भाजपा में दल नहीं विचारधारा प्राथमिक है : सुगन सिंह

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सुगन सिंह, बीजेपी कार्यसमिति के सदस्य
सुगन सिंह, बीजेपी कार्यसमिति के सदस्य

आलोक नंदन, तेवरऑनलाईन

सुगन सिंह मूलत : किसान नेता हैं। बिहार के किसानों के हक में वे लगातार आवाज उठाते रहे हैं। किसानी के साथ-साथ बिहार की राजनीति पर भी इनकी बेहतर पकड़ है। तमाम राजनीतिक मसलों पर बेबाकी के साथ बोलते हैं। लंबे समय से  सुगन सिंह बिहार बीजेपी के किसान सेल से जुड़े हुये थे। इन दिनों    बीजेपी कार्यसमिति के सदस्य के रूप में मुखरता के साथ पेश आ रहे हैं। बिहार की राजनीति परिस्थिति पर इनके साथ तेवरऑनलाईन के संपादक आलोक नंदन की लंबी बातचीत हुई। पेश है इस बातचीत के मुख्यअंश-

तेवरऑनलाईन :  केंद्र में नरेंद्र मोदी के सत्तासीन होने के बाद से बिहार ‘हॉट केक’ बन चुका है। आमतौर पर यही माना जा रहा है कि सैद्धांतिक रूप से 2015  के बिहार विधानसभा चुनाव के समय लड़ाई फासीवाद बनाम सेक्यूलरिज्म के बीच होगी। आपका क्या आकलन है ?

सुगन सिंह : बिहार की लड़ाई को जो लोग फासीवाद के खिलाफ लड़ाई बता रहे हैं वो मुगालते में है। बिहार की जनता विकासवाद को अपनाना चाहती है। झारखंड बंटवारे के बाद अल्प संशाधनों में बिहार का जितना विकास होना चाहिए था नहीं हो पाया है। आज बिहार की जनता भाजपा विरोधी दलों की फासीवादी और नकली धर्मनिरपेक्षता के मुखौटे को समझ चुकी है। यहां पूरे प्रदेश की जनता विकास की ओर जाना चाहती है। जिसके जिसके लिए वह भाजपा की ओर देख रही है। बिहार की जनता को यकीन है कि विकास के उसके सपने को भाजपा ही पूरा कर सकती है।

तेवरऑनलाईन :कभी बिहार के विकास में आपलोग नीतीश कुमार के साझीदार थे। अब आमने-सामने है, कैसे कैलकुलेट करेंगे इसे ? नीतीश कुमार के साथ मिलकर विकास की बात पहले भी कर रहे थे और अब उनसे अलग होकर भी आप विकास की बात कर रहे हैं और नीतीश कुमार भी विकास का ही लेखाजोखा लेकर जनता के बीच जाने की तैयार कर रहे हैं। भाजपा के विकास की अवधारणा को नीतीश के विकास की अवधारणा से अलग कैसे है ?

सुगन सिंह : 2005 में जब एनडीए की सरकार बिहार में आयी तो बिहार एनडीए के नेतृत्व में विकास की ओर अग्रसर हुआ जिसके अच्छे परिणाम जनता की ओर से मिलने शुरु हो गये, परंतु एनडीए के सरकार के विकास को जनता द्वारा मिल रहे समर्थन से भ्रमित होकर नीतीश कुमार ने इसे अपने व्यक्तिगत छवि का समर्थन समझ लिया और यही से उनका तानाशाही रवैया शुरु हो गया, जिसके कारण सरकार के काम करने के तरीके में परिर्वतन हुआ। इसके नकारात्मक परिणाम बहुत जगह से पहले ही आने शुरु हो गये थे। लेकिन गठबंधन टूटने के बाद तो पूर्णरूप से अफसरशाही और भ्रष्टाचार का इतना प्रभाव बढ़ गया कि विकास बहुत पीछे छूट गया और एक वर्ष में ही नीतीश कुमार ने बिहार को पुन: 2005 के पहले की स्थिति में पहुंचा दिया।

तेवरऑनलाईन  : गठबंधन टूटने के बाद लोकसभा चुनाव में तो आपलोगों ने बाजी मार ली, अब 2015 बिहार विधानसभा चुनाव में सीन क्या होगा ?

