ग्लोब दी गल

. . .एक और गाँधी की क्षति

अक्षय नेमा मेख

मानव सभ्यता के विकास के समय से ही नेतृत्व करने वाले नायकों की भूमिका प्रमुख रही है। मानव समुदाय के सामाजिक जीवन को उन्हीं नायकों ने दिशा-निर्देशित कर विकास क नई-नई विचारधाराओं को प्रवाहित किया है। जिससे आज न केवल भारत बल्कि हर एक मुल्क गर्व से सिर उठा रहा है। हम भारत के उन नायकों से तो भली भाँति परिचित है जिन्होंने देशवाशियों क स्वतंत्रता, समानता व अनेकता में एकता बनाये रखने के लिए अपना सब कुछ बिना स्वार्थ के अर्पण कर दिया। इन भारतीय नायकों द्वारा जलाई चिंगारी क रौशनी जिस तरह सम्पूर्ण विश्व में हुई उसी तरह कुछ ऐसे वे नायक भी है जिन्होंने अपने-अपने मुल्कों से सम्पूर्ण दुनिया में क्रांति कि रोशनी जला कर विश्व पटल पर अपने देश का नाम स्थापित कर दिया।

दक्षिण अफ्रीका क प्रिटोरिया सरकार का शासन काल मानव सभ्यता के इतिहास में चमड़ी के रंग और नस्ल के आधार पर मानव द्वारा मानव पर किये गए अत्याचारों का सबसे बड़ा काला अध्याय रहा है। यही वो सरकार रही जिसने जातीय पृथक्करण व रंगभेद पर लिखित कानून बना रखा था। जहां पर 75 % अश्वेत अपनी ही जमीन पर बेगाने हो गए थे और करीब 15% श्वेत व्यक्ति बाहर से आकर समूचे भू भाग के मालिक बन गए थे। यही वो देश भी रहा जहां अन्यत्र देशों से आये अश्वेतों पर चाबुक बरसाये गए, इसका सबसे बड़ा उदाहरण महात्मा गाँधी रहे जिनपर न केवल चाबुक बरसाये गए अपितु उन्हें ट्रेन से भी बाहर फैंक दिया गया।

दक्षिण अफ्रीका क प्रिटोरिया सरकार के बढ़ते बर्बर रवैये के खिलाफ आवाज उठाने कि बात लोग सपने में भी नहीं सोच सकते थे, लेकिन नेल्सन रोलीह्लला मंडेला उस समय एक ऐसा नाम था जिसने अत्याचारी सरकार के दमन के लिए पराक्रमी कार्य किये। नेल्सन रोलीह्लला मंडेला ठीक उसी प्रकार दक्षिण अफ्रीका के लिए महानायक बने जिस प्रकार भारत के लिए महात्मा गाँधी। नेल्सन मंडेला बहुत हद तक महात्मा गांधी की तरह अहिंसक मार्ग के समर्थक थे। उन्होंने गांधी को प्रेरणा स्रोत माना था और उनसे अहिंसा का पाठ सीखा था।
रंग के आधार पर होने वाले भेदभाव को दूर करने के लिए उन्होंने राजनीति में कदम रखा। 1944 में यवे अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस में शामिल हो गये जिसने रंगभेद के विरूद्ध आंदोलन चला रखा था। इसी वर्ष उन्होंने अपने मित्रों और सहयोगियों के साथ मिल कर अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस यूथ लीग की स्थापना की। 1947 में ये लीग के सचिव चुने गये। 1961 में मंडेला और उनके कुछ मित्रों के विरुद्ध देशद्रोह का मुकदमा चला परन्तु उसमें उन्हें निर्दोष माना गया। फिर 5 अगस्त 1962 को उन्हें मजदूरों को हड़ताल के लिये उकसाने और बिना अनुमति देश छोड़ने के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया गया। उन पर मुकदमा चला और 12 जुलाई 1964 को उन्हें उम्रकैद की सजा सुनायी गयी। सज़ा के लिये उन्हें रॉबेन दीप की जेल में भेजा गया किन्तु सजा से भी उनका उत्साह कम नहीं हुआ। उन्होंने जेल में अश्वेत कैदियों को भी लामबंद करना शुरु किया।

जीवन के 27 वर्ष कारागार में बिताने के बाद अन्ततः 11 फरवरी 1990 को इनकी रिहाई हुई। रिहाई के बाद समझौते और शान्ति की नीति द्वारा उन्होंने एक लोकतान्त्रिक एवं बहुजातीय अफ्रीका की नींव रखी। 1994 में दक्षिण अफ़्रीका में रंगभेद रहित चुनाव हुए। अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस ने 62 प्रतिशत मत प्राप्त किये और बहुमत के साथ उसकी सरकार बनी। 10 मई 1994 को मंडेला देश के सर्वप्रथम अश्वेत राष्ट्रपति बने।
राष्टपति बनने के तुरंत बाद उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के नये संविधान में बदलाव क रुपरेखा तय क जिसे मई 1996 में संसद की ओर से सहमति मिली, और जिसके अन्तर्गत राजनीतिक और प्रशासनिक अधिकारों की जाँच के लिये कई संस्थाओं की स्थापना की गयी।

1997 में वे सक्रिय राजनीति से अलग हो गये और दो वर्ष पश्चात् उन्होंने 1999 में कांग्रेस-अध्यक्ष का पद भी छोड़ दिया। कई पुरुस्कारों से सम्मानित मंडेला अपने बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण आखिर 5 दिसम्बर 2013 को इस दुनिया से अलबिदा कह गए। मगर अतीत के ये नायक आज हमारे सामने ही नहीं हमारे बाद भी जीवत रहेगे। इनके लिए साहिर साहब कि कुछ पंक्तियाँ याद आती है –
जिस्‍म मिट जाने से इन्‍सान नहीं मर जाते
धड़कनें रूकने से अरमान नहीं मर जाते
ांस थम जाने से ऐलान नहीं मर जाते
होंठ जम जाने से फ़रमान नहीं मर जाते।”

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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