पटना। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू के साथ मिलकर महागबंधन बना कर राजद ने 80 सीटें हासिल की थी। कुछ दिनों तक उप मुख्यमंत्री के तौर पर अपने आप को कई स्तर पर समृद्ध करने का अवसर मिलने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा फिर से बीजेपी के साथ गलबहियां करने के बाद तेजस्वी यादव को विपक्ष के नेता के तौर पर भी बिहार की अवाम की समस्याओं को सड़क से लेकर सदन के पटल पर उठाने के तौर तरीकों से वाकिफ होने का अवसर मिल चुका है। महागठबंधन के नेता के तौर पर कई पार्टियों से यारी- दोस्ती के साथ सियासी उदेश्यों की पूर्ति के लिए जुदा होने वाले मतलबपरस्त नेताओं का भी तर्जुबा हासिल कर चुके तेजस्वी यादव ने बड़े सलीके से खुद को 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की ओर से निर्विवाद मुख्यमंत्री के तौर पर पेश करने की रणनीति में एक हद तक कामयाबी हासिल कर ली है। अब उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती है महागठबंधन में सीट बंटवारे के काम को अंजाम देना और राजद के हिस्से में आने वाली सभी सीटों पर शत-प्रतिशत कामयाबी हासिल करने के लिए सही चेहरों का चयन करना और उन्हें मैदान में उतारना। 2015 के विधानसभा चुनाव में अपनी जीती हुई 80 सीटों को बरकरार रखते हुये ऐसी सीटों की पहचान करना जरूरी है जहां पर उन्हें कामयाबी मिलने की भरपूर उम्मीद है। ऐसी ही सीटों में एक सीट है बिहार शरीफ विधान सभा क्षेत्र।
2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में यह सीट महागठबंधन की ओर से जदयू के खाते में गया था। नीतीश कुमार के साथ समझौते के बाद लालू यादव ने हिलसा को छोड़कर नालंदा जिलों की सभी सीटें जदयू के दावे को स्वीकार कर लिया था। उसमें से एक सीट बिहार शरीफ का भी था। चुनाव में महागठबंधन की मजबूत गांठ के बावजूद बीजेपी से डाक्टर सुनील कुमार इस सीट से तीसरी बार जीत हासिल करने में कामयाब हुये थे। पूरी संभावना है कि इस बार यह सीट राजद के खाते में आएगी।
आजादी के तुरंत बाद यानि शुरुआती दिनों में बिहारशरीफ विधानसभा सीट पर कांग्रेस काबिज रही। 1951 में कांग्रेस के मो. अकील सैय्यद ने जीत दर्ज की उसके बाद लगातार दो टर्म 1957 और 1962 के चुनाव में कांग्रेस से गिरधारी सिंह विधायक बने। फिर यह सीट 1967-69 में भारतीय कॉम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) पाले में चली गयी। यह दौर बिहार में कॉम्युनिस्ट और समाजवादी आंदोलन के उभार का दौर था। 1967 और 1969 में सीपाई के वी के यादव ने इस सीट से जीत दर्ज की। 1972 के चुनाव में पहली बार भारतीय जनसंघ के वीरेंद्र प्रसाद ने यहां से जीत दर्ज करके दक्षिणपंथी राजनीति की नींव रखी। इसके बाद 1977 में देवनाथ प्रसाद सीपीआई के टिकट पर जीते और फिर 1980 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और जीत दर्ज करके इस विधानसभा क्षेत्र में पैर पसार रही दक्षिणपंथी राजनीतिक को पीछे धकेल दिया। 