लिटरेचर लव

बाइट, प्लीज (part 18)

37.

भुजंग के जाने के बाद नरेंद्र श्रीवास्तव को विश्वास में लेकर पटना में कंट्री लाइव की कमान महेश सिंह ने संभाल ली। जिले के सभी रिपोटरों को उसने खुलेआम कह दिया कि विज्ञापन न लाने की स्थिति में वे नौकरी छोड़ दें। उसके जुबान पर हर वक्त यही होता था, “यदि विज्ञापन नहीं ला सकते तो चैनल का लोगो पटना में आकर जमा कर कर दो।”

एसाइनमेंट देख रहे शिव को खासतौर पर यह हिदायत दी गई कि जिले के सभी रिपोटरों को लगातार विज्ञापन के लिए फोन करते रहो। शिव लंबे कद का मोटा-तगड़ा इन्सान था और हर बात को व्यंग की शैली में कहता था।

बिहार में चैनल की पत्रकारिता के चलंत तौर तरीकों से शिव अच्छी तरह से वाकिफ था। अपनी नई भूमिका को उसने सहजता से स्वीकार कर लिया। अपनी कुर्सी पर जमकर बैठ जाता और हाथ में फोन का रिसिवर लेकर हंसते हुये कहता, “मेरी स्थिति अब मुंबई के भाई लोगों की तरह है। लोगों को फोन पर वसुली करने के लिए कहता हूं।”

कभी-कभी वह पूरी तरह से एक टपोरी की तरह मुंबई के भाई लोगों की एक्टिंग करने लगता था और कभी-कभी अपने पेशे से इतर जाकर वसुली करने की वजह से झुंझलाते हुये कहता था,“ आग लगे ऐसी पत्रकारिता को, मेरी समझ में नहीं आता है कि मैं क्यों पत्रकारिता कर रहा हूं। इससे अच्छा होता कि मैं किसी सरकारी नौकरी में होता, या फिर चाय –बीड़ी की दुकान खोलकर बैठ जाता। वहां कम से कम यह सब तो नहीं करना पड़ता। ”

शिव के न होने पर उसकी कुर्सी मानसी संभालती थी। खबरों को लेकर वह रिपोटरों से पूछताछ तो करती थी, लेकिन अपने आप को वसुली से पूरी तरह से दूर रखे हुई थी। लड़की होने की वजह से उस पर वसुली के लिए दबाव भी नहीं डाला जा रहा था। हालांकि इस वसुली संस्कृति से उसका साबका पहली बार हो रहा था और इसे लेकर पत्रकारिता के प्रति उसकी अब तक की स्थापित धारणाएं ध्वस्त होती जा रही थी। बेबाकीपन तो उसमें थी ही, एसाइनमेंट पर बैठने के बाद वह थोड़ी खुल सी गई थी। वसुली संस्कृति पर चुटकी लेते हुये कहती थी, “हमलोगों के सेलेबस में यह चैप्टर तो था ही नहीं, यहां आने के बाद तो मुझे लगने लगा है कि यह सबसे इंपोर्टेन्ट चैप्टर है। यदि इसे सेलेबस में पढ़ाया जाता तो कितना अच्छा होता। थ्योरी कालेज में पढ़ते और प्रैक्टिकल यहां करते। ”

महेश सिंह द्वारा कंट्री लाइव का कमान संभालने के बाद भोला विशेष फार्म में आ गया था। वसुली के मामले में वह खासा दिलचस्पी लेने लगा था, यहां तक कि तमाम रिपोटरों को वह डायरेक्ट फोन करके वसुली के हालिया स्थिति की जानकारी हासिल करता था और अधिक से अधिक वसुली करने के निर्देश देता था। इसके साथ ही इन सब की जानकारी रत्नेश्वर सिंह तक भी पहुंचाता था। चुंकि संस्थान में काम करने वाले सभी लोगों को पता था कि वह रत्नेश्रर सिंह का करीबी  रिश्तेदार है, इसलिये लोग उससे अपना संबंध बिगाड़ना नहीं चाहते थे और वह भी रत्नेश्वर सिंह के नाम पर संस्थान को अपने तरीके से हांकने की पुरजोर कोशिश कर रहा था। पटना के रिपोटरों से तो वह सलीके से बात करता था, लेकिन जिले के रिपोटरों को वह हांक मारता था। पत्रकारिता से उसका दूर- दूर तक वास्ता नहीं था, और न हीं कंट्री लाइव में वह ऊंचे पद पर था, फिर तमाम पत्रकारों पर वह भारी पड़ रहा था। यहां तक कि रंजन की भी यही कोशिश रहती थी कि उसकी अनदेखी करके कोई अहम फैसला न लिया जाये।

