नोटिस बोर्ड

कुलपति विभूति नारायण की हरकतों को लेकर राष्ट्रपति को खुला पत्र

संजीव कुमार चन्दन

( यह जितना मेरे भविष्य का सवाल है उतना ही हिंदी के नाम पर बने एक संस्थान का. यह पत्र उन आवेदनों की कड़ी में है और वर्तमान राष्ट्रपति  के कार्यकाल में  अंतिम भी है , जो मैंने राष्ट्रपति महोदया को  सीधे अथवा मानव संसाधन मंत्रालय के द्वारा  भेजे हैं, जिनमें महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति, विभूति नारायण के द्वारा हमें ( मुझे और उस विश्वविद्यालय के शोध छात्र राजीव कुमार सुमन को ) मिलने वाली धमकियों  के साथ -साथ इस विश्वविद्यालय में व्याप्त भ्रस्टाचार की सूचनाएं सप्रमाण दी गई हैं. )

18.7.2012

प्रति

राष्ट्रपति महोदया

विषय :       त्वरित हस्तक्षेप और  उच्च स्तरीय  जांच की  मांग तथा करिअर और प्राण रक्षा की गुहार

महोदया

यह पत्र उन आवेदनों की कड़ी में है और आपके राष्ट्रपति रहते हुए अंतिम है , जो मैंने आपको सीधे अथवा मानव संसाधन मंत्रालय के द्वारा  भेजे हैं, जिनमें महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति, विभूति नारायण के द्वारा हमें ( मुझे और उस विश्वविद्यालय के शोध छात्र राजीव कुमार सुमन को ) मिलने वाली धमकियों  के साथ -साथ इस विश्वविद्यालय में व्याप्त भ्रस्टाचार की सूचनाएं आपको सप्रमाण दी गई हैं. उन पत्रों में अवैध  नियुक्तियों, अवैध डिग्री आवंटन आदि के सत्य सामने लाये गये हैं. हमारे द्वारा उठाये गये मामलों की सत्यता की पुष्टि विश्वविद्यालय की कार्य परिषद्, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के विभिन्न पत्रों और विभागीय नोटिंग से भी होती है. ( ये कागजात मेरे पास सूचना अधिकार के तहत उपलब्ध हैं.)

माननीया आपने मेरे और कुछ  सामजिक कार्यकर्ताओं के आवेदन पर कोई कारवाई न कर जाने-अनजाने  विश्वविद्यालय में व्याप्त गंदगी को अनजाने में प्रोत्साहित किया है. कोई कारवाई न होता देख पुलिस सेवा से आये कुलपति राय के हौसले बुलंद होते गये, और उन्होंने अपने खिलाफ उठने वाली हर आवाज को दबाने की कोशिश की है. लाठी चार्ज, विद्यार्थियों  को माँ -बहन की गालियाँ, निष्कासन , फर्जी मुकदमे, हर पुलिसिया हथकंडा अपना कर उन्होंने आवाजें बंद करने की कोशिश की है.

उज्जवल शैक्षणिक करिअर की कुर्बानी

महोदया

राजीव सुमन और मेरा अकादमिक रिकार्ड उज्जवल रहा है, हमने क्रमशः 2009 और 2006 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की जे.आर.एफ परीक्षा भी पास की है. मैंने विभिन्न राष्ट्रीय -अंतरराष्ट्रीय सेमिनारों में शोध -पत्र प्रस्तुत किये हैं, और उनका प्रकाशन हुआ है. मैं राजीव सुमन के साथ मिलकर शैक्षणिक और साहित्यिक जगत में प्रतिष्टित स्त्रीवादी पत्रिका ‘स्त्रीकाल’ सम्पादित एवं प्रकाशित करता हूँ. विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में समकालीन विषयों पर लेखन करता हूँ, कई कहानियाँ भी प्रकाशित हुई हैं.

स्पष्ट है कि हमारा अकादमिक करिअर उज्जवल हो सकता था, लेकिन हिंदी विश्वविद्यालय की गड़बड़ियों के खिलाफ आवाज उठाने के कारण हम कई-कई बार निष्कासित होते रहे , कई प्रकार से प्रताड़ित होते रहे.

