पश्चिम बंग हिंदी अकादमी के 38 सदस्यों की सूची में 20 ब्राह्मण

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पश्चिम बंग हिंदी अकादमी के पुनर्गठन को लेकर डॉ. अशोक सिंह प्रवक्ता,हिंदी विभाग, सुरेन्द्रनाथ सांध्य कालेज, ने बुद्धदेव भटाचार्य को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में अपने इस्तीफे की पेशकश करते हुये उन्होंने कुछ  असहज करने वाले तथ्यों की ओर भी इशारा किया है। इस पत्र को हम पूरी तरह से पोस्ट कर रहे हैं।                          

 श्री बुद्धदेव भटाचार्य                          दिनांक: 25 नवंबर 2010

मुख्यमंत्री

पश्चिम बंगाल सरकार

राइटर्स बिल्डिंग, कोलकाता

 विषय: पश्चिम बंग हिंदी अकादमी का पुनर्गठन और साधारण परिषद की सदस्यता से इस्तीफा

 आदरणीय मुख्यमंत्री जी,

          18 नवंबर 2010 को पश्चिम बंगाल सरकार के सूचना और संस्कृति विभाग की ओर से पश्चिम बंग हिंदी अकादमी के पुनर्गठन की लिखित सूचना अकादमी के एक कर्मचारी के माध्यम से सुरेन्द्रनाथ सांध्य कालेज, कोलकाता में मिली| पश्चिम बंग हिंदी अकादमी की 41 सदस्यीय साधारण परिषद में 29 वें स्थान पर मेरा नाम था| 15 सदस्यों वाली गवर्निंग बॉडी के सदस्यों की सूची थी| No.2864/1(28)-ICA के इस सरकारी NOTIFICATION की तारीख 2 नवंबर 2010 थी|

कोलकाता से प्रकाशित हिंदी दैनिक ‘सन्मार्ग’ में पश्चिम बंगाल सरकार के सूचना और संस्कृति विभाग के राज्य मंत्री श्री सोमेन्द्रनाथ बेरा ने एक साक्षात्कार में पश्चिम बंग हिंदी अकादमी के शीघ्र पुनर्गठन के बारे में कहा था| लेकिन आश्चर्य की बात है कि 2 नवंबर 2010 को NOTIFICATION जारी होने के बाद सरकारी स्तर पर इसकी घोषणा नहीं की गई| 18 नवंबर 2010 के पहले किसी भी सदस्य को सूचना नहीं मिली| 19,20,21 और 22 नवंबर 2010 के कोलकाता के समाचार पत्र ‘दैनिक जागरण’ में प्रकाशित नवगठित साधारण परिषद के सदस्यों श्रीमती उषा गांगुली, डॉ.शम्भुनाथ, डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र जैसे राष्ट्रीय साहित्यिक सांस्कृतिक व्यक्तित्व ने कहा कि अकादमी में उनकी सहमति लिए बिना नाम दिया गया और अभी तक उन्हें कोई लिखित सूचना नहीं मिली|

अकादमी की साधारण परिषद में सूचना और संस्कृति विभाग के तीन अधिकारियों को छोड़कर 38 सदस्यों की सूची में 20 ब्राह्मण हैं| पश्चिम बंगाल की वाममोर्चा सरकार के सूचना और संस्कृति विभाग की हिंदी अकादमी में मार्क्सवाद का ब्राह्मणवाद में बदल जाना बेहद चिंताजनक है| हिंदी में उच्च शिक्षा के स्तर पर काबिज शिक्षा माफिया ने पहले से ही मार्क्सवाद को ब्राह्मणवाद में बदल दिया है| पश्चिम बंग हिंदी अकादमी पश्चिम बंगाल में रह रहे हिंदीभाषियों के सांस्कृतिक स्वाभिमान का प्रतीक है| नवगठित अकादमी के साधारण परिषद की सूची ने पश्चिम बंगाल के हिंदीभाषियों के स्वाभिमान को अपमानित किया है| पश्चिम बंगाल की हिंदी अकादमी पूरे देश के लोगों के सामने एक उदहारण पेश कर सकती थी लेकिन कवि सुकांत भट्टाचार्य के भतीजे और साहित्यकार मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति ने निराशा भर दी है|

अहिन्दीभाषी प्रदेशों में पहली बार साहित्य अकादमी से सम्मानित कथाकार कोलकाता की श्रीमती अलका सरावगी , कोलकाता कारपोरेशन द्वारा इसी वर्ष टाउन हॉल में नागरिक अभिनन्दन से सम्मानित किये गये हिंदी के पहले साहित्यकार वरिष्ठ कवि ध्रुवदेव मिश्र ‘पाषाण’, नाट्य शोध संस्थान की संस्थापक राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त डॉ. प्रतिभा अग्रवाल, मीडिया लेखन में हिंदी के सबसे प्रतिष्ठित लेखक डॉ. जगदीश्वर चतुर्वेदी, प्रख्यात कथाकार मधु कांकरिया, नुक्कड़ नाटक में अविस्मरणीय महेश जायसवाल, राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवि एकांत श्रीवास्तव, वरिष्ठ कथाकार अनय, वरिष्ठ कवि आलोक शर्मा, वरिष्ठ कवि नवल, हिंदी में दुष्यंत कुमार की गज़ल परंपरा को बढ़ाने वाले नूर मोहम्मद नूर, शब्द कर्म विमर्श के संपादक हितेंद्र पटेल, ‘काव्यम’ पत्रिका के संपादक प्रभात पाण्डेय, कवियत्री डॉ.नीलम सिंह, बंगाल के हिंदी रंगमंच का गर्व निर्देशक अज़हर आलम का नाम नवगठित हिंदी अकादमी में शामिल नहीं है| इससे मालूम होता है कि पश्चिम बंगाल सरकार के सूचना और संस्कृति विभाग को पश्चिम बंगाल में हिंदी भाषा ,साहित्य और संस्कृति के बारे में कोई जानकारी नहीं है| साधारण परिषद में उर्दू के वरिष्ठ पत्रकार सांसद ए.एस.मलीहाबादी और वयोवृद्ध लेखक सालिक लखनवी को किस आधार पर शामिल किया गया है ? क्या उर्दू अकादमी में भी हिंदी लेखकों को स्थान दिया गया है ?                                                                           