नरेंद्र श्रीवास्तव को पूरी तरह से अपने प्रभाव में लेने के लिए महेश सिंह उनके मन में एंकर बनने की महत्वकांक्षा जगाने  में लगा हुआ था और उसकी यह कोशिश अपना रंग दिखाने लगी थी। नरेंद्र श्रीवास्तव का लुक पूरी तरह से बदल गया था। साहित्यिक स्टाईल में बेतरतीब से दिखने वाले नरेंद्र श्रीवास्तव अब सलीके से संवर कर दफ्तर आने लगे थे। स्टूडियो में घंटों बैठाकर महेश सिंह उन्हें कैमरा के सामने परफारमेंस करने का गुर बताता था।

भुजंग के जाने के बाद तृष्णा पूरी तरह से अलग थलग पड़ गई थी। रंजन पहले से ही उससे खफा था। एक–एक करके उसके सारे प्रोग्राम रोक दिये गये। वह समय पर दफ्तर आती थी और एक कोने में बैठकर या तो कोई नावेल पढ़ती थी या फिर रिसेप्शन पर बैठकर कृति से बातें किया करती थी। तृष्णा के कहने पर कृति ने एक दो-बार रंजन से पूछा कि आखिर तृष्णा को काम क्यों नहीं दिया जा रहा है, लेकिन रंजन हर बार उसे टाल देता था।

इस बीच महेश सिंह तृष्णा को अपने प्रभाव में लेने की कोशिश करता रहा लेकिन तृष्णा पर इसका उल्टा ही असर हुआ। एक दिन बौखलाहट में आकर सभी लोगों के सामने उसने चिल्लाते हुये कहा, “यदि फिर कभी इस आदमी ने मुझसे उल्टी सीधी बात की तो मैं उसका मुंह नोच लूंगी। मैं इसे बहुत दिन से देख रही हूं, यह मुझे लगातार परेशान कर रहा है। पता नहीं कहां कहां से टुच्चे लोग मीडिया में चले आते हैं, इसे बात करने तक की सहूर नहीं है।”

इसके बाद सीधे तौर पर तो किसी ने तृष्णा से उलझने की कोशिश नहीं की लेकिन अघोषित रूप से उसे पूरी तरह से काम से महरूम कर दिया गया। संस्था के अंदर यह बात तेजी से प्रचारित कर दी गई कि तृष्णा बदतमीज है, सीनियर अधिकारियों के साथ जुबान लड़ाती है और काम करना तो उसे आता ही नहीं है। सीन से तृष्णा के हटने का सीधा लाभ पूजा को मिला। पूजा प्रोग्रामिंग के हरके कार्यक्रम में दिखने लगी।

एसाइमेंट में आने के बाद भूपेश की मानसी से खूब बात होती थी, धीरे-धीरे वह मानसी को लेकर पोजेसिव होने लगा था। मानसी को एंकर बनाने के लिए उसने जीतोड़ कोशिश शुरु कर दी और रंजन पर लगातार दबाव बनाने लगा। पहले की तरह जब रंजन ने सुकेश का हवाला देकर मानसी को एंकर बनाने से इन्कार किया तो उसने पीठ पीछे दोनों को गालियां देनी शुरु कर दी। इस स्थिति को लेकर सुकेश और रंजन दोनों असहज हो गये थे और उन्हें सूझ नहीं रहा था कि इस मामले में वह भूपेश के साथ कैसे निपटे। चूंकि भूपेश माहुल वीर का साला था, इस नाते अपनी ओर से दोनों यही कोशिश करते रहे कि कोई अप्रिय घटना नहीं घटे, लेकिन धीरे-धीरे पानी सिर के ऊपर से गुजरता जा रहा था। भूपेश की बदतमिजियां दिन प्रति दिन बढ़ती ही जा रही थी, हालांकि मानषी इस बात से पूरी तरह से बेखबर थी कि उसे एंकर बनाने के लिए भूपेश संस्थान में अंदर ही अंदर एक मुहिम छेड़े हुये है।

38.