निष्कासन और महिला उत्पीडन के आरोपों का सच

विश्वविद्यालय प्रशासन ने बदले की कारवाई के तौर पर निष्कासन को हथियार बनाया है. राजीव सुमन का निष्कासन सिर्फ इसलिए किया गया कि वह और मैं उन छात्रों के साथ प्रतिनिधि मंडल के सदस्य थे, जिसने पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे.कलाम से  वर्धा में मिलकर विश्विद्यालय के कुलपति के खिलाफ सप्रमाण आरोप लगाया था. राजीव के ही प्रयासों से तब अवैध रूप से नौकरी से वंचित किये गये एक व्यक्ति को बहाल करने के लिए विश्वविद्यालय को बाध्य होना पड़ा. कलाम साहब के जाने के बाद पहले कार्यालयीन दिवस को राजीव को निष्कासित कर दिया गया, आरोप था ‘ विश्वविद्यालय विरोध.’

मुझे मेरे नेतृत्व में हुए छात्र आन्दोलन का दंड झेलना पड़ा ‘महिला उत्पीडन ‘ के झूठे आरोप में निष्कासन   के रूप में. महिला उत्पीडन के आरोप का आधार था तथाकथित तौर पर मेरे द्वारा किया गया अश्लील इ -मेल. मैं उस इ -मेल की जांच की मांग करता रहा. कोई सुनवाई नहीं हुई. मेरे आग्रह पर सेवाग्राम पुलिस स्टेशन के तत्कालीन सब  इन्स्पेक्टर ने जब जांच शुरू करनी शुरू की तो विश्वविद्यालय के एक प्रोफ. प्रोफ़ेसर मनोज कुमार ने उनपर दवाब बना कर जांच रुकवा दी. मेरे सम्बंधित इ -मेल आई.डी के सारे मेल आज भी सुरक्षित है इस आशा में कि शायद कभी जांच हो पाए. मैं चीख-चीख कर मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुरूप जेंडर संवेदित समिति ‘ विशाखा जजमेंट के अनुरूप ‘ की मांग करता रहा.

राजीव सुमन के लिए मुंबई  हाई कोर्ट के नागपुर बेंच  ने आदेश किया कि उनके निष्कासन के मामले की अपील  ‘ट्रिब्यूनल में सुनी जाय. कुलपति विभूति नारायण राय ने उनका  निष्कासन आधे-अधूरे फ़ार्म में वापस कर ट्रिब्यूनल गठित ही नहीं होने दिया. इसी प्रकार मेरा निष्कासन भी राय ने बिना शर्त वापस कर ‘महिला उत्पीडन ‘ के मामले की समुचित सुनवाई न होने दी.

राय ने दमन और आवाज बंद करने के फार्मूले के तौर पर कैम्पस बैन निष्कासन आदि को हथियार बना लिया. निष्कासन वापसी के बाद राय हमारी चुप्पी खरीदना चाहते थे और हमने  सूचना अधिकार के तहत उनसे सवाल पूछने जारी रखे और विश्विद्यालय की गड़बड़ियों भ्रस्टाचार के खिलाफ कारवाई के लिए आपको और अन्य अधिकारियों , सी .ए.जी , प्रधानमंत्री आदि को लिखना जारी रखा. इससे नाराज राय ने अप्रैल २०१० में हमारा विश्वविद्यालय में प्रवेश वर्जित करा दिया. पुलिसिया कार्य प्रणाली को अंजाम देते हुए राय ने हमारे फोटोग्राफ्स भी जारी किये थे, मानो हम कोई अपराधी हों.

मार्च २०११ में कैम्पस बैन हटा. हमें फर्जी माइग्रेशन की जाल में फंसाया गया. जब हमने यह मामला आपके सामने और अन्य फोरम पर सामने लाया तो राजीव सुमन को पुनः निष्कासित कर दिया गया. मैं तब तक विश्वविद्यालय से बाहर हो चुका था.

विभूति नारायण राय, कुलपति महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की निजी दुश्मनी

विभूति नारयण राय ने इस विश्वविद्यालय को चारागाह के रूप में ही देखा था, हिंदी की सत्ता में शामिल होने के एक अवसर के रूप में. उनकी मंशा के संकेत विश्वविद्यालय में उनकी नियुक्ति के बाद उनके पहले भाषण में ही  अन्तर्निहित थे-एक पुलिस अधिकारी की मंशा, जो हिंदी के साहित्यकारों की छोटी-छोटी कृपादृष्टि की जुगाड़ में रहता था, ताकि वह भी साहित्यकारों में शुमार हो. हिंदी की सता के इस केंद्र पर आसीन होकर यह सब ज्यादा आसान हो गया.

