सुशासन में दुसासन का गुण गा रहे हैं सुशील मोदी
रुपम पाठक अपने लिए लगातार फांसी की मांग कर रही हैं। इसके सिवा वह कुछ भी नहीं कह रही है। पुलिस वालों को डर है कि वह कहीं आत्महत्या न कर ले, इसलिए उसके हाथों और पैरों में बेड़ियां डाल दी गई है। इधर उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी रुपम के हाथों मारे गये विधायक केसरी को लगातार क्लीन चिट देने में लगे हुये हैं। मीडिया वाले भी इस मामले में काफी संभल कर कदम बढ़ा रहे हैं, क्योंकि मामला सुशासन का है और विधायक केसरी के अत्याचार की जो क्रूर गाथा सामने आ रही है उससे सुशासन का एक नया चेहरा खुल रहा है।
यदि अंडर करेंट दौड़ने वाली खबरों पर यकीन करें तो विधायक केसरी का चरित्र हवस के पुजारी के रूप में सामने आ रहा है। लंबे समय से केसरी रुपम का शारीरिक शोषण तो कर रही रहे थे, उनके गुर्गे भी उनके कदम पर चलते हुये रुपम को हर तरह से लूट रहे थे। इतना ही नहीं इन लोगों ने रुपम पाठक के परिजनों को भी अपना शिकार बनाना शुरु कर दिया था। कहा तो यहां तक जा रहा है कि केसरी और उनके गुर्गों ने रुपम की नाबालिग बेटी तक को नहीं छोड़ा और इसी के साथ ही रुपम की सहनशक्ति जवाब दे गई। विधायक केसरी की दरिंदगी सभी सीमाओं को पार कर गई थी। कानून और व्यवस्था को उन्होंने रखैल बना रखा था। उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी सब कुछ जानते समझते हुये भी केसरी को लगातार बचाते रहे और अब जब केसरी की मौत हो चुकी है तो सुशील कुमार मोदी अपनी पूरी शक्ति केसरी को पाक साफ सिद्ध करने में लगाये हुये हैं। यहां तक की मीडिया को भी धमकाने से बाज नहीं आ रहे हैं। पुलिस और प्रशासन तो पहले से ही इनके पाकेट में है, और विपक्ष एक तरह से नदारद ही है।
बिहार में लालू और रामविलास के पराजय के बाद पूरे तामझाम के साथ जंगल राज से पूरी तरह से छुटकारा की घोषणा तो कर दी गई लेकिन सत्ता से जुड़े लोगों का जो चरित्र सामने आ रहा है वो निसंदेह लोगों के दिलों को दहला रहा है। रुपम के मामले में राज्य सरकार की किसी जांच एंजेसी पर विश्वास करना मुश्किल हो रहा है। सुशासन का बोझ कंधे पर ढो रही बिहार पुलिस निष्पक्ष रूप से रुपम पाठक के मामले की तहकीकात कर पाएगी कहना मुश्किल है। जब उप मुख्यमंत्री खुद इस मामले में जज की भूमिका अख्तियार किये हुये हैं तो स्थिति और जटिल हो जाती है। केसरी हत्याकांड से जुड़े खबरों को जितना ही दबाने की कोशिश की जा रही है लोगों का गुस्सा उतना ही बढ़ता जा रहा है। देर सवेर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी कठघरे में नजर आएंगे, यदि उन्होंने इस मामले को स्पीडी ट्रायल में नहीं लिया तो। वैसे बेहतर होगा पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराया जाये क्योंकि उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार के रहते स्पीडी ट्रायल की दशा, दिशा और गति सबकुछ प्रभावित होने की आशंका है।
केसरी के पक्ष में सुशील कुमार चाहे जितना बोल लें, लेकिन आम लोगों के दिल में केसरी की छवि एक भेड़िया की ही बन रही है। आने वाले दिनों में यदि रुपम पाठक के पक्ष में सड़कों पर मोर्चे निकलने लगे तो कोई अचंभा की बात नहीं होगी। वैसे महिला संगठनों में सुगबुगाहट शुरु हो गई है। कुछ वकील भी रुपम के पक्ष में खड़े होने लगे हैं। सवाल यह नहीं है कि रुपम पाठक दोषी है या नहीं। सवाल यह है कि रुपम पाठक ने ऐसा क्यों किया। बिहार के लोगों के साथ-साथ देश भर में अब यह सवाल लोगों को बेचैन कर रहा है और जब तक इस सवाल का सही जवाब नहीं मिल जाता बिहार में सुशासन पर सवाल उठना लाजिमी है। लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि सुशासन में दुसासनों का बोलबाला है और विधायक केसरी एक ऐसा ही दुसासन था जिसे रुपम ने मौत के घाट उतार दिया। उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी इसी दुसासन के गुण गा रहे हैं।