सुगन सिंह : गठबंधन टूटने का मुख्य कारण नीतीश कुमार का अति महत्वकांक्षी और तानाशाही रवैया था। गठबंधन टूटने के बाद अभी जो भाजपा विरोधियों का नया महागठबंधन बना है उससे बिहार की जनता में बहुत ही गलत संदेश गया है। इससे भाजपा विरोधी वोट बढ़ने के विपरित घट जाने की संभावना है। चूंकि हर वर्ग का व्यक्ति विकास और शांति चाहता है, लेकिन अभी तो पूरे बिहार में अपराध और भ्रष्टाचार का बोलबाला है।

तेवरऑनलाईन  : लोकसभा चुनाव के पूर्व नरेंद्र मोदी को लेकर नीतीश कुमार ने अलग राह पकड़ी थी। 2015 बिहार विधानसभा चुनाव में मोदी फैक्टर का कितना असर रहेगा ?

सुगन सिंह : माननीय नरेंद्र मोदी के काम करने के तरीका से पूरे भारत की जनता प्रभावित है। देश की 125 करोड़ जनता नरेंद्र मोदी की तरफ आशाभरी निगारों से देख रही है। भाजपा और नरेंद्र दोनों की कार्यशैली का असर बिहार की जनता के विधानसभा चुनाव पर प्रत्यक्षरूप से पड़ेगा और यहां की जनता विरोधियों को इस तरह से परास्त करेगी शायद इसका अनुमान उन्हें भी नहीं होगा।

तेवरऑनलाईन: आमतौर पर कहा जाता है कि भाजपा  सांप्रदायिक राजनीतिक करती है। हाल ही में लव जेहाद जैसे मुद्दों को उठाकर लोगों को लामबंद करने की कोशिश की है। क्या 2015 में भाजपा इस तरह के मुद्दों को भी लेकर चलेगी ?

सुगन सिंह : लव जेहाद राजनीतिक मुद्दा नहीं, आपराधिक कार्य है। किसी भी व्यक्ति से सच छिपाकर, झूठ बोलकर उससे शादी करना और धर्मान्तरण करने के लिए विवश करना यह न तो सामाजिक रूप से अच्छी बात है और न ही राजनीतिक रूप से। इसलिए किसी भी वर्ग की जनता लव जेहाद जैसी परंपराओं के पक्ष में कहीं भी खड़ी नहीं है।

तेवरऑनलाईन : लोकसभा में तो आपको सफलता मिली लेकिन   बिहार विधानसभा के उप चुनाव में भाजपा को आशातीत सफलता नहीं मिली, क्यों ? 10 में 6 सीट आपके विरोधी ले गये।

सुगन सिंह : पहली बात तो यह है कि संसदीय चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर आधारित होते हैं जबकि विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दें प्रभावी होती हैं। भाजपा को कुछ सीटें कम आयी हैं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि भाजपा के वोट बैंक में कमी आयी है या महागठबंधन का वोट बैंक बढ़ गया है। यह सिर्फ बिहार के कुछ भाजपा नेताओं की कार्यशैली से नाराज जनता और कार्यकर्ताओं ने अपना विरोध दर्ज कराया है।

तेवरऑनलाईन : तो ऐसा माना जाये कि भाजपा अंदरखाते लामबंदी की शिकार है ?

सुगन सिंह : इधर चार-पांच वर्षों से भाजपा का संगठन कुछ बड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी असहज लगने लगा है। अपने दल के ही एक दो लोग सारे वरिष्ठ लोगों को हाशिये पर धकेल कर अपने आप को सबसे बड़ा प्रोजेक्ट करना चाहते हैं। इसका विरोध पार्टी के अंदर में है। मैं समझता हूं कि इसकी पूरी जानकारी केंद्र्रीय नेतृत्व और संगठन को भी है, जो उचित समय पर इसका निराकरण कर देंगे और सबकुछ बिल्कुल बेहतर हो जाएगा। भाजपा एक ऐसी पार्टी है जिसमें आंतरिक मतभेद कुछ होते भी हैं तो उसे अपने दल के लोग सुलझा लेते हैं, जिसके चलते इसका लाभ विरोधी दलों को कभी नहीं मिलता है। इसका स्पष्ट उदाहरण संसदीय चुनाव है, जिसमें सभी विरोधी दलों ने भाजपा के अंदर मतभेद की बात को काफी प्रचारित किया था, लेकिन चुनाव में इसका उल्टा ही असर देखने को मिला।

तेवरऑनलाईन : भाजपा अब छोटे-छोटे दलों को साथ लेकर चल रही है। बिहार में भी कई छोटे-छोटे दल भाजपा से जुड़े हैं, ऐसे में सीट शेयरिंग फार्मूला क्या होगा  ?

