
मानद का भी हो ‘मानक!
डॉ० मत्स्येन्द्र प्रभाकर, स्वतंत्र पत्रकार
चर्चित फिल्म “द डर्टी पिक्चर” में विद्या बालन का एक मशहूर ‘डायलॉग’ है “कुछ लोगों का नाम उनके काम से होता है, मेरा बदनाम होकर हुआ है।” आजकल राजनीतिक क्षेत्र तथा सोशल मीडिया में चर्चित या, ‘वायरल’ होने के लिए बदनाम होकर काम करने का एक ‘सेट फॉर्मूला’ हो गया है। इससे समर्थक तो झूमते ही हैं, विरोधीगण जोर-शोर से आलाप करते हैं और मकसद चंगा हो जाता है। विभिन्न नेता, कार्यकर्ता, राजनीतिक पार्टियाँ तथा सरकारें भी अब आये दिन इसी ढर्रे पर चलती नजर आती हैं। ताजा मामला ‘सिक्सर किंग’ कहे जाने वाले मशहूर युवा क्रिकेटर रिंकू सिंह का है। जिन्हें खबर है कि उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार ने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी पद पर नियुक्त कर दिया है।
यद्यपि राज्य सरकार के द्वारा की गयी यह नियुक्ति एक मानद (ऑनरेरी) पद है और जाहिर है कि रिंकू सिंह को किसी अधिशाषी की तरह बैठ कर जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (बी०एस०ए०) का कार्य नहीं करना है तथापि उन्हें जो पद नाम दिया गया है, प्रश्न उसके मानक का अवश्य है; क्योंकि उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएस्सी) के द्वारा इस पद पर की जाने वाली नियमित नियुक्ति के अभ्यर्थी के लिए योग्यता/अर्हता परास्नातक (पोस्ट ग्रेजुएट) है। जबकि चर्चा है कि रिंकू सिंह हाईस्कूल भी पास नहीं हैं। इससे इस चर्चा ने जोर पकड़ लिया है कि बी०एस०ए० जिले में प्राथमिक तौर पर शिक्षा व्यवस्था को अधिशाषित ( ‘गवर्न’ ) करने वाला पद होता है। इस पद की मर्यादा की रक्षा अवश्य होनी चाहिए क्योंकि लाखों विद्यार्थियों के साथ शिक्षकों एवं शिक्षा व्यवस्था के लोगों के लिए भी बी०एस०ए० का पद-नाम एक आदर्श के साथ ही उच्च मापदण्ड होता है।
राज्य सरकार के अधिकारियों का कहना है कि विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल करने वालों की विभिन्न पदों पर नियुक्ति किये जाने की पुरानी परम्परा है। इस मामले में वैसा ही किया गया है। बावजूद इसके, विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े लोग और रोजगार की बाट जोह रहे बड़ी संख्या में युवा एवं प्रतियोगी इससे सन्तुष्ट नहीं हैं।
पूर्व में अनेक खिलाड़ियों या विशिष्ट उपलब्धि वालों को ‘शैक्षिक योग्यता’ पूरी न होने पर भी सरकारी मानद पद मिले हैं।
प्रख्यात क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को भारतीय वायुसेना ने ‘मानद ग्रुप कैप्टन’ बनाया गया, जबकि उनकी कोई सैन्य पृष्ठभूमि नहीं थी। साथ ही, वे राज्यसभा के सदस्य भी नामित हुए, जिसमें शैक्षिक योग्यता अनिवार्य नहीं थी। इसी तरह ओलम्पिक गोल्ड मेडलिस्ट 🏅 अभिनव बिन्द्रा को भी कई सरकारी समितियों में नामित किया गया। मशहूर क्रिकेट कप्तान रहे कपिल देव को भी टेरिटोरियल आर्मी में ‘मानद लेफ्टिनेंट’ कर्नल’ बनाया गया था। ये नियुक्तियाँ आमतौर पर विशिष्ट उपलब्धियों के आधार पर सम्मान स्वरूप दी जाती हैं, न कि नियमित चयन प्रक्रिया से।
