मध्य प्रदेश के हर जिले में भूख से मर रहे हैं बच्चे
भूमिका कलम, भोपाल
मध्य प्रदेश को स्वर्णिम प्रदेश बनाने की तैयारियों में जुटी राज्य सरकार यहां के भविष्य को सुरक्षित करना ही भूल गई। लगभग हर जिले में भूख, कुपोषण और बीमारी से बच्चों की मौत दर्ज की जा रही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक ही प्रदेश में औसतन 71 बच्चे रोजाना दम तोड़ रहे हैं, लेकिन इस ओर ध्यान देने वाला कोई नहीं। बच्चों के मामा होने का दावा करने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी तमाम योजनाओं की घोषणा के अतिरिक्त उनकी जीवन रक्षा के लिए अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठा पाए हैं। वर्ष 2009 में इंटरनेशनल फूड पालिसी रिसर्च संस्थान ने भी भारत के 17 राज्यों में कुपोषण और भूख के मामले में मध्य प्रदेश की स्थिति को चिंताजनक बताया था। 39 लाख बच्चों के कुपोषित होने की बात खुद महिला बाल विकास मंत्री विधानसभा में स्वीकार कर चुकी हैं, जबकि नेशनल फैमली हेल्थ सर्वे रिपोर्ट की मानें तो 60 फीसदी कुपोषण के चलते 60 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं।
सूचकांक
मातृ मृत्यु दर – 335 प्रति लाख
शिशु मृत्यु दर – 70 प्रति हजार पर
गरीबी -65 फीसदी गरीबी रेखा के नीचे
कुपोषण – 60 फीसदी से अधिक
औसत आयु – 57 वर्ष
बजट
वर्ष 2008-09
750 करोड़ – स्थाई खर्च
183 करोड़ – नई योजनाएं
600 करोड़ – एनआरएचएम
वर्ष 2009-10
844 करोड़ – स्थाई खर्च
391 करोड़ – नई योजनाएं
756 करोड़ – एनआरएचएम
”हां कुपोषण से हो रही मौतें ‘‘
08 मार्च 2010 को पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अनूप मिश्रा ने विधानसभा में स्वीकार किया था कि प्रदेश में विभिन्न रोगों से हर साल 30 हजार से अधिक बच्चों की मौत हो रही है और 60 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। इन कुपोषित बच्चों पर मलेरिया, निमोनिया, डायरिया और मीजल्स जैसी बीमारियां जल्दी असर दिखाती हैं। वर्ष 2005-06 में 30563, वर्ष 2006-07 में 32188, वर्ष 2007-08 में 30397 और वर्ष 2008-09 में 29274 बच्चों की मौतें हुई है। मिश्रा द्वारा कुपोषण के कारणों में मां का जल्दी गभर्धारण, नवजात शिशु का कम वजन का होना, संपूर्ण टीकाकरण न होना, छह माह तक शिशु को लगातार स्तनपान न कराना, सही समय पर पोषण आहार न देना, संक्रमण होना और आर्थिक स्थिति कमजोर होना बताया है।
50 फीसदी से अधिक बजट लैप्स
महिला बाल विकास विभाग द्वारा विभिन्न योजनाएं संचालित किए जाने के वाबजूद कुपोषण से मौतें थमने का नाम नहीं ले रही हैं वहीं बच्चों के पोषण आहार संबंधी बजट का 50 फीसदी से अधिक बजट लैप्स हो रहा है। वर्ष 2009-10 में ही कुपोषण से निपटने के लिए मिले 67 करोड़ में से 37 करोड़ रुपए खर्च नहीं किए जा सके और यह राशि लैप्स हो गई। पन्ना, सतना, टीकमगढ, डिंडोरी, खरगोन, खंडवा, श्योपुर, शिवपुरी, कटनी, बडवानी और सीधी अधिक कुपोषण वाले जिले हैं।
बच्चों की मौत पर भारी है विभागों के विवाद
जिलों से आने वाली बच्चों की मौत की खबरें चौकाने वाली नहीं रही क्योंकि इन मौतों के बाद स्वास्थ्य विभाग और महिला बाल विकास एक दूसरे पर जिम्मेदारी ढोलना शुरू कर देते हैं। मौत के कारणों में स्वास्थ्य विभाग का तर्क होता है कि भूखे रहने और सही पोषण आहार नहीं मिलने के कारण बच्चों में बीमारियों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं हो पाती और वे साधारण बीमारियों में ही दम तोड़ देते हैं। ऐसे ही महिला बाल विकास विभाग का तर्क होता है कि बीमारियों के दौरान उपचार की सही सुविधाएं मुहैया नहीं होने के कारण बच्चे मर रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो जमीनी हालात के मुताबिक दोनों ही विभाग सही हैं, लेकिन मौत की जिम्मेदारी भी दोनों विभागों की ही है।
