धूल में मिल जाएंगे बिहार के कई धाकड़ नेता
बिहार में नेतागिरी का अपना एक पैर्टन है, आज नीतीश कुमार लालू प्रसाद की बखिया उधेड़ते हुये कह रहे हैं कि 15 साल तक लालू-राबड़ी लाठी में तेल लगाते रहे। इसके पहले लालू प्रसाद जब शासन में आये थे तो चुनाव के दौरान जनता से किये गये वादों पर डा. जगरन्नाथ मिश्रा के बारे में कहा करते थे इनका वश चलेगा तो ये स्वर्ग में भी सीढ़ी लगवा देंगे। इसी तरह प्रभुनाथ सिंह भी नीतीश कुमार के खिलाफ जनसभाओं में खूब बोल रहे हैं, जबकि कुछ दिन पहले तक वह लालू प्रसाद के खिलाफ आग उगलते रहते थे।
वैसे देखा जाये तो लालू और उनकी मंडली की हुरपेठई से बिहार लंबे समय तक त्रस्त रहा है। बिहार को रसातल तक ले जाने में उन्होंने कोई कोर कसर नहीं छोड़ा। दबंगई और गुंडई को खूब प्रश्रय दिया। राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाकर उन्होंने उन तमाम लोगों के मुंह पर तमाचा मार था, जिन्होंने उनके सामाजिक न्याय के नारे पर विश्वास किया था। उनका सामाजिक न्याय पूरी तरह से परिवारवाद पर आकर सिमट गया था।
मतदान का अंतिम चरण अभी बाकी है, लेकिन अभी से जिन क्षेत्रों में चुनाव हो चुके हैं खबरें नीतीश के पक्ष में आ रही हैं। लोग यहां तक कह रहे हैं कि नीतीश कुमार बूम कर रहे हैं। लोगों ने अब तक के प्रचलित समीकरणों को नकारते हुये नीतीश कुमार के विकास के पक्ष में मतदान किया है। चुनाव प्रचार के दौरान नीतीश कुमार की सहज शैली लोगों को आकर्षित करती रही। नीतीश भी चुनावी कार्यक्रमों में सिर्फ विकास की ही रट लगाये हुये थे, और साथ ही लालू प्रसाद की बयानबाजी का उन्हीं के अंदाज में जवाब दे रहे थे। जब लालू ने यह कहा कि वह बिहार के छात्रों को साइकिल की जगह मोटरसाइकिल देंगे, तो नीतीश कुमार ने इसका जवाब दिया कि लालू प्रसाद बिहार के सभी छात्रों को जेल भिजवाना चाहते थे। ऐसा कह कर उन्होंने लालू के मानसिक खोखलेपन को बड़ी सरलता से उजागर कर दिया।
लालू प्रसाद पर्सन टू पर्सन पोलिटिक्स कर रहे हैं। उन तमाम लोगों के नाम गिना रहे हैं जिन्हें नीतीश कुमार ने साइड लाइन कर दिया है। वे सभी लोग इस वक्त लालू प्रसाद से जुड़े हैं। लेकिन क्या बिहार की जनता ऐसे लोगों के पक्ष में है ? शायद नहीं। प्रभुनाथ सिंह इसके बेहतर उदाहरण है। वो एक धाकड़ नेता है, नीतीश कुमार के खिलाफ यदि वे जाते तो उनकी सेहत पर कोई असर नहीं करता। सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने से उनका रुतबा थोड़ा और बढ़ता। लेकिन प्रभुनाथ सिंह नीतीश कुमार को छोड़कर लालू के साथ हो लिये। नीतीश कुमार को छोड़ने तक तो ठीक था, लेकिन लालू प्रसाद के साथ उनका सुर मिलना खुद उनके समर्थकों को भी अखड़ने लगा।
एक बार लालू के खिलाफ रामविलास पासवान को भी जोरदार जनसर्मथन मिला था। उस वक्त उनकी पार्टी अकेले खड़ी थी। लेकिन उन्होंने एक भयंकर राजनीतिक भूल की। लालू के खिलाफ न खुद सरकार बनाये, और न किसी को सरकार बनाने दी। उस वक्त उनकी राजनीतिक सोच चाहे जो रही हो, लेकिन उनके इस कदम को बिहार की जनता ने गलत बताया था। बाद में जब वह लालू प्रसाद मिल गये तो, लोकसभा के चुनाव में उन्हें पटकनी तक खानी पड़ गई। बिहार की राजनीति में रामविलास पासवान की विश्वसनीयता पूरी तरह से खत्म हो चुकी है। लोगों के मन का टोह लेने पर जो नतीजे सामने आ रहे हैं उससे यही लगता है कि इस चुनाव के बाद कई धाकड़ नेता धूल में मिलने वाले हैं। इन धाकड़ नेताओं में लालू और रामविलास भी हो सकते हैं।