आदिवासी किशोरी को नंगा करके मीलो दौड़ाया, ये कैसी आजादी है?
15 अगस्त का जश्न मनाने को पूरा देश तैयार हो रहा है, अपनी गुलामी से मुक्त हुए 63 साल पूरे कर लिए हमने । हम हिन्दुस्तान से आगे बढ़ते हुए भारत बने और फिर इंडिया की गोद मे बैठ बुलन्दियों पर पहुंचने को प्रयासरत है । पर पिछ्ले दिनो किसी टेलीविजन चैनल पर एक ऐसी घटना देखने को मिली जिसने ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या हम वाकई आजाद हो गये है या फिर केवल झूठी आजादी का दंभ भरते रहते है ? बात पश्चिम बंगाल के बिरभूम जिले मे घटे एक ऐसी अमानवीय घटना की है, जो इंसानियत की सबसे बद्दतर तस्वीर पेश करता है ।
बिरभूम जिले की 17 साल की एक आदिवासी किशोरी को सरेआम नंगा करके मीलो दूर तक खदेडा गया और इस दौरान उस किशोरी साथ इस गांव के लोग सरेआम बलात्कार करने पर भी तुले थे। पूरे गांव के सामने इस घिनौने दृश्य को अंजाम देते हुए वो सारे दानव बहुत खुश नजर आ रहे थे और गांव के लोग भी इस कृत्य में उनका पूरा पूरा साथ दे रहे थे । ये कैसी आजादी ? आदिवासी किशोरी हाथ जोड़कर लोगों से मिन्नते करती रही पर गांव के लोगों मे इस तरह का वहशीपन छाया हुआ था कि वो उस आदिवासी किशोरी की कोई भी बात सुनने को तैयार नही थे । पूरा गांव इस घटना को देख रहा था…गांव के लोगों के साथ गांव की महिलायें भी नजर आ रही थी..और उससे भी बड़ा विभत्स दृश्य तो ये था कि वहां के छोटे- छोटे बच्चे भी इस अमानवीय कृत्य के गवाह बन रहे थे ।
17साल की आदिवासी किशोरी अपने को निर्दोष बताते हुए दौड़ी जा रही और गांव वाले उसके शरीर पर लाठी और डंडे से प्रहार करते जा रहे थे, पूरा गांव उस किशोरी का उपहास उडाने में लगा हुआ था। गांव वालो ने उस लड़की को गांव के ही किसी लड़के से बात करते हुए देख लिया था…बस यही कसूर था उस लड़की का ! क्या ये सही मे कोई कसूर था ? इस पूरी घटना की शिकायत न तो उस युवती द्वारा की गई और न ही उसके परिजनो के द्वारा। ये है इस आजाद भारत की दास्तां से भरी हुई कहानी । सभ्यता सुव्यव्यस्था के जन्मती है , स्वतन्त्रता के साथ बड़ी होती है और अव्यवस्था के साथ मर जाती है । एक मरी हुई सभ्यता का सबसे बड़ा उदाहरण देखने को मिला ।
हद तो तब हो गई जब इस पूरी घटना का एमएमएस बनाकर इसे जगह जगह दिखाया जाने लगा। ये घटना अप्रैल माह की है और इस पर पुलिसिया एक्शन अब जाकर शुरू हुई है । पुलिस ने रामपुर हाट सब डिवीजन से पांच लोगों को गिरफ्तार किया है, जो इस पूरे घटना के जिम्मेदार माने गये है। सबसे बड़ी बात कि इस घटना की जानकारी गांव के सभी लोगों को थी, यहां तक कि गांव के नेता भी इस बात से वाकिफ थे मगर किसी ने इस घटना को गंभीरता से लेने का प्रयास नहीं किया ।
कहा जाता है कि मानव इतिहास की हमारी सबसे कीमती और सबसे ज्ञान-गर्भित सामग्री केवल भारत में ही संचित है । तो देख ले मानव इतिहास की हमारी सबसे कीमती और सबसे ज्ञान-गर्भित सामग्री अब क्या संदेश दे रही है । पश्चिम बंगाल के बिरभूम जिले से कई महान लोगों का जुड़ाव रहा है, जिनमें अमर्त्य सेन, रविन्द्रनाथ टैगोर, जयदेव केंदुली, चंडीदास रामी, चैतन्य देव, नित्यानंद स्वामी, ताराशंकर बंद्दोपाध्याय, और काजी नजरूल इस्लाम प्रमुख है। ऐसे महान आत्माओं की भूमि पर एक अमानवीय कृत्य घंटों चलता रहा, पर किसी ने भी इसका विरोध करना उचित नहीं समझा ।
15 अगस्त 1947 की आधी रात को अंग्रेजी चंगुल से आज़ाद हुआ भारत आज तरक्की के शिखर पर है। पर क्या इस तरक्की का मोल ऐसे चुकाना पड़ेगा? राष्ट्र की भावनाओं को स्वर देते हुए देश के पहले प्रधानमंत्री, पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 14 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि को कहा था –“ हम आज दुर्भाग्य का एक युग समाप्त कर रहे हैं और भारत अपनी दोबारा खोज आरंभ कर रहा है।” तो क्या सही मायनों मे हमने दुर्भाग्य के युग को समाप्त कर लिया है ? आज कहीं न कहीं हम सब अपना मुंह छिपाते नजर आ रहे है । इस अनमोल आजादी का दुरूपयोग क्यूं ?
