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छल-कपट व वंशवाद में बिखर गये जेपी के सपने

अविनाश नंदन शर्मा

अविनाश नंदन शर्मा, नई दिल्ली

बदलती भारतीय राजनीति की तस्वीर में कांग्रेस का उत्थान पतन भी अपने आप में अजीबो गरीब कहानी है। वास्तव में आजादी के बाद कांग्रेस की एक राजनीतिक दल के रूप में जवाहरलाल नेहरू ने नींव रखी थी, जो महात्मा गांधी के  उन विचारों के बिल्कुल विपरित था जिसे व्यक्त करते हुये वे कहते थे कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को आजादी मिलने के बाद भंग कर देना चाहिए। नेहरू यह अच्छी तरह  जानते थे कि अब कांग्रेस एक आंदोलन नहीं बल्कि सत्ता का केंद्र है, जो भारतीय जनमानस को अपने तरीके से संचालित करेगा।

यह सच है कि कांग्रेस की आगोश में पूरा देश आ गया। जवाहरलाल नेहरू दो बार देश के प्रधानमंत्री बने और पूरा देश उनमें आजादी के संघर्ष की छवि देख रहा था। बदलाव के क्रम में इंदिरा का नेहरू वंश के उत्तराधिकारी के रूप में उदय हुआ। फिर देश ने एक लौह स्त्री को समर्थन दिया और इंदिरा ने एक नई राजनीति के नाम पर भारतीय जनतंत्र को ही बंधक बना लिया। इमरजेंसी का नंगा नाच हुआ और जेपी जैसे वयोवृद्ध नेता पर लाठियां चलीं । कांग्रेस के इस नये रूप पर सारा देश हतप्रभ था। विरोध का एक सिलसिला चल पड़ा। जनता की अस्वीकृति को कांग्रेस ने स्वीकार किया, पर जनता पार्टी में आग लग गई। जेपी ने सत्ता पर बैठने से इंकार कर दिया। जनता पार्टी में सत्ता के लिए घमासान मच गया। केंद्र में कांग्रेस विरोधी दलों की सरकार तो बनी लेकिन अपनी आपसी उलझनों के साथ सरकार गिर गई और नेता बिखर गये। जेपी के बुने हुये तानेबाने को मुरारजी देसाई बनाये हुये नहीं रख पाये।

कांग्रेस विरोधी दलों को एक मौका वीपी सिंह के नेतृत्व में मिला पर मंडल के घेरे में फंसकर सरकार ने यह संदेश दिया कि इसकी पोटली में सिर्फ यही है। वीपी सिंह सरकार का पिटारा खाली हो गया, पर उस पिटारे से निकले मंडल राग ने पूरे देश में पिछड़ी राजनीति की हवा बहा दी। इस हवा में लालू मूलायम और रामविलास सरीखे नेता राजनीतिक ऊंचाई छूने लगे। जनता ने न सिर्फ इन्हें सत्ता के शीर्ष पर पहुंचा दिया, बल्कि इनसे भावनात्मक रूप से जुड़ गई। पर सच तो यह है कि निजी स्वार्थ से संचालित इन नेताओं ने जन भावनाओं को सिर्फ मोहरा बनाया। सत्ता के मद में चूर लाठी और डंडे की राजनीति करने लगे। लोगों को विश्वास दिलाया कि वे आम आदमी के राजनीतिक प्रतिनिधि हैं। आम जनता में सामाजिक बदलाव की आशा जगी। सामाजिक जीवन में जो विषमता की सोच थी और जो आर्थिक विषमता का दर्द था उस पर मरहम लगाने वाले राजनीतिक नेतृत्व की तलाश में जनता ने जेपी आंदोलन से निकले व्यक्तियों को बड़ी आशा से चुना और उनके पक्ष में संघर्ष का वातावरण बनाया। पर इन नेताओं ने राजनीतिक नेतृत्व का परिवर्तनवादी झांसा देकर सत्ता का वह स्वरूप पेश किया जो दंभ और यथास्थितिवाद का बड़ा वीभत्स रूप था। ये आस्तीन के सांप निकलें जिन्होंने जनता को ही डस लिया।

आज कांग्रेस का उत्थान इसलिए नहीं हो रहा है कि लोगों का कांग्रेस के प्रति लगाव बढ़ा है, बल्कि ये लोग जेपी आंदोलन से निकले नेताओं के छल कपट और वंशवादी प्रवृति के शिकार हुये हैं। जनता ने सोचा कि जब वंशवाद को ही समर्थन देना है तो कांग्रेस से अच्छा कौन है। कांग्रेस को मासूम युवाओं का भी समर्थन मिला, जो यह समझते हैं कि राहुल गांधी व्यवहार में नम्र और दिखने में अच्छे हैं।

कांग्रेस की पूरी टीम जननेताओं से विहीन है। कांग्रेस ने पढ़े-लिखे लोगों की टीम तैयार की है, क्योंकि उसे पता है कि जनता को आकर्षित करने के लिए नेहरू परिवार ही काफी है। आज हर तरफ कांग्रेस पार्टी का गुणगान हो रहा है। जनता भी चुप है। कांग्रेस को मुखर नहीं जनता का मौन समर्थन प्राप्त है।

वास्तव में आज जनता के पास विकल्प नहीं है। अब लोग सामाजिक परिर्वतन और सामाजिक न्याय जैसे सपनों को बेचकर एक सहज विकास के लिए कांग्रेस को वोट दे रहे हैं। इसे कहते हैं व्यवहारिक राजनीति। कांग्रेस को दिया जाने वाला समर्थन छल कपट की राजनीति का विरोध है।

 (अविनाश नंदन शर्मा सुप्रीम कोर्ट में वकालत कर रहे हैं)

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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