दायित्वहीन आजादी देश के लिए अनर्थकारी
सूचना के माध्यम लोकतंत्र में चौथे स्तम्भ माने जाते हैं और प्रत्येक नागरिक की इनसे अपेक्षा है कि उसे सही सूचना दें । संचार माध्यमों या समाचारपत्रों की चतुर्थ सत्ता संज्ञा की सार्थकता तभी है जब वे सत्य की सूचना पाठकों को देते रहे । इस दृष्टि से अब मीडिया के दायित्व निर्वाह पर उंगलियां उठने लगी हैं ।
निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए सूचनाओं को विकृत करके, उन्हें आधे अधूरे रूप में प्रस्तुत करके, उनमें तिल का ताड़ बनाने की कला का प्रदर्शन करके, अप्रमाणित को प्रमाणित का रूप देकर जनसंचार माध्यम आज अपने पैरो पर कुलहाडी मार रहे हैं ।
ऐसा कहा जाता है कि अध्ययन, विचार, मनन, विश्वास एवं आचरण द्वारा जब एक मार्ग को मजबूती से पकड़ लिया जाता है, तो अभीष्ट उद्देश्य को प्राप्त करना बहुत सरल हो जाता है। मगर आज की मीडिया ने अपने आप को इन बातों से कोसों दूर रखा है ।
जिस प्रकार अभिव्यक्त्ति की आजादी का हमारे देश में धडल्ले से दुरूपयोग हो रहा है, उसी प्रकार सूचना के क्षेत्र में भी दायित्वहीन आजादी देश के लिए अनर्थकारी सिद्ध हो रही है । हम प्रतिदिन राजनीति के अपराधीकरण और उसमें लगे हुए भ्रष्ट्राचार जैसे दीमक की बात करते हैं, पर्ंतु संचार माध्यमों के भ्रष्ट्राचार, अपराधीकरण और माफियाकरण के विरूद्ध कुछ कहने से परहेज करते है ।
इलेक्ट्रानिक मीडिया हो या प्रिंट मीडिया दोनों ही आदर्शहीन होकर तथ्यों के नाम
पर नंगापन, वीभत्स और कुसंस्कार परोस रहे हैं । सुबह का अखबार देखिए, चोरी, डकैती, बलात्कार, हत्याएं, दंगे, फसाद, दुर्घटनाएं, चरित्र हनन, अधनंगे, वीभत्स और मन को खिन्न कर देने वाले समाचारों एवं दृश्यों से ये भरे पडे होते हैं ।
टेलिविजन पर समाचार चैनलों की बाढ़ सी आयी हुई है, मगर वहां की स्थिती और भी ज्यादा बदतर दिखती है । इन माध्यमों को समाज के और भी कई मुद्दों से सरोकार रखने की जरूरत थी, पर व्यवसायीकरण और चाटुकारिता ने मीडिया को दलाल बनाकर रख दिया है ।
अगर हम अमेरिका पर नजर डालें तो वहां समाचारपत्रों की स्वतंत्रता के लिए संविधान में अलग से प्रावधान किया गया है, लेकिन भारत देश में ऐसा नहीं है । यही कारण है कि भारत मे दूसरे उधोगों मे उपस्थित सारी दुष्प्रवृत्तियां इस क्षेत्र में प्रवेश कर गई हैं । जहां तक अभिव्यक्त्ति की स्वतंत्रता का प्रश्न है, लिखने, पढने, बोलने, संकेत करने, नाटक-नौटंकी, सभा-प्रदर्शन करने जैसी सभी स्वतंत्रताएं इसी के अधीन आती हैं । इसलिए समाचारपत्र निकालने के लिए भी कोई योग्यता नहीं निर्धारित की गई है। संविधान के अनुच्छेद 19 के अंतर्गत मिली कोई
भी स्वतंत्रता निर्बाध नहीं है और उस पर युक्त्तियुक्त्त प्रतिबन्ध है । आज की मीडिया अपने आप को दोषरहित साबित करने पर तुली रहती है जबकी उसे यह समझना चाहिए कि अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बढ़कर प्रमाद इस संसार में और कोई दूसरा नहीं हो सकता।
आज हमारे देश मे संचार के जितने भी साधन हैं उनमें अखबार और फिल्म उधोग तो प्राइवेट सेक्टर के मालिकों के इशारों और उनकी नीतियों पर चलती है और दूरदर्शन और आकाशवाणी सरकार में बैठे लोगों की नीति पर आचरण करती है । बाकी बचे जो प्राइवेट चैनल हैं उनके सम्मान मे क्या कहा जाए और कितना कहा जाए इसपर तो एक
ग्रंथ लिखा जा सकता है । दृष्टिकोण की श्रेष्ठता ही वस्तुत: मानव जीवन की श्रेष्ठता है और अगर दृष्टिकोण का ही अभाव हो जाए तो इंसान जिस ओर मुडेगा उसमें समाज के हितों का बलिदान लेना उसका प्रथम उद्देश्य बन जाएगा । आज मीडिया का एक
बडा वर्ग समाज के हितों से खिलवाड़ करने पर तुला हुआ है …शायद वह यह नहीं जान पा रहा है कि मनुष्य का अपने आपसे बढ़कर न कोई शत्रु है, न मित्र।
प्रेस के लिए खतरा केवल सत्ता की ओर से नहीं आता बल्कि वह उसके अंदर से भी आता है । यदि पत्रकार सत्ता का, चाहे आर्थिक हो या राजनैतिक, बहुत आदर करने लगे…और यदि वह अपने पेशे की निष्ठा की उपेक्षा करके लोकप्रिय बनना चाहे तो
उससे प्रेस की स्वाधीनता अपने आप खतरे में पड जाएगी। वैसे स्वाधीनता मूल अर्थों में छोटे के विरूद्ध मनमानी करने की स्वाधीनता रहा है । एक बडी बात तो यह भी है कि हम अभी तक इस समस्या से निजात नहीं पा रहे हैं कि छोटों को किस प्रकार
स्वाधीनता दिलाएँ। यह बात हमारी समस्त अर्थ वयवस्था के बारे में सही है और यह हमारे मीडिया पर भी लागू होती है। निश्चित रूप से हमें इस समस्या की ओर अधिक ध्यान देना चाहिए। क्योंकि अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है।
स्वतंत्र प्रेस के कारण ही हम सभी सुरक्षित हैं, यह एक सार्वभौम सत्य है। आवश्यक है कि लोकतंत्र के चौथे प्रहरी अब जागें, देश के बुद्धिजीवी साहित्यकार, समाजसेवी जागे, समाज-सुधारक जागें, देश की युवा-शक्त्ति संगठित हो और इन भ्रष्ट्राचार और भ्रष्ट्राचारियों के खिलाफ एक वैसा ही संघर्ष छेड दें जैसा कभी अंग्रेजों के विरूद्ध किया गया था। राष्ट्रीय चरित्र के अध: पतन के इस दौर में राष्ट्रीय चेतना और राष्ट्रभक्त्ति की मशाल जलाने में मीडिया को एक अग्रणी भूमिका निभाने के लिए तैयार होना ही पडेगा। अपना आदर्श उपस्थित करके और ज्यादा मुखर होना ही पडेगा। …माना कि आज परिस्थितियां प्रतिकूल हैं पर इसमें अधीरता न
दिखाते हुए एक सच्ची शिक्षा प्रस्तुत करने का भी वक्त अभी ही है। नैतिकता, प्रतिष्ठाओं में सबसे अधिक मूल्यवान् है, आज की मीडिया को इसे समझना ही होगा ।