सुशासन में भगवान बुद्ध के उपदेश ताक पर, अंगूर की बेटी का नंगा नाच

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बिहार में एक ओर सुशासन सरकार भगवान बुद्ध की ब्रांडिंग करते हुये अपना चेहरा चमकाने में लगी हुई है तो दूसरी गांव-कस्बों के गली-कूचों में सहजता से शराब उपलब्ध करा के तथागत के सिद्धांतों को पलीता लगा रही है। भगवान बुद्ध के पांच महत्वपूर्ण उपदेशों से में से एक है, नशा मत करो। सुशासन सरकार के लिए यह उपदेश कोई मायने नहीं रखता है। बिहार में शराब को घर-घर तक पहुंचाने की पूरी व्यवस्था कर दी गई है। शहरों में तो पहले भी शराब सहजता से मिल जाती थी लेकिन अब तो गांवों में शराब लोगों के घरों के दहलीज तक पहुंच गई है। न्याय के साथ विकास का घिनौना चेहरा अब खुलकर दिखाई देने लगा है। ग्रामीण आबादी को पूरी तरह से मतवाला करने की जुगत सुशासन सरकार ने बैठा दी है।

पहले गांव में एक–दो शराबी हुआ करते थे, जिन्हें शराब पीने के लिए गांव से काफी दूर जाना पड़ता था। लेकिन अब हर गांव में शराब के कई –कई ठेके खुल चुके हैं। जिसके कारण युवाओं में शराबखोरी की लत तेजी से पनप रही है। बड़ी संख्या में युवा शराब खोरी करने लगे हैं। सुबह से लेकर देर रात तक गावों में शराब का दौर चलता रहता है। इस नई नश्ल के बहकते हुये कदम को देखकर गांव के बुजुर्गों के माथे पर चिंता की लकीरें स्पष्टरुप से दिखाई देने लगी हैं। अरवल के रहने वाले श्याम बाबू कहते हैं, “जहां देखो वहीं शराब ठेके हैं। अपने घर के बच्चों को संभालना मुश्किल हो रहा है। लाख कोशिश करने के बावजूद वे हाथ से निकलते जा रहे हैं। पहले इतनी आसानी से शराब नहीं मिलती थी। अब तो गांव में चारो तरफ शराब ही शराब है। कुकुरमुत्तों की तरह पनपे इन शराबखानों को तुरंत बंद कर देना चाहिये।”

औरंगाबाद के एक गांव में रहने वाली मंगली देवी पिछले तीन से अपने दो बच्चों के साथ भूख से बिलबिला रही है। उसका पति मजदूरी करता था। लेकिन अब पूरी तरह से शराब के गिरफ्त में आ चुका है। मंगली देवी रोते हुये कहती है, “घर में चार किलो चाउर (चावल) था। ले जा के पी गया। अब इ दू गो बच्चा के लेकर हम कहां जाये। ठेके वाले के पास गये तो गाली देकर भगा दिया। कहा, अपने मरद को संभाल। ”

सुशासन की छत्र-छाया में पल रहे शराब माफिया अधिक से अधिक पैसा कमाने की लालच में साइकिल पर शराब लाद कर गांव गांव तक पहुंचा रहे हैं। और यदि गांव में इनका कोई विरोध करता है तो उसको निपटाने की धमकी तक देते हैं। इन शराब माफियों से पुलिस वालों की अच्छी खासी कमाई हो रही है। और वैसे भी इन शराब बिक्रेताओं को सुशासन सरकार ने विधिवित लाइसेंस दे रखा है, जिससे इन्हें अपने धंधे को चलाने में कोई परेशानी नहीं हो रही है। इस मामले में पालीगंज थाने के एक ग्रामीण ने कहा, “सरकारी दल के बहुत सारे कार्यकर्ता या फिर उनके रिश्तेदार इन दिनों शराब की दुकान खोले हुये हैं। जब सरकार ही अपनी ही है तो इन्हें  किस बात का डर।”

सुशासन सरकार में शराबपरस्ती का यह दौर यदि यूं ही जारी रहा, तो आने वाली नश्लें निसंदेह लड़खड़ाते हुये नजर आएगी। लोगों को अंगूर की बेटी की गिरफ्त से निकालने के लिए अभी से ही शहरों में कई गैर सरकारी संस्थाएं सरकारी खर्च पर सक्रिय हो गई हैं और इन गैर सरकारी संस्थाओं की कमान कई सरकारी अधिकारियों की पत्नियों के हाथों में है। यानि सुशासन सरकार में एक ओर लोगों को शराब मानसिक और जिस्मानी तौर पर पंगु किया जा रहा है, तो दूसरी ओर उनके इलाज के लिए गैर सरकारी संस्थाओं का जाल बिछाया जा रहा है। यानि इधर से भी कमाई और उधर से भी कमाई। ऐसे में भगवान बुद्ध के नशा मत करो, के उपदेश का मर्म भला किसे समझ में आये। तभी तो सुशासन में अंगूर की बेटी का नंगा नाच चल रहा है।

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