भ्रष्टाचार के बावजूद मीड डे मील से बच्चों को राहत
पटना। शिक्षा के साथ-साथ बच्चों के भोजन के अधिकार को भी स्वीकार किया गया है। पंडित जवाहर लाल नेहरू तो यहां तक कहते थे कि भूखे लोगों के लिए डेमोक्रेसी का कोई मतलब नहीं होगा। भारतीय संविधान में भी 6-14 आयु वर्ग के सभी बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का मौलिक अधिकार दिया गया है। प्रारंभिक शिक्षा के सर्वव्यापीकरण एवं सभी बच्चों को उचित पोषण के उद्देश्य से मीड डे मील योजना को प्राथमिक विद्यालयों में लागू किया गया है। इसके तहत बच्चों के लिए शिक्षा के साथ-साथ भोजन की व्यवस्था की गई है।
मीड डे मील योजना का विधिवत प्रारंभ बिहार में जनवरी 2005 में किया गया था। इसके पूर्व 2003-04 में राज्य के दस जिले के 30 ब्लाक में 2531 विद्यालयों में पका-पकाया भोजन देने की प्रक्रिया की शुरुआत हुई थी। बाद में इसका विस्तार राज्य के 15000 प्राथमिक विद्यालयों में किया गया, जिसमें लगभग 30 लाख बच्चों को सम्मिलित किया गया। 1 अप्रैल 2008 से राज्य के मध्य विद्यालयों में मीड मील योजना की शुरुआत कर दी गई।
वित्तीय वर्ष 2010-11 के प्रोजेक्ट एप्रूवल बोर्ड की बैठक में प्रतिदिन प्राथमिक विद्यालयों के लिए 90 लाख मील तथा मध्य विद्यालयों के लिए 26 लाख मील वर्ष के 231 दिनों के लिए अनुमोदित किया गया है। यानि की सरकारी कलेंडर के मुताबिक स्कूल आने पर बच्चों को भोजन निश्चित रूप से मिलेगा।
इस समय राज्य के 48481 प्राथमिक विद्यालयों में 14476688 नामांकित बच्चों तथा 23291 मध्यविद्यालयों में 4337317 बच्चों को मीड डे मील दिया जा रहा है. इनमें राज्य के सभी सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालय, मकतबा, संस्कृत विद्यालय तथा बाल श्रमिक विद्यालय में 1 से 8 तक की कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे शामिल हैं.
व्यवहारिक स्तर पर बच्चों को इसका लाभ मिल रहा है। स्कूलों में बच्चों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। पहले जो बच्चे रोजी रोटी की खातिर मेहनत मजदूरी करते थे, वे अब स्कूल जाना बेहतर समझ रहे हैं। इस योजना से बच्चों के माता-पिता को भी राहत मिली है। बच्चों के लिए भोजन का बंदोबश्त हो जाने से उन्हें थोड़ा सुकुन जरूर मिला है।
कहा जाता है कि स्वस्थ्य शरीर में ही स्वस्थ्य मस्तिष्क का निवास होता है। मीड डे मील योजना का उद्देश्य बच्चों को स्कूल में ही बेहतर भोजना उपलब्ध करना है, ताकि लिखने पढ़ने की उनकी गति बाधित न हो। बिहार सरकार इस दिशा में पूरी कोशिश करती हुई नजर आ रही है।
मीड डे मील योजना को सफल बनाने के लिए हर संभव प्रयास किया जा रहा है। इसी कोशिश के तहत वित्तीय वर्ष 2008-09 में मिड डे मील योजना कोषांग पूर्णत स्वावलंबी बनाने के लिए सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के अधीन 21 मई 2008 को बिहार राज्य मीड डे मील योजना समिति का गठन किया गया है। इसके अध्यक्ष मानव संसाधन मंत्री हैं।
मीड मील योजना को नियमित रुप से चलाने के लिए वित्तीय वर्ष 2010-11 के लिए राज्य योजना में 300 करोड़ रुपये तथा केंद्रीय योजना में 1150 करोड़ रुपये का बजट उपलब्ध कराया गया है। यानि की इस बात की पूरी कोशिश की जा रहा है कि बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ पौष्टिक आहार भी मिले।
केंद्र सरकार एक से चार वर्ग के प्रत्येक बच्चे के लिए प्रति बच्चे के हिसाब से 2.02 रुपया दे रही है, जबकि राज्य सरकार की ओर से इन बच्चो को 0.75 पैसे दिये जा रहे हैं। वर्ग छह से आठ के बच्चों को राज्य सरकार की ओर से 1.01 रुपये दिये जा रहे हैं।
मीड डे मील योजना के प्रबंधन एवं मूल्यांकन के लिए भारत सरकार के मार्ग निर्देश के अनुसार राज्य से लेकर प्रखंड स्तर तक की संचालन एवं सह अनुश्रवण समिति का प्रावधान किया गया है। योजना संचालन हेतु विद्यालय स्तर पर उपलब्ध कराया गया कच्चा खाद्यान्न, उपलब्ध कराई गई राशि एवं विद्यालय में उपलब्ध छात्र-छात्राओं की संख्या के परिप्रेक्ष्य में योजना लगातार समीक्षात्मक बैठक की जाती है।
