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खादी मॉल पहुंचे राज्यसभा के उपसभापति  खादी वस्त्र ही नहीं विचार भी है: हरिवंश

पटना । पूरी दुनिया में मार्केटिंग के तरीके बदल रहे हैं। प्रोडक्ट को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना जरूरी है। खादी सिर्फ वक्त नहीं है बल्कि एक विचार है। इस विचार को भी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाया जाना जरूरी है। पटना के खादी मॉल में पधारे राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने पत्रकारों को कहा कि वरिष्ठ मैनेजमेंट गुरु सीके प्रह्लाद ने मार्केटिंग और प्रोडक्ट की विश्वसनीयता के संबंध में जिन सिद्धांतों का प्रतिपादन किया, उसे खादी मॉल द्वारा अपनाया गया है। इससे अधिक से अधिक लोग खादी से जुड़ेंगे। उन्होंने कहा कि खादी और छोटे उद्योगों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को ताकत मिलती है। ग्रामीण उद्यमियों को राजधानी में बड़ा बाजार उपलब्ध कराने के लिए बिहार सरकार ने खादी मॉल बनाया है जो अपने आप में विशिष्ट है। खादी मॉल के तीनों तल पर भ्रमण करने के बाद पत्रकारों से बातचीत करते हुए हरिवंश ने कहा कि बिहार की हस्तकला और हैंडलूम सारी दुनिया में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। भागलपुर का सिल्क मशहूर है तो मधुबनी और दरभंगा का खादी। बिहार में हजारों ऐसे व्यंजन हैं, जिसे ग्रामीण महिलाएं तैयार करती हैं। आधुनिक औद्योगिक जगत में जिसे फूड प्रोसेसिंग कहा जाता है, ग्रामीण महिलाएं वह कार्य सदियों से करती आ रही हैं। अदौरी, बड़ी पापड़ और अचार ऐसे ही फूड प्रोडक्ट हैं जिसे हमारी दादी और नानी उन महीनों में तैयार करती थी जब उसके कच्चे माल मिला करते थे और फिर उसका सालों उपयोग होता था। इससे पहले बिहार राज्य खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के सीईओ दिलीप कुमार ने राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश का जूट का पुष्पगुच्छ देकर स्वागत किया। हरिवंश ने खादी मॉल स्थित राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा पर माल्यार्पण भी किया। मौके पर बिहार राज्य खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के रमेश चौधरी, अभय सिंह, रिजवान अहमद, राजीव कुमार शर्मा, अजमत अब्बास आदि मौजूद रहे।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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