तमाम उठा–पटक, जोड़-तोड़ और साजिशों के बीच अचानक कंट्री लाइव का प्रसारण बंद हो गया और इसके साथ ही लोग तरह-तरह से कयास लगाने लगे। बड़े पदाधिकारी यही कहते रहे कि कुछ तकनीकी खराबी आ गई है, जिसकी वजह से प्रसारण बंद हो गया है। जल्द ही सब कुछ दुरुस्त हो जाएगा। रिपोटर पहले की तरह की खबर करते रहे और प्रोग्रामिंग के लोगों से भी लगातार प्रोग्राम बनाते रहने को कहा गया ताकि दोबारा चैनल खुलने पर उनके पास प्रोग्राम का अच्छा खासा स्टाक जमा रहे।

करीब 20 दिन तक प्रसारण पूरी तरह से ठप रहा और लोगों को पिछले महीने की सैलरी भी रुकी रही। यहां काम करने वाले लोग चैनल के भविष्य को लेकर सशंकित थे। नरेंद्र श्रीवास्तव और माहुल वीर ने काफी भागदौड़ करके दोबारा चैनल का प्रसारण शुरु करवाया। इस दौरान माहुल वीर को रत्नेश्रर सिंह के कुछ और करीब आने का मौका मिल गया और उन्होंने इस मौके का भरपूर इस्तेमाल करते हुये नरेंद्र श्रीवास्तव का पत्ता साफ करने की जुगत लगा दी।

“ आज की सुपर हिट बाइट नरेंद्र श्रीवास्तव को हटा दिया गया ,” जैसे ही नीलेश दफ्तर में आकर अपनी कुर्सी पर बैठा रंजन ने उसकी तरफ देखते हुये कहा।

“ कल तो वह दफ्तर आये थे, फिर अचानक यह फैसला कैसे हो गया ?”, नीलेश ने थोड़ा आर्श्चय से पूछा।

“ इनका विकेट गिराने की तैयारी लंबे समय से चल रही थी, मौका मिल गया तो भाई लोगों ने निपटा दिया। यह था ब्रेकिंक न्यूज, विस्तार से खबर जानने के लिए देखते रहिये….अभी तो इस पर कई लोगों के बाइट्स आने बाकी है।”

“थोड़ी देर के लिए हमलोग बाहर निकलते हैं। आखिर मैं भी जानूं मामला क्या है ” सुकेश ने कहा।

“ठीक है, तुम निकलो, मैं पीछे से आता हूं,” रंजन ने कहा।

नीलेश बिना कुछ कहे बाहर निकल गया। मुख्य दरवाजे पर  उसकी मुलाकात सुकेश से हो गई, जो अपनी खटारा स्कूटर को स्टैंड पर लगा रहा था।

“कंट्री लाइव की एक ब्रेकिंग न्यूज, नरेंद्र श्रीवास्तव चैनल हेड नहीं रहे,” सुकेश की तरफ देखते हुये नीलेश ने कहा।

“मुझे पता था ऐसा कुछ होने वाला है, लेकिन इतना जल्दी होगा यह पता नहीं था, ” स्कूटर को खड़ा करते हुये सुकेश ने कहा।

“चलो चाय पीते हैं, रंजन भी आ रहा है,” नीलेश ने कहा और दोनों सड़क के दूसरी तरफ चाय की दुकान की तरफ बढ़ गये।

“नये चैनल हेड की तलाश हो रही है। इसके लिए आकाश मिश्रा को एप्रोच किया गया है, लेकिन पूरी कोशिश की जा रही है कि उन्हें रोक दिया जाये,” चाय की दुकान में दाखिल होते हुये सुकेश ने कहा।

“कौन आकाश मिश्रा, वही आकाश मिश्रा जो बिहार विभाजन के समय आंदोलन कर रहे थे? वो तो शायद इस वक्त एक पोलिटिकल मैग्जीन के मालिक और संपादक भी हैं,” नीलेश ने कहा।