Dear, is desh ko bachane ke liye apaka kalam chahiye.
Hey, I think your very on point with this, I can’t say I am completely on the same page, but its not really that much of a issue.
ओह कितने पतित हो चुके है हम । अत्यंत शर्मनाक हरकत । उस गांव के सभी लोग दोषी हैं। नपुसंक और हिजडो का गाव लगता है ।
दिल्ली में 1,760 बांग्लादेशी गिरफ्तार
नई दिल्ली, रविवार, 8 जुलाई 2012( 14:40 IST )
Webdunia
देश में करीब तीन करोड़ बांग्लादेशी नागरिकों के अवैध रूप से रहने पर अदालतों की चिंता के बीच राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में पिछले 6 वर्ष के दौरान महज 1,760 बांग्लादेशी नागरिकों को ही गिरफ्तार किया जा सका है।
सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार 2006 से 2011 के दौरान दिल्ली के उत्तरी जिले में सबसे अधिक 1,694 बांग्लादेशी नागरिक पकड़े गए हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2008 में बांग्लादेशी नागरिक राजिया बेगम की याचिका पर सुनवाई करते हुए राष्ट्रीय राजधानी में भारी संख्या में अवैध अप्रवासियों के मौजूद होने पर चिंता व्यक्त की थी। अदालत ने कहा था कि दूसरे देशों के अवैध अप्रवासियों से भारत की आंतरिक सुरक्षा को गंभीर खतरा है।
रजिया बेगम ने उसे और उसके परिवार के चार सदस्यों को बांग्लादेश भेजे जाने के फैसले के खिलाफ अदालत में याचिका दायर की थी। उसे 28 दिसंबर 2007 को दिल्ली के खानपुर क्षेत्र से फर्जी राशन कार्ड और चुनाव पहचान-पत्र के साथ पकड़ा गया था।
हाल ही में दिल्ली की एक अदालत में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कामिली लाउ ने कहा था, ‘यह दुखद है कि देश के वास्तविक नागरिक जहां गरीबी के साये में गुजर-बसर कर रहे हैं, वहीं तीन करोड़ बांग्लादेशी नागरिक अवैध रूप से हमारे देश में रह रहे हैं और हमारे नागरिकों के समान सुविधा प्राप्त कर रहे हैं।’ सूचना के अधिकार के तहत गोपाल प्रसाद ने पिछले 6 वर्ष में दिल्ली में अवैध रूप से रहने के दौरान पकड़े गए बांग्लादेशी नागरिकों का ब्योरा मांगा था।
इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस (आईडीएसए) की रिपोर्ट में देश में दो करोड़ से अधिक अवैध बांग्लादेशी नागरिकों के रहने पर देश की सुरक्षा को खतरा बताया गया है।
आईडीएसए के विशेषज्ञ आनंद कुमार ने कहा कि अवैध आप्रवासन के आयामों को समझना जरूरी है। सुरक्षा के व्यापक पहलुओं पर तैयार रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया गया है कि सुरक्षा प्रणाली और आप्रवास विभाग के बीच कोई समन्वय नहीं है।
कुमार ने रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि इस प्रकार से निर्वाध एवं बिना रोक-टोक के आप्रवास तथा उच्च जन्म दर के कारण स्थिति विस्फोटक हो रही है। ऐसी स्थिति में आप्रवास नियंत्रण के अभाव में आतंकी तत्वों के लिए मार्ग प्रशस्त होता है, जिससे आतंरिक सुरक्षा को खतरा उत्पन्न होता है।
उन्होंने कहा कि अवैध आप्रवासन की प्रमुख वजह बांग्लादेश से इस मामले में सहयोग नहीं मिलना है। आईडीएसए की रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में अवैध आप्रवास को रोकने के लिए प्रयास किए गए हैं, लेकिन यह कारगर साबित नहीं हुए हैं।
असम के लोगों ने 1979 में अवैध बांग्लादेशियों को निकालने के लिए अभियान चलाया था, जो 1985 के समझौते के रूप में समाप्त हुआ। 2005 में भी चिरिंग चापोरी युवा मोर्चा ने ऐसा ही अभियान चलाया था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बांग्लादेश में आबादी का दबाव बढ़ने से वहां से लोगों का भारत में पलायन हो रहा है। भारत में ऐसे आप्रवास के नियमन तंत्र के मजबूत नहीं होने का फायदा उठाते हुए बांग्लादेश के कट्टरपंथी तत्व सीमा से लगने वाले भारत के इलाकों में अपनी घुसपैठ बढ़ा रहे हैं, जिनमें सिमी, हुजी, जमियम अहले हदीस, तबलीग-ए-जमात जैसे संगठन शामिल हैं। (भाषा)
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