तीसरा आदमी (व्यंग)
इष्टदेव सांस्कृत्यायन
आज ही ख़बर देखी ‘हर तीसरा भारतीय भ्रष्ट’. केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त, भगवान जाने यह क्या होता है। इस खबर के पहले तक तो मुझे पता भी नहीं था। क्योंकि देश में न तो मैंने कोई सतर्कता होते देखी और न सतर्कता के चलते कोई दुर्घटना या भ्रष्टाचार रुकते देखा। जहां जो होना होता है, वह हो ही जाता है। अगर कुछ नहीं होता तो यह या करना चाहने वाली की हुनर या फिर उसकी इच्छाशक्ति में कमी की वजह से होता है। हम शुरू से मानते आ रहे हैं कि जो हो जाता है वह ईश्वर की इच्छा से होता है और जो नहीं होता है, वह इसीलिए नहीं होता क्योंकि ईश्वर की इच्छा नहीं होती। हम शुरू से मानते हैं कि ईश्वर की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। इसीलिए हम यह भी मानते आए हैं कि सरकारी दफ्तर में बाबू या साहब अगर आपसे रिश्वत ले लें तो वह भगवान मर्जी है। लेकर काम कर दें तो वह भी भगवान की मर्जी और लेकर भी न करें तो वह भी भगवान की मर्जी। भगवान ने किसी सरकारी दफ्तर में बाबू, साहब या चपरासी बनाया हो और घूस न ले, ऐसी कोताही तो वह किसी क़ीमत पर बर्दाश्त नहीं कर सकते। इसीलिए ऐसे लोगों को सरकारी दफ्तरों से जल्दी ही एग्ज़िट का गेट दिखा दिया जाता है और अगर उन्हें रह भी जाने दिया गया तो बेचारे विषुवत रेखा के वासी की तरह नित हांफ-हांफ कर जीने के लिए मजबूर होते हैं।
बहरहाल, आज ही मालूम हुआ कि मेरे भारत महान में सतर्कता चाहे हो या न हो, लेकिन केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त का पद है। पता नहीं क्यों, मुझे ऐसा लग रहा है कि यह पद भी सरकारी है और सरकार में भी यह कोई बड़ा पद है। कुछ-कुछ वैसे ही जैसे टीएन शेषन के ज़माने में चुनाव आयुक्त का पद हो गया था। यह अलग बात है कि उनके पहले तक आम भारतीय को इस पद के बारे में कुछ मालूम ही नहीं था। यह अच्छी बात रही कि बाद में भी कुछ लोगों ने इस पद के बड़े होने की लाज रखने की कोशिश की। सतर्कता आयुक्त जैसे पद के बारे में आज मुझे मालूम भी हुआ तो ऐसे वक़्त पर जबकि बेचारे वे वाले आयुक्त जी सेवा से निवृत्त हो गए, जिन्होने अभी यह बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि हर तीसरा भारतीय भ्रष्ट है और बाक़ी जो बचे हैं वे भी भ्रष्ट बनने की कगार पर खड़े हैं।
जब से मैंने यह पढ़ा है, मैं लगातार एक ही बात सोच रहा हूं। वह यह कि यह तीसरा भारतीय कौन है। क़रीब दो दशक पहले तक तो भारत को तीसरी दुनिया का देश माना जाता था, अब पता नहीं यह कौन सी दुनिया में चला गया है। अगर बात दुनिया के लेवल पर की जाए तब तो शायद पूरा देश ही भ्रष्ट निकले। लेकिन नहीं, उन्होंने भारतीय की बात की है, यानी मामला अंतरराष्ट्रीय नहीं, अंतर्राष्ट्रीय है। अब चूंकि मामला देश के भीतर का है तो इसके लिए इंटरपोल की मदद लेने की ज़रूरत भी नहीं है। अपने स्तर पर ही पूरी छानबीन करनी होगी और छानबीन करके यह तय करना होगा कि आख़िर वह तीसरा आदमी है कौन। वैसे इस तीसरे आदमी की खोज भारत में बहुत पहले से चली आ रही है। कुछ साल पहले अपने देश में हिन्दी के एक कवि हुए धूमिल। वह इस तीसरे आदमी को लेकर बहुत परेशान हुए। उन्होंने कहीं लिखा है, “एक आदमी/ रोटी बेलता है/ एक आदमी रोटी खाता है/ एक तीसरा आदमी भी है/ जो न रोटी बेलता है ,न रोटी खाता है।/ वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है /
मै पूछता हूँ -/ यह तीसरा आदमी कौन है ?/ मेरे देश की संसद मौन है ।” दुर्भाग्य की बात यह है कि बेचारे धूमिल जी सिर्फ़ पूछते ही रह गए और पूछते ही पूछते दुनिया से चले भी गए, पर बता नहीं पाए। बताने का काम उन्होंने संसद पर छोड़ दिया और संसद इस मसले पर मौन रह गई।
मैं सोच रहा था कि मैं भी यह सवाल संसद से ही पूछ कर देखूं, पर तब तक सलाहू ने एक ज़्यादा टेढ़ा सवाल पूछ कर मामला बिगाड़ दिया। उसका कहना है, “तुम क्या सोचते हो, तुम्हारे जैसे सिरफिरों के ऐरे-गैरे सवालों के जवाब देने के लिए संसद चल रही है? तुम्हें क्या लगता है, संसद मुफ़्त में चलती है? संसद का एक मिनट का रनिंग कॉस्ट ही करोड़ों रुपये आता है और मंदी के नाते यह दौर-ए-कॉस्ट कटिंग चल रहा है। इस दौर में उन्हीं सवालों के जवाब दिए जाते हैं जिनसे संसद यानी उसके सदस्यों के पास पैसे आते हैं। वे सवाल उठाये ही नहीं जा सकते, जिनके पीछे लक्ष्मी जी की कृपा का न हो। बताओ तुम कितना पैसा ख़र्च कर सकते हो, इस सवाल का जवाब पाने के लिए?”
आप तो जानते ही हैं, अपन राम के पास अपनी दाल-रोटी चलाने के लिए भी क़ायदे का जुगाड़ नहीं है। फिर भला सवाल उठाने के लिए करोड़ों का जुगाड़ कहां से होता। लिहाजा तय किया कि ख़ुद ही तय करते हैं। इस दिशा में सोचना शुरू किया तो मालूम हुआ कि देश के पहले आदमी तो महामहिम हैं और पहली स्त्री महामहिमा। इस अनुसार देखें तो दूसरा आदमी ज़ाहिर है, उप महामहिम ही हुए और दूसरी स्त्री उप महामहिमा। अब तीसरा आदमी होने के लिए बचता कौन है, सिवा माननीय और उनकी टीम के? लेकिन धर्मसंकट यह है कि अगर माननीय और उनकी टीम को तीसरा आदमी मान लिया जाए तो 10 जनपथ को फिर क्या माना जाए? आख़िर इस देश में कौन सा पत्ता हिलेगा और कौन खड़केगा, इस गुलिस्तां की किस शाख पे कौन बैठेगा …. आदि-आदि, सब तो वहीं से तय होता है! देखिए, मैं समझ गया हूं कि इस मसले को सुलझाना मेरे बस की बात नहीं है और लोकतंत्र के तीसरे पाये के पास मैं इसे लेकर जाना नहीं चाहता। उसका हाल आप हमसे बेहतर जानते हैं। और हे जनता जनार्दन, भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में चूंकि आप ही संप्रभु हैं, लिहाजा यह सवाल मैं आप ही के ज़िम्मे छोड़ता हूं। अगर बन पड़े तो जवाब दें, अन्यथा टिप्पणी रूपी लौटती डाक से रुपया-दो रुपया-पांच रुपया-दस रुपया….. जो बन पड़े, चन्दे के तौर पर भेज दें। ताकि मैं यह सवाल संसद में उठवा सकूं। वैसे भी वहां जिन सवालों को उठवाने के लिए जो पैसे दिए जाते हैं, वे आप ही की जेब से निकाले जाते हैं। यक़ीन मानिए, अगर इस सवाल का ठीक-ठीक जवाब मिल गया तो आपके बच्चे सुखी रहेंगे। भगवान आपको बहुत बरक्कत देगा।
साभार – http://iyatta.blogspot.com
Its good!
Grande borne! Agradecimentos para tomar o momento de escrever algo que é realmente leitura do valor. Demasiado frequentemente eu encontro a informação inútil e não a algo que é realmente relevante. Agradecimentos para seu trabalho duro.