“हां, वही। लेकिन उन तक खबर पहुंचा दी गई है कि यह जगह आपके लिए ठीक नहीं है। यहां आने के बाद आपकी प्रतिष्ठा खराब होगी। काम करने का माहौल यहां नहीं है। फिलहाल चैनल हेड की जिम्मेदारी माहुल वीर संभालेंगे, ” सुकेश ने कहा।

दोनों आराम से झोपड़ी के अंदर लगे लकड़ी के एक बेंच पर बैठ गये। थोड़ी देर में रंजन भी आ गया, उसके चेहरे पर मुस्कराहट थी।

“यहां केवल पोलिटिक्स ही हो रहा है। भुजंग के बाद अब नरेंद्र श्रीवास्तव को चलता कर दिया गया। उनसे कह दिया गया है कि कार की चाभी जमा कर दें। नये चैनल हेड का जुगाड़ हो रहा है, लेकिन मैंने रत्नेश्वर सिंह से कह दिया है कि माहुल वीर को ही बना दिजीये। वह यहां के हालात को अच्छी तरह से समझ रहे हैं, कोई नया चैनल हेड आएगा तो वह अपने तरीके से चीजों को हांकने की कोशिश करेगा, ऐसे में हमलोगों को परेशानी होगी, ” रंजन ने कहा।

“भाई, दो चाय देना,” चाय वाले की तरफ देखते हुये नीलेश ने ऊंची आवाज में कहा।“चैनल हेड बनने के बाद माहुल वीर का पैसा भी बढ़ाया जाएगा? ”

“जब से माहुल वीर को खबर लगी है कि नये चैनल हेड के लिए किसी बंदे की तलाश की जा रही है तब से उन्होंने फोन ही बंद कर दिया है। किसी से बात नहीं कर रहे हैं। वैसे मुझे पूरा उम्मीद है कि रत्नेश्वर सिंह माहुल वीर के नाम पर राजी हो जाएंगे। इसके अलावा इनके पास और कोई विकल्प भी नहीं है। पैसे के नाम पर यह बिदकते हैं। नया चैनल हेड मोटी रकम मांगेगा और ये देने से रहे। माहुल वीर को चैनल हेड तो बना देंगे लेकिन पैसा नहीं बढ़ेगा,” रंजन ने कहा।

“ऐसी स्थिति में माहुल वीर चैनल हेड का पोस्ट स्वीकर करके गलती करेंगे, जब वे नये पोस्ट की जिम्मेदारी लेंगे तो पैसा बढ़ना तो स्वाभाविक है। किसी भी आर्गेनाइजेशन का एक नार्म्स होता है, उसे मेन्टेन करना चाहिये, ” नीलेश ने कहा।

“यहां कोई नार्म्स नहीं है। चैनल हेड बनने के बाद इधर- उधर से वह हसोत ही लेंगे, ” रंजन ने कहा।

“वो तो ठीक है, लेकिन मेरी समझ में यह नहीं आया कि आखिर नरेंद्र श्रीवास्तव को चलता क्यों किया गया,” नीलेश ने रंजन की तरफ देखते हुये पूछा।

“इनको लेकर बहुत दिन से लफड़ा चल रहा था। इसके पहले ये दो बार भाग चुके हैं। बार-बार इनको मना करके लाया गया है। लेकिन अब रत्नेश्वर सिंह को यकीन हो गया है कि इनके बिना भी चैनल सकता है। यहां के कई लोग इस बात को लेकर लगातार रत्नेश्वर सिंह की कान भर रहे थे। अब एक ही बात को दस लोग किसी आदमी के सामने दस तरीके से कहेंगे तो असर तो होगा ही ना। एक बात और बोल देता हूं इनके पक्ष में खड़ा होने वाला यहां एक भी आदमी नहीं है। इनको बाहर का रास्ता दिखाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका माहुल वीर की है। इनके जाने से सीधा फायदा माहुल वीर को होगा और दुनिया का सीधा फंडा है सामने वाले के हलाल होने से यदि ताज हासिल होता है तो फिर कर दो हलाल, ” रंजन ने कहा।