इस योजना को सफल बनाने के लिए लोगों के बीच में जागरूकता लाने का भी प्रयास किया जा रहा है। जमीनी स्तर पर स्कूलों के हेड मास्टर और शिक्षक भी अधिक से अधिक बच्चों को स्कूलों तक लाने के लिए भरपूर कोशिश कर रहे हैं। गांवों और टोलों के लोगों का भी समर्थन इस योजना को मिल रहा है।
मीड मील योजना में भी लूट खसोट की खबरें लगातार आ रही हैं। इस योजना से जुड़े अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों पर भी सवाल उठ रहे हैं। तमाम सरकारी योजनाओं की तरह इस योजना पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। आलोचकों की माने तो मीड डे मील योजना लूट का एक जरिया बन गया है। इसमें शिक्षा समिति से लेकर स्कूल के हेड मास्टर एवं प्रखंड शिक्षा प्रसार अधिकारी तक कमिशन खोरी कर रहे हैं। कुल मिलाकर इस योजना से जुड़े अधिकतर अधिकारियों के लिए यह योजना एक दुधारु गाय साबित हो रही है।
इस योजना के तहत सरकार स्कूली बच्चों को पौष्टिक आहार देने का दावा कर रही है, लेकिन अधिकतर जगहों पर बच्चों को दोयम दर्जे का भोजन दिया जा रहा है। कमिशनखोरी के चक्कर में अधिकारी भोजन की गुणवत्ता की अनदेखी कर रहे हैं।
स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। अधिक पैसा पाने के चक्कर में स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ चढ़ कर दिखाई जा रही है, ताकि इनके नाम पर मिलने वाले पैसों का बंदर बाट हो सके. शिक्षा समिति, पंचायत समिति, मुखिया, प्रखंड संवेदक की जिम्मेदारी मीड डे मील योजना पर नजर रखने की है, लेकिन रुचि बच्चों को पौष्टिक अहार उपलब्ध कराने के बजाय कमिशन खाने में ज्यादा होती है। यहां तक कि ये लोग हेड मास्टर पर भी दबाव डालने हैं कि अपने स्कूलों में बच्चों की अधिक से अधिक उपस्थिति दिखाये ताकि उसी अनुपात में इन्हें पैसा प्राप्त हो सके।
मीड डे मील योजना में हो रहे लूट पाट को लेकर आम लोगों में भी खासा रोष है। आम लोगों की नजर में यह योजना पूरी तरह से कमिशन खोरों की गिरफ्त है। हाकिमों के लिए यह कमाई का जरिया बना हुआ है। चूंकि यह योजना मुख्य रूप से निम्न तबके के बच्चों के लिए है, इसलिये इस संबंध में मिलने वाली शिकायतों पर भी ध्यान नहीं दिया जाता है।
मीड डे मील की गुणवत्ता को लेकर भी सवाल उठते रहे है। बच्चों को भोजन तो मिल जाता है लेकिन उसकी क्वालिटी बेहद खराब होती है। इस तरह की शिकायतें आम है।
मीड डे मील योजना गरीब तबके बच्चों को स्कूल की तरफ आकर्षित जरूर किया है, लेकिन गरीबी की वजह से इनकी रुचि भोजन में ज्यादा होती है। इनको मतलब पेट भर खाने से होता है, ऐसे में भोजन की गुणवत्ता को लेकर इनकी ओर से अक्सर चुपी साध ली जाती है। बच्चों के माता-पिता भी यह सोच कर चुप रहते हैं कि कम से कम उनके बच्चों को भरपेट खाना तो मिल ही जा रहा है।
कई जगहों पर तो एनजीओ द्वारा खाना पहुंचाने की व्यवस्था है। एनजीओ के साथ डिलींग सीधे जिला शिक्षा पदाधिकारी से होता है। स्कूल के हेड मास्टर को सिर्फ बच्चों की उपस्थिति दिखाना पड़ता है। एनजीओ द्वारा दिये जाने वाले खाने की गुणवत्ता और भी खराब होती है। इसका प्रतिकूल असर बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ता है।
इन तमाम खामियों के बावजूद मीडे डे मील योजना सकारात्मक असर दिखाई दे रहा है। इस योजना की वजह से स्कूलों में गरीब तबके के बच्चों की उपस्थिति पहले की तुलना में बढ़ी है। गरीब तबके के बच्चों को इससे राहत तो मिल ही रहा है, इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है।
इस योजना को लेकर बड़े पैमाने पर मिल रही शिकायतों को ध्यान में रखकर सरकार भी इसमें सुधार के लिए कुछ ठोस कदम उठा रही है. जो इस प्रकार है-
-अनुश्रवण को व्यवस्थित एंव प्रभावी बनना
-खाद्यान्न उठाव को सुचारु करना
-एनजीओ द्वारा केंद्रीकृत किचन व्यवस्था को लागू करना
-बच्चों के नियमित स्वास्थ्य की जांच करना
-प्रबंधन को मजबूत बनाने के लिए वित्तीय व्यवस्था करना
कुल मिलाकर इस योजना को लेकर सरकार गंभीर है। इस योजना को सही तरीके से लागू करने के लिए हर संभव कदम उठाया जा रहा है।
स्कूलों तक बच्चों को खींच लाने में मीड डे मील योजना कारगर साबित हो रही है। भोजन की लालच में बच्चे स्कूलों की ओर तो आकर्षित हो रहे हैं, लेकिन भोजन की क्वालिटी को देखकर कहा जा सकता है कि इस योजना से जुड़े अधिकारियों को और कसने की जरूरत है।