बिहार को विशेष दर्जा के नाम पर इमोशनल अत्याचार
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए राज्य भर में जदयू द्वारा हस्ताक्षर अभियान चलाये जा रहे हैं। पूरे तामझाम से जहां तहां सड़क के किनारे तंबू गाड़कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पोस्टर चिपका दिया जाता है, और माइक लगाकर लोगों से बड़ी संख्या में इस हस्ताक्षर अभियान में भाग लेने की इमोशनल अपील की जाती है। इस इमोशनल अपील से प्रभावित होकर लोग तंबू में आकर हस्ताक्षर भी कर रहे हैं। करीब एक करोड़ लोगों से हस्ताक्षर कराने का लक्ष्य है।
अब प्रश्न उठता है कि जब नीतीश कुमार को बिहार की जनता भारी बहुमत से विजय बना चुकी है तो फिर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए जनता के बीच हस्ताक्षर अभियान क्यों? क्या केंद्र के प्रतिनिधियों से बात करने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक बार मिला अपार जनमत काफी नहीं है ? इस हस्ताक्षर अभियान का कितना दबाव केंद्र पर पड़ेगा ? बिहार के हित से किसी भी बिहारी को गुरेज नहीं होगा और न होना चाहिये। लेकिन अपार बहुमत मिलने के बाद अब हस्ताक्षर अभियान क्या हास्यास्पद नहीं लगता ? बिहार की बहुत बड़ी आबादी गरीबी रेखा के नीचे हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है। इसके साथ ही अंगूठा छाप लोगों की संख्या भी बहुत अधिक है। ऐसे में अंगूठा छाप लोग इस हस्ताक्षर अभियान में कैसे भाग लेंगे? क्या वे अपने अंगूठे से ही एक बार फिर ठप्पा लगाएंगे?
पिछले चुनाव में बुरी तरह से पछाड़ खाने वाला राजद इस अभियान के खिलाफ मुखर होने की पूरी कोशिश कर रहा है। राजद नेता रामकृपाल यादव हस्ताक्षर अभियान पर भड़कते हुये कहते हैं कि नीतीश कुमार सभी मोर्चे पर बुरी तरह से विफल हो चुके हैं। जो वादे उन्होंने जनता से किये थे वो पूरा नहीं कर सके। मौलिक समस्याओं से जनता का ध्यान हटाने के लिए अब वे हस्ताक्षर अभियान की नौटंकी कर रहे हैं। जब बिहार की जनता ने उन्हें भारी मतों से चून लिया है तो इस हस्ताक्षर अभियान का क्या औचित्य है। इसी तरह राजद के नेता अब्दुल बारीक सिद्दकी भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मंशा पर सवाल उठाते हुये पूछ रहे हैं कि जब वे केंद्र में मंत्री थे तो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए पहल क्यों नहीं किया। अभी भी इस मसले को केंद्र के प्रतिनिधियों के सामने मजबूती से रखने की जरूरत थी, लेकिन केंद्र के प्रतिनिधियों से बात करने के बजाय मुख्यमंत्री जनता के बीच हस्ताक्षर अभियान चलाने में जुटे हैं। बिहार की जनता के साथ धोखाधड़ी कर रहे हैं।
एनसीपी तो यहां तक कह रही है कि बिहार विशेष राज्य का दर्जा पाने के मापदंडों पर खरा नहीं उतरता है। बिहार विशेष पैकेज का हकदार हो सकता है, लेकिन विशेष राज्य का दर्जा पाने के नहीं। विशेष राज्य का दर्जा पाने के लिए यह जरूरी है कि वह पहाड़ी राज्य हो, और उसकी अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगता हो।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री डा. जगन्नाथ मिश्रा जोर देते हुये कहते हैं कि बिहार के साथ शुरु से ही भेदभाव किया जा रहा है। बिहार को विशेष पैकेज दिलाने के लिए उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भी बात की थी, लेकिन इंदिरा गांधी ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया था। कांग्रेस में होने के कारण डा. जगन्नाथ मिश्रा एक सीमा तक ही इंदिरा गांधी का विरोध कर सकते थे। अब जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस मुद्दे को सही तरीके से उठा रहे हैं तो वे उनका हर तरह से सहयोग करने के लिए तैयार है।
बहरहाल मामला चाहे जो हो, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस मुद्दे को अपने नाम से पेटेंट जरूर कर लिया है। अब चित भी मेरा और पट भी मेरा के तर्ज पर नीतीश कुमार इसी मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार को लगातार कोस रहे हैं। यदि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलता है तो नीतीश कुमार इसका ठिकरा केंद्र पर फोड़ सकते हैं और यदि मिल जाता है तो सारा श्रेय लूट ले जाएंगे। डर है इस पूरे झमेले में बिहार की जनता एक बार फिर अपने को ठगा हुया न महसूस करे।
बिहार तो पहले से विशेष राज्य है। और जहर 100 ग्राम खाइये या एक किलोग्राम, अन्तिम बात तो तय है। बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाना भी एक नौटंकी तो है ही। जब अपने कुछ करना नहीं है तो ये नेता जैसे लालू या नीतीश आदि झूठ-मूठ का नारा लगाकर सब दोष केंद्र पर मढ़ते रहते हैं। लेकिन क्या बिहार के इन नेताओं ने अपना फर्ज कभी भी पूरा किया है?
जदयू एक दिन डूबेगी और राजद भी। इन लोगों का हाल ऐसा हो जायेगा कि लोग ये भी नहीं जान पायेंगे कि कभी ये दो पार्टियां होती भी थीं। लेकिन इसके लिए एक वक्त लगेगा। वैसे भी अगर मैं आपको विशेष कह दूं तो न तो आप बदलते हैं और न ही आपका चरित्र बदलता है। फिर यह एक शब्द कहवाने के लिए नौटंकी क्यों?