कहीं पाक के पीछे चीन तो नहीं ?
यह जग जाहिर है कि पाकिस्तान का चीन से गहरा संबंध है। कुछ दिनों पूर्व एक समाचार पत्र में यह खबर प्रकाशित हुई थी कि “जम्मू-काश्मीर के जिस हिस्से पर पाकिस्तान कब्ज़ा किये है वहाँ चीन अपनी मुस्तैदी बढ़ा रहा है।” फिर अचानक एक आतंकी भारत के खिलाफ फरमान जारी करता है और उसके बाद पाकिस्तानी सेना की भारतीय सीमा में घुसपैठ व दो भारतीय जवानों की हत्या……..। इस पूरे मसले पर यदि ध्यान दिया जाये तो लगता है जैसे भारत के खिलाफ कोई बड़ा षड्यंत्र रचा गया हो।
लेकिन हमारे राजनैतिक विचारक इस मामले में पाकिस्तान के पीछे किसी आतंकी गिरोह होने का अनुमान लगा रहे हैं। हो सकता है ऐसा हो। मगर इस टूटी रीढ़ के पाकिस्तान के पास फ़िलहाल तो इतनी हिम्मत नहीं की वह भारत के खिलाफ अपना फन उठा सकें। यह बात वो भी अच्छी तरह से जानता है, और वो इतना मूर्ख भी नहीं की अंतर्राष्टीय स्तर पर किसी आतंकी गिरोह का साथ लें। अनुमानतः कहा जा सकता है कि पाकिस्तान के पीछे कोई बड़ी ताकत काम कर रही है। जो शायद युध्द चाहती है। अंतर्राष्टीय स्तर पर यदि देखा जाये तो चीन ही एक ऐसा देश है जो लगातार किसी न किसी कारण से भारत को परेशान करता आया है। और अब वह पाकिस्तान को मोहरा बनाकर अपने जाल में भारत को फांसना चाहता है। वह चाहता है कि भारत तहस में आकर पाकिस्तान से युध्द करे। जिसमे वह पाकिस्तान से मैत्री होने के नाते उसकी तरफ से युध्द करेगा और भारत बेशक ही हार जायेगा। कुल मिलाकर वह भारत को युध्द के लिए उकसाना चाहता है। जिसके लिए भारतीय सीमा पर घुसपैठ कर दो भारतीय सैनिकों की हत्या करना उसकी साजिश का एक हिस्सा रहा। उससे भारतीयों के दिलों में बदले की आग भी जल उठी। और अब वह चाहता है कि सबसे बड़े लोकतंत्र में जनता सरकार पर युध्द के लिए दबाव बनाये।
पाकिस्तान ने जो अमानवीय कृत्य कर भारत की शांति भंग करने का प्रयास किया है, वो आज ही की बात नहीं है। 26/11 के हमले के बाद जब भारत सरकार ‘मोस्ट-वांटेड’ की लिस्ट जारी कर पाक सरकार को सौपती थी तो उस पर पाक की तरफ से केवल औपचारिक विचार-विमर्श किया जाता था। वह कभी भारत के प्रति संवेदनशील नहीं रहा। वह भारत को अपना दुश्मन समझता रहा है। 26/11 के चार साल गुजरने पर भी पाकिस्तान ने उन ‘मोस्ट-वांटेड’ आतंकियों पर कोई एक्शन नहीं लिया। इसमें हमारी भी गलती है जो हमने चार साल का इंतजार किया। भारत सरकार को चाहिए था कि वह पाकिस्तान को केवल एक साल का समय देता। यदि वह इन एक साल में मैत्रीभाव से कार्य करता तो ठीक था, अन्यथा हमें उसी समय पाकिस्तान से सारे संबंध विक्षेप कर देने थे। उसके साथ कोई सरोकार नहीं रखना था। तभी वह भारत की अहमियत समझ सकता।
पाकिस्तान ने भारतीय सीमा में घुसपैठ कर दो सैनिकों की जो हैवानियत से हत्या की है, इसके लिए हम उसे माफ़ नहीं कर सकते। हमें उन दो शहीदों को श्रध्दांजलि के तौर पर पाकिस्तान से हर प्रकार के रिश्तों को तोडना होगा। क्योकि अब बहुत हो गया। सहने की एक हद होती है, उसके बाद आक्रोश अपने आप ही पैदा होता है।
–अक्षय नेमा मेख
पोस्ट-मेख,नरसिंगपुर मप्र 487114
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