वाममोर्चा सरकार के 34 वर्षों के शासन में इस राज्य के हिंदीभाषी  अपने को अपमानित और ठगा महसूस कर रहे हैं | दुनिया बदल देने के दर्शन में विश्वास करनेवाली, संसदीय लोकतंत्र में विश्व रिकॉर्ड बनाने वाली मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार को सिर्फ हिंदी में प्रश्न पत्र देने में 32 वर्ष लग गये| सूचना और संस्कृति विभाग की ओर से प्रकाशित पश्चिम बंगाल पत्रिका के पूरे बंगाल में दर्शन नहीं होते|

माननीय मुख्यमंत्री जी, इस राज्य के हिंदीभाषियों का दुर्भाग्य है कि आज तक वाममोर्चा के किसी भी मुख्यमंत्री ने हिंदीभाषी समाज से संवाद करने की कोशिश नहीं की| 1997 में कलकत्ता सूचना केन्द्र में हिंदी के लेखकों, बुद्धिजीवियों और संस्कृति कर्मियों से एक मुलाक़ात में आपने हिंदी अकादमी के अस्तित्व पर सवाल उठाते हुए कहा था कि हिंदी अकादमी का गठन करने वालों ने आपको सूचित नहीं किया था| तब हिंदी अकादमी उच्च शिक्षा विभाग के अंतर्गत थी| तब आपने वचन दिया था कि आप प्रत्येक वर्ष हिंदीभाषी बौद्धिकों से संवाद बनायेंगे|जो संस्थाए और व्यक्ति कार्य कर रहे हैं उनको लेकर हिंदी अकादमी की कमिटी बनाने का आपने वचन दिया था | लेकिन लगता है कि आप अपने वायदे को भूल गये|

मुख्यमंत्री जी, 34 वर्षों में वाममोर्चा की सरकार ने शिक्षा एवं संस्कृति के क्षेत्र में बंगाल के हिंदीभाषियों को उनके अधिकारों से वंचित रखा| राज्य में करीब 15% अर्थात एक करोड़ बीस लाख हिंदीभाषियों की जनसंख्या है| 34 वर्षों में 5 वर्षों को छोड़ दें तो 29 वर्ष तक आप सूचना और संस्कृति विभाग के मंत्री रहे| इन वर्षों में बजट में आंबटित राशि में कितना प्रतिशत इस राज्य के हिंदीभाषियों के सांस्कृतिक विकास पर खर्च किया गया ? इस राज्य में एक भी हिंदी माध्यम का सरकारी स्कूल नहीं है| इस राज्य में हिंदीभाषी लड़कियों के लिए एक भी ‘गर्ल्स हास्टल’ नहीं है| सूचना और संस्कृति विभाग के अंतर्गत शिशु किशोर अकादमी बनायीं गई है| उसमे हिंदीभाषी शिशु-किशोरों के लिए कोई जगह नहीं है| युवा कल्याण विभाग द्वारा आयोजित युवा छात्र उत्सव आयोजित करते समय राज्य सरकार (1999 को छोड़कर) प्रतिवर्ष हिंदीभाषी युवा छात्रों को भूल जाती है| 1999 में सांसद मोहम्मद सलीम की पहल पर पहली बार ‘युवा छात्र उत्सव’ में हिंदीभाषियों के लिए प्रतियोगिताएं आयोजित की गई थी|

लोकतंत्र की सार्थकता भाषाई एवं धार्मिक अल्पसंख्यकों के समान विकास पर होती है| रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट में भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए की गई सिफारिशों पर पश्चिम बंगाल सरकार अभी तक खामोश क्यों है ?

देश की आज़ादी को भारतीय सिनेमा के जीनियस ऋत्विक घटक ने अपनी पहली फिल्म नागरिक में एक नागरिक के रूप में देखा था| उनकी मृत्यु के बाद यह फिल्म प्रदर्शित हुई थी | पश्चिम बंगाल के एक नागरिक की हैसियत से मैं यह महसूस करता हूँ कि पश्चिम बंगाल की वाममोर्चा सरकार राज्य के हिंदीभाषियों में लोकतंत्र के प्रति अभी तक विश्वास पैदा नहीं कर सकी है | अगले पाँच महीनों के बाद राज्य में विधान सभा चुनाव है| चुनाव के पहले हिंदी अकादमी का पुनर्गठन सरकार की नीयत पर प्रश्न चिन्ह पैदा करता है|

पश्चिम बंगाल के एक नागरिक की हैसियत से मैं अपने आप को अपमानित महसूस करता हूँ| इसके प्रतिवाद में मैं पश्चिम बंग हिंदी अकादमी की साधारण परिषद की सदस्यता से इस्तीफा देता हूँ| आप अकादमी के अध्यक्ष हैं इसलिए यह पत्र आपको लिखा है|

 आपका विश्वसनीय

डॉ. अशोक सिंह ( 9830867059)

प्रवक्ता,हिंदी विभाग, सुरेन्द्रनाथ सांध्य कालेज,24/2, महात्मा गांधी रोड,कोलकाता-700009                          

 

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