हार्ड हिट

मांस और शराब का बोलबाला रहा निकाय चुनाव में

मेरी मदद कीजिये, अधिकारियों को मैं बार-बार फोन लगा रही हूं लेकिन कोई सुन नहीं रहा है। विरोधी पक्ष मेरे वोटरों को बूथ पर आने नहीं दे रहे हैं। पुलिस की मिली भगत से मेरे पति को जेल में डाल दिया है, प्लीज मेरी मदद कीजिये, समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं,” दानापुर नगर परिषद की एक महिला प्रत्याशी बार-बार दूसरी ओर से फोन पर बोले जा रही थी। उसकी सांसे उखड़ी हुई थी और उसके बोलने के अंदाज से स्पष्ट हो रहा था कि वह बुरी तरह से घबराई हुई हैं।

कुछ दिन पहले ए. एन. कालेज के मैदान में पटना नगर निगम के तमाम वार्डों में हुये चुनाव की गिनती के दौरान एक महिला प्रत्याशी इसलिए आगबबूला हो गई क्योंकि उसके बूथ पर उसके चुनाव चिन्ह पर एक भी वोट नहीं गिरा था। उस महिला का सवाल था-“मेरे खुद के वोट कहां गये, मैंने अपने चुनाव चिन्ह पर खुद बटन दबाया था।” ए. एन. कालेज के ही बूथ पर एक ईवीएम मशीन की शील टूटी हुई थी, जिसको लेकर उस वार्ड के एक प्रत्याशी के समर्थकों ने जमकर कुर्सियां चलाई और अंत में पुलिस की लाठियां खाकर मैदान से बाहर हो गये।

पटना नगर निगम का चुनाव परिणाम आने के बाद भिखनापहाड़ी में हारे हुये प्रत्याशी और जीते हुये प्रत्याशी के समर्थकों के बीच स्ट्रीट वार छिड़ गई, जिसमें कोल्ड ड्रींक की बोतलों और लोहे के रॉड का जमकर इस्तेमाल हुआ। उस इलाके की कई दुकानें ध्वस्त कर दी गईं। बेकाबू हो चुके लोगों को नियंत्रण में करने लिए पुलिस ने हमेशा की तरह लाठियां चटकाई। हारे हुये प्रत्याशी का आरोप था कि उसके वार्ड में निवर्तमान प्रत्याशी ने फर्जी वोटरों का इस्तेमाल किया है। हजारों की संख्या में उसने बाहर के लोगों को वार्ड से वोटर बना रखा था।

चुनाव से पूर्व चुनाव आयोग ने यह सख्त आदेश दिया था कि कोई भी प्रत्य़ाशी 40 हजार रुपया से अधिक खर्च नहीं करेगा और उसे अपने खर्च के पाई-पाई का हिसाब देना होगा। चुनाव आयोग  का यह आदेश महज सरकारी फाइलों में ही दब कर रह गया। कुछ प्रत्याशी ऐसे थे जिन्होंने 10 लाख से ऊपर खर्च किया। चुनाव के   पहले से ही अपने समर्थकों के बीच में उन्होंने शराब की नदिया बहा दी। रात-रात भर मुर्गे और मांस का भोज चलता रहा और चुनाव आयोग सोता रहा। ऐसे प्रत्याशियों में ज्यादातर निवर्तमान पार्षद शामिल थे। मांस मुर्गे के अलावा इन्होंने अपने गुर्गों को मोटी रकमें भी दी ताकि वे लोग अपने वोटरों को हांककर बूथ तक ला सके और विपक्षी उम्मीदवारों के वोटरों को बूथ से दूर रख सके।

