एक बेहतरीन नाटक का सुखांत अंत, ये तो होना ही था
जन लोक पाल बिल को लेकर अन्ना हजारे की अनशन बैठक में एक बेहतरीन नाटक के सारे तत्व मौजूद थे। ओपनिंग सीन से लेकर क्लाइमेक्स तक कि कड़ियां बहुत ही खूबसूरती से बुनी गई थी और इसकी प्रस्तुतिकरण के लिए जंतर मंतर जैसे मंच का चयन भी इस नाटक के हिट होने गारंटी दे रही थी। पटकथा में पहले से ही सुखांत अंत का खाका खींच लिया गया था। सबकुछ स्क्रीप्ट के मुताबिक ही हुआ।
नाटक का पहला एक्शन था, जन लोकपाल बिल को लेकर अन्ना हजारे का जंतर मंतर पर अनशन पर बैठना। किरण बेदी, अग्निवेश, अरविंद केजरीवाल जैसे लोगों का भी मंच पर स्थान सुरक्षित था। दूसरा एक्शन मीडिया के जिम्मे था, पहले एक्शन को ट्वीट करना और मीडिया अपने निर्धारित समय पर इस काम में लग गई। इस दो एक्शन ने सबसे पहले दिल्ली के लोगों को एक्शन में ला दिया, खासकर उस तबके को जो किसी न किसी सामाजिक संगठन या आंदोलनों से जुड़े रहे हो। वैसे भी इस तबके के अच्छे खासे लोगों को अनशन के पहले से ही इस बात के लिये तैयार कर लिया गया था कि जंतर मंतर पर होने वाली चहलकदमी में ये लगातार शिरकत करते रहेंगे और उन्होंने वही किया।
इस बीच मीडिया में हजारे की तुलना गांधी से होने लगी, बार-बार यही बात कहा गया कि देश में दूसरी आजादी की लड़ाई शुरु हो चुकी है और अचेतन रुप से यह अहसास कराने की कोशिश की गई कि यदि आप इस आजादी की इस दूसरी लड़ाई में भागीदार नहीं होते हैं तो कहीं न कहीं आप इस देश के हितों के खिलाफ है। लोग भ्रष्टाचार को लेकर पहले से ही आक्रोशित थे, सिविल सोसाइट के लोगों का चमकता हुआ चेहरा जब मीडिया पर आने लगा तो यह आकर्षण कुछ और बढ़ गया। लोग कैमरे के सामने लगातार भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलते रहे। बड़े-बड़े मीडिया हाउसों ने अपने एंकरों को मैदान में लाइव कवरेज के लिए उतार दिया, जो पूरी तरह से आंदोलनकारी की भूमिका में दिखने लगे। जी न्यूज से पुण्य प्रसून बाजपेयी की भूमिका कुछ ज्यादा ही आह्लादित करने वाली थी। कैमरे के सामने वो इस तरह से बोल रहे थे जैसे अब क्रांति हो चुकी है। इसी तरह आईबीएन-7, आजतक, एनडीटीवी आदि ने भी जेहादी अंदाज में इस क्रांति का स्वागत करने में लगे रहे । नाटक के इस हिस्से को चढ़ाव के अंतिम बिंदू पर पहुंचा दिया गया।
इधर सरकरी हलकों में भी हलचल तेज होती गई। बैठक पर बैठक शुरु हो गये, और अनशन के चौथे दिन सकारात्मक नतीजे भी आने लगे। धीरे-धीरे गुस्से को खुशी के माहौल में तब्दील कर दिया गया। अन्ना हजारे के सामने सरकार झुकी, जैसे जुमले उझलने लगे। देखते ही देखते लोगों का गुस्सा काफूर हो गया। ड्राफ्टिंग के लिए चयन समिति में सिविल सोसाईटी के पांच प्रतिनिधियों का स्थान सुरक्षित हो गया। सरकार की ओर से प्रणब मुखर्जी (अध्यक्ष), सदस्य- केंद्रीय मंत्री वीरप्पा मोइली, कपिल सिब्बल, पी चिदंबरम तथा सलमान खुर्शीद का नाम आया तो
सिविल सोसाइटी की ओर से शांति भूषण (सह-अध्यक्ष), सदस्य-प्रशांत भूषण, सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज संतोष हेगड़े, आरटीआई कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल तथा अन्ना हजारे का नाम तय हो गया। इसके साथ ही नाटक अपने सुखांत अंत तक पहुंच गया, तेरी भी जय और मेरी भी जय के जुमलों साथ।
अब कहा जा रहा है कि यह देश से भ्रष्टाचार को समाप्त करने की दिशा में यह पहला कदम है। देशभर में जश्न मनाने की बात हो रही है। गुस्से का पहाड़ खत्म हो चुका है। आंदोलन सही दिशा में आगे बढ़ रही है। मीडिया वालों की नजर अब आईपीएल पर टिक रही है, क्रांति को अंजाम तक इन्होंने पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अब आईपीएल पर हाथ साफ करेंगे। सुखांत अंत के बाद लोग तालियां बजाते हुये अपने घरों की ओर लौट रहे हैं इस विश्वास के साथ कि आने वाले दिनों में जन लोकपाल बिल की ड्राफ्टिंग हो जाएगी। लोगों का गुस्सा भाप बनकर उड़ चुका है, यह आंदोलन अपने लक्ष्य को पाने में कामयाब रहा। सरकार की भी जय-जय और सिविल सोसाईटी की भी जय। वैसे ये सिविल सोसाइटी है क्या?