गुड़िया दुष्कर्म के सॉफ्ट टारगेट बने दिल्ली पुलिस कमिश्नर
विनायक विजेता,
बिहारी होने के कारण निशाने पर हैं नीरज कुमार
बिहार के रोहतास जिले के हैं दिल्ली के पुलिस कमिश्नर
शीला की चली नहीं, वरना पहले ही वह लीला दिखाती
रेप की घटना के बाद से लगातार अभ्यानंद से संपर्क में थे नीरज।
दिल्ली के गांधी नगर इलाके में एक पांच वर्षीया मासूम गुडिया से हुए दुष्कर्म मामले में दिल्ली के पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार को हटाए जाने की मांग कोई अचानक उठी मांग नहीं बल्कि उनके खिलाफ पूर्व से चली आ रही एक पूर्व सुनियोजित साजिश है। दिल्ली सरकार को कभी भी किसी बिहारी का दिल्ली के पुलिस कमिश्नर पद पर बैठना अच्छा नहीं लगा चाहे वह नीरज कुमार हों या कई वर्ष पूर्व वहां के पुलिस कमिश्नर रह चुके नीखिल कुमार हों। नीरज कुमार जब से दिल्ली पुलिस के कमिश्नर बने तब ही से वह वहां की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और उनके बेटे की आंखों में खटकते रहे। चुंकि दिल्ली पुलिस केन्द्र सरकार के गूह मंत्रालय के अधीन है इसलिए शीला और उनकी सरकार द्वारा इस ईमानदार अधिकारी के खिलाफ रची जा रही साजिश नाकाम होती गई। गुडिया मामले को लेकर शीला सरकार को नीरज कुमार के खिलाफ फिर से एक मुद्दा मिल गया हो सकता है। किसी सिपाही के द्वारा पीड़िता के पिता को 2000 रुपये देने की बात और इसकी जिम्मेवारी भी नीरज कुमार पर लगाना किसी के गले नहीं उतर रहा । दिल्ली की मुख्यमंत्री इस मुद्दे को आधार बना एक ईमानदार और अपने काम के प्रति सख्त आईपीएस अधिकारी को उनके पद से हटाने में कामयाब हो जाए। मूल रुप से बिहार के निवासी नीरज कुमार 1976 बैच के केन्द्र शासित प्रदेश कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं। अपने कामों के साथ कला और संस्कृति में गहरी रुचि रखने वाले नीरज कुमार ने ही 80 के दशक में दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले लोकप्रिय धारावाहिक ‘मुंगेरी लाल के हसीन सपने’ की पटकथा (स्क्रीप्ट) लिखी थी। प्रकाश झा द्वारा निर्देशित यह धारावाहिक काफी चर्चित हुई थी। जहां तक दिल्ली में दुष्कर्म का मामला है बताया जाता है कि इस मामले में दिल्ली पुलिस के आयुक्त को जैसे ही यह पता चला कि आरोपित बिहार का है उन्होंने व्यक्त्गित रुप से बिहार के पुलिस प्रमुख अभ्यानंद से टेलीफोन पर संपर्क कर बिहार पुलिस का सहयोग मांगा। नीरज कुमार लगातार तबतक बिहार के डीजीपी के संपर्क में रहे जबतक आरोपित मनोज की मुजफ्फरपुर के चिकनौटा स्थित ससुराल से उसकी गिरफ्तारी नहीं हो गई। इस मामले में बिहार को बदनाम करने के बजाए देशवासियों को तो बिहार के उन अधिकारियों पर गर्व होना चाहिए जिन्होंने बिहार या बिहार से बाहर रहते हुए आरोपित को फरार होने का मौका दिए बिना उसकी त्वरित गिरफ्तारी कर मिशाल पेश किया। किसी भी राज्य की पुलिस हर घर में सुरक्षा प्रहरी बन कर न खडा हो सकती है और न ही इस तरह की घटनाओं को रोक सकती है क्योंकि दुष्कर्मीयों का न तो कोई जात होता है न ही उनके लिए कोई समाज। ऐसे मामले को लेकर पुलिस और सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन तो कुछ हद तक जायज है पर विरोध के साथ आत्म-मंथन और चिंतन के साथ बच्चों को प्रारंभ से ही सामाजिक संस्कार का पाठ पढाना भी जरुरी। जिस देश में अभिाभावक बच्चों के दूध पीने के उम्र से ही उसे मोबाइल और नेट सुविधायुक्त कम्प्यूटर थमा दे रहे हैं और टीवी और चैनलों पर परोसे जा रहे अश्लीलता पर सरकार लगाम नहीं लगा पाती हो, तो वहां और कई दामिनी के दामन के दागदार और अनेकों गुडिया के गुनहगार मिलेंगे और दिखेंगे ही।