक ऐसा चैनल है जो अर्थपूर्ण धारावाहिक प्रसारित करता है। शहरों को छोड़ दें तो आज भी गांव-गांव में सिर्फ दूरदर्शन ही देखा जाता है। मैं हमेशा अच्छे विषय वाले शालीनता वाले धारावाहिक बनाती हूँ जो सिर्फ दूरदर्शन दिखाता है। मैंने साहित्य पर काफी काम किया है और आगे भी कर रही हूँ। साहित्य समाज का आईना होता है, इसीलिये मैं दूरदर्शन के लिये काम ज्यादा करती हूँ।

raju bohra

लेखक पिछले 25 वर्षो से बतौर फ्रीलांसर फिल्म- टीवी पत्रकारिता कर रहे हैं और देश के सभी प्रमुख समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओ में इनके रिपोर्ट और आलेख निरंतर प्रकाशित हो रहे हैं,साथ ही देश के कई प्रमुख समाचार-पत्रिकाओं के नियमित स्तंभकार रह चुके है,पत्रकारिता के अलावा ये बतौर प्रोड्यूसर दूरदर्शन के अलग-अलग चैनल्स और ऑल इंडिया रेडियो के लिए धारावाहिकों और डॉक्यूमेंट्री फिल्म का निर्माण भी कर चुके। आपके द्वारा निर्मित एक कॉमेडी धारावाहिक ''इश्क मैं लुट गए यार'' दूरदर्शन के''डी डी उर्दू चैनल'' कई बार प्रसारित हो चुका है। संपर्क - journalistrajubohra@gmail.com मोबाइल -09350824380

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