अमिताभ बच्चन ने मुझे भोजपुरी का महानायक कहा है : रवि किशन
हिन्दी एवं भोजपुरी फिल्मों के नामचीन अभिनेता रवि किशन से रविराज पटेल की बातचीत के मुख्य अंश :
* आपको अभिनय करने की प्रेरणा कहाँ से मिली ?
जैसा कि आप जानते हैं , मैं जौनपुर (यु,पी.) का रहने वाला हूँ और मुझे बचपन की वो बातें याद है ,कि यहाँ सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सबसे ज़्यादा रामलीला ,कृष्णलीला हुआ करता था । मुझे इन लीलाओं से बेहद लालच हो गया था । मेरा बाल मन बार बार उस ओर आकर्षित होता था. उसी का प्रतिफल कहिये की महज दस – ग्यारह साल की उम्र में ही हमने रामलीला में सीता की भूमिका निभाना शुरू कर दिया था। अभिनय का चस्का मुझे यहीं से लगा । अभिनय के प्रति झुकाव के कारण बाबु जी से मेरी पिटाई भी ख़ूब होती थी , वे कहते थे – पढाई लिखाई छोड़ के नचनियां बजनियाँ बनेगा। अंततः मार खा के भी अभिनय करना नहीं छोड़ा ,फलस्वरूप आज श्याम बेनेगल ऐसे निर्देशक यह कहते हैं , कि तुम हमारे सभी फिल्मों में एक निश्चित अभिनेता हो।
* रामलीला से सिनेमा तक का सफ़र कैसे तय किया आपने ?
दरअसल , रामलीला में मेरी सीता की भूमिका की प्रशंसा इतनी ज़्यादा होने लगी थी कि मैं अपने गाँव जवार में चर्चित हो गया था। तभी मुझे ऐसा लगने लगा कि मैं सिर्फ अभिनय के लिये ही बना हूँ। हमने तभी निश्चय कर लिया कि ज़िन्दगी में मुझे हर हाल में अभिनेता ही बनना है। यह जिद बाबूजी को नहीं भाता था, वह मुझे देख कर दुखी होते थे। उन्हें दुखी देख कर मुझे भी अच्छा नहीं लगता था । सो ,एक दिन मन में यह ठान कर बम्बई की ट्रेन पकड़ ली, की एक दिन हम बाबूजी को ज़रूर कामयाब अभिनेता बन कर साबित कर देंगे की मेरी इच्छाशक्ति में ईमानदारी है। मैं तो औघर इन्सान हूँ ,पहुँच गया बम्बई ,साल था सन 1989 . तब से यहीं फिल्मों में संघर्ष करना शुरू कर दिया ,फलस्वरूप , बम्बई आने के तीसरे साल यानि सन 1992 में मेरी पहली फीचर फिल्म मिथुन चक्रवर्ती के साथ “पीताम्बर” आई .इस प्रकार रामलीला से सिनेमा तक का सफ़र सफलता पूर्वक तय करता जा रहा हूँ ।
* इस सफ़र में आपका कोई गॉड फादर ?
जी कोई नहीं , जो भी किया है, वह खुद का रात दिन औघर के तरह मेहनत और संघर्ष करने का फल है , हर हर महादेव।
* रवि किशन हिन्दी फिल्मों में एक अलग प्रौढ़ अभिनेता के रूप में दिखते हैं,जबकि भोजपुरी में उसकी झलक नहीं दिखाई पड़ती है, कारण ?
बबाल सवाल किये हैं आप (हँसते हुये ) , आप सही कह रहे हैं ,मैं शत प्रतिशत सहमत हूँ आपसे। देखिये होता क्या है, कि यह सब पटकथा लेखकों और निर्देशकों पर निर्भर करता है , मैं एक अभिनेता हूँ ,निर्देशक को मुझसे क्या चाहिए , यह वही जानता है, और मैं वही दूंगा, जो वह चाहता है .मैं यह ईमानदारी पूर्वक मानता हूँ, कि भोजपुरी फिल्मों में कथा का अभाव है , जब कथा कमज़ोर होगी तो पटकथा भी हल्का ही होगा , फिर चाह के भी अभिनय प्रौढ़ नहीं हो सकता । यह एक बड़ा कारण है .
* रवि किशन अपनी पहचान किस रूप में याद रखना चाहते हैं , हिन्दी अभिनेता या भोजपुरी के रूप में ?