“माहुल वीर के चैनल हेड बनना हमारे हक में ही रहेगा,” सुकेश ने कहा।

“मैं इस बात से सहमत नहीं हूं। अभी हमलोगों के लिए सबसे बड़ा हेडेक है महेश सिंह। उसने तो यहां पर गंध मचा रखा है। और माहुल जब भी यहां आता है, महेश सिंह के साथ जाम से जाम टकराना नहीं भूलता । मुझे नहीं लगता कि माहुल वीर के चैनल हेड बनने की स्थिति में महेश सिंह पर किसी तरह का लगाम लग पाएगा। एक बात और भूपेश भी मानषी को एंकर बनाने के लिए बहुत दिनों से छटपटा रहा है। अब इसकी स्थिति सैंया भये कोतवाल अब डर काहे का वाली होगी। भूपेश भी महेश सिंह की जुबान बोलने लगा है। कहता है डेस्क तुड़वा देंगे, प्रोग्रामिंग में काम करने वाले सारे लोग थके हुये हैं, इसको कंट्रोल करना भी मुश्किल हो जाएगा,” रंजन ने आशंका जाहिर की।

“भूपेश को मैं संभाल लूंगा। एक बार मैं उसको डोज दे चुका हूं। जरूरत पड़ेगी तो एक डोज और दे दूंगा, ” सुकेश ने कहा।

“आपके डोज का उस पर कोई असर नहीं हुआ है। उल्टे वह आपको भी गालियां देता फिर रहा है, मुझे तो देता ही है। लालू का पतन उसके सालों के कारण हुआ, यदि माहुल वीर चैनल हेड बनता है तो उनका भी पतन अपने साले के कारण ही होगा। यह सुनने के बाद कि नरेंद्र श्रीवास्तव की विदाई हो रही है, उसका रंगढंग आज से ही बदलने लगा है। अभी कुछ देर पहले बोल रहा था कि एक-एक को ठीक कर दिया जाएगा,” रंजन ने कहा।

“वसुली का क्या होगा, जो जिले के रिपोटरों को करने के लिए कहा गया है,” नीलेश ने पूछा।

“वो तो जारी रहेगा, हालांकि उससे होना जाना कुछ नहीं है। अरे, कोई रिपोटरो कहां से पैसा लाएगा। महेश सिंह ने पूरी संस्कृति ही बिगाड़ दी है, ” रंजन ने कहा।

“एक बात है हमलोगों की पूरी एनर्जी इसी में जाती है। यहां आने के बाद सब यही सोचते रहते हैं कि कौन क्या करेगा, किसके साथ क्या किया जाये, क्रिएटिव टाक तो होता ही नहीं है। चैनल चलाने का सीधा सा फंडा है, रुटीन की खबरों के अलावा प्रत्येक दिन कोई ऐसी खबर पकड़ों की हंगामा हो जाये। रिपोटर का मतलब ही होता है, अधिकारियों की नौकरी खाने वाली खबरों को पकड़ने वाला, मंत्री की कुर्सी खाने वाले रिपोटर का कद तो और भी बड़ा हो जाता है, इसके अलावा  बाकी सब चलताऊ मामला है। यहां तो सारे रिपोटरों को वसुली में लगा रखा है, लेकिन वो भी तो ठीक से नहीं करना आ रहा है। वसुली ही करनी है तो टारगेट करके डेली दस खबर धुआंधार तरीके से चलाओ, फिर जाकर वसुलो। जो भी हो, अब मुझे यहां मजा आने लगा है, इस तरह की चिरकुटई मैंने आज तक नहीं देखा था, भगवान बुद्ध को बिहार में वट वृक्ष के नीचे ज्ञान मिला था, और मुझे इस चैनल में आने के बाद मिल रहा है,” नीलेश ने हंसते हुये कहा। तभी चाय वाले ने उसे चाय की एक गिलास पकड़ा दी।

“अब तो तुम भी वसुली का फंडा बताने लगे, लगता है यहां के पत्रकारिता का रंग तुम पर अब चढ़ने लगा है,” सुकेश ने कहा।

