अंदाजे बयां

कालीन भैया की छवि से उबारेगा शेरदिल का किरदार -पंकज त्रिपाठी

शेरदिल फिल्म की शूटिंग के दौरान कुछ यार दोस्तों ने पूछा कि मुझे इस किरदार को निभाने की प्रेरणा कहां से मिली। दरअसल यह मेरे अंदर का ही किरदार है। मानव सभ्यता के विकास के इस दौर में पूरी दुनिया में मानव-वन्य पशु संघर्ष की घटनाएं तेज़ होती जा रही हैं। मेरे अंदर इस बात को लेकर बेचैनी रही थी। इसीलिए जब शेरदिल का किरदार निभाने का ऑफर आया तो मैं तुरंत तैयार हो गया। आज विकास का एक अजीब चक्र चल रहा है। मानव बस्तियां वनों में घुसती जा रही हैं और गांव शहरीकरण की भेंट चढ़ते जा रहे हैं। वनों में भोजन और पानी की कमी हो गई है। इस कारण वन्य पशु मानव बस्तियों की ओर रुख कर रहे हैं और मानव के साथ उनका संघर्ष बढ़ता जा रहा है। पर्यावरण के प्रति मेरे अंदर चिंता रही है। एक पेशेवर संकट भी था। गैंग्स ऑफ वासेपुर के बाद दर्शकों के मन में मेरे प्रति कालीन भैया की छवि घर करती जा रही थी। वे सी रूप में मुझे देखना चाहते थे। इससे उबरना जरूरी था। एक कलाकार का टाइप्ड हो जाना उसके जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी होती है। सिने जगत का इतिहास गवाह है कि अरूण गोविल ने रामानंद सागर के धारावाहिक में राम की भूमिका अदा की तो दर्शकों ने उन्हें किसी अन्य भूमिका में स्वीकार ही नहीं किया। नीतीश भारद्वाज महाभारत में कृष्ण बने तो कृष्ण ही बने रह गए।
मिर्जापुर में भी मेरी उसी तरह की भूमिका थी। एक अभिनेता को जब दर्शक एक खास किस्म के किरदार में देखने के आदी हो जाते हैं तो उसके अभिनय का दायरा एक खास खांचे में सिमटकर रह जाता है। मैं किसी सांचे में बंधकर नहीं रहना चाहता। हर तरह के किरदार को जीना चाहता हूं। कला में विविधता हो तभी वह सार्थक होती है। शेरदिल का किरदार मेरे अभिनय को एक नए आयाम तक ले जाएगा। मैं एक किरदार को जीने के बाद दूसरे किरदार को अपने अंदर उतारना चाहता हूं। कालीन भैया के किरदार में लोगों ने मुझे पसंद किया। लेकिन इससे पहले कि मुझे उसी रूप में देखा जाने लगे इस दायरे को तोड़ना बहुत जरूरी था। इसीलिए मैं ओटीटी पर अलग-अलग किरदार की भूमिका तलाशता रहा और शेरदिल भी उसी दिशा में उठाया गया कदम है।
पर्यावरण आज पूरी दुनिया का सबसे ज्वलंत मुद्दा है। यह फिल्म इसी विषय पर केंद्रित है। कहानी सच्ची है। गढ़वाल के पिथोरागढ़ में ऐसा एक शेरदिल था जो अपने परिवार को बेहद प्यार करता था और उन्हें ईनाम की राशि दिलवाने के लिए खुद को बाघ का शिकार बनाना चाहता था। सिनेमेटोग्राफी की जरूरतों के अनुरूप इसमें थोड़ा कल्पना शक्ति का तड़का लगाना पड़ा है लेकिन यह पूरी तरह रियलिस्टिक फिल्म है। दर्शकों को पसंद आएगी। यह सच है कि हाल के दिनों में बड़े बजट की कई फिल्में फ्लॉप हुई हैं। जोखिम है। लेकिन मैं इसकी चिंता नहीं करता। मैंने अपना काम पूरी तन्मयता और पूरी ईमानदारी से किया। मेरे लिए यही काफी है।
दूसरी बात कि मैं बिहार का रहने वाला हूं। छोटे से गांव से निकला हूं। बिहार ने बालीवुड को अशोक कुमार, शत्रुघ्न सिन्हा और शेखर सुमन जैसे कलाकार दिए हैं। मुझे मौका मिला है तो मैं भी अपने प्रांत की परंपरा को आगे बढ़ाना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि विस्थापन के दर्द को, शहरीकरण की भेंट चढ़ते गावों की पीड़ा को, उजड़ते वन्य जीवन को फिल्मों का विषय बनाया जाए। यह अछूते विषय हैं। मैं कला के प्रति समर्पित कलाकार बनने के साथ-साथ अपनी बेटी का आदर्श पिता, माता-पिता की आकाक्षाओं को पूरा करने वाली संतान बनकर जीना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि मेरे अभिनय को देखकर देश का हर नौजवान शेरदिल के किरदार में ढल जाए।

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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