पटना नगर निगम चुनाव में कुछ प्रत्याशी ऐसे भी थे जिन्होंने अपनी हार के लिए सीधे-सीधे डीएम पर आरोप लगाया। उनका कहना था कि डीएम कार्यालय की ओर से उन्हें चुनाव जीताने के लिए तीन लाख रुपये की मांग की गई थी। यह रकम नहीं देने के कारण उन्हें हार का सामना करना पड़ा, जबकि निर्वतमान पार्षदों ने बैग भर-भर कर नोट डीएम कार्यालय में पहुंचाये। नगर निगम और नगर परिषद के इस चुनाव में डीएम कार्यालय की हकीकत चाहे जो हो, लेकिन इतना तो तय है कि इन चुनावों में प्रत्याशियों द्वारा हर उस हथकंडे का इस्तेमाल किया जो जमीनी स्तर पर चुनाव जीतने के लिए जरूरी माना जाता है।

पूरे चुनाव के दौरान निर्वाचन कार्य में लगे हुये अधिकारियों की भूमिका भी काफी रोचक थी। बूथ पर जाने वाले अधिकारियों को ईवीएम मशीन तो थमा दिया गया था, लेकिन उन मशीनों ठीक से खोलने का इल्म उन्हें नहीं सिखाया गया था। कई बूथों पर अधिकारी ईवीएम मशीन को खोलने के लिए काफी देर तक पसीना बहाते रहे। चुनावी प्रक्रिया समाप्त होने के बाद उन मशीनों को बंद करने में भी उनकी सांसे फूलती रही। इससे साफ जाहिर होता है कि इन अधिकारियों को चुनावी प्रक्रिया से संबंधित उचित प्रशिक्षण नहीं दिया गया था। कई बूथों पर तो ये ईवीएम को बंद करने के दौरान आपस में ही उलझ रहे थे। इन हरकतों को देखकर कहीं से भी यह नहीं लग रहा था कि इन्हें चुनाव कराने का कोई अनुभव है।

इन चुनाव अधिकारियों की सहायता के लिए प्रत्येक बूथ पर बड़े पैमाने पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का इस्तेमाल किया गया था, जो अंदरखाते निर्वतमान पार्षदों के पक्ष में कार्य कर रही थीं। मिली जानकारी के मुताबिक प्रत्येक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को वार्ड विशेष के निर्वतमान प्रत्याशियों की ओर से अतिरिक्त दो-दो हजार रुपये दिये गये थे। तमाम बूथों पर तैनात आंगनबाड़ी कार्यकर्ता निर्वतमान वार्ड पार्षदों के पक्ष में कार्य कर रही थीं। कई बूथों पर तो इन आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को पैसे के लेन-देन को लेकर आपस में खुलकर उलझते हुये देखा गया। इन आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का सबसे अधिक फायदा दागी उम्मीदवारों को मिला।

पूरे चुनाव में पॉश कालनियों के मतदाताओं की उदासीनता भी देखने को मिली। गर्मी की तपिश की वजह से एलिट मतदाताओं ने  बूथ पर जाने की जहमत उठाना मुनासिब नहीं समझा,जबकि राष्ट्रीय पटल पर अन्ना आंदोलन से प्रभावित नागरिक मंच की ओर मतदाताओं को जगाने के लिए सैंकड़ों की संख्या में नुककड़ सभाएं की गई थीं। इन नुक्कड़ सभाओं का प्रभाव एलिट मतदाताओं पर न के बराबर पड़ा। इससे स्पष्ट हो जाता है कि ड्राइंग रुम और कॉफी हाऊस में बैठकर बहसबाजी करने वाले ये मतदाता जमीनी स्तर पर चुनावी प्रक्रिया को पूरी तरह से नकारने की मुद्रा में रहते हैं।

बहरहाल जो जीता वही सिकंदर की तर्ज पर विजेता प्रत्याशी जश्न मनाने में व्यस्त हैं। अब नगर की सरकार इन्हीं प्रत्याशियों के हाथ में है। महापौर के चुनाव के लिए जोड़-तोड़ शुरु हो चुका है। आशंका व्यक्त की जा रही है कि महापौर के चुनाव में भी जबरदस्त लेन-देन होगा। अब सवाल यह उठता है कि जब डेमोक्रेसी का निचला पायदान ही लुंज पुंज की स्थिति में है, तो अन्य पायदानों की स्थिति भला कैसे दुरुस्त होगी ?

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button