“सवाल वसुली का नहीं है, सवाल है किसी काम को करने का, जब हम जान जाते हैं कि यह काम हमें करना है तो बस करना है। यदि वसुली ही करनी है तो इसके लिए एक फूलप्रूफ योजना बनानी चाहिये। लोग तो यहां खबरों को रोकने की कीमत देते हैं लेकिन खबर की वह औकात होनी चाहिये। मीडिया क्या है?  खबरों का कारोबार, तो इस कारोबार को ठीक से चलाओ तो यार, यहां न तो ठीक से क्रिएटिव वर्क हो रहा है और न ही वसुली। कंट्री लाइव से लोगों के हटाने की शुरुआत भुजंग ने की थी, फिर भुजंग को भी हटा दिया और अब नरेंद्र श्रीवास्तव को भी चलता कर दिया। रत्नेश्वर सिंह को हटाने का स्वाद मिल चुका है और यह पत्रकार और पत्रकारिता दोनों के लिए बुरा साबित होगा। जहां तक माहुल वीर का सवाल है, यदि वह इस चैनल में चैनलहेड के वर्तमान तंत्रम से कम पर चैनल हेड बनते हैं तो वह स्ट्रैटेजिक गलती तो करेंगे ही, यहां के लोगों के हक में भी यह नहीं होगा। इसका असर बाद में देखने को मिलेगा, ” नीलेश तेजी से बोलता गया। चाय खत्म करने के बाद सुकेश खैनी मल रहा था।

“हरकोई आगे बढ़ना चाहता है, यदि माहुल वीर को यह मौका मिल रहा है तो वह इसे क्यों छोड़े,” सुकेश ने कहा, “एक चैनल हेड के रूप में बहुत कुछ करने का मौका रहता है, सबसे बड़ी बात तो आदमी का ग्राफ बढ़ता है, मार्केट वैल्यू बढ़ती है।”

“अभी क्लीयर नहीं है कि माहुल वीर को ही चैनल हेड बनाया जाएगा, हां इसकी पूरी संभावना जरूर है,” रंजन ने कहा।

“खुद की मार्केट वैल्यू बढ़ाने के लिए आपको गलत संस्कृति को बढ़ाने का अधिकार कौन देता है, वो भी पत्रकारिता जैसे पेशे में ?  व्यक्तिगत निष्ठा अलग चीज है, व्यक्तिगत निष्ठा के चलते जो गलत है उसे गलत कहने से नहीं रोका जा सकता। यहां तो हर इंसान अपने इर्द गिर्द युद्ध छेड़े हुये और यह युद्ध खुद के लिए है। आज इस युद्ध में नरेंद्र श्रीवास्तव हलाक हुये हैं, कल कोई भी हो सकता है। वर्किंग लेवर पर नरेंद्र श्रीवास्तव चाहे जैसे भी थे, इस पेशे की प्रति गरिमा की बात उनके मुंह से जरूर निकलती थी। इस बात का वह ख्याल रखते थे कि लोगों को टाइम पर पैसा मिल रहा या नहीं, अब मुझे डर है कि इन दोनों चीजों पर प्रभाव पड़ेगा,” नीलेश ने कहा।

“मुझे लगता है कि ये दोनों चीजें बेहतर होंगी, माहुल वीर के हाथ में कमांड आने के बाद। वो एक मजा हुआ खिलाड़ी है, सब कुछ तरीके से संभाल लेगा, और फिर हमलोग भी तो उसी का साथ देंगे ” सुकेश ने कहा।

“अपने साला को संभाल ले, यही बहुत होगा,” रंजन ने कहा।

“बहुत बातें हो गई, दफ्तर के अंदर चलते हैं, देखें वहां क्या चल रहा है, ” सुकेश ने खड़ा होते हुये कहा। रंजन और नीलेश भी उसके साथ खड़ा हो गये। हमेशा की तरह रंजन ने चाय वाले को पैसे दिये और तीनों दफ्तर की तरफ चल पड़े।

39.