नियुक्ति के तत्काल बाद राय ने राजीव को और मुझे विश्वविद्यालय के सन्दर्भ में बातचीत के लिए बुलाया. हमदोनों ने विश्वविद्यालय निर्माण के लिए अपनी कुर्बानी दी थी, लगातार सक्रिय थे.  लगभग दो घंटे की बातचीत में राय हमसे विश्विद्यालय के मुद्दे समझते रहे, हम झांसे में आ गये कि वे विश्वविद्यालय निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं.

जल्द ही उनका चेहरा स्पष्ट हो गया. दलित विद्यार्थियों का उत्पीडन शुरू हुआ.पिछले कुलपति के कार्यकाल की गड़बड़ियों को दुरुस्त करने की बजाये उन्हें यथावत रखा गया या बढ़ावा दिया गया. कैम्पस में महिला उत्पीडन की घटनाएं बढीं, शाम को विश्विद्यालय में कुलपति सहित तमाम लोग दारूबाजी करने लगे, पीकर शिक्षकों में आपस में हाथापाई शुरू हुई. भ्रस्टाचार बढ़ा, अवैध डिग्रियां आवंटित होने लगीं. आवाज उठाने वाले विद्यार्थियों पर तरह -तरह से जुल्म ढाए जाने लगे  . खुद कुलपति विद्यार्थियों के माँ-बहन की गलियां देने लगे, पीटने लगे. एक और छात्र उत्पल कान्त अनीस का निष्कासन किया गया. दूसरे विद्यार्थियों को आगे की पढ़ाई जारी रखने से रोका गया.

विश्वविद्यालय में चोरी से किताब लिखने वाले प्रोफ़ेसर का वर्चस्व स्थापित करवाया गया. जबकि चोरी से किताब लिखने के मामले में जामिया सहित कई विश्वविद्यालयों ने अपने यहाँ से संबंधित अध्यापकों को पदमुक्त कर दिया है . कुलपति तक दारू से लेकर रुपयों के लेन-देन शुरू हुए. इन सारे मामलों की जानकारी मैंने, राजीव ने और मेरे साथियों ने आपको भेजी, मानव संसाधन विकास मंत्री को भेजी, प्रधानमंत्री को भेजी. विभिन्न फोरम पर हम आवाज  उठाते रहे और सूचना के अधिकार के तहत जानकारी लेते रहे. विभूति ने इसके प्रत्युत्तर में हमसे अपना निजी अदावत बनाया.

इसी बीच विभूति नारायण राय ने लेखिकाओं को ‘छिनाल’ निम्फोमेनियेक कुतिया ‘ कह कर गाली दी. देश भर में व्यापक विरोध हुआ. घबराए राय ने लिखित माफ़ी मांग ली. लेकिन राजीव सुमन , मैंने और अखिल भारतीय महिला फेडरेशन की नेता हसीना गोर्ड़े ने वर्धा में मुकदमा दायर कर दिया. इसके बाद राय ने हमें धमकी देनी शुरू कर दी. धमकी देने में पुलिस का एक अधिकारी, हिंदी विश्वविद्यालय का एक प्रोफ़ेसर , एक ठेकेदार आदि शामिल था. इन सबकी जानकारी मैंने तत्कालीन पुलिस अधीक्षक , सहित विभिन्न एजेंसियों को भेजी, आपको भी, सरकार के मंत्रियों को और यूं.पी.ए. के अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी.

माइग्रेशन की जाल और राय का पुलिसिया घिनौना रूप

जब राय के तमाम हथकंडे हम पर विफल रहे तो उन्होंने हमें माइग्रेशन के डंडे से पीटना शुरू किया.हमें अपने पद के दुरुपयोग से तरह-तरह से प्रताड़ित करना शुरू किया. हम आजिज आ चुके थे, हमारे परिवार के लोग डरे हुए थे. हमने राय से एक समझौता किया. हमने उनपर किये गये  व्यक्तिगत केस वापस लिए और उन्होंने हमें माइग्रेशन दिया. इस समझौते में यह भी शामिल था कि विश्वविद्यालय की दूसरी गड़बड़ियों पर हम अपना स्टैंड यथावत रखेंगे. परन्तु राय का इरादा कुछ और था, फर्जी माइग्रेशन निर्गत कर हमारी नकेल अपने हाथ में रखना.

