एक बेबस माँ टीबी की बीमारी से ग्रसित 11 वर्षीय बेटी को लेकर दर दर भटक रही है।
पटना । बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय का अखबार में बयान आता है कि राष्ट्रीय यक्ष्मा उन्मूलन कार्यक्रम के तहत अब निजी क्षेत्र के चयनित अस्पतालों में भी गंभीर टीबी रोगियों को मुफ्त या सीमित खर्च पर इलाज की सुविधा मिलेगी। विभाग चयनित निजी अस्पतालों में ड्रग रेजिस्टेंट (डीआर) सेंटर खोलेगा, ताकि वहां ऐसे मरीजों का मुफ्त या सीमित खर्च पर बेहतर उपचार मिल सके। टीबी की बीमारी को 2025 तक खत्म किया जा सके।
आम आदमी पार्टी बिहार के प्रदेश प्रवक्ता बबलू प्रकाश ने बताया कि पटना के अम्बेडकर कॉलोनी, संदलपुर में रहने वाली एक दलित गरीब महिला किरण देवी की 11 वर्षीय बेटी रितिक जो सात महीनों से टीबी की बीमारी से ग्रसित है और नाजुक स्थिति में है।
बबलू ने बताया कि पीड़ित बच्ची को इलाज कराने के लिए पटना के बड़े अस्पताल एनएमसीएच लेकर गया। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि बीमार लड़की को भर्ती नही किया गया।
अस्पताल प्रशासन ने बच्ची को पहले आकस्मिक विभाग में स्थान्तरण किया। आकस्मिक विभाग के चिकित्सक ने मरीज को शिशु विभाग में यह कहते हुए स्थान्तरित कर दिया कि पीड़ित की उम्र 11 साल है। शिशु विभाग ने पीड़ित को यक्ष्मा केंद्र, अगमकुंआ, पटना भेज दिया और कहा कि मरीज की अन्य मरीज के साथ नही रख सकते हैं। संक्रमण फैलने का खतरा है।
यक्ष्मा केंद्र ने पीड़ित लड़की को भर्ती नही किया और कहा कि दिसम्बर 2021 से टीबी मरीजो को भर्ती करने की व्यवस्था खत्म कर दिया गया है।
बबलू ने कहा कि बिहार का स्वास्थ्य विभाग, टीबी उन्मूलन के लिए अभियान चला रहा है। इसके लिए हर साल करोड़ो रुपया खर्च कर रही है। टीबी मरीजो को लेकर स्वास्थ्य मंत्री का बड़े बड़े बयान आ रहा है। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि एक बेबस माँ जिसने अपने दो बच्चों को खो दिया है अब तीसरी बच्ची को लेकर दर दर भटक रही है।
बबलू ने कहा, पटना के एनएमसीएच जैसे बड़े अस्पताल में टीबी की बीमारी से ग्रसित बच्ची के इलाज का समुचित व्यवस्था नही है तो अन्य जिलों का हाल क्या होगा ? मंत्री जी, टीबी उन्मूलन कार्यक्रम पर यह बड़ा सवाल है। स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय से मांग है कि बच्ची के इलाज व दवा की समुचित व्यवस्था की जाए।