1985 में कांग्रेस ने शकील उज्जमा को मैदान में उतारा और वह जीत गये। लेकिन 1990 के चुनाव में एक बार फिर से देवनाथ प्रसाद भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम कर इस क्षेत्र में अपनी जीत सुनिश्चित करने में कामयाब रहे। 1992 के चुनाव में भी देवनाथ प्रसाद ने जीत दर्ज की लेकिन इस बार वह जनता दल का झंडा थामे हुये थे। 2000 में पहली बार सय्यैद नौशादुनबी उर्फ पप्पू खान राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर चुनाव जितने में कामयाब रहे। उसके बाद 2005, 2010 और 2015 के चुनाव में डा. सुनील कुमार को कामयाबी मिली है। वह दो बार जदयू की टिकट पर जीते हैं और एक बार भाजपा की टिकट पर। इस वक्त वह भाजपा में हैं और भाजपा में यहां उनकी टिकट पक्की मानी जा रही है।
2015 के चुनाव में डा. सुनील कुमार ने जदयू के उम्मीदवार मो. असगर शमीम को धूल चटाया था। जीत का फासला महज 2340 वोटों का था। मो. असगर शमीम को 73861 वोट मिले थे जबकि डा. सुनील कुमार को 76201 वोट मिले थे। चुंकि 2020 में बीजेपी और जदयू साथ हैं इसलिए एक बार फिर सीट डा. सुनील कुमार को ही मिलने की पूरी संभावना है। यदि ऐसा होता है और महागठबंधन की ओर से यह सीट राजद को मिलती है तो राजद प्रत्याशी का सीधा मुकाबला डा. सुनील कुमार से हो सकता है। ऐसे में राजद के शीर्ष नेतृत्व के सामने सबसे बड़ी चुनौती बिहार शरीफ विधानसभा क्षेत्र से अपने लिए सही उम्मीदाव के चयन की है।
2000 में पहली बार इस सीट पर जीत दर्ज करने के बाद राजद के सय्यैद नौशादुनबी उर्फ पप्पू खान वैश्य समुदाय के रामचंद्र प्रसाद को यह सोचकर विधान पार्षद बनवाने के लिए फिल्डिंग की थी कि भविष्य में वैश्य का वोट लेकर उस क्षेत्र में राजद की गोलबंदी को मजबूत करेंगे। लेकिन दो बार पार्षद दिवंगत रामचंद्र प्रसाद वैश्य के कैडर वोट में सेंधमारी करने में विफल रहे। नतीजतन न चाहते हुये भी हिन्दु-मुस्लिम धुव्रीकरण का लाभ कुशवाहा समुदाय के डॉ. सुनील कुमार को मिला और वह अपनी गोटी लाल करते रहे।
नालंदा लोकसभा क्षेत्र के विभिन्न विधानसभा क्षेत्र में जदयू-बीजेपी के लोग महागठबंधन में सेंध मारने की फिराक है जो अतंत : एनडीए को लाभ पहुंचाएगा। नीतीश कुमार अपने गृह जिला को हर हाल में बचाने की कला में माहिर रहे हैं। वह राजद की चूक से निश्चिततौर पर लाभ उठाएंगे।
फिलहाल बिहार शरीफ विधानसभा क्षेत्र में राजद की उम्मीदवारी के लिए वैश्य समुदाय अनिल कुमार अकेला सक्रिय हैं। वह अभी हाल ही में भाजपा छोड़कर राजद में शामिल हुये हैं। राजद का टिकट पाने के लिए इस वैश्य समुदाय की ओर से एक अन्य नाम छड़ व्यवसायी सुनील कुमार गुप्ता का उछल रहा है। कहा जा रहा है इनको राजद का टिकट दिलाने के लिए जदयू के पूर्व उप मेयर शंकर कुमार अंदर खाते फिल्डिंग कर रहे हैं। यह अफवाह भी तेजी से उड़ रहा है कि सुनील कुमार गुप्ता की राजद का टिकट हासिल करने के लिए अंदर खाते लेनदेन भी करने में लगे हुये हैं। इसे लेकर