अव्यवहारिक योजनाएं
– कुपोषण के कारण राज्य की लगतार हो रही बदनामी के बाद अब स्वास्थ्य विभाग ने प्रदेश में एक करोड़ बच्चों को विटामिन की गोलियां देकर स्वस्थ करने की कोशिश भी की। आंगनबाडियों में दर्ज बच्चों के लिए तीन दवाओं का इंतजाम किया गया। मई 2010 में चलाई इस योजना पर विभाग ने प्रजनन शिशु स्वास्थ्य के मद से लगभग पांच करोड़ रुपए खर्च किया लेकिन नतीजा सिफर। जुलाई से अब तक हर जिले में बच्चों की लगातार मौत दर्ज की गई, क्योंकि यह दवाएं भी कुछ ही इलाकों तक पहुंच पार्इं।
– महिला बाल विकास विभाग दो साल में पांच बार आंगनबाडी में पोषण आहार का मीनू बदल चुका है लेकिन स्थिति जस की तस है। शिवपुरी जिले के हर ब्लाक में एमपी एग्रो से आने वाला पोषण आहार आंगनबाडियों के बजाय बाजार में बेचा जा रहा है। संपन्न लोगों के घरों के जानवरों का चारा बना पोषण आहार बच्चों के कुपोषण को दूर नहीं कर पा रहा है, क्योंकि कई इलाकों में दो सालों से आंगनबाडियां खुली ही नहीं है।
बंद किया बाल संजीवनी अभियान
महिला बाल विकास विभाग के आला अधिकारियों के अनुसार जो बच्चे आंगनबाड़ी में दर्ज नहीं हैं उनमें कुपोषण का स्तर अधिक होता है। सालों से चलाए जा रहे बाल संजीवनी अभियान के आंकड़ों में कुपोषण बढ़ता गया। इन आंकड़ों को रोकने के लिए भी अभियान के 13 वें चरण को नियमित कार्यक्रम बना दिया गया है।
इनका भी कोई असर नहीं
– इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च संस्थान की ताजा रिपोर्ट ने भी भूख और कुपोषण के मामले में प्रदेश की भयावह स्थिति को उजागर किया है। इस रिपोर्ट के अनुसार देश के 17 प्रदेशों में मप्र की स्थिति सबसे खराब बताई गई है।
– फरवरी 2009 में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग(एनसीपीसीआर) ने प्रदेश में कुपोषण से हुई बच्चों की मौत पर जनसुनवाई की थी। इस दौरे में आयोग की अध्यक्ष शांता सिन्हा ने प्रदेश में बच्चों के हालात पर भारी चिंता जताते हुए मुख्य सचिव और महिला बाल विकास विभाग की प्रमुख सचिव को रिपोर्ट सौंपी। जिसमें तत्काल आईसीडीएस प्रोजेक्ट को बढ़ाने और सुधारने की बात कही गई थी।
– वर्ष 2006 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार समुदाय में 6 साल से कम उम्र के बच्चों पर एक आंगनवाड़ी होना आवश्यक है। इसके बाद भी प्रदेश में बच्चों की जनसंख्या के मान से 50 फीसदी आंगनवाड़ी केंद्रों का संचालन नहीं हो रहा है।
– वर्तमान में एक लाख 26 हजार आंगनवाड़ियों की आवश्यकता है जबकि सिर्फ 68306 केंद्र ही संचालित है। 20 हजार नए केंद्र विभाग एक साल बाद भी नहीं खोल पाया है जिससे लगातार सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना हो रही है।
मध्य प्रदेश की आंगबाडियों में दर्ज बच्चे (केंद्रीय महिला बाल विकास विभाग की रिपोर्ट के अनुसार)
6 माह से 3 साल उम्र के 2052138
3 साल से 6 साल तक के 2070104
जबकि कुल बच्चे 10782214
इस मान से केवल 38.2 फीसदी बच्चे ही आंगनवाडी और अन्य योजनाओं का लाभ ले पा रहे हैं।
बहुत शानदार खबर, भूमि। मुझे तेरी ऐसी ही खबरें चाहिए। लगी रह,
मेरा प्यार, हमेशा की तरह
–
दादू।