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इतिहास को लेकर उठा पटक
दुनिया में दो तरह के नेताओं का बोलबाला रहा है। एक जो अपने भाषणों में ऐतिहासिक तथ्यों को सही तरीके से पेश करके उनकी समसामयिक व्याख्या करते रहे हैं और दूसरे वे जो लोगों की भावनाओं को उभारने के लिए इतिहास का इस्तेमाल अपने तरीके से करते रहे हैं। उदाहरण के तौर पर लेनिन को पहली श्रेणी के नेता के रूप में रख सकते हैं, जबकि हिटलर और मुसोलिनी को दूसरी श्रेणी के नेता के रूप में। लेनिन अपने भाषणों में इतिहास को वैज्ञानिक समाजवाद के नजरिये से देखते थे जबकि हिटलर और मुसोलिनी राष्टÑवादी नजरिये को पुख्ता करने के लिए अपने गौरवशाली इतिहास की पुनरावृति की बात करते हुये लोगों की भावनाओं को उभारते थे। भाषण कला के आधार पर नरेंद्र मोदी को भी दूसरी श्रेणी के नेताओं में रखा जाना उचित है। लोगों के मस्तिष्क को झकझोड़ने के बजाय मोदी उनके दिलों में आग भरने में ज्यादा विश्वास करते हैं। यही वजह है कि जाने अनजाने अपने भाषणों के दौरान वह ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ कर देते हैं और फिर विरोधियों को उन पर हमला करने का सहज मौका मिल जाता है। फिलहाल पटना में मोदी के भाषण के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब इतिहासकार की भूमिका अख्तियार करते हुये मोदी पर हमला बोल रहे हैं।
रूसी साहित्यकार मक्सिम गोर्की का प्रसिद्ध उपन्यास ‘मां’ एक किसान किरदार उपन्यास के नायक पावेल के संबंध कहता है, ‘वह अच्छा बोलता है, लेकिन कभी-कभी बकवास भी करता है। दोष उसका नहीं है जो ज्यादा बोलेगा वह बकवास करेगा ही।’ भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के संदर्भ में यही कहा जा रहा है कि अब वह बकवास करने लगे हैं। यहां तक कि अपने भाषणों में भी वह ऐतिहासिक तथ्यों को गलत तरीके से पेश कर रहे हैं। मोदी के धुर विरोधी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना है कि पटना में हुंकार रैली को संबोधित करते हुये उन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य को गुप्त वंश से जोड़ दिया और विश्वविजेता सिकंदर महान को अपने विजय अभियान के दौरान गंगा तट तक पहुंचा दिया। इतना ही नहीं उन्होंने शिक्षा के प्राचीन मरकज तक्षशिला विश्वविद्यालय को भी बिहार में स्थित करार दिया। पटना में दिये गये नरेंद्र मोदी के भाषण को प्लाइंट आउट करके नीतीश कुमार और उनकी टीम पूरा मजे ले रही है और इसी बहाने नीतीश कुमार अपने इतिहास ज्ञान को भी खूब चमका रहे हैं। लेकिन ऐसा करते हुये वह भी तथ्यात्मक गलतियां करने से बाज नहीं आ रहे हैं। उनका यह कहना कि सिकंदर की सेना सतलुज से लौटी थी सरासर गलत है। सिकंदर अपनी सेना के साथ ब्यास नहीं तक पहुंच गया था और यहीं पर उसकी सेना ने आगे बढ़ने से साफ तौर इन्कार कर दिया था। अपनी सेना के दिलो दिमाग में दुनिया को रौंदते हुये आगे बढ़ने के जज्बे को बरकरार रखने में असफल होने पर सिकंदर ने खीजते हुये कहा था, ‘मैं मूर्दों के दिलों में आग भरने की कोशिश कर रहा हूं।’
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सत्ता के लिए वोटों की दरकार
सामान्यतौर पर दुनिया में तीन तरह के लोग होते हैं, इतिहास लिखने वाले, इतिहास पढ़ने वाले और इतिहास बनाने वाले। अब इतिहास बनाने वाले लोगों को इतिहास की सही जानकारी हो यह जरूरी नहीं है और भारत जैसे डेमोक्रेटिक देश में तो यह कतई जरूरी नहीं है कि नेता हर तरह के ऐतिहासिक तथ्यों से लैस रहे। यहां नेता में सिर्फ वोट बटोरने का गुण होना चाहिए। नरेंद्र मोदी की रैलियों में जिस तरह से भीड़ जुट रही हैं, यदि वे उस भीड़ को वोट में तब्दील कर पाते हैं तो यह उनके लिए बड़ी सफलता होगी। इकतरार में आने के लिए अनंत: वोटों की ही जरूरत पड़ती है। ऐतिहासिक तथ्यों पर बहसबाजी काम नहीं आती। यदि नेता इतिहास की तमाम धाराओं और घटनाओं की जानकारी से लैस है तो निसंदेह वह मुल्क को एक कुशल नेतृ्तव देने में कामयाब होगा। यदि