बिहार की राजनीती में गठबंधन और मान-मनौव्वल
विनायक विजेता, वरिष्ठ पत्रकार.
* नरेन्द्र मोदी को बिहार में चुनाव प्रचार न करने का फेक सकते हैं पासा
* इस शर्त पर गठबंधन में हो सकता है मान-मनौव्वल
* नीतीश को छोड़कर जदयू का कोई एमपी नहीं चाहता गठबंधन तोड़ना
* गठबंधन टूटा तो दोनों दलों में मच सकती है भगदड़
* नरेन्द्र मोदी द्वारा बिहार में चुनाव प्रचार न करने की नीतीश की शर्त को मन सकती है भाजपा
जदयू में विद्रोह की तैयारी शुरू , कई विधायक व एमपी पाला बदलने के मूड में
कईयों का मानना नीतीश को उनकी छवि नहीं लालू के विरोध में मिला था वोट
गठबंधन तोड़े तो बिहार में भी होगी यूपी चुनाव परिणाम की हालत।
जदयू-भाजपा गठबंधन में नरेन्द्र मोदी के नाम पर आये विरोध के बीच मंगलवार की शाम से लेकर अबतक बिहार में गठबंधन टूटने के चल रहे कयासों के और चैनलों में चल रहे समाचारों के बीच हमारा यह कयास है कि बीते दिनों लालकृष्ण आडवाणी की तरह ही नीतीश कुमार भी थूक गिराकर उसे चाटने की कवायद करेंगे। अंदरूनी सूत्रों के अनुसार जदयू में नीतीश कुमार के कुछ निजी सिपाहसलारों और उनके चाटुकारों को छोड अधिकांश विधायक या एमपी गठबंधन तोडने के खिलाफ हैं। ऐसे विधायको और सांसदों ने कहा की अगर नीतीश जी उनसे कोई बात करे तब तो उन्हें कोई सलाह दी जा सकती है, पर घमंड में चूर वह किसी से बात भी करना नहीं चाहते। जदयू के ही कई नेताओं ने यह माना की नीतीश कुमार बिहार की राजनीतिक हालात और जातीय वोट समीकरण को जानते हैं। यह जगजाहिर है कि नीतीश कुमार को दो बार सत्ता में लाने वाली बिहार की जनता ने उन्हें वोट नहीं दिया बल्कि राजग गठबंधन और लालू के विरोध में वोट दिया जैसा वोट कभी मुलायम सरकार या समाजवादी पार्टी के खिलाफ सवर्णों सहित कई आम जातियों के लोगों ने बसपा और उसकी नेत्री मायावती के पक्ष में दिया था। पर जब मायावती का भी घमंड और अफशरशाही यूपी में हावी हुई तो कभी मुलायम सरकार को बिहार से भी ज्यादा जंगलराज करार देने वाली यूपी की जनता को एक बार फिर से सपा की सरकार को ही आजमाने का मौका देना पडा। नीतीश कुमार को किसी वहम का शिकार रहने के बजाए यूपी से सीख लेनी चाहिए कि किसी की सरकार को जंगलराज का भय दिखाकर ज्यादा दिन राजनीति नहीं चलती। वो तो नीतीश का सौभाग्य है कि उन्होंने अपनी राजनीतिक जातिगत लाभ लेने के लिए अभ्यानंद जैसे ईमानदार आईपीएस को डीजीपी बनाया जिन्होंने कई महत्वपूर्ण काम के साथ आर्थिक अपराध कोषांग खोला जिस विभाग ने नीतीश कुमार के राज में ही कमाए गए सैकडों अफसरों द्वारा अर्जित अरबों रुपयों की संपत्ति का खुलासा किया। भले ही थर्ड फ्रंट की बातें हो सकती हैं पर देश और बिहार की जनता ने यह देखा है कि अबतक तीसरे मोर्चे का हश्र देश में क्या हुआ है। जिस तीसरे मोर्चे की बात हो रही है उनमें किसी का बिहार में लोकसभा की एक भी सीट न जीताने की कुव्वत है और न ही बिहार में उनकी कोई पहचान है। नीतीश कुमार राजनीति के परिपक्व खिलाडी हैं वो जानते हैं कि अगर वो भजपा से अलग हुए तो बिहार की राजनीति में एक अहम भूमिका निभाते सवर्ण वोटरों का एक बड़ा तबका तो उनसे छिटक ही जाएगा। बिहार में पिछडों के नाम पर वोट लेने वाले नीतीश का साथ वो पिछडे भी छोड देंगे जिस जाति और वर्ग से नरेन्द्र मोदी आते हैं। जदयू-भाजपा गठबंधन में दरार की खबर के साथ ही जिस तरह पूर्व मंत्री व मोहनिया के विधायक छेदी पासवान व विधायक जयकुमार सिंह का बयान आया उससे साफ जाहिर है कि जदयू में विद्रोह के स्वर तेज हो रहे हैं। मैंने लगभग तीन माह पूर्व अपने पोस्ट पर यह लिखा था कि नीतीश की कांग्रेस से नजदीकियां बढ रहीं हैं। अगर नीतीश का भजपा से गठबंधन टूटा, जिसकी उम्मीद कम है तो नीतीश तीसरे मोर्चे को अहमियत कम देते हुए कांग्रेस से गठबंधन का प्रयास करेंगे क्योंकि ऐसी स्थिति में ही उन्हें कुछ प्रतिशत सवर्ण जाति का वोट हासिल हो सकता है। नीतीश राजनीति के एक परिपक्व खिलाडी हैं जहां मेरा मानना है गठबंधन तोडने की स्थिति में उन्होंने अपना राजनीतिक नफा-नुकसान का आंकलन जरुर कर लिया होगा। मुझे नहीं लगता कि नीतीश कुमार अगले लोकसभा चुनाव होने तक यह गठबंधन तोडेंगे।