इस बीच हमने विश्विद्यालय के भ्रस्टाचार के खिलाफ अपनी मुहीम जारी रखी, आपको भी लिखा, लिखवाया. सी.ए.जी, यूं.जी. सी, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, प्रधान मंत्री कार्यालय सबको लिखा, लिखवाया. विभिन्न मीडिया माध्यमों से मुहीम जारी रखी .२०११ के अक्तूबर  में इंडिया टुडे में राय के भ्रस्टाचार पर विस्तृत रपट छपी. राय बौखलाए. उन्होंने राजीव सुमन को बुलाकर धमकाया, फर्जी माइग्रेशन की जानकारी दी. तब तक मैं आंबेडकर यूनिवर्सिटी  ऑफ देल्ही में शोधरत था, राजीव हिंदी विश्वविद्यालय का ही छात्र था. हमने इस धमकी के बाद और अपने माइग्रेशन का सत्य जानने के बाद इसके जांच का अनुरोध किया. २५. नवम्बर २०११ को मेरे द्वारा जांच की मांग करते ही  मुझे  राय के मध्यस्थ ‘मनोज राय’ का फोन आना शुरू हुआ. मैंने जांच के लिए कुलाधिपति नामवर सिंह को लिखा. २ जनवरी, २०१२ को आपको लिखे पत्र की प्रतिलिपि  जब मैंने विश्वविद्यालय में रीसिव कराया तो ४ जनवरी को मुझ पर पुलिसिया कुलपति ने अपने पुलिस संपर्क से मुझ पर मुकदमा दर्ज करा दिया. इधर तब तक विश्विद्यालय में ही शोधरत राजीव सुमन ने राय सहित विश्वविद्यालय के चार अधिकारियों के खिलाफ पुलिस में शिकायत की और २ अप्रैल २०१२ को वर्धा के सी.जे.एम कोर्ट ने पुलिस को मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिये.

पुलिस की पुलिसिया कुलपति से मिलीभगत और पुलिसिया षड़यंत्र के नमूने

वर्धा के पुलिस अधीक्षक अविनाश कुमार ( बैच २००७) आई.पी एस हैं और विभूति नारायण राय १९७५ बैच के आई.पी.एस .  राजीव सुमन ने राय के द्वारा ‘फर्जी माइग्रेशन ‘ का तथ्य बताये जाने के बाद अविनाश कुमार से सारी बातें मिलकर बतलाई थी. इसके बावजूद मेरे खिलाफ शिकायत आने पर कुमार ने मेरी तत्काल गिरफ्तारी का आदेश लिखा . मुझे पूछताछ के लिए लगभग १० घंटे तक थाने में बैठाया गया. मुझ पर वर्धा छोड़ जाने का दवाब बनाया गया. वर्धा के न्यायालय से मुझे अंतरिम जमानत मिलने पर कई और कुचक्र रचे गये. जांच अधिकारी ने बिना सबूत के मुझ आरोप लगाया कि मैंने फ़ोन से विश्वविद्यालय के अधिकारी को धमकी दी. यह सब मुझे अग्रिम जमानत न मिलने देने के षड़यंत्र के तौर पर किया गया. जब मैंने उक्त फोन नम्बर के बारे में पूछा तो जांच अधिकारी ने मुझे उल्टा धमकाना शुरू किया.

हाई कोर्ट से अंतरिम जमानत के बाद जांच अधिकारी मेरा बयान लेने के बहाने मेरे परिवार के बारे में जानकारी लेने और अवांतर प्रसंगों में ज्यादा लगा रहा  . इधर एक और कुचक्र रचा गया है, दिल्ली  के किसी  नम्बर से थानेदार  को फोन किया गया है, मेरे नाम  से और उन्हें सी.बी .आई की धमकी दी गई  है, ऐसा थानेदार कुछ लोगों  को स्वयं बता रहे हैं.. फोन नंबरों  के इस खेल  में पुलिस और कुलपति राय के शागिर्द शामिल हैं, इसकी  भी जांच हो तो पता चल जायेगा.