1997 में 12 अक्टूबर को जन्मे रिंकू सिंह एक भारतीय क्रिकेट खिलाडी हैं तथा घरेलू क्रिकेट में अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश और इण्डियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में कोलकाता नाइट राइडर्स (केएनआर) के लिए खेलते हैं। बायें हाथ से बल्लेबाजी करने वाले रिंकू सिंह मध्य क्रम के धुरन्धर बल्लेबाज हैं और क्रिकेट के ‘टी-20’ प्रारूप में विख्यात हैं। उनका कौशल-उभार मुख्य रूप से 2023 में तब दिखा जब उस साल 18 अगस्त को उन्होंने भारत-आयरलैण्ड के मैच के प्रतिभागी के रूप में अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया। वे अमूमन अच्छे खिलाड़ी हैं जिन्हें उनके शानदार छक्कों के लिए जाना जाता है। रिंकू सिंह यथासमय दायें हाथ के ‘ऑफ ब्रेक’ गेंदबाज भी हैं। उन्होंने ‘अण्डर-16’, ‘अण्डर-19’ तथा ‘अण्डर-23’ लेवल पर उत्तर प्रदेश और अण्डर-19 स्तर पर मध्य क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है। रिंकू सिंह ने मार्च 2014 में 16 साल की उम्र में उत्तर प्रदेश के लिए अपनी लिस्ट ‘ए’ क्रिकेट की शुरुआत की और उस मैच में 83 रन बनाये। उन्होंने 2016 में 5 नवम्बर को रणजी ट्रॉफी और 2016-17 में उत्तर प्रदेश के लिए प्रथम श्रेणी क्रिकेट में पदार्पण किया।
हाल ही में रिंकू सिंह तब अधिक चर्चा में आये जब उनके विवाह की बात चली और जौनपुर से समाजवादी पार्टी की संसद सदस्य (एमपी) प्रिया सरोज के साथ लखनऊ में 8 जून को उनकी सगाई सम्पन्न हुई। लेकिन यह चर्चा भी तब फीकी जान पड़ी जब इसी सप्ताह रिंकू सिंह को बीएसए बनाये जाने की बात उभर कर आयी। हालाँकि ऐसा नहीं कि यह पहली बार हुआ है। खेल, कला, संस्कृति और दूसरे क्षेत्रों में विशिष्ट उपलब्धि पाने वालों को सरकारें ऐसा सम्मान देती रही हैं। हाल में ही ऐसी नियुक्ति पाने वाले रिंकू सिंह इकलौते नहीं हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने खेल क्षेत्र में विशिष्ट उपलब्धि वाले कुल सात खिलाड़ियों हाल ही में सरकारी पदों पर मानद नियुक्ति दी है, भले ही उनकी शैक्षिक अर्हता उस पद के अनुसार पूरी न थी। इनमें (1) रिंकू सिंह (क्रिकेटर) को तो जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी बनाया ही गया है, (2) एथलीट प्रवीण कुमार और राजकुमार पाल को पुलिस उप अधीक्षक तथा (3) अजीत सिंह, सिमरन व प्रीति पाल को जिला पञ्चायती राज अधिकारी और (4) किरण बालियान को क्षेत्रीय वन अधिकारी के पद पर नियुक्ति देते हुए सम्मानित किया गया है। इसके साथ ही इन खिलाड़ियों को नियमावली के तहत सात (7) साल में शैक्षिक योग्यता पूरी करने का समय दिया गया है। सूत्रों के अनुसार इन सभी को सम्बन्धित पदों के आर्थिक लाभ एवं अन्य सुविधाएँ अनुमन्य होंगी लेकिन पदोन्नति के लिए वह शैक्षिक योग्यता सात वर्ष में अर्जित करनी होगी जो इन पदों के नियमित अभ्यर्थियों के लिए निर्धारित हैं।