सुगन सिंह : भाजपा गठबंधन के लिए दल के बजाय विचारधारा को अधिक प्राथमिकता देती है। ऐसे में समान विचारधाऱा वाले दलों से चुनाव पूर्व गठबंधन होते हैं, सीटों का बंटवारा बहुत मायने नहीं रखता। भाजपा उदारवादी नजरिये से गठबंधन के हर दल को उचित सम्मान देती है। लेकिन कभी –कभी दल के अतिमहत्वाकांक्षी नेताओं की वजह से समस्या हो जाती है और वे नेता भाजपा से अलग हो जाते हैं। परन्तु चुनाव परिणाम स्पष्टरूप से दर्शाते हैं कि निजी स्वार्थो के लिए गठबंधन छोड़कर जानेवाले दलों हस्र बहुत अच्छा नहीं होता।

तेवरऑनलाईन : बिहार की राजनीति में जंगलराज एक प्रिय जुमला रहा है, आप क्या कहेंगे इस बारे में।

सुगन सिंह : जंगलराज का सरल अर्थ यही होता है कि ताकतवर की सत्ता चलेगी। कमजोर लोगों के लिए प्रताड़ना और यातना अधिक उस राज में कुछ नहीं मिलता। 2005 के पूर्व 15 सालों में बिहार की जनता देख चुकी है कि किस तरह से अपराधियों और दंबगों का राज बिहार में रहा है और कमजोर लोग बिहार से पलायन करने को विवश रहे हैं। 2005 के चुनाव में लोगों ने जंगलराज के खिलाफ ही वोट दिया था। अब बिहार की जनता एक बार फिर जंगलराज के पुनरावृति से सहमी हुई है। लालू यादव और नीतीश कुमार एक साथ मिलकर अब जंगलराज की ओर ही कदम बढ़ा रहे हैं। लालू के सामने नीतीश कुमार आत्मसमर्पण और सत्ता द्वारा अपराधियों और भ्रष्टाचारियों को बढ़ावा देना बीजेपी-जदयू गठबंधन के बाद जंगलराज की वापसी का संकेत दे रहे हैं। बिहार की जनता अभी से इसको झेलने के लिए विवश है।

तेवरऑनलाईन : जैसा कि आप कह रहे हैं कि भाजपा से जदयू के हटते ही बिहार में जंगलराज के संकेत मिलने लगे, सुशासन के बारे में क्या कहेंगे। नीतीश कुमार बिहार में सुशासन लाने की बात करे थे, उस वक्त आप लोग भी उनके साथ थे, अब सुशासन की कमान जीतन राम मांझी के हाथ में है। कैसे देखते हैं सुशासन को ?

सुगन सिंह : पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पूर्व के कुछ वर्षों तक गठबंधन के साथ ठीक से चले उसी को हम सुशासन कह सकते हैं। एनडीए 2 की सरकार बनने के साथ ही उनके सहयोगियों ने उन्हें अतिमहत्वाकांक्षी और तानाशाह बना दिया जिसकी स्वीकारोक्ति उनके दल के कई मंत्री और विधायक भी मीडिया के सामने कर चुके हैं। एनडीए में टूट के लिए शतप्रतिशत नीतीश कुमार जिम्मेदार हैं। जीतनराम मांझी कहीं से मुख्यमंत्री पद के लिए उपयुक्त नहीं लगते। कहीं भी कुछ भी बोल देते हैं और फिर अपनी बात वापस ले लेते हैं। यह बहुत ही हास्यास्पद लगता है। नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद पर अपने विश्वसनीय शिष्य को बैठा तो दिया है लेकिन कहीं न कहीं उनके साथ धोखा होने जा रहा है।

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