नरेंद्र श्रीवास्तव भुजंग की केबिन में आराम से बैठे हुये थे, जबकि दफ्तर के अंदर उनकी विदाई को लेकर खुसफुसाहट हो रही थी। विमल मिश्रा और सुयश मिश्रा कुछ ज्यादा ही गमगीन थे। विमल मिश्रा के होठों पर हर वक्त रहने वाली मुस्कराहट गायब थी और सुयश मिश्रा अपने कंप्यूटर बैठकर चुपी साधे हुये था। चुंकि इन दोनों की नियुक्ति नरेंद्र श्रीवास्तव ने ही कंट्री लाइव में करवाई थी, इसलिये दफ्तर के अंदर हवा उड़ी हुई थी कि नरेंद्र श्रीवास्तव के साथ ये दोनों भी चले जाएंगे। साथ ही महेश सिंह को लेकर भी अटकलें लगाई जा रही थी। कंट्री लाइव के अंदर महेश सिंह का प्रवेश भी नरेंद्र श्रीवास्तव ने ही कराया था, और पिछले कुछ दिनों से जिस तरीके से महेश सिंह नरेद्र श्रीवास्तव के साथ चिपका हुआ था उसे देखकर यही अंदाजा लगाया जा रहा था कि नरेंद्र श्रीवास्तव के साथ कोई जाये न जाये वह जरूर जाएगा।

रत्नेश्रर सिंह के पास भी यह बात पहुंच चुकी थी कि नरेंद्र श्रीवास्तव के हटने पर विमल मिश्रा और सुयश मिश्रा के जाने की पूरी संभावना है। इस मामले पर कड़ा रुख अपनाते हुये रत्नेश्वर सिंह ने हुक्म जारी कर दिया था कि जिनको जाना है जाये।

रांची में बैठे माहुल वीर अलग-अलग स्रोतों से पूरे मामले की जानकारी ले रहा था। मुजफ्फरपुर में अविनव पांडे माहुल वीर के लिए फिल्डिंग करने में लगा हुआ था। माहुल वीर के साथ उसने अघोषित रूप से तालमेल बैठा लिया था कि यदि माहुल चैनल हेड बनता है तो पटना ब्यूरो का कमान उसके हाथ में सौंप दिया जाएगा। अविनव पांडे किसी भी कीमत पर महेश सिंह को निपटाना चाहता था, जिसके साथ उसकी ठनी हुई थी और माहुल वीर एक साथ दोनों को कांफिडेन्स में लेकर अपना रास्ता साफ करने में लगा हुआ था।

जब से महेश सिंह को यह पता चला था कि नरेंद्र श्रीवास्तव की छुट्टी हो गई है और माहुल वीर चैनल हेड के पद पर काबिज होने के लिए कसरत कर रहा है उसने अपने आप को  नरेंद्र श्रीवास्तव से पूरी तरह से दूर कर लिया था। यहां तक कि सुबह गेस्ट हाउस में नरेंद्र श्रीवास्तव के बुलाने पर भी वह नहीं गया, जबकि विमल मिश्रा और सुयश मिश्रा नरेंद्र श्रीवास्तव के प्रति प्रतिबद्धता जताने के लिए गेस्ट हाउस में हाजिर हुये थे।

नरेंद्र श्रीवास्तव को भुजंग के दरबे में अकेला बैठा देखकर रंजन उनके पास पहुंच गया। रंजन पर नजर पड़ते ही उन्होंने मुस्कराकर कहा, “ आओ रंजन, तुम्हे तो पता ही होगा आज इस दफ्तर में मेरा अंतिम दिन है। ”

“यह अच्छा नहीं लग रहा है, आपने सबकुछ खड़ा किया और और अब आप जा रहे हैं,” रंजन ने थोड़ी मायूसी से कहा।

“आना जाना तो लगा रहता है, अब मैं अपने आत्मसम्मान को मार कर काम नहीं कर सकता। तुम्हारे साथ भी मैंने कुछ ज्यादती कर दी थी। उम्मीद है उसे भूल जाओगे, ”

“कैसी बात कर रहे हैं सर, आपने जो भी किया संस्थान के हित के लिए ही किया।”

“अब मुझे लगता है कि मैं गलत लोगों से घिरा रहा। उनकी बातों में आकर ही मैंने उल्टे सीधे निर्णय लिये। आदमी की पहचान करने में मुझसे चूक हुई। कोई बात नहीं फिर साथ काम करने का मौका मिलेगा। जाओ काम करो। ”

रंजन उठ कर बाहर कि तरफ बढ़ने लगा, पीछे से नरेंद्र श्रीवास्तव के गुनगुनाने की आवाज उसके कानों में आ रही थी, “चलो फिर अजनबी बन जाये हम दोनों…..”

to be continued——-

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