पुलिस और राय की सांठ-गाँठ  का खुलासा  इस तथ्य से भी होता  है कि सी.जे.एम के द्वारा एफ .आई.आर  के आदेश के बाद राय और अन्य अभियुक्तों  ने अपने लिए अग्रिम जमानत के आवेदन  में पुलिस की जम  कर प्रशंसा  की थी. यह अपनी तरह का अलहदा अग्रीम  जमानत आवेदन  है ( जिसे  बाद में वापस ले  लिया गया ) , जिसमें  आवेदनकर्ता पुलिस की प्रशंसा  के कसीदे काढ रहा  हो. इस मामले में राय आदि की अभी  तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है और पुलिस जांच का छद्म रच रही है ताकि अंततः  हमें फंसाया जाय . राय पर एफ,आई.आर है और वे तमाम कागजातों के , फाइलों के पदेन कस्टोडियन हैं, यानी सबूतों को नष्ट करने की स्थिति में हैं, लेकिन पुलिस उनपर कारवाई उचित नहीं समझती है.

इधर राय ने पलट कर राजीव सुमन पर भी एफ .आई.आर  दर्ज करवाया है. पुलिस की मिली -भगत  का सीधा सबूत है कि एफ आई.आर दर्ज होने के 24 घंटे के भीतर  सी.जे.एम को उसकी  जानकारी देने की प्रक्रिया  भी पूरी  नहीं की गई .

पुलिस के द्वारा माइग्रेशन मामले की जांच संभव नहीं

फर्जी माइग्रेशन के मामले में यदि स्वयं  कुलपति शामिल हो तो पुलिस और वह  भी कुलपति से प्रभावित  पुलिस से जांच संभव  नहीं है. इस प्रकरण की  सत्यता के लिए जिन  कागजातों  की जांच करनी  होगी  , उस  तक पुलिस की पहुँच  संभव  नहीं है जब तक कि कुलपति  को बर्खास्त  न किया जाय  या उसे छुट्टी  पर न भेजा जाय . एक उच्च  स्तरीय  जांच ही इस मामले की सत्यता  को सामने ला  सकता है.

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और मानव संसाधन विकास मंत्रालय की संदिग्ध भूमिका

हिंदी विश्वविद्यालय में राय की देख  -रेख  में और उनकी संग्लाग्नता  में होने वाले भ्रस्टाचार, अनियमितताओं  की पूरी  खबर  वि .वि .आयोग  और मानव  संसाधन  विकास मंत्रालय  को है , ऐसा उनके   दस्तावेजों  से स्पष्ट है लेकिन इन संस्थानों  के बड़े अधिकारी जान  बूझ  कर इसकी  खुली  छूट   देते रहे हैं . इस सन्दर्भ में मानव  संसाधन विकास  मंत्रालाय  के स्टैंडिंग  कमिटी के सदस्य  कैप्टन जय नारायण निषाद ने मानीय  मंत्री को लिखा भी है . उनके अलावा कई और  सांसदों  ने लिखा  है , संसद  में  सवाल  खड़े  किये  हैं  , लेकिन  इन  विभागों  की  भूमिका  संदेहास्पद  रही  है .

उच्च स्तरीय जांच की मांग

महामहिम यह कैसी विडम्बना है कि जिस मामले में कुलपति तक पर मुक़दमा दर्ज करने का आदेश कोर्ट ने दिया है उस मामले में दो शोधार्थियों को तंग किया जा रहा है, उनकी जिन्दगी तबाह की जा रही है ! यह सब एक पुलिस सेवा से उच्च शिक्षा के शीर्ष पर बैठे अपराधी मस्तिष्क के व्यक्ति द्वारा किया जा रहा है .

आप से आग्रह है कि इस मामले में उच्च स्तरीय जांच बैठा कर, जो सी.बी. आई स्तर का हो, या एक एस. आई.टी के द्वारा हो, हमारे भविष्य और जीवन की रक्षा की जाय. उक्त जांच का दायरा व्यापक हो. मसलन माइग्रेशन का मामला , हमें दी गई धमकियों के मामले, हमारे द्वारा उठाये गये अवैध डिग्रियों, नियुक्तियों , चोरी से शोध , पुस्तक-लेखन और अन्य भ्रस्टाचार के मामले.

( संजीव कुमार चन्दन )

प्रतिलिपि :

  1. मीडिया/ सोशल मीडिया

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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