लिटरेचर लव

जग को जीता आपने (कविता)

Suman Sinha

सुमन सिन्हा//

मेरा मौन ही तुम्हे मेरी श्रद्धांजलि है .
शब्द नहीं जुट रहे ,
बिखर गए सारे ….
तीन दिनों से इसी कोशिश में हूँ ,
ये खालीपन कैसे बयां करूँ….
खामोश हो गया हो सब कुछ जैसे.

सन्नाटा गूंज रहा हरसू…

……घुल गयी हवाओं में पुरज़ोर उदासी ,
स्याह हो गया है वो सुरों का सतरंगा आसमान..
आँखें छलकती हुई सी बस देखती रह गयीं ,
तुम्हारा आकस्मिक ,निर्मम सा चिर-प्रस्थान…

भारी मन से , भरी पलकों से
जब दे रही थी तुम्हे विदाई ,
तभी सन्नाटे को चीरती हुई एक आवाज़
दूर कहीं से आयी….

” ए खुदा रेत के सहरा को समंदर कर दे….
या छलकती हुई आँखों को भी पत्थर कर दे….”

……..और तभी महसूस किया हमने ,
जी रहे हो तुम
ऐसी अनगिनत स्वर-लहरियों में..
हर कण में हो, गोशे-गोशे में हो मौजूद तुम…
…..उस सोज़ को कैद कर लिया है हमने अपने दिलों में…
हे सुर-सम्राट तुम्हे शत-शत बार मेरा नमन..
तुम्हें शत-शत बार मेरा नमन…

***

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

Related Articles

3 Comments

  1. jagjit singh ji abhi jaha kahi v ho is kavita se ek bar ji uthenge. meri aur se bhi unhe shat-shat naman .(Great poem).

  2. ए खुदा रेत के सहरा को समंदर कर दे….
    या छलकती हुई आँखों को भी पत्थर कर दे….”
    wah likhi hai aapne jagjit singh nay jag ko jita aap jit li es duniya ki sanvednao ko

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button