सम्पादकीय पड़ताल

जंगल राज का सिक्का आखिर कब तक !

अनिता गौतम

बिहार विधान सभा चुनाव में चुनाव पूर्व यह बात तय हो चुकी थी कि महागठबंधन के आकड़े चाहे किसी की भी पार्टी के हो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे । फिर जब बिहार में महागठबंधन की सरकारी बनी, तो ये उम्मीद की जा रही थी कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू प्रसाद संकटमोचक या पितामह की भूमिका अदा करेंगे। चूंकि लालू प्रसाद के दोनों बेटे तेजप्रताप और तेजस्वी यादव में भी जनता ने अपनी आस्था जतायी तो सबसे ज्यादा सीट लाने वाली पार्टी राजद के मंत्रियों में दोनों का नाम सुमार हो गया। जाहिर है सहयोगी और सबसे बड़ी पार्टी होने की वजह से राजद से लालू प्रसाद के छोटे बेटे तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री का पद भी मिला। तेजस्वी यादव कई दफा अपनी आस्था नीतीश कुमार में जता चुके है। अमूमन हर साक्षात्कार या मीडिया के सामने कई दफा उन्होंने अपनी यह बात दोहराई है कि मैं नीतीश कुमार के मुख्यमंत्रित्व में बहुत खुश हूं और मुझे सीखने का मौका मिल रहा है। अब एक बहुमत से चुनी हुई सरकार बिहार में चल रही है तो जाहिर है कि विपक्ष के चुनावी मुद्दों और महागठबंधन पर लगाये गये तमाम आरोपों को जनता नकार चुकी है। फिर विपक्ष के सारे हथकंड़े जब बेमानी हो गये हैं तब भी उनके जंगल राज का पुराना राग अभी बाकी है।

कभी  सरकारी कामकाज में हस्तक्षेप करने का आरोप लालू प्रसाद पर लगा रहे है, तो कभी राज्य में होने वाली हत्याओं के आकड़े पेश कर जनता को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि बिहार में भय और दहशत का माहौल कायम है। साथ ही बिहार में कानून औऱ व्यवस्था की स्थिति नब्बे के दशक से भी बदतर होने की बात विपक्ष लगातार बताने की कोशिश कर रहा है। विधान सभा के अंदर और बाहर विपक्ष सिर्फ एक ही राग अलाप रहा है। जबकि राजद के तमाम राजनेता इसे यह कह कर खारिज कर चुके हैं कि बिहार ही क्यूं दूसरे राज्य भी इस तरह की आपराधिक घटनाओं से अछूते नहीं है। राबड़ी देवी ने तो इस तरह की घटनाओं के लिए केन्द्र सरकार को ही जिम्मेवार ठहरा दिया।

जाहिर है बिहार विधान सभा चुनाव में चौतरफा मुंह की खाने के बाद मुद्दाविहीन विपक्ष के पास और कोई मुद्दा बाकी नहीं रहा है, जबकि जंगल राज के चुनावी नारे को पूरी तरह से नकार चुंकी जनता नीतीश और लालू में अपना भरोसा पहले ही जता चुकी  है।

बहरहाल कमजोर विपक्ष आज भी उसी विषय पर अटका हुआ है। कानून व्यवस्था की दुहाई देकर कभी लोजपा राष्ट्र पति शासन की मांग करती हैं तो कभी भाजपा के नेता ट्वीटर और सोशल साइट्स के माध्यम से बिहार की जनता के मूड को समझने का दावा करते हैं।

अब सवाल यह है कि दो तिहाई बहुतमत से चुनी हुई सरकार को बार बार एक ही मुद्दे पर कटघरे में खड़ा करना कितना जायज है। कमजोर विपक्ष तो सभी को दिख रहा है पर इस तरह से मुद्दा विहीन विपक्ष की कल्पना कम से कम बिहार वासियों ने नहीं की है।

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