राजद के स्थानीय कार्यकर्ताओं में गहरी नाराजगी है। चुंकि इसके पहले 2000 के चुनाव में पप्पू खान के तौर पर राजद से एक मुस्लिम प्रत्याशी की जीत हुई थी। इस क्षेत्र में मुस्लिमों की संख्या भी ठीक ठाक है, इसलिए राजद की ओर से मुस्लिम प्रत्याशी का चयन करने की मानसिकता रखना स्वाभाविक है। लेकिन इस विधानसभा क्षेत्र पर गहरी नजर रखने वाले चुनाव समीक्षकों का कहना है कि यदि राजद यहां से किसी मुस्लिम उम्मीदावर को मैदान में उतारता है तो एनडीए के डा. सुनील कुमार का रास्ता और सहज हो जाएगा। मुसलमानों को लेकर उन्हें हिन्दुओं का ध्रुवीकरण करने का जबरदस्त आधार मिल जाएगा, जिसका फायदा उन्हें पहले के चुनाव भी मिलता रहा है।
बिहार शरीफ विधानसभा क्षेत्र में राजद के लिए एक योग्य उम्मीदवार के तौर पर मनीष यादव का नाम भी मजबूती से उछल रहा है। संगठन में वह लंबे समय से जुड़े रहे हैं, यहां तक कि राजद में बिहार प्रदेश के प्रवक्ता की जिम्मेदारी भी वह बखूबी निभा चुका है, और क्षेत्र में लोगों के बीच अपनी लगातार राजनीतिक सक्रियता और स्थानीय समस्याओं को लेकर जनआंदोलनों में अहम भूमिका निभाने की वजह से जेल भी जा चुके हैं। इनकी पृष्ठभूमि पूर्व सांसद विजय कुमार यादव से जुड़ा है, जिनकी काबिलियत का लोहा हर कोई मानता था। कानून की पढ़ाई करने और पत्रकारिता से जुड़े रहने की वजह से मनीष यादव के पास समाज और राजनीति को लेकर एक बेहतर समझ तो है ही, क्षेत्र के लोगों के साथ इनका संपर्क भी व्यापक और सघन है। चुंकि तेजस्वी यादव को परंपराओं को सहजते हुये तेजी से बदल चुके नये दौर की लंबी राजनीति करनी है। ऐसे में सकारात्मक उर्जा के साथ पढ़े-लिखे चेहरों की उन्हें जरूरत ज्यादा होगी। भाजपा और जदयू से नाराज बिहार शरीफ क्षेत्र के लोग भी चर्चा के दौरान इस बात को स्वीकार करते हैं कि मनीष यादव न सिर्फ राजद के लिए बल्कि लंबी राजनीति में तेजस्वी यादव के लिए डार्क हॉर्स साबित हो सकते हैं, जदयू-भाजपा के प्रत्याशी को कड़ी टक्कड़ देने की पूरी काबिलियत रखते हैं। कुशवाहा, रजक, चंद्रवंशी और अन्य पिछड़ी जातियों पर इनकी मजबूत पकड़ और गहरी पैठ है।
नये परिसीमन के बाद वर्तमान बीजेपी विधायक डॉ. सुनील कुमार कुशवाहा जाति का वोट पैंतीस हजार से घटकर मात्र 11 हजार रह गया है। इस क्षेत्र में पहले नंबर पर करीब 65 हजार मुस्लिम मतदाता हैं तो दूसरे नंबर पर करीब 45 हजार यादव मतदाता हैं। चंद्रवंशी 20 हजार और रजक 15 हजार के करीब हैं। यहां से राजद द्वारा मुस्लिम प्रत्याशी खड़ा करने से हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण का मुमकीन है। क्षेत्र के राजद समर्थक लोगों का मानना है कि यदि सीट राजद की ओर से मनीष यादव को मिलता है तो उनके हक में हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण भी मुमकिन है। महागठबंधन के अन्य उम्मीदवारों में कई बार पाला बदल चुके पूर्व विधायक पप्पू खान, पूर्व जिला अध्यक्ष हुमायूं अख्तर तारिक प्रमुख है।