बाप रे ,फँसा दिये ना हमको. खैर ! यह सच है कि मैं मूल अभिनेता हिन्दी का हूँ । हमने अब तक 50 फ़िल्में हिन्दी में की है और 166 भोजपुरी में ,बाबजूद उसके मेरे यादगार फिल्मों में हिन्दी की संख्या अधिक है, तो ज़ाहिर है अभिनय के मामले में हिन्दी में मैं ज़्यादा याद किया जाऊंगा वनिस्पत भोजपुरी के।
* सिनेमा में आप किसी ऐसे कलाकार का नाम लेना चाहेंगे , जिनके साथ काम करने की दिली तमन्ना हो , उनके साथ काम करके आपको ऐसा महसूस हो कि – हमने तो गंगा नहा लिया ?
हमने दिलीप कुमार ,अमिताभ बच्चन ,नसीरुद्दीन शाह ऐसे दिग्गज कलाकारों के साथ तो काम कर लिया है। लेकिन आज अगर मोतीलाल ,संजीव कुमार होते ,तो शायद उनके साथ काम करके हम एकदम पगला जाते। सच बोल रहा हूँ , हर हर महादेव.
* आप भोजपुरी सिनेमा के सुपर स्टार कहे जाते हैं , लेकिन भोजपुरी में सभी अभिनेता सुपर स्टार होते है , यहाँ का स्टार सिस्टम क्या है ?
सुनने में अच्छा लगता है , इसलिए सभी सुपर स्टार कहे जाते हैं .लेकिन मैं सुपर स्टार इसलिए नहीं हूँ , कि सिर्फ सुनने में लगता है। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने मुझे भोजपुरी का महानायक कहा है। रही बात स्टार सिस्टम की , तो अभी यह चीज़ यहाँ नहीं है। दिन प्रतिदिन भोजपुरी सिनेमा का विस्तार होता जा रहा है। हमें उम्मीद है कि एक दिन यह सिस्टम भी हमारे पास होगा। जैसे ,विश्व में 33 करोड़ की तादाद में बोली जाने वाली भोजपुरी भाषा को केन्द्र से ऐसा संकेत मिला है , कि उसे संविधान के अष्टम सूचि में शामिल किया जाना है। ठीक उसी प्रकार हम होंगे कामयाब एक दिन।
* भोजपुरी सिनेमा के नाम भी फूहड़ होते हैं ,ऐसा क्यूँ ?
दर्शकों को आकर्षित करने के लिये।
* किस प्रकार के दर्शकों को , आम तौर पर तो यह सुनने को मिलता है, की भोजपुरी फिल्म पारिवारिक नहीं होती है , क्या आप मानते हैं , कि भोजपुरी सिनेमा किसी खास वर्ग को ध्यान में रख कर बनाई जाती है, जिसके स्टार आप जैसे अभिनेता भी होते हैं , जबकि भारत के एक बड़े अंग्रेजी अख़बार के समीक्षक ‘ रावण ‘ की समीक्षा करते हुये लिखते हैं , अभिषेक बच्चन को रवि किशन से अभिनय सीखनी चाहिए ?
मैं आपसे सहमत हूँ , भोजपुरी हमार माई बाबु जी जइसन बा ,हम एकरा में उंच नीच के भावना से काम नइखे करा तानी , बस एकरा ऊपर लावे के खातिर हम सब मिल के ई मुहीम में शामिल बानी सन ,मनोज (मनोज तिवारी ) ,दिनेश (दिनेश लाल निरहुआ ) हमसब . जइसन की हम पहीले बतैनी, की फिल्म निर्देशक के होला .रहल बात रावन के समीक्षा के, ता हम कहेम की , हम रोज़े सिखा तानी , हम पारंगत अभिनेता नइखे ,कोई भी कभियो मुक्क्मल ना होला .
* मनोज तिवारी तो कहते हैं कि रवि किशन की भोजपुरी में एक भी फिल्म नहीं चली ?
अब नहीं बोलेगा , इस बात के लिये वह मुझसे मांफी माँग लिया है . इससे पहले वह मुझसे अलग थलग चल रहा था ,सो, क्षूब्ध भावना से ऐसा बोल गया . मनोज मेरा छोटा भाई जैसा है ,सो हमने उसे इस गलती के लिये मांफ भी कर दिया है. मनमुटाव करने से कोई फ़ायदा नहीं है.
(होटल मौर्या , पटना ,तिथि : 24 मई 2012 )
भोजपुरी वाले 33 करोड़! … … कैसा बेवकूफी भरा बयान! !