इस सम्बन्ध में भारतीय जनता पार्टी के नेता आलोक वत्स कहते हैं कि, “अवश्य ही इस बारे में जो मानक हैं, उनका पालन किया गया होगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो इनका समायोजन शिक्षविभाग के अतिरिक्त अन्य विभाग में किया जाना चाहिए।” समाजवादी पार्टी के लोग अन्य प्रयत्नशील युवाओं को भी नियुक्ति देने का मुद्दा उठाने लगे हैं। दूसरे दलों के लोगों का कहना है कि खिलाड़ी तो अपने कार्य-कौशल से सम्मान, प्रसिद्धि तथा आर्थिक लाभ भी अर्जित कर ही रहे हैं लेकिन सरकार की प्राथमिकता योग्य और नौकरी की आयु सीमा पूरी कर रहे युवानों को उपयुक्त रोजगार देने की होनी चाहिए। विभिन्न सरकारी विभागों में लाखों पद रिक्त हैं। उन्हें बिना देरी किये उचित प्रक्रिया से पूरा किया जाना चाहिए। अन्य बहुत से युवा हाल ही में पुलिस विभाग में 60 हजार से अधिक युवाओं की नियुक्ति को एक अच्छा कदम मानते हैं पर उनका कहना है कि यह अपर्याप्त है। सरकार पूरे प्रदेश की है। उसे सभी विभागों को पूरी शक्ति के साथ मुस्तैद करना होगा तभी कोई बात बनेगी।
वरिष्ठ सरकारी अधिकारी इस बारे में अमूमन चुप्पी साधे रहते हैं। बहुत आग्रह पर उनका केवल यह कहना होता है कि “सब कुछ शासन की रीति-नीति के तहत जो उपयुक्त होता है, किया जाता है।”
इस बारे में समाज के विभिन्न वर्गों के जागरूक लोग एवं प्रतियोगी परीक्षाओं में जुटे युवजन कहते हैं कि सरकार की नीति समग्रता पर आधारित होनी चाहिए न कि सियासत पर। सरकार को कुछ खिलाडियों को मानद नियुक्ति देने का विचार क्रिकेटर रिंकू सिंह की सपा सांसद प्रिया सरोज से सगाई के बाद ही क्यों आया? “क्या यह एक राजनीतिक अवसर को लपकने जैसा नहीं है?” रिंकू सिंह तथा अन्य बहुत से खिलाडी अच्छी उपलब्धि के साथ लम्बे अरसे से चर्चा में रहे हैं। सात लोगों की नियुक्तियाँ इसी समय ही क्यों की गयी जबकि प्रदेश में पञ्चायत चुनावों का ‘बिगुल’ लगभग बज चुका है। भले ही यह अभी प्रक्रियागत है।
जो भी हो, किसी विशेष उपलब्धि वाले खिलाड़ी या कलाकार को ‘मानद’ नियुक्ति देते समय भी शासन के अधिकारियों को यह ध्यान अवश्य रखना है कि वे शिक्षा विभाग जैसे ‘निकाय’ की गरिमा को न केवल पुनः स्थापित करें अपितु हर कार्य से इसे सहेजें भी। इसमें स्वयं अधिकारियों की भी गरिमा बनी, बची रहेगी। शासन के मुखिया को अनेक बड़े बड़े कार्य देखने हैं। शासन के सभी कार्य उन असंख्य युवानों के लिए आदर्श मानक होने चाहिए जिन्हें भविष्य में व्यवस्था से जुड़ना है।
लेकिन लगता है कि व्यवस्था तथा सरकारों को केवल राजनीतिक हित साधने की चिन्ता है। इसी से उनका कार्य “बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा?” की तर्ज पर होता दिखता है। इसी सम्बन्ध में गौरतलब है कि यह डायलॉग कई फिल्मों में वेरिएशन के साथ आया है। जैसे कि “नाम बदनाम हो गया, मगर नाम तो हुआ!”