नहीं है तो भी उसे चिंता करने की जरूरत नहीं है, मुल्क को संभालने के लिए ब्यूरोक्रेट्स की एक पूरी फौज हमेशा आपस में होड़ करते रहती है। नेता का काम जनता के विश्वास को हासिल करके इकतरार में आने के बाद ब्यूरोक्रेट्स को हांकना है और यह काम वह इतिहास की सही जानकारी के बगैर भी सहज बुद्धि से कर सकता है। कुशल नेता वही है जो सबसे पहले अधिक से अधिक वोट बटोरने का जुगाड़ लगाता है। भाजपा ने भी नरेंद्र मोदी को ‘पीएम फेस’ के रूप में इसलिए पेश किया है कि उसे यकीन है कि मोदी भाजपा को इकतरार में लाने में कामयाब हो सकते हैं। यदि लोगों के दिलों को जीतने के लिए रौ में बह कर वह भोजपुरी और मगही बोलते हुये ऐतिहासक तथ्यों में गड़बड़ी कर जाते हैं तो इससे कोई आसमान टूनने वाला नहीं है। डेमोक्रेटिक पोलिटिक्स में असल मसला है लोगों के जेहन में पैठ बनाना और नरेंंद्र मोदी इस कार्य को पूरी दक्षता से अंजाम दे रहे हैं। यह मोदी के भाषणों का ही असर है कि जदयू खेमे के दो मजबूत नेता शिवानंद तिवारी और नरेंद्र सिंह भी पार्टी के अंदर उनके गुणगान करने से गुरेज नहीं कर रहे हैं।
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मोदी की लोकप्रियता में इजाफा
मोदी की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब उनकी रैलियों में खून-खराबा कराने की साजिशें की जा रही हैं। पटना रैली में जो कुछ हुआ है उसकी पुनरावृति आगे नहीं होगी यह विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता है। मतलब साफ है जैसे-जैसे केंद्र में सरकार बनाने का मोदी का अभियान जोर पकड़ता जा रहा है वैसे-वैसे उनको रास्ते से हटाने की साजिशें भी जोर पकड़ रही हैं। यदि खुफिया सूत्रों की माने तो कानपुर में आयोजित मोदी की रैली में भी राष्टÑ विरोधी शक्तियों द्वारा व्यापक पैमाने पर विस्फोट करने की योजना थी। यहां पर नाकाम होने की स्थिति में पटना रैली को निशाना बनाया गया। उस दिन मोदी को सुनने के लिए बिहार के कोने-कोने से लोग आये हुये थे और मोदी भी तमाम चेतावनियों के बावजूद बिहार के लोगों से रू-ब-रू होने के लिए उतावले थे। इसके पहले जब कभी भी मोदी का बिहार दौरे की बात होती थी नीतीश कुमार अड़ंगा लगा देते थे। जदयू के अलग होने के बाद भाजपा और मोदी समर्थक इस रैली की तैयारियों में जी जान से जुट गये थे। नरेंद्र मोदी ने भी इनकी तैयारियों को जाया नहीं जाने दिया। गांधी मैदान में चौतरफा विस्फोट के बावजूद वो खुल कर बोले और नीतीश कुमार पर भी जमकर हमला किया। बेबाक शब्दों में कहा जा सकता है कि मोदी ने बिहार में अपने समर्थकों को निराश नहीं किया। ऐतिहासिक तथ्यों की गड़बड़ी के बावजूद बिहार के लोगों के बीच उनकी मकबूलियत में इजाफा हुआ है।
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नीतीश टीम में बौखलाहट
किसी भी नेता की सफलता का आकलन उसके विरोधियों की मनस्थिति से किया जाना चाहिए। नीतीश कुमार और उनकी टीम जिस तरह से मोदी के भाषण की पड़ताल करके उन पर इतिहास की जानकारी न होने का आरोप मढ़ कर उनकी खिल्ली उड़ा रहे हैं उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि पटना में हुंकार रैली के बाद उनकी बौखलाटह बढ़ गई है। मोदी ने नीतीश कुमार को अवसरवादी करार देते हुये साफ तौर पर कहा है कि वह जेपी और लोहिया के सिद्धांतों के साथ गद्दारी कर रहे हैं। बहरहाल बिहार में मोदी को लेकर धुव्रीकरण तेज हो गया है। विस्फोटों के बाद गांधी मैदान में मोदी को सुनने आये लोग जिस तरह से संयमित रहे उससे स्पष्ट पता चलता है कि मोदी के पीछे एक अनुशासित भीड़ खड़ी है और यह अनुशासित भीड़ आम इंतखाब में चमत्कार दिखाने की पूरी क्षमता रखती है। अब बिहार में नीतीश कुमार के सामने सबसे बड़ी चुनौती मोदी के बढ़ते प्रभाव को रोकने की है। भाषणों में तथ्यात्मक गलतियों को रेखांकित करके वह मोदी के पीछे खड़ा होने वाले जन सैलाब पर विराम लगा पाएंगे कह पाना मुश्किल है। वैसे इस बहस से आम लोगों को इतिहास ज्ञान जरूर समृद्ध हो रहा है।