बीसीए अध्यक्ष ने जिसे आपराधिक बताया उसे ही गले लगाया
मोहन कुमार, सीनियर रिपोर्टर
पटना। बिहार क्रिकेट संघ में अनियमितताएं अथवा कन्फ़्लिक्ट आफ इन्ट्र्रेस्ट के मायने संभवतः अलग अलग और व्यक्तिवादी हैं। अन्यथा समान मामले में एक संजय निलंबन से लेकर बर्खास्त का दंश झेलने को विवश है । वहीं दूसरा संजय सत्ता की गोद में हिचकोले ले रहा है।
अजब बीसीए की गज़ब कहानी में यह रंग भी खूब जम रहा है। संस्था के मौजूदा सचिव संजय कुमार को बर्खास्तगी का तुगलकी फरमान झेलना पड़ा है। बताया जाता है कि उनके खिलाफ वित्तीय अनियमिता और कन्फ़्लिक्ट आफ इन्ट्र्रेस्ट के आरोप थे। इस मामले में जाँच समिति भी बनी थी। उसका परिणाम क्या आया उसे सार्वजनिक होना शेष है। जिस एसजीएम में सचिव को बरखास्त किया गया वहाँ भी जाँच रिपोर्ट सदन के समक्ष नहीं आना “मंशा” स्पष्ट करता है। जबकि जाँच समिति के अध्यक्ष संजय कुमार सिंह ने बताया था कि सचिव के खिलाफ वित्तीय मामलों में कोई आरोप साबित नहीं हुआ है। कन्फ़्लिक्ट. ऑफ इन्ट्र्रेस्ट का मामला विचाराधीन है। वैसे इस मामले में एथिक आफिसर का फैसला सचिव संजय कुमार के पक्ष में आ चुका है।
ताज्जुब होता है कि ऐसे ही आरोप बीसीए अध्यक्ष राकेश तिवारी द्वारा स्वयं जिला प्रतिनिधि संजय सिंह के खिलाफ लगाया था। उनके आरोप संबंधी पत्र में संजय सिंह पर संघीय स्तर पर गैर राज्य के खिलाड़ी का फर्जी कागजात बनाकर खिलाने, पैसा लेकर बिहार टीम में चयन कराने, अपने निकतम संबंधी को राज्य टीम में स्थान दिलाने के आरोप को आपराधिक मामला बताया गया था और ऐसे मामले में एक केस का हवाला देते हुए जाँच का आदेश भी दिया गया था।
विडंबना यह रही कि इस आरोप को झेल रहे जिला प्रतिनिधि संजय सिंह अध्यक्ष राकेश कुमार तिवारी द्वारा जूनियर चयन समिति की निष्पक्षता पर उठाए गये संदेह में जाँच समिति के चेयरमैन बनाये गये और दो घंटे में ही समिति को क्लीन चिट दे डाला। इस मामले में बड़ा यू टर्न सामने आया कि जूनियर चयन समिति की जाँच से पहले सुपर वाइजरी कमिटी, बीसीसीआई के द्वारा गठित बिहार अंडर 19 टीम के 20 सदस्यीय सूची से गायब कनिष्क कौस्तुभ अचानक जाँच रिपोर्ट सौंपने पर बिहार टीम के अंतिम एकादश में आ जाता है।
और खराब प्रदर्शन के बावजूद छह मैच खेलता है। वह लड़का जिला प्रतिनिधि संजय सिंह का भतीजा निकलता है। ऐसे में यह साफ हो जाता है कि पद और पावर के बूते जिला प्रतिनिधि ने अपने भतीजा को टीम में स्थान पक्का कराया और अध्यक्ष के आदेश को अँगूठा दिखा दिया। अब सवाल यह उठता है कि जिसे अध्यक्ष ने आपराधिक मामले में आरोपी ठहराते हैं वही आरोपी संगीन आरोप झेल रहे जूनियर चयन समिति की जाँच का चेयरमैन कैसे बन जाता है। ऐसे में क्या अध्यक्ष राकेश तिवारी का दायित्व नहीं बनता कि अपने ही लगाये आरोप की सत्यता की जाँच नये सिरे से कराकर खुद पर लग रहे आरोपो को खारिज करें।