पत्रकारिता या दलाली….।
आशुतोष, मुजफ्फरपुर
समाज, अपने आप से, दुनियां से और कई लोगों से अपने आपको पत्रकार मानना, मनवाना अच्छा लगता है। कहना भी अच्छा लगता है। सुनना भी अच्छा लगता है। यशवंत जी जैसे लालची लोगों द्वारा अपने भड़ास पर कई तरह के सम्मान भी बनाए जा चुके हैं। लेकिन उन सम्मानों में सच्चाई कम दिखती है। दिखावा ज्यादा है। मुझे याद है कुछ समय पहले एनडीटीवी पर एक रिपोर्ट देखी थी। उत्तर प्रदेश की रिपोर्ट थी। रिपोर्टर थे वही कमाल खान। लाजबाव पीटीसी था। मुझे याद है। जरा आप भी सुनिए।…..हमारे यहां जब बच्चे पैदा होते हैं……मां कहती है बेटा पढ़ने जाओ….बुंदेलखंड में जब बच्चा पैदा होता है…..मां कहती है बेटा पानी ढूंढ के लाओ…।
हमारे यहां की औरतें कहती हैं…….पति ही परेमेश्वर होता है……..बुंदेलखंड़ की औरतें कहती हैं……..खसम भले ही मर जाए,,,,,,,गागर न फूटे…….। मुझे अच्छी तरह याद है। हो सकता है। चम़ड़े और मांस की बनी बुद्धिदानी है , उन्होंने इससे भी कुछ अच्छा बोला हो। पीटीसी का सार तत्व यही था। कमाल खान को सम्मान मिला था। रामनाथ गोयनका वाला। अच्छा लगा था। उन्हीं के चैनल पर देखकर , एनडीटीवी पर। बड़ा कम देर का शा्ट था । दूसरे चैनल पर होता तो ज्यादा देर तक दिखाते। लेकिन एनडीटीवी के साथ ऐसा नहीं है। बेचारों में सच्चाई अभी भी बची हुई है।
क्या करें। कभी-कभी लगता है पत्रकारिता हो ही नहीं रही है। हमलोग दलाली कर रहे हैं। रोजी- रोटी के चक्कर में। अपने प्रोफेशन से, अपनी आत्मा से , अपने मन से, अपने दिल से, अपने कर्म से । एक सौदा करते हैं। दिन रात लगे रहते हैं , पत्रकारिता को मां बहन करने में। सवाल यह है कि हम लगे नहीं रहते हैं। लगे रहते तो हम जैसों को आत्महत्या जैसे कदम उठाने पड़ते। हमे तो लगाया जाता है। दलाली करो। मैं अपने आपको सौभाग्यशाली मानता हूं। मेरे मालिक ऐसे नहीं है। मुझे मिल गए हैं , गरीबों के दाता, मानवता के पुजारी , मंदिर निर्माता। भगवान शंकर का मंदिर बना रहे हैं मेरे मालिक। करोड़ो खर्च हो रहे हैं। दूसरों की मदद करना और पत्रकारिता में मानवीय संवेदना को बचाए रखना ही उनका लक्ष्य है। खैर………………असल मु्द्दे पर आते हैं। भड़ास वाले यशवंत जी……………कानपुरिया कुत्तों को रात में दारु पीकर चीप देते थे। लेकिन उन्हें मालूम नहीं। शम्शान में जब उनकी लाश जाएगी………तो सबसे पहला चढ़ावा उन्हें ही चढ़ेगा। क्योंकि हमारे वेद और शास्त्रों में उन्हें काल भैरव कहा गया है। बेचारे यशवंत जी ने तो उन्हें चीप दिया। लेकिन मैं माफी चाहता हूं उन कुत्तों की आत्माओं से कि अब उन्हें परेशान न करें। यह सच है………………..यशवंत जी अभी कई प्रोबलेम से घिरे हैं। लेकिन आज इस लेख के बाद वे आजाद हो जाएंगे। सिर्फ उन्हें काल भैरव से माफी मांगनी होगी। अब इसे पढ़ने के बाद कहेंगे। भारी चुतियापे का गप करता है आशुतोषवा। क्या करें भईया , यह सब आपही का देन है। आप कहां हमको दिल्ली बुलाकर सम्मान दिलवाने वाले थे। सम्मान तो आपके प्यार के माध्यम से मिल गया। लेकिन देश के नाम से निकल रहे अखबार में रात में नौ महीने की गई ड्यूटी की कहानी अभी बाकी है। पत्रकारिता में मानसिक दैहिक, शारीरिक और आर्थिक प्रताड़ना की अभी लंबी कहानी बाकी है…………………। आपको क्या बताएं। गले में आई कार्ड लटकाकर। दूसरों की नजर । इवेन………..देश के प्रधानमंत्री के साथ बैठने वाली बहुत बड़े ग्रुप की मालकिन को शायद पता नहीं होगा कि उनके पीठ पीछे बिहार में कैसे शोषण का अनोखा खेल चल रहा है। जाने दीजिए………..मैं ज्यादा नहीं कहूंगा। वरना मानवाधिकार वाले सुन लेंगे और उस मालकिन की ऐसी की तैसी हो जाएगी। रात हो रही है , नींद आ रही है। आज सबसे ज्यादा पैदल चला हूं। हां एक बात और है……………..मैंने आज असली देवी मां के दर्शन किए हैं………..क्या है पूरा माजरा जरा नीचे पढिएगा।
असली पूजा……………………..।
अभी दो दिन से मैंने अपना किराए का कमरा छोड़ दिया है। कमरा छोड़े तीन दिन हो गए। इस दौरान मैं मुजफ्फरपुर के देवी मंदिर के सामने अपने छोटे से आफिस में अपना डेरा-डंडा डाल रखा है। सुबह होते ही शहर के प्रसिद्ध देवी मंदिर का दर्शन होता है। सुबह से ही पूजा करने के लिए लोगों को तांता लग जाता है। पूजा करने मध्यमवर्गीय वर्ग, अधिकारी वर्ग और समान्य भी आते हैं। मुझे लगता है , मुझे याद है मैंने एक पूजापाठ पर हंस में लघुकथा पढ़ी थी। जिसमें दिनरात पूजा और कीर्तन में लगे रहने वाली मिश्राईन जब एक कुम्हार के यहां दिए लेने जाती हैं , दिया ले लेती हैं। पैसे पूछती हैं। आंखों से कमजोर कुम्हार की पत्नी जो दिया बेचती है ,वह कहती है मलकाईन पचास रुपए हुए। मिश्राईन उसे 100 रुपए का नोट देती है। बेचारी को दिखाई नहीं देता। वह मिश्राईन को पचास रुपए लौटाने की जगह सौ के नोट को दूबारा पचास समझकर…..तुड़े मुड़े शक्ल में लौटा देती है और मिश्राईन वहां से जल्दी चली जाती हैं। यह भी एक पूजा है। यह सिर्फ पचास रुपए की पूजा है। बाकी उनका कीर्तन और पूजा में लीन रहना ढ़ोग या पाखंड कहा जा सकता है।
मुजफ्फरपुर देवी मंदिर के ठीक मेन गेट के सामने , चिथड़ों में लिपट दो बूढ़ी औरतें रहती हैं। उनके पास संपति के रुप में फटा हुआ एक झोला एक माचिस। जो रात में अलाव या रौशनी की व्यवस्था के लिए है। शरीर पर मैली कुचैली साड़ी। बाल बिखरे हुए।
लेकिन यह क्या आज सुबह वह असली पूजा कर रही थीं। देखकर मेरा मन भर उठा। आखिर जो मंदीर में चढ़ावा चढ़ता और मंदीर प्रबंधन के पास जो लोग हैं वे क्या करते हैं। बेचारी दोनों सुबह से झाड़ू लेकर पूजा गेट और सड़क साफ कर रही थी। जब मंदीर का पट खुला। भक्तगण आने लगे। तो कईयों ने कुछ खाने की सामग्री उन्हें दे डाली। बेचारी गेट पर बैठकर खा रही थी। दूसरे का दिया हुआ जूठन। लेकिन यह क्या……………….। सामने पहुंच गया एक अवारा कुत्ता। दूम हिलाते हुए। सड़क छाप कुत्ता। जिसे हम आमतौर पर मारकर भगा देते हैं। लेकिन उसने उसे नहीं भगाया। अपने बचे हुए रोटी के टूकड़े को तोड़कर उसने उसे खाने के लिए दिया। मैं कुछ दूर से देख रहा था। मेरी आंखें भर आई थी। मुझे लगा गरीबी,अभाव,मजबूरी औऱ तंगी में भी मानवीय संवेदना मरती नहीं बल्कि और ज्यादा जाग उठती है। लोग कहते हैं मैंने इस गलत काम को मजबूरी में अंजाम दिया। गरीबी में अंजाम दिया। लेकिन नहीं । मानवता और संवेदना किसी अभाव की मोहताज नहीं होती। यह कभी मरती नहीं। यह जिंदा रहती है। बस जरुरत है अच्छा सोचने की। इष्या,द्वेष और द्रोह से अलग हटकर गली के कुत्ते के बारे में भी अच्छा सोचने की…………………………….। बस और फिर कभी……………।
आशुतोष सर
आपकी ये रिपोर्ट पढ़ कर दिल भर उठा..कमाल खान की रिपोर्ट की हर लाइन जैसे आपने रट रखा है..पर बारे ही संजीदे अंदाज़ में उसका बखान किया..
भरास पर लगने वाले कई रिपोर्ट की मई भी खंडन करना चाहता था पर कभी समय के आभाव में नहीं लिखा.
पर जिस तरीके से आपने उनका खंडन किया वो काबिले तारीफ है..
रिपोर्ट की आखरी अंतरा में दो भिखारी औरत की व्यवस्था को आपने ऐसे उठाया की दिल भर गया.
सच में मानवता अभी बाकि है और इन्ही लोगो की स्थिति हम जैसों को पत्रकारिता जगत में खीच लती है..पर ये बड़ा बिडम्बना ही है की यहाँ भी हमे अपना स्वाभिमान दाव पर लगाना परता है..
नीतीश कुमार
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