हार्ड हिट

टीम इंडिया पर देश की जनत्ता का कर्ज है

 

 

क्रिकेट का खेल  दुनिया में नाम कमाने का एक मजबूत आधार बनता रहा है। इस खेल से बड़ी – बड़ी हस्तियों के नाम जुड़े हुए हैं। वास्तव में फिल्म और राजनीति की तरह क्रिकेट के खिलाड़ी ऐतिहासिक भूमिका का निर्वाह कर हैं। इतिहास रचना की ताकत इस खेल के पास है क्योंकि इसके पीछे देश का विशाल जन-समुदाय खड़ा है। एक सफल क्रिकेट खिलाड़ी अपनी जिंदगी में बेसुमार दौलत और शोहरत कमाता है। इतिहास रचना के साथ दौलत और शोहरत की ऊचाई छू रहे टीम इंडिया के सभी खिलाड़ियों को जश्न में यह नहीं भूल जाना चाहिए की उनकी जिंदगी के इस ऊंचे मूल्य के पीछे गरीबी, बेरोजगारी ,भ्रष्टाचार और आम जीवन की कठिनाइयों को झेलती कड़ोरों लोगों की चाहत और उनका भावनात्मक जुड़ाव काम कर रहा है।

सबसे मजे की बात तो यह है कि क्रिकेट के चौके-छक्कों पर राजनीति की दुनिया उछलती रही। क्रिकेट का यह विश्व कप राजनीति के दिग्गजों को सहज रुप से खींचता रहा। सोनिया गांधी और उनके परिवार से लेकर भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक क्रिकेट के मैदान पर दिखे। इस खेल को जो जन-समर्थन मिला हुआ है वह राजनीतिज्ञों तक को आश्चर्य में डाल रहा है जो विशेषरुप से लालकृष्ण आडवानी के इस बयान से दिखता है कि मैं 1957 से सक्रीय राजनीति में हूं लेकिन लोगों में ऐसा उत्साह और भावनात्मक खुशी का माहौल मैने पहले नहीं देखा है।

क्या क्रिकेट की यह खुशी सिर्फ क्रिकेट की खुशी है? क्या बैट और बॉल के नाचने पर लोग खुश हो रहे हैं? वास्तव में यह क्रिकेट से अभिव्यक्त हो रही देशभक्ति की लहर है। क्रिकेट में भी राष्ट्र का सवाल है। देश की प्रतिष्ठा दांव पर लग जाती है। देश का संघर्ष दांव पर लगा रहता है। कहीं न कहीं खेल-भावना के साथ राष्ट्रीयता की भावना जुड़ी है और यही भावना इन खिलाड़ियों को बुलंदियों की ऊचाई पर पहुंचा रही है। आज देश को क्रिकेट का ताज पहनाने वाले खिलाड़ियों को पैसे से तौला जा रहा है। करोड़ों करोड़ रुपए खिलाड़ियों को देने की घोषणा की जा रही है। केंद्र और राज्य सरकारें इन घोषनाओं से अपनी राजनीति चमकानें में लगी हुई हैं। खिलाड़ियों की सतत् मेहनत, लगन और आखिरकार सफलता का रिवार्ड पैसे की बरसात नहीं है। इस विजय को व्यपार में पूरी तरह तब्दील करने की कोशिश भारतीय राजनीति की मूढ़ता को दर्शाता है। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित गर्वभाव के साथ कह रहीं है कि धोनी को दो कड़ोर और दिल्ली के खिलाड़ियों को एक-एक कड़ोर सरकार देगी। पैसे के इस नाच से अच्छा है कि देश के कोने-कोने में क्रिकेट ऐकेडमी स्थापित करने की घोषना हो ताकि ग्रामीण क्षेत्र और छोटे कस्बों के बच्चे इस खेल की राष्ट्रीय प्रक्रिया से जुड़ सकें और एक अच्छा प्रशिक्षण प्राप्त करें। पैसों की यह अंधी घोषणा जनता की राष्ट्रीय भावना पर आघात और मजाक है।

खिलाड़ी खूब खुशी मनाएं और उनको सरकार की तरफ से पूरा सम्मान भी मिले। वे एड से भी पैसे बनाएं लेकिन जन-भावना को समझें और इस बात को महसूस करें कि उनके उपर भी इस देश की जनता का कर्ज है और वे भी लोगों के प्रति उत्तरदायी हैं।आज पूरा देश और दुनिया एक बहुत ही रोचक समय के दौर से गुजर रहा है जिसमें एक राजनीतिज्ञ से लेकर फिल्म स्टार और क्रिकेटर तक देश के शहंशाह बन रहे हैं। वर्ग,जाति और व्यक्ति विशेष का वर्चश्व टूट रहा है इसलिए सभी को अपने सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वाह करना होगा और यह कर्तव्य उत्तरदायित्व में बदल जाता है जब जनता की चाहत आपसे जुड़ जाती है।

टीम इंडिया की इस ऐतिहासिक जीत पर देश का आवाम झूम रहा है। चाहे अनचाहे उसके पैर थिरक रहे हैं और राष्ट्रीय भावना सर चढ़ कर बोल रही है। यह विजय इस बात का भी प्रतीक है कि लगन, मेहनत और समर्पण रंग लाती है। धोनी की शालीनता और सचिन का समर्पण लंबे समय तक नई पीढ़ी को प्रेरणा देते रहेंगे । कहा जा रहा है कि 22 साल से सचिन भारत के लिए विश्व कप खिताब जीतने का सपना ढो रहे थे इसलिए अन्य  सभी खिलाड़ियों ने मिलकर जीत के बाद उनको अपने कंधों पर बैठा कर पूरे मैदान का चक्कर लगाया।

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3 Comments

  1. You are right. राष्ट्रीयता , देशभक्ति एवं एकता और भाइचारे का इससे बेहतर मंच हो ही नहीं सकता ।

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