पापा ! क्यों तुमने ऐसा मेरे साथ किया…

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विनायक विजेता, वरिष्ठ पत्रकार।

परखनली से तुमने पापा, कभी मुझको जीवन दान दिया
आत्मा मेरी पूछ रही, फिर क्यों ऐसा मेरे साथ किया
पापा-मम्मी आप कभी जब भी उदास होते थे
बेटी के बाद जब एक बेटे के ख्वाब में सोते थे
मैंने सोच रखा था आप दोनों का मन मैं हर लूंगी
अपनी चुलबुली बातों से, आप दोनों का दुख हर दूंगी
पर मुझको इतना ना वक्त दिया, आप दोनों ने मिलकर पाप किया
बिना सोचे-समझे ही, अपने हाथों बेटी को घर में मार दिया
फूलों की खुशबू ले न सकी, तरुणाई का स्वाद भी चख ना सकी
पहले जीवन का सुंदर ख्वाब दिया, फिर अपने हाथों मार दिया
पापा! क्यों ऐसा मेरे साथ किया…
स्कूल से जब मैं आती थी तो पापा-मम्मी ही चिल्लाती थी
मम्मी के हाथों खाती थी, आप आते तो इठलाती थी
क्या बेटी बन मैंने कोई पाप किया, क्यों ऐसा मेरे साथ किया
अब उम्र कैद जब मिल गई तो बेटी को फिर क्यों याद किया
आप तो अब भी मेरे पापा हो, जेल में ज्यादा मत रोना
मम्मी से भी कह देना कि प्रायश्चित कर कलंक को धो देना

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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