नये वर्ष में नीतीश सरकार की बिजली गुल
नये साल में सूबे के लोगों को एक बार फिर अहसास हो गया कि चाहे कुछ भी हो जाये बिहार में बिजली की स्थिति सुधरने वाली नहीं हैं। सूबे के दूर दराज के इलाके की बात यदि छोड़ भी दें, तो राजधानी पटना के लोग बिजली न मिल पाने से खासे परेशान हैं। इधर कड़ाके की ठंड पड़ रही है और उधर बिजली नदारद है। मनोरंजन और संचार के लिए लोगों की निर्भरता टीवी और कंप्यूटर पर बढ़ी है, हालांकि इसमें नीतीश सरकार का कोई खास योगदान नहीं है। यह दुनियाभर में जारी विकास की स्वाभाविक प्रक्रिया का परिणाम है। बदलते जमाने के साथ लोग तेजी से कंप्यूटर से जुड़ने लगे हैं, ग्लोबल नेटवर्किंग करने लगे हैं, अपने विचारों को तरह-तरह के सोशल साइटों पर अभिव्यक्त करने लगे हैं, यहां तक की शेयर मार्केट में भी जोर आजमाईश करने लगे हैं। एक तरह से यह इनके लाइफ स्टाइल में शामिल हो गया है। अब इस लाइफ स्टाइल को मेन्टेन करने लिए बिजली की सख्त जरूरत है, लेकिन नीतीश सरकार इस लाइफ स्टाइल के मुताबिक बिजली मुहैया कराने में नाकामयाब साबित हो रही है। सूबे की शहरी आबादी- खासकर पटना के लोग- भी यह कहने लगे हैं कि नीतीश सरकार बिजली के मामले में असफल साबित हो रही है।
यह सच है कि बिहार में बिजली की कमी है। बिहार विभाजन के बाद से तो बिजली के मामले में सूबे के लोगों की और अधिक फजीहत हो रही है, क्योंकि बिजली उत्पादन की कई महत्वपूर्ण इकाइयां झारखंड राज्य में चली गई। तेनुघाट बिजली स्टेशन को लेकर तो बिहार और झारखंड सरकार लंबे समय से एक-दूसरे से उलझे हुये हैं। यह मामला कोर्ट में भी चल रहा है। लेकिन इसके साथ ही जिस तरह से नीतीश सरकार के अधिकारी अपने आका को खुश करने के लिए बिजली की फिजुल खर्ची करते नजर आ रहे हैं वह भी सूबे के लोगों को अंधेरे में रखने के लिए कम जिम्मेदार नहीं है। पिछले वर्ष बिहार स्थापना दिवस के दौरान लगभग सभी सरकारी भवनों को बिजली बत्ती से सजा दिया गया और करीब एक सप्ताह तक इन भवनों को जगमगा करके रखा गया। शाम होते ही इन सरकारी भवनों में काम करने वाले सारे कर्मचारी तो अपने-अपने घर चले जाते थे, लेकिन इन भवनों में लगे हुये सीरिज बल्व जलते रहते थे। लगभग एक सप्ताह तक यह सिलसिला चलता रहा। एक तो सूबे में पहले से ही बिजली की कमी थी, ऊपर से इस तरह से बिजली की फिजुलखर्जी की जाती रही जिसका कोई औचित्य नहीं था। यह फिजुलखर्ची सिर्फ सरकारी तामझाम का ही हिस्सा था, जनहित की भावना इसमें लेशमात्र भी नहीं थी।
नये वर्ष में बिहार में एक बार फिर शताब्दी समारोह मनाने की तैयारियां जोर-शोर से ही रही हैं और अभी से सरकारी भवनों को एक बार फिर से सीरिज बल्व से ढकने की योजनाएं बनाई जा रही हैं। अब इस तरह की योजनायें बनाने वाले अधिकारियों से भला कौन पूछ सकता है कि बिजली की इस तरह फिजुल खर्जी करके शताब्दी समारोह मनाने का क्या औचित्य है। वैसे कहने वाले यहां तक कह रहे हैं कि नीतीश कुमार एक टेक्नोक्रेट हैं और उन्हें खुद इस बात को समझना चाहिये कि आज के दौर में बिहार बिजली संकट से जूझ रहा है। ऐसे में यहां के लोगों के बीच बिजली बजाने के लिए सघन अभियान चलाने की जरूरत है। यदि सरकार खुद फिजुलखर्जी करेगी तो भला लोगों को क्या समझाएगी ?
पिछले साल गर्मी के महीनों में सूबे में जहां-तहां पर लोगों ने बिजली न मिल पाने की वजह से उग्र प्रदर्शन किया था। कई जगहों पर तो बिजली आफिस के दफ्तर में आगजनी भी हुई थी। लोगों का गुस्सा अपने चरम पर था। उग्र प्रदर्शन का यह सिलसिला लंबे समय तक चलता रहा। यहां तक कि गुस्साये लोगों ने ट्रेनों में भी तोड़फोड़ किया था। इन प्रदर्शनों की वजह से झुंझलाहट में आकर नीतीश कुमार को यहां तक कहना पड़ा था कि तोड़फोड़ करने से क्या बिजली मिल जाएगी। लाठी और डंडे की मदद से किसी तरह इन प्रदर्शनों पर काबू किया गया, लेकिन सवाल उठता है कि आखिर लाठी और डंडों के सहारे लोगों को कब तक नियंत्रित किया जाएगा ?
सूबे के औद्योगिक हलकों में भी बिजली की कमी को लेकर बेचैनी है। कुछ सरकार की मेहरबानी से और कुछ अपने बलबूते पर जमीन हासिल करने में उद्योगपति सफल तो हो रहे हैं, लेकिन उद्योगों के विकास के लिए बिजली की उपलब्धता के मोर्चे पर उन्हें मुंह की खानी पड़ रही है। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो उद्योगों के लिए जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्हें नहीं मिल पा रहा है। बिहार में सड़कों का जाल तो तेजी से बिछ रहा है, लेकिन बिजली की तारें अभी भी उस अनुपात में नहीं लगाई जा रही हैं। ऐसे में उद्योगपतियों का थोड़ा बिदकना स्वाभाविक है। इस मामले में सिर्फ केंद्र को दोषी ठहराने के अलावा कोई ठोस उपाय करते हुये नीतीश सरकार नहीं दिख रही है।
ऐसा नहीं है कि बिजली की कमी की वजह से सिर्फ शहरी आबादी ही परेशान है। पिछले एक दशक में ग्रामीण इलाकों के लोगों के जीवन में भी व्यापक बदलाव आया है। गांवों के लोगों में भी बिजली की चाहत बढ़ी है और साथ ही सरकार से उम्मीद भी। अब गांव के लोग भी यही चाह रहे हैं कि उन्हें अधिक से अधिक बिजली उपलब्ध हो क्योंकि गांवों में अब घर-घर टीवी पहुंच चुका है, और डिश के माध्यम से उन्हें कई तरह के चैनल भी आसानी से मुहैया हो रहे हैं। देर सवेर गांवों में भी बिजली की मांग को लेकर लोग प्रदर्शन का रास्ता अख्तियार करने लगे तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिये।
नये साल के शुरु होने से पहले ही यह दावा किया जा रहा था कि कम से कम पटना के लोगों को 24 घंटे बिजली मुहैया कराई जाएगी। इसके लिए बिजली की कीमतों में भी इजाफा किया गया, लेकिन अब इन दावों की कलई खुलने लगी हैं। बिजली के बढ़े हुये रेट तो यहां के लोगों से वसूल किये जा रहे हैं, लेकिन वादे के मुताबिक 24 घंटे बिजली इन्हें नहीं मिल पा रही है। वैसे राजधानी में रहने वाले मंत्रियों और अधिकारियों के घरों में बिजली व